मत्ती 6 – NCA & NAV

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

मत्ती 6:1-34

जरूरतमंद ला दान

1“सचेत रहव! तुमन मनखेमन के आघू म ओमन ला देखाय बर अपन धरमीपन के काम झन करव। नइं तो तुमन ला अपन स्वरगीय ददा ले कुछू इनाम नइं मिलय।

2एकरसेति, जब तुमन जरूरतमंद मनखे ला देथव, त डुगडुगी झन पिटवाव, जइसने कि ढोंगी मनखेमन सभा-घर अऊ गली मन म करथें, ताकि मनखेमन ओमन के बड़ई करंय। मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि ओमन अपन जम्मो इनाम पा गीन। 3पर जब तुमन जरूरतमंद मनखे ला देथव, त तुम्‍हर डेरी हांथ ए बात ला झन जानय कि तुम्‍हर जेवनी हांथ का करत हवय। 4तुम्‍हर दान ह गुपत म रहय। तब तुम्‍हर स्वरगीय ददा जऊन ह गुपत म करे गय काम ला घलो देखथे, तुमन ला इनाम दिही।”

पराथना

(लूका 11:2-4)

5“जब तुमन पराथना करथव, त ढोंगी मनखेमन सहीं झन करव, काबरकि मनखेमन ला देखाय बर, सभा-घर अऊ गली के चऊकमन म ठाढ़ होके पराथना करई, ओमन ला बने लगथे। मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि ओमन अपन जम्मो इनाम पा गीन। 6जब तुमन पराथना करथव, त अपन खोली म जावव, अऊ कपाट ला बंद करके, अपन ददा ले पराथना करव जऊन ह नइं दिखय। तब तुम्‍हर ददा जऊन ह गुपत म करे गय काम ला घलो देखथे, तुमन ला इनाम दिही। 7अऊ जब तुमन पराथना करथव, त आनजातमन सहीं बेमतलब के बातमन ला घेरी-बेरी झन दुहराव, काबरकि ओमन ए सोचथें कि ओमन के बहुंत बात बोले के कारन, परमेसर ह ओमन के सुनही। 8ओमन सहीं झन बनव, काबरकि तुम्‍हर मांगे के पहिली, तुम्‍हर ददा ह जानथे कि तुमन ला का चीज के जरूरत हवय।

9तुमन ला ए किसम ले पराथना करना चाही:

‘हे हमर ददा, तें जो स्‍वरग म हवस,

तोर नांव ह पबितर माने जावय,

10तोर राज आवय,

जइसने तोर ईछा स्‍वरग म पूरा होथे,

वइसने धरती म घलो पूरा होवय।

11हमन ला आज के भोजन दे,

जइसने कि तेंह हर दिन देथस।

12हमर पापमन ला छेमा कर,

जइसने हमन ओमन ला छेमा करे हवन,

जऊन मन हमर बिरोध म पाप करे हवंय।

13अऊ हमन ला परिछा म झन डार,

पर हमन ला बुरई ले बचा,

काबरकि राज, अऊ पराकरम अऊ महिमा सदाकाल तक तोर अय। आमीन।’

14यदि तुमन ओ मनखेमन ला छेमा करथव, जऊन मन तुम्‍हर बिरोध म पाप करे हवंय, त तुम्‍हर स्वरगीय ददा घलो तुमन ला छेमा करही। 15पर यदि तुमन ओ मनखेमन के पाप ला छेमा नइं करव, त तुम्‍हर ददा घलो तुम्‍हर पाप ला छेमा नइं करही।”

उपास

16“जब तुमन उपास करथव, त तुमन अपन चेहरा ला उदास झन बनावव, जइसने कि ढोंगीमन करथें; ओमन अपन चेहरा ला ओरमाय रहिथें, ताकि मनखेमन देखंय कि ओमन उपास करत हवंय। मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि ओमन अपन जम्मो इनाम पा चुकिन। 17पर जब तुमन उपास करथव, त अपन मुड़ म तेल चुपरव अऊ मुहूं ला धोवव, 18ताकि मनखेमन ए झन जानंय कि तुमन उपास करत हवव, पर सिरिप तुम्‍हर ददा परमेसर ह जानय, जऊन ह नइं दिखय। अऊ तुम्‍हर ददा, जऊन ह हर गुपत के काम ला देखथे, तुमन ला इनाम दिही।”

स्‍वरग म धन

(लूका 12:33-34)

19“अपन खातिर ए धरती म धन जमा झन करव, जिहां कीरा अऊ मुर्चा एला नास करथें, अऊ चोरमन सेंध मारके चुरा लेथें। 20पर अपन खातिर स्‍वरग म धन जमा करव, जिहां कीरा अऊ मुर्चा एला नास नइं कर सकंय, अऊ न ही चोरमन सेंध मारके चोरी कर सकंय। 21काबरकि जिहां तुम्‍हर धन हवय, उहां तुम्‍हर मन घलो लगे रहिही।

22आंखी ह देहें के दीया अय। यदि तुम्‍हर आंखीमन बने हवंय, त तुम्‍हर जम्मो देहें ह अंजोर ले भर जाही। 23पर यदि तुम्‍हर आंखीमन खराप हवंय, त तुम्‍हर जम्मो देहें ह अंधियार ले भर जाही। एकरसेति, ओ अंजोर जऊन ह तुमन म हवय, यदि अंधियार हो जाथे, त ओह कतेक भयंकर अंधियार होही।6:23 लूका 11:34-36; यूहन्ना 9:39-41; मत्ती 15:14

24कोनो मनखे दू झन मालिक के सेवा नइं कर सकय। या तो ओह एक झन ले नफरत करही अऊ दूसर झन ले मया; या फेर ओह एक झन बर समर्पित रहिही अऊ दूसर झन ला तुछ जानही। तुमन परमेसर अऊ धन दूनों के सेवा नइं कर सकव।”

चिंता झन करव

(लूका 12:22-34)

25“एकरसेति, मेंह तुमन ला कहत हंव कि तुमन अपन जिनगी के बारे म चिंता झन करव कि तुमन का खाहू या का पीहू, अऊ न अपन देहें के बारे म चिंता करव कि तुमन का पहिरहू। का जिनगी ह भोजन ले जादा महत्‍व के नो हय? अऊ देहें ह ओन्ढा ले बढ़ के नो हय? 26अकास के चिरईमन ला देखव; ओमन ह न बोवंय, न लुवंय अऊ न कोठार म जमा करंय; तभो ले तुम्‍हर स्वरगीय ददा ह ओमन ला खवाथे। का तुमन चिरईमन ले जादा महत्‍व के नो हव? 27तुम्‍हर म ले कोन ह चिंता करे के दुवारा अपन जिनगी म एको घरी घलो बढ़ा सकथे?

28तुमन ओन्ढा बर काबर चिंता करथव? खेत के जंगली फूलमन ला देखव कि ओमन कइसने बढ़थें। ओमन न तो मिहनत करंय अऊ न ही ओन्ढा बिनंय। 29तभो ले मेंह तुमन ला बतावत हंव कि राजा सुलेमान घलो अपन जम्मो सोभा म एमन ले एको झन सहीं नइं सजे-धजे रिहिस। 30यदि परमेसर ह खेत के कांदी ला, जऊन ह आज इहां हवय अऊ कल आगी म झोंक दिये जाही, अइसने ओन्ढा पहिराथे, तब हे अल्‍प बिसवासी मनखेमन, ओह तुमन ला अऊ बने ओन्ढा काबर नइं पहिराही? 31एकरसेति तुमन चिंता झन करव अऊ ए झन कहव कि हमन का खाबो? या का पीबो? या का पहिरबो? 32आनजातमन ए जम्मो चीज के खोज म रहिथें। तुम्‍हर स्वरगीय ददा ह जानथे कि तुमन ला ए जम्मो चीज के जरूरत हवय। 33परमेसर के राज अऊ ओकर धरमीपन के खोज करव, त ए जम्मो चीजमन घलो संग म तुमन ला दिये जाही। 34एकरसेति, कल के चिंता झन करव, काबरकि कल के दिन ह अपन चिंता खुद कर लिही। आज के दुःख ह आज खातिर बहुंते हवय।”

Ketab El Hayat

إنجيل متى 6:1-34

الصدقة

1احْذَرُوا مِنْ أَنْ تَعْمَلُوا الْخَيْرَ أَمَامَ النَّاسِ بِقَصْدِ أَنْ يَنْظُرُوا إِلَيْكُمْ. وَإلَّا، فَلَيْسَ لَكُمْ مُكَافَأَةٌ عِنْدَ أَبِيكُمُ الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ. 2فَإِذَا تَصَدَّقْتَ عَلَى أَحَدٍ، فَلا تَنْفُخْ أَمَامَكَ فِي الْبُوقِ، كَمَا يَفْعَلُ الْمُنَافِقُونَ فِي الْمَجَامِعِ وَالشَّوَارِعِ، لِيَمْدَحَهُمُ النَّاسُ. الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُمْ قَدْ نَالُوا مُكَافَأَتَهُمْ. 3أَمَّا أَنْتَ، فَعِنْدَمَا تَتَصَدَّقُ عَلَى أَحَدٍ، فَلا تَدَعْ يَدَكَ الْيُسْرَى تَعْرِفُ مَا تَفْعَلُهُ الْيُمْنَى. 4لِتَكُونَ صَدَقَتُكَ فِي الْخَفَاءِ، وَأَبُوكَ السَّمَاوِيُّ الَّذِي يَرَى فِي الْخَفَاءِ، هُوَ يُكَافِئُكَ.

الصلاة

5وَعِنْدَمَا تُصَلُّونَ، لَا تَكُونُوا مِثْلَ الْمُنَافِقِينَ الَّذِينَ يُحِبُّونَ أَنْ يُصَلُّوا وَاقِفِينَ فِي الْمَجَامِعِ وَفِي زَوَايَا الشَّوَارِعِ لِيَرَاهُمُ النَّاسُ. الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُمْ قَدْ نَالُوا مُكَافَأَتَهُمْ. 6أَمَّا أَنْتَ، فَعِنْدَمَا تُصَلِّي، فَادْخُلْ غُرْفَتَكَ، وَأَغْلِقِ الْبَابَ عَلَيْكَ، وَصَلِّ إِلَى أَبِيكَ الَّذِي فِي الْخَفَاءِ. وَأَبُوكَ الَّذِي يَرَى فِي الْخَفَاءِ، هُوَ يُكَافِئُكَ. 7وَعِنْدَمَا تُصَلُّونَ، لَا تُكَرِّرُوا كَلاماً فَارِغاً كَمَا يَفْعَلُ الْوَثَنِيُّونَ، ظَنّاً مِنْهُمْ أَنَّهُ بِالإِكْثَارِ مِنَ الْكَلامِ، يُسْتَجَابُ لَهُمْ. 8فَلا تَكُونُوا مِثْلَهُمْ، لأَنَّ أَبَاكُمْ يَعْلَمُ مَا تَحْتَاجُونَ إِلَيْهِ قَبْلَ أَنْ تَسْأَلُوهُ.

9فَصَلُّوا أَنْتُمْ مِثْلَ هَذِهِ الصَّلاةِ: أَبَانَا الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ، لِيَتَقَدَّسِ اسْمُكَ! 10لِيَأْتِ مَلَكُوتُكَ! لِتَكُنْ مَشِيئَتُكَ عَلَى الأَرْضِ كَمَا هِيَ فِي السَّمَاءِ! 11خُبْزَنَا كَفَافَنَا أَعْطِنَا الْيَوْمَ! 12وَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا، كَمَا نَغْفِرُ نَحْنُ لِلْمُذْنِبِينَ إِلَيْنَا! 13وَلا تُدْخِلْنَا فِي تَجْرِبَةٍ، لَكِنْ نَجِّنَا مِنَ الشِّرِّيرِ، لأَنَّ لَكَ الْمُلْكَ وَالْقُوَّةَ وَالْمَجْدَ إِلَى الأَبَدِ. آمِين.

14فَإِنْ غَفَرْتُمْ لِلنَّاسِ زَلّاتِهِمْ، يَغْفِرْ لَكُمْ أَبُوكُمُ السَّمَاوِيُّ زَلّاتِكُمْ. 15وَإِنْ لَمْ تَغْفِرُوا لِلنَّاسِ، لَا يَغْفِرْ لَكُمْ أَبُوكُمُ السَّمَاوِيُّ زَلّاتِكُمْ.

الصوم

16وَعِنْدَمَا تَصُومُونَ، لَا تَكُونُوا عَابِسِي الْوُجُوهِ، الْمُنَافِقُونَ الَّذِينَ يُغَيِّرُونَ وُجُوهَهُمْ لِكَيْ يَظْهَرُوا لِلنَّاسِ صَائِمِينَ. الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ إِنَّهُمْ قَدْ نَالُوا مُكَافَأَتَهُمْ. 17أَمَّا أَنْتَ، فَعِنْدَمَا تَصُمْ، فَاغْسِلْ وَجْهَكَ، وَعَطِّرْ رَأْسَكَ، 18لِكَيْ لَا تَظْهَرَ لِلنَّاسِ صَائِماً، بَلْ لأَبِيكَ الَّذِي فِي الْخَفَاءِ. وَأَبُوكَ الَّذِي يَرَى فِي الْخَفَاءِ، هُوَ يُكَافِئُكَ.

الكنوز في السماء

19لَا تَكْنِزُوا لَكُمْ كُنُوزاً عَلَى الأَرْضِ، حَيْثُ يُفْسِدُهَا السُّوسُ وَالصَّدَأُ، وَيَنْقُبُ عَنْهَا اللُّصُوصُ وَيَسْرِقُونَ. 20بَلِ اكْنِزُوا لَكُمْ كُنُوزاً فِي السَّمَاءِ، حَيْثُ لَا يُفْسِدُهَا سُوسٌ وَلا يَنْقُبُ عَنْهَا لُصُوصٌ وَلا يَسْرِقُونَ. 21فَحَيْثُ يَكُونُ كَنْزُكَ، هُنَاكَ أَيْضاً يَكُونُ قَلْبُكَ!

22الْعَيْنُ مِصْبَاحُ الْجَسَدِ. فَإِنْ كَانَتْ عَيْنُكَ سَلِيمَةً، يَكُونُ جَسَدُكَ كُلُّهُ مُنَوَّراً. 23وَإِنْ كَانَتْ عَيْنُكَ سَيِّئَةً، يَكُونُ جَسَدُكَ كُلُّهُ مُظْلِماً. فَإِذَا كَانَ النُّورُ الَّذِي فِيكَ ظَلاماً، فَمَا أَشَدَّ الظَّلامَ!

24لَا يُمْكِنُ لأَحَدٍ أَنْ يَكُونَ عَبْداً لِسَيِّدَيْنِ: لأَنَّهُ إِمَّا أَنْ يُبْغِضَ أَحَدَهُمَا وَيُحِبَّ الآخَرَ، وَإِمَّا أَنْ يُلازِمَ أَحَدَهُمَا وَيَهْجُرَ الآخَرَ. لَا يُمْكِنُكُمْ أَنْ تَكُونُوا عَبِيداً لِلهِ وَالْمَالِ مَعاً.

لا تهتموا

25لِذلِكَ أَقُولُ لَكُمْ: لَا تَهْتَمُّوا لِمَعِيشَتِكُمْ بِشَأْنِ مَا تَأْكُلُونَ وَمَا تَشْرَبُونَ، وَلا لأَجْسَادِكُمْ بِشَأْنِ مَا تَلْبَسُونَ. أَلَيْسَتِ الْحَيَاةُ أَكْثَرَ مِنْ مُجَرَّدِ طَعَامٍ، وَالْجَسَدُ أَكْثَرَ مِنْ مُجَرَّدِ كِسَاءٍ؟ 26تَأَمَّلُوا طُيُورَ السَّمَاءِ: إِنَّهَا لَا تَزْرَعُ وَلا تَحْصُدُ وَلا تَجْمَعُ فِي مَخَازِنَ، وَأَبُوكُمُ السَّمَاوِيُّ يَعُولُهَا. أَفَلَسْتُمْ أَنْتُمْ أَفْضَلَ مِنْهَا كَثِيراً؟ 27فَمَنْ مِنْكُمْ إِذَا حَمَلَ الْهُمُومَ يَقْدِرُ أَنْ يُطِيلَ عُمْرَهُ وَلَوْ سَاعَةً وَاحِدَةً؟ 28وَلِمَاذَا تَحْمِلُونَ هَمَّ الْكِسَاءِ؟ تَأَمَّلُوا زَنَابِقَ الْحَقْلِ كَيْفَ تَنْمُو: إِنَّهَا لَا تَتْعَبُ وَلا تَغْزِلُ؛ 29وَلَكِنِّي أَقُولُ لَكُمْ: حَتَّى سُلَيْمَانُ فِي قِمَّةِ مَجْدِهِ لَمْ يَلْبَسْ مَا يُعَادِلُ وَاحِدَةً مِنْهَا جَمَالاً! 30فَإِنْ كَانَ اللهُ هَكَذَا يُلْبِسُ الأَعْشَابَ الْبَرِّيَّةَ، مَعَ أَنَّهَا تُوْجَدُ الْيَوْمَ وَتُطْرَحُ غَداً فِي النَّارِ، أَفَلَسْتُمْ أَنْتُمْ، يَا قَلِيلِي الإِيمَانِ، أَوْلَى جِدّاً بِأَنْ يَكْسُوَكُمْ؟ 31فَلا تَحْمِلُوا الْهَمَّ قَائِلِينَ: مَاذَا نَأْكُلُ؟ أَوْ: مَاذَا نَشْرَبُ؟ أَوْ: مَاذَا نَلْبَسُ؟ 32فَهَذِهِ كُلُّهَا يَسْعَى إِلَيْهَا أَهْلُ الدُّنْيَا. فَإِنَّ أَبَاكُمُ السَّمَاوِيَّ يَعْلَمُ حَاجَتَكُمْ إِلَى هَذِهِ كُلِّهَا. 33أَمَّا أَنْتُمْ، فَاطْلُبُوا أَوَّلاً مَلَكُوتَ اللهِ وَبِرَّهُ، وَهَذِهِ كُلُّهَا تُزَادُ لَكُمْ. 34لَا تَهْتَمُّوا بِأَمْرِ الْغَدِ، فَإِنَّ الْغَدَ يَهْتَمُّ بِأَمْرِ نَفْسِهِ. يَكْفِي كُلَّ يَوْمٍ مَا فِيهِ مِنْ سُوءٍ!