यूहन्ना 21 – NCA & HOF

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

यूहन्ना 21:1-25

झील के तीर म चेलामन ला यीसू के दरसन

1एकर बाद यीसू ह अपन चेलामन ला तिबिरियास झील के तीर म दरसन दीस अऊ ओह ए किसम ले दरसन दीस:21:1 “तिबिरियास झील” ला “गलील के झील” घलो कहे जाथे। 2सिमोन पतरस, थोमा (जऊन ला दिदुमुस कहे जाथे), नतनएल जऊन ह गलील प्रदेस के काना सहर के रिहिस, जबदी के बेटामन अऊ दू झन आने चेलामन जुरे रिहिन। 3सिमोन पतरस ह ओमन ला कहिस, “मेंह मछरी मारे बर जावत हंव,” त ओमन कहिन, “हमन घलो तोर संग जाबो।” ओमन जाके डोंगा म चघिन, पर ओ रतिहा ओमन एको ठन मछरी नइं पाईन।

4बड़े बिहनियां, यीसू ह आके झील के तीर म ठाढ़ हो गीस, पर चेलामन नइं चिन्हिन कि ओह यीसू अय।

5तब यीसू ह ओमन ला कहिस, “ए संगवारी हो, का तुम्‍हर करा कोनो मछरी हवय?” ओमन ह जबाब दीन, “नइं।”

6ओह ओमन ला कहिस, “डोंगा के जेवनी कोति अपन जाल ला डारव, त तुमन ला मिलही।” जब ओमन जाल ला डारिन, त जाल म अतेक मछरी फंस गीन कि ओमन जाल ला खींच नइं सकिन।

7तब ओ चेला जेकर ले यीसू मया करय, पतरस ला कहिस, “एह तो परभू अय।” जब सिमोन पतरस सुनिस कि एह परभू अय, त ओह अपन कपड़ा ला अपन कनिहां म लपेटिस (काबरकि ओह कुछू नइं पहिरे रिहिस) अऊ पानी म कूद पड़िस। 8पर आने चेलामन मछरी ले भरे जाल ला खींचत डोंगा म आईन। ओमन पानी के तीर ले जादा दूरिहा म नइं रिहिन। तीर ह करीब एक सौ मीटर दूरिहा रहय। 9जब ओमन भुइयां म उतरिन, त देखिन कि उहां कोयला के आगी बरत रहय अऊ ओम मछरी रखाय रहय अऊ उहां कुछू रोटी घलो रहय।

10यीसू ह ओमन ला कहिस, “जऊन मछरीमन ला तुमन अभी पकड़े हवव, ओम के कुछू लानव।”

11सिमोन पतरस ह डोंगा ऊपर चघिस अऊ मछरी ले भरे जाल ला पानी के तीर म खींचके लानिस; जाल म 153 बड़े मछरी रहंय, पर अतकी जादा मछरी होय के बावजूद जाल ह नइं चीराईस। 12यीसू ह ओमन ला कहिस, “आवव अऊ नास्‍ता करव।” कोनो चेला ला हिम्मत नइं होईस कि ओकर ले ए पुछय कि तेंह कोन अस? काबरकि ओमन जानत रिहिन कि एह परभू अय। 13यीसू ह आईस अऊ रोटी ला लेके ओमन ला दीस, अऊ ओह मछरी ला घलो अइसनेच करिस। 14एह तीसरा बार रिहिस, जब यीसू ह मरे म ले जी उठे के बाद अपन चेलामन ला दरसन दीस।

यीसू अऊ पतरस

15जब ओमन खा डारिन, त यीसू ह सिमोन पतरस ला कहिस, “हे सिमोन, यूहन्ना के बेटा! का तेंह एमन ले बढ़के मोला मया करथस?”

ओह कहिस, “हव परभू, तेंह त जानथस कि मेंह तोर ले मया करथंव।” यीसू ह कहिस, “मोर मेढ़ा-पीलामन ला चरा।”

16यीसू ह ओला फेर कहिस, “हे सिमोन, यूहन्ना के बेटा! का तेंह मोला मया करथस?”

ओह जबाब दीस, “हव परभू, तेंह जानथस कि मेंह तोर ले मया करथंव।”

यीसू ह कहिस, “मोर भेड़मन के रखवारी कर।”

17यीसू ह तीसरा बार ओला कहिस, “हे सिमोन, यूहन्ना के बेटा! का तेंह मोला मया करथस?”

पतरस ह उदास हो गीस काबरकि यीसू ह तीसरा बार ओकर ले पुछिस – “का तेंह मोला मया करथस?” पतरस ह कहिस, “हे परभू, तेंह तो जम्मो बात ला जानथस; तेंह जानथस कि मेंह तोला मया करथंव।”

यीसू ह कहिस, “मोर भेड़मन ला चरा। 18मेंह तोला सच कहथंव कि जब तेंह जवान रहय, त खुद कपड़ा पहिरके जिहां चाहय, उहां चल देवत रहय; पर जब तेंह डोकरा हो जाबे, तब तेंह अपन हांथ ला लमाबे, अऊ कोनो आने मनखे तोला कपड़ा पहिराही, अऊ जिहां तेंह जाय बर नइं चाहबे, उहां ओह तोला ले जाही।” 19ए कहे के दुवारा यीसू ह इसारा कर दीस कि पतरस ह कोन किसम के मिरतू ले परमेसर के महिमा करही। तब यीसू ह ओला कहिस, “मोर पाछू हो ले।”

20पतरस ह मुड़के देखिस कि ओ चेला ह ओमन के पाछू-पाछू आवत रहय, जेकर ले यीसू मया करय, अऊ एह ओही चेला रिहिस, जऊन ह खाना खाय के बखत यीसू कोति निहरके पुछे रिहिस, “हे परभू, ओह कोन ए, जऊन ह तोला दगा दिही?” 21जब पतरस ह ओला देखिस, त ओह यीसू ले पुछिस, “हे परभू, एकर का होही?”

22यीसू ह जबाब दीस, “यदि में चाहंव, त ओह मोर लहुंटके आवत तक जीयत रहिही, एकर ले तोला का? तेंह मोर पाछू हो ले।” 23एकरसेति भाईमन के बीच म ए अफवाह फइल गीस कि ए चेला ह नइं मरही। पर यीसू ह ए नइं कहे रिहिस कि ओह नइं मरही; ओह सिरिप ए कहिस, “यदि में चाहंव, त ओह मोर लहुंटके आवत तक जीयत रहिही, एकर ले तोला का?”

24एह ओही चेला अय, जऊन ह ए बातमन के गवाही देवत हवय अऊ जऊन ह ए बातमन ला लिखे हवय, अऊ हमन जानत हवन कि ओकर गवाही ह सच ए।

25यीसू ह आने अऊ कतको काम करिस, यदि ओम के हर एक बात ला लिखे जातिस, त मेंह सोचथंव कि जऊन किताबमन लिखे जातिन, ओमन ला रखे बर जम्मो संसार म जगह नइं होतिस।

Hoffnung für Alle

Johannes 21:1-25

Jesus begegnet den Jüngern am See Genezareth

1Später zeigte sich Jesus seinen Jüngern noch einmal am See Genezareth21,1 Wörtlich: am See von Tiberias. – Das ist ein anderer Name für den See Genezareth. Vgl. Kapitel 6,1.. Das geschah so: 2Simon Petrus, Thomas, der Zwilling genannt wurde, Nathanael aus Kana in Galiläa, die beiden Söhne von Zebedäus und zwei andere Jünger waren dort zusammen. 3Simon Petrus sagte: »Ich gehe jetzt fischen!« »Wir kommen mit«, meinten die anderen. Sie gingen zum Ufer, stiegen ins Boot und fuhren los. Aber während der ganzen Nacht fingen sie keinen einzigen Fisch.

4Im Morgengrauen stand Jesus am Ufer. Doch die Jünger erkannten ihn nicht. 5Jesus rief ihnen zu: »Freunde, habt ihr nicht ein paar Fische zu essen?« »Nein«, antworteten sie. 6Da forderte er sie auf: »Werft das Netz auf der rechten Seite des Bootes aus, dann werdet ihr einen guten Fang machen!« Sie folgten seinem Rat und fingen so viele Fische, dass sie das Netz nicht mehr einholen konnten.

7Jetzt sagte der Jünger, den Jesus sehr lieb hatte, zu Petrus: »Das ist der Herr!« Kaum hatte Simon Petrus das gehört, zog er sein Obergewand an, das er während der Arbeit abgelegt hatte, sprang ins Wasser und schwamm an das nahe Ufer. 8Die anderen Jünger waren noch etwa hundert Meter vom Ufer entfernt. Sie folgten Petrus mit dem Boot und zogen das gefüllte Netz hinter sich her. 9Als sie aus dem Boot stiegen, sahen sie ein Kohlenfeuer, auf dem Fische brieten. Auch Brot lag bereit.

10Jesus bat die Jünger: »Bringt ein paar von den Fischen her, die ihr gerade gefangen habt!« 11Simon Petrus ging zum Boot und zog das Netz an Land. Es war gefüllt mit 153 großen Fischen. Und obwohl es so viele waren, zerriss das Netz nicht.

12»Kommt her und esst!«, sagte Jesus. Keiner von den Jüngern wagte zu fragen: »Wer bist du?« Aber sie alle wussten: Es ist der Herr. 13Jesus ging auf sie zu, nahm das Brot und verteilte es an sie, ebenso die Fische.

14Dies war das dritte Mal, dass Jesus sich seinen Jüngern zeigte, nachdem er von den Toten auferstanden war.

»Liebst du mich?«

15Nachdem sie an diesem Morgen miteinander gegessen hatten, fragte Jesus Simon: »Simon, Sohn von Johannes, liebst du mich mehr als die anderen hier?« »Ja, Herr«, antwortete ihm Petrus, »du weißt, dass ich dich lieb habe.« »Dann sorge für meine Lämmer«, sagte Jesus.

16Jesus wiederholte seine Frage: »Simon, Sohn von Johannes, liebst du mich?« »Ja, Herr, du weißt doch, dass ich dich lieb habe«, antwortete Petrus noch einmal. Da sagte Jesus zu ihm: »Dann hüte meine Schafe!«

17Und ein drittes Mal fragte Jesus: »Simon, Sohn von Johannes, hast du mich wirklich lieb?« Jetzt wurde Petrus traurig, weil Jesus ihm nun zum dritten Mal diese Frage stellte. Deshalb antwortete er: »Herr, du weißt alles. Du weißt doch auch, wie sehr ich dich lieb habe!« Darauf sagte Jesus: »Dann sorge für meine Schafe!

18Ich sage dir die Wahrheit: Als du jung warst, hast du dir selbst den Gürtel umgebunden und bist gegangen, wohin du wolltest. Im Alter aber wirst du deine Hände ausstrecken; ein anderer wird dir den Gürtel darumbinden und dich dorthin führen, wo du nicht hingehen willst.« 19Damit deutete Jesus an, durch welchen Tod Petrus einmal Gott ehren würde. Dann forderte Jesus ihn auf: »Folge mir nach!«

20Petrus wandte sich um und sah hinter ihnen den Jünger, den Jesus sehr lieb hatte. Es war derselbe, der beim letzten Abendessen seinen Platz ganz nah bei Jesus gehabt21,20 Wörtlich: der sich auch bei dem Abendessen an seine Brust gelehnt hatte. – Vgl. die Anmerkung zu Kapitel 13,23. und ihn gefragt hatte: »Herr, wer von uns wird dich verraten?« 21Petrus fragte nun: »Herr, was wird denn aus ihm?« 22Jesus erwiderte: »Wenn ich will, dass er so lange lebt, bis ich wiederkomme, was geht es dich an? Folge du mir nach!«

23So entstand unter denen, die sich zu Jesus bekannten, das Gerücht: »Dieser Jünger wird nicht sterben.« Aber das hatte Jesus nicht gesagt, sondern: »Wenn ich will, dass er so lange lebt, bis ich wiederkomme, was geht es dich an?«

24Ebendieser Jünger ist es, der all das bezeugt und hier aufgeschrieben hat. Und wir wissen, dass alles, was er bezeugt, wahr ist.

Schlusswort

25Noch vieles mehr hat Jesus getan. Aber wollte man das alles eins nach dem anderen aufschreiben – mir scheint, es wäre wohl auf der ganzen Welt nicht genügend Platz für die vielen Bücher, die dann noch geschrieben werden müssten.