मत्ती 18 – NCA & NAV

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

मत्ती 18:1-35

स्‍वरग के राज म सबले बड़े कोन ए

(मरकुस 9:33-37; लूका 9:46-48)

1ओ समय चेलामन यीसू करा आईन अऊ पुछिन, “स्‍वरग के राज म सबले बड़े कोन ए?” 2यीसू ह एक छोटे लइका ला बलाईस अऊ ओला ओमन के बीच म ठाढ़ करके कहिस, 3“मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि जब तक तुमन नइं बदलव अऊ लइकामन सहीं नइं बनव, तब तक तुमन स्‍वरग के राज म जाय नइं सकव। 4एकरसेति जऊन ह अपन-आप ला ए लइका के सहीं नम्र करथे, ओह स्‍वरग के राज म सबले बड़े अय। 5अऊ जऊन ह मोर नांव म अइसने छोटे लइका ला गरहन करथे, ओह मोला गरहन करथे।

6पर जऊन ह मोर ऊपर बिसवास करइया ए छोटे मन ले कोनो ला पाप म गिराथे, त ओकर बर बने होतिस कि ओकर टोंटा म चकिया के एक बड़े पथरा ला बांधे जातिस अऊ ओला गहिरा समुंदर म डुबो दिये जातिस। 7संसार ला ओ चीजमन बर धिक्‍कार अय, जऊन मन मनखेमन ला पाप म गिराथें। अइसने चीजमन के अवई जरूरी अय। पर धिक्‍कार अय ओ मनखे ला, जेकर दुवारा ए चीजमन आथें। 8यदि तुम्‍हर हांथ या तुम्‍हर गोड़ ह तुम्‍हर पाप म गिरे के कारन बनथे, त ओला काटके फटिक दव। तुम्‍हर बर एह बने अय कि तुमन लूलवा या खोरवा होके, जिनगी म परवेस करव, एकर बनिस‍पत कि दूनों हांथ या दूनों गोड़ के रहत, तुमन ला सदाकाल के आगी म डार दिये जावय। 9अऊ यदि तुम्‍हर आंखी ह तुम्‍हर पाप म गिरे के कारन बनथे, त ओला निकारके फटिक दव। तुम्‍हर बर एह बने अय कि तुमन एक आंखी के कनवां होके जिनगी म परवेस करव, एकर बनिस‍पत कि दूनों आंखी के रहत तुमन ला नरक के आगी म डार दिये जावय।”

गंवाय भेड़ के पटं‍तर

(लूका 15:3-7)

10“देखव! तुमन ए छोटे मन ले कोनो ला घलो तुछ झन समझव। काबरकि मेंह तुमन ला कहत हंव कि एमन के दूतमन स्‍वरग म मोर ददा के आघू म हमेसा रहिथें। 11(काबरकि मनखे के बेटा ह गंवायमन ला बंचाय बर आईस)।

12तुमन का सोचथव? यदि कोनो मनखे करा सौ ठन भेड़ हवय, अऊ ओम के एक ठन भेड़ ह भटक जाथे, त का ओह निनान्‍बे भेड़मन ला पहाड़ी ऊपर छोंड़के ओ एक ठन भटके भेड़ ला खोजे बर नइं जावय? 13अऊ यदि ओ भेड़ ह ओला मिल जावय, त मेंह तुमन ला सच कहत हंव; ओह ओ भेड़ खातिर जादा आनंद मनाही, एकर बनिस‍पत कि ओ निनान्‍बे भेड़ जऊन मन भटके नइं रिहिन। 14अइसनेच स्‍वरग म तुम्‍हर ददा ह नइं चाहत हवय कि ए छोटे मन ले एको झन घलो नास होवंय।”

अपराधी भाई के संग बरताव

15“यदि तोर भाई ह तोर बिरोध म पाप करथे, त जा अऊ ओकर गलती ला बता, अऊ ए बात ह सिरिप तुमन दूनों के बीच म होवय। यदि ओह तोर बात ला मान लेथे, त तेंह अपन भाई ला वापिस पा लेय। 16यदि ओह तोर बात ला नइं मानय, त अपन संग म एक या दू झन मनखे ला ले, ताकि दू या तीन झन के गवाही ले हर एक बात साबित हो जावय। 17यदि ओह ओमन के बात ला घलो नइं सुनय, त ए बात कलीसिया ला बता दे, अऊ यदि ओह कलीसिया के बात ला घलो नइं सुनय, त तेंह ओला एक आनजात या एक लगान लेवइया के सहीं समझ।

18मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि जऊन कुछू तुमन धरती ऊपर बांधहू, ओह स्‍वरग म बंधाही, अऊ जऊन कुछू तुमन धरती ऊपर खोलहू, ओह स्‍वरग म खोले जाही।

19मेंह तुम्‍हर ले फेर कहत हंव, यदि तुमन म ले दू झन मनखे एक मन होके धरती ऊपर कोनो बात बर पराथना करहू, त मोर ददा जऊन ह स्‍वरग म हवय, ओ काम ला तुम्‍हर बर कर दिही। 20काबरकि जिहां दू या तीन मनखे मोर नांव म जुरथें, उहां मेंह ओमन के बीच म रहिथंव।”18:19-20 मत्ती 16:19

निरदयी सेवक के पटं‍तर

21तब पतरस ह यीसू करा आईस अऊ पुछिस, “हे परभू, यदि मोर भाई ह मोर बिरोध म पाप करथे, त मेंह कतेक बार ओला छेमा करंव? का सात बार?” 22यीसू ह ओला कहिस, “मेंह तोला नइं कहत हंव कि सात बार, पर सात बार के सत्तर गुना तक।

23एकरसेति, स्‍वरग के राज ह ओ राजा के सहीं अय, जऊन ह अपन सेवकमन ले हिसाब लेय बर चाहिस। 24जब ओह हिसाब लेवन लगिस, त ओकर आघू म एक झन मनखे ला लाने गीस, जऊन ह ओकर लाखों करोड़ों रूपिया के कर्जा लगे रिहिस। 25काबरकि ओह कर्जा चुकाय नइं सकत रिहिस, एकरसेति मालिक ह हुकूम दीस कि ओला अऊ ओकर घरवाली ला अऊ ओकर लइकामन ला अऊ जऊन कुछू ओकर करा हवय, ओ जम्मो ला बेंच दिये जावय अऊ कर्जा के चुकता करे जावय।

26एला सुनके ओ सेवक ह मालिक के आघू म अपन माड़ी के भार गिरिस अऊ बिनती करिस, ‘हे परभू, मोर ऊपर धीरज धर। मेंह तोर जम्मो कर्जा ला चुकता कर दूहूं।’ 27तब ओ सेवक के मालिक ला ओकर ऊपर तरस आईस। ओह ओकर कर्जा ला माफ कर दीस अऊ ओला छोंड़ दीस।

28पर जब ओ सेवक ह बाहिर निकरिस, त ओला ओकर एक संगी सेवक मिलिस, जेकर ऊपर ओकर कुछू सौ रूपिया के कर्जा रिहिस। ओह ओला पकड़िस अऊ ओकर टोंटा ला दबाके कहिस, ‘तोर ऊपर मोर जऊन कर्जा हवय, ओला चुकता कर।’

29ओकर संगी सेवक ह अपन माड़ी के भार गिरके ओकर ले बिनती करिस, ‘मोला कुछू समय दे। मेंह तोर कर्जा ला चुकता कर दूहूं।’

30पर ओह नइं मानिस अऊ जाके ओ मनखे ला तब तक जेल म डलवा दीस, जब तक कि ओह कर्जा के चुकता नइं कर दीस। 31जब आने सेवकमन ए जम्मो ला देखिन, त ओमन अब्‍बड़ उदास होईन, अऊ अपन मालिक करा जाके, ओमन जम्मो बात ला बता दीन।

32तब ओकर मालिक ह ओ सेवक ला बलाईस अऊ कहिस, ‘हे दुस्‍ट सेवक! मेंह तोर जम्मो कर्जा ला माफ करेंव, काबरकि तेंह मोर ले बिनती करय। 33जइसने मेंह तोर ऊपर दया करे रहेंव, वइसने का तोला अपन संगी सेवक ऊपर दया नइं करना चाही?’ 34गुस्सा होके ओकर मालिक ह ओला सजा देवइयामन के हांथ म सऊंप दीस कि ओह तब तक ओमन के हांथ म रहय, जब तक कि ओह जम्मो कर्जा ला नइं पटा देवय।

35यदि तुमन अपन भाई ला अपन हिरदय ले छेमा नइं करहूं, त स्‍वरग के मोर ददा ह घलो तुमन म के हर एक के संग अइसनेच करही।”

Ketab El Hayat

إنجيل متى 18:1-35

الأعظم في ملكوت السماوات

1فِي تِلْكَ السَّاعَةِ، تَقَدَّمَ التَّلامِيذُ إِلَى يَسُوعَ يَسْأَلُونَهُ: «مَنْ هُوَ الأَعْظَمُ، إِذَنْ، فِي مَلَكُوتِ السَّمَاوَاتِ؟» 2فَدَعَا إِلَيْهِ وَلَداً صَغِيراً وَأَوْقَفَهُ وَسْطَهُمْ، 3وَقَالَ: «الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ لَا تَتَحَوَّلُونَ وَتَصِيرُونَ مِثْلَ الأَوْلادِ الصِّغَارِ، فَلَنْ تَدْخُلُوا مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ أَبَداً. 4فَمَنِ اتَّضَعَ فَصَارَ مِثْلَ هَذَا الْوَلَدِ الصَّغِيرِ، فَهُوَ الأَعْظَمُ فِي مَلَكُوتِ السَّمَاوَاتِ. 5وَمَنْ قَبِلَ بِاسْمِي وَلَداً صَغِيراً مِثْلَ هَذَا، فَقَدْ قَبِلَنِي.

مسببو العثرات

6وَمَنْ كَانَ عَثْرَةً لأَحَدِ هَؤُلاءِ الصِّغَارِ الْمُؤْمِنِينَ بِي، فَأَفْضَلُ لَهُ لَوْ عُلِّقَ فِي عُنُقِهِ حَجَرُ الرَّحَى وَأُغْرِقَ فِي أَعْمَاقِ الْبَحْرِ. 7الْوَيْلُ لِلْعَالَمِ مِنَ الْعَثَرَاتِ! فَلابُدَّ أَنْ تَأْتِيَ الْعَثَرَاتُ؛ وَلكِنِ الْوَيْلُ لِمَنْ تَأْتِي الْعَثَرَاتُ عَلَى يَدِهِ! 8فَإِنْ كَانَتْ يَدُكَ أَوْ رِجْلُكَ فَخّاً لَكَ، فَاقْطَعْهَا وَأَلْقِهَا عَنْكَ: أَفْضَلُ لَكَ أَنْ تَدْخُلَ الْحَيَاةَ وَيَدُكَ أَوْ رِجْلُكَ مَقْطُوعَةٌ، مِنْ أَنْ تُطْرَحَ فِي النَّارِ الأَبَدِيَّةِ. 9وَإِنْ كَانَتْ عَيْنُكَ فَخّاً لَكَ، فَاقْلَعْهَا وَأَلْقِهَا عَنْكَ: أَفْضَلُ لَكَ أَنْ تَدْخُلَ الْحَيَاةَ وَعَيْنُكَ مَقْلُوعَةٌ، مِنْ أَنْ تُطْرَحَ فِي جَهَنَّمِ النَّارِ وَلَكَ عَيْنَانِ. 10إِيَّاكُمْ أَنْ تَحْتَقِرُوا أَحَداً مِنْ هَؤُلاءِ الصِّغَارِ! فَإِنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ مَلائِكَتَهُمْ فِي السَّمَاءِ يُشَاهِدُونَ كُلَّ حِينٍ وَجْهَ أَبِي الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ.

مَثل الخروف الضائع

11فَإِنَّ ابْنَ الإِنْسَانِ قَدْ جَاءَ لِكَيْ يُخَلِّصَ الْهَالِكِينَ. 12مَا رَأْيُكُمْ فِي إِنْسَانٍ كَانَ عِنْدَهُ مِئَةُ خَرُوفٍ، فَضَلَّ وَاحِدٌ مِنْهَا: أَفَلا يَتْرُكُ التِّسْعَةَ وَالتِّسْعِينَ فِي الْجِبَالِ، وَيَذْهَبُ يَبْحَثُ عَنِ الضَّالِّ؟ 13الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ إِذَا وَجَدَهُ، فَإِنَّهُ يَفْرَحُ بِهِ أَكْثَرَ مِنْ فَرَحِهِ بِالتِّسْعَةِ وَالتِّسْعِينَ الَّتِي لَمْ تَضِلّ! 14وَهكَذَا، لَا يَشَاءُ أَبُوكُمُ الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ أَنْ يَهْلِكَ وَاحِدٌ مِنْ هَؤُلاءِ الصِّغَارِ.

إن أخطأ إليك أخوك

15إِنْ أَخْطَأَ إِلَيْكَ أَخُوكَ، فَاذْهَبْ إِلَيْهِ وَعَاتِبْهُ بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَلَى انْفِرَادٍ. فَإِذَا سَمِعَ لَكَ، تَكُونُ قَدْ رَبِحْتَ أَخَاكَ. 16وَإذَا لَمْ يَسْمَعْ، فَخُذْ مَعَكَ أَخاً آخَرَ أَوِ اثْنَيْنِ، حَتَّى يَثْبُتَ كُلُّ أَمْرٍ بِشَهَادَةِ شَاهِدَيْنِ أَوْ ثَلاثَةٍ. 17فَإِذَا لَمْ يَسْمَعْ لَهُمَا، فَاعْرِضِ الأَمْرَ عَلَى الْكَنِيسَةِ. فَإِذَا لَمْ يَسْمَعْ لِلْكَنِيسَةِ أَيْضاً، فَلْيَكُنْ عِنْدَكَ كَالْوَثَنِيِّ وَجَابِي الضَّرَائِبِ. 18فَالْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ كُلَّ مَا تَرْبِطُونَهُ عَلَى الأَرْضِ يَكُونُ قَدْ رُبِطَ فِي السَّمَاءِ، وَمَا تَحُلُّونَهُ عَلَى الأَرْضِ يَكُونُ قَدْ حُلَّ فِي السَّمَاءِ. 19وَأَيْضاً أَقُولُ لَكُمْ: إِذَا اتَّفَقَ اثْنَانِ مِنْكُمْ عَلَى الأَرْضِ في أَيِّ أَمْرٍ، مَهْمَا كَانَ مَا يَطْلُبَانِهِ، فَإِنَّ ذَلِكَ يَكُونُ لَهُمَا مِنْ قِبَلِ أَبِي الَّذِي فِي السَّمَاوَاتِ. 20فَإِنَّهُ حَيْثُمَا اجْتَمَعَ اثْنَانِ أَوْ ثَلاثَةٌ بِاسْمِي، فَأَنَا أَكُونُ فِي وَسَطِهِمْ».

مثل العبد الذي لم يرحم

21عِنْدَئِذٍ تَقَدَّمَ إِلَيْهِ بُطْرُسُ وَسَأَلَهُ: «يَا رَبُّ، كَمْ مَرَّةً يُخْطِئُ إِلَيَّ أَخِي فَأَغْفِرَ لَهُ؟ هَلْ إِلَى سَبْعِ مَرَّاتٍ؟» 22فَأَجَابَهُ يَسُوعُ: «لا إِلَى سَبْعِ مَرَّاتٍ، بَلْ إِلَى سَبْعِينَ سَبْعَ مَرَّاتٍ! 23لِهَذَا السَّبَبِ، يُشَبَّهُ مَلَكُوتُ السَّمَاوَاتِ بِإِنْسَانٍ مَلِكٍ أَرَادَ أَنْ يُحَاسِبَ عَبِيدَهُ. 24فَلَمَّا شَرَعَ يُحَاسِبُهُمْ، أُحْضِرَ إِلَيْهِ وَاحِدٌ مَدْيُونٌ بِعَشَرَةِ آلافِ وَزْنَةٍ. 25وَإِذْ لَمْ يَكُنْ عِنْدَهُ مَا يُوفِي بِهِ دَيْنَهُ، أَمَرَ سَيِّدُهُ بِأَنْ يُبَاعَ هُوَ وَزَوْجَتُهُ وَأَوْلادُهُ وَكُلُّ مَا يَمْلِكُ لِيُوفِيَ الدَّيْنَ. 26لكِنَّ الْعَبْدَ خَرَّ أَمَامَهُ سَاجِداً وَقَائِلاً: يَا سَيِّدُ، أَمْهِلْنِي فَأُوفِيَ لَكَ الدَّيْنَ كُلَّهُ. 27فَأَشْفَقَ سَيِّدُ ذَلِكَ الْعَبْدِ عَلَيْهِ، فَأَطْلَقَ سَرَاحَهُ، وَسَامَحَهُ بِالدَّيْنِ.

28وَلكِنْ لَمَّا خَرَجَ ذَلِكَ الْعَبْدُ، قَصَدَ وَاحِداً مِنْ زُمَلائِهِ الْعَبِيدِ كَانَ مَدْيُوناً لَهُ بِمِئَةِ دِينَارٍ. فَقَبَضَ عَلَيْهِ وَأَخَذَ بِخِنَاقِهِ قَائِلاً: أَوْفِنِي مَا عَلَيْكَ! 29فَرَكَعَ زَمِيلُهُ الْعَبْدُ أَمَامَهُ وَقَالَ مُتَوَسِّلاً: أَمْهِلْنِي فَأُوْفِيَكَ! 30فَلَمْ يَقْبَلْ بَلْ مَضَى وَأَلْقَاهُ فِي السِّجْنِ حَتَّى يُوفِيَ مَا عَلَيْهِ. 31وَإِذْ شَاهَدَ زُمَلاؤُهُ الْعَبِيدُ مَا جَرَى، حَزِنُوا جِدّاً، فَمَضَوْا وَأَخْبَرُوا سَيِّدَهُمْ بِكُلِّ مَا جَرَى. 32فَاسْتَدْعَاهُ سَيِّدُهُ وَقَالَ لَهُ: أَيُّهَا الْعَبْدُ الشِّرِّيرُ، ذَلِكَ الدَّيْنُ كُلُّهُ سَامَحْتُكَ بِهِ لأَنَّكَ تَوَسَّلْتَ إِلَيَّ. 33أَفَمَا كَانَ يَجِبُ أَنْ تَرْحَمَ زَمِيلَكَ الْعَبْدَ كَمَا رَحِمْتُكَ أَنَا؟ 34وَإِذْ ثَارَ غَضَبُ سَيِّدِهِ عَلَيْهِ، دَفَعَهُ إِلَى الْجَلّادِينَ لِيُعَذِّبُوهُ حَتَّى يُوفِيَ كُلَّ مَا عَلَيْهِ. 35هَكَذَا يَفْعَلُ بِكُمْ أَبِي السَّمَاوِيُّ إِنْ لَمْ يَغْفِرْ كُلٌّ مِنْكُمْ لأَخِيهِ مِنْ قَلْبِهِ!»