प्रेरितमन के काम 23 – NCA & CST

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

प्रेरितमन के काम 23:1-35

1पौलुस ह धरम-महासभा कोति एकटक देखिस अऊ कहिस, “हे भाईमन हो! मेंह आज तक परमेसर खातिर सही मन से काम करे हवंव।” 2अतकी म महा पुरोहित हनन्याह ह ओमन ला, जऊन मन पौलुस के लकठा म ठाढ़े रहंय, ओकर मुहूं म मारे के हुकूम दीस। 3तब पौलुस ह ओला कहिस, “हे चूना पोताय भिथी! परमेसर ह तोला मारही। तेंह उहां कानून के मुताबिक मोर नियाय करे बर बईठे हवस, पर कानून के उल्टा मोला मारे के हुकूम देवत हस23:3 यहूदी कानून के मुताबिक, एक मनखे ह निरदोस समझे जाथे, जब तक कि ओकर ऊपर लगे दोस ह साबित नइं हो जावय (लैब्यवस्था 19:15)।।”

4पौलुस के लकठा म ठाढ़े मनखेमन ओला कहिन, “तेंह परमेसर के महा पुरोहित के बेजत्ती करत हस।”

5पौलुस ह कहिस, “हे भाईमन हो! मेंह नइं जानत रहेंव कि एह महा पुरोहित ए, काबरकि परमेसर के बचन ह कहिथे, ‘अपन मनखेमन के हाकिम के बारे म खराप बात झन कह।’23:5 निरगमन 22:28

6तब पौलुस ह ए जानके कि इहां कुछू सदूकी अऊ फरीसी मन घलो हवंय, ओह महासभा म कहिस, “हे मोर भाईमन! मेंह एक फरीसी अंव अऊ एक फरीसी के बेटा अंव। मुरदामन के फेर जी उठे के मोर आसा के बारे म मोर ऊपर मुकदमा चलत हवय।” 7जब पौलुस ह ए बात कहिस, त फरीसी अऊ सदूकी मन म झगरा होय लगिस अऊ सभा म फूट पड़ गे। 8(काबरकि सदूकीमन बिसवास करथें कि मुरदामन नइं जी उठंय अऊ न स्‍वरगदूत हवय, न आतमा; पर फरीसीमन ए जम्मो बात म बिसवास करथें)।

9तब अब्‍बड़ हो-हल्‍ला होईस अऊ फरीसी दल के कानून के कुछू गुरूमन ठाढ़ होके जोरदार बहस करन लगिन अऊ कहिन, “हमन ए मनखे म कोनो खराप बात नइं पावत हवन। कहूं कोनो आतमा या स्‍वरगदूत एला कुछू कहे हवय, त का होईस?” 10जब बहुंत झगरा होय लगिस, त सेनापति ह डर्रा गे कि कहूं ओमन पौलुस के कुटी-कुटी झन कर डारंय। एकरसेति, ओह सैनिकमन ला हुकूम दीस कि ओमन उतरके पौलुस ला मनखेमन के बीच ले निकार लें अऊ ओला किला म ले जावंय।

11ओ रतिहा परभू ह पौलुस के लकठा म ठाढ़ होके कहिस, “हिम्मत रख। जइसने तेंह यरूसलेम म मोर गवाही दे हवस, वइसने तोला रोम म घलो मोर गवाही दे बर पड़ही।”

पौलुस के हतिया के सडयंत्र

12ओकर दूसर दिन, बिहनियां, यहूदीमन एक सडयंत्र करिन अऊ ए कसम खाईन कि जब तक हमन पौलुस ला नइं मार डारबो, तब तक हमन न तो कुछू खाबो, न पीबो। 13चालीस ले जादा मनखे ए सडयंत्र म सामिल रिहिन। 14ओमन मुखिया पुरोहित अऊ अगुवामन करा गीन अऊ कहिन, “हमन कसम खाय हवन कि जब तक हमन पौलुस ला नइं मार डारन, तब तक हमन कुछू नइं खावन। 15अब तुमन अऊ धरम महासभा के सदस्यमन सेनापति ला समझावव कि ओह पौलुस ला तुम्‍हर आघू म लानय, ए ढोंग करव कि तुमन ओकर बारे म अऊ सही-सही बात जाने चाहत हव। पर ओकर इहां आय के पहिली हमन ओला मार डारे बर तियार हवन।”

16पर जब पौलुस के भांचा ह ए सडयंत्र के बारे सुनिस, त ओह किला म जाके पौलुस ला बताईस।

17तब पौलुस ह एक अधिकारी ला बलाके कहिस, “ए जवान ला सेनापति करा ले जावव। एह ओला कुछू बताय चाहत हवय।”

18ओ अधिकारी ह पौलुस के भांचा ला सेनापति करा ले जाके कहिस, “ओ कैदी पौलुस ह मोला बलाके कहिस कि ए जवान ला तोर करा ले आवंव। एह तोला कुछू बताय चाहत हवय।”

19सेनापति ह जवान के हांथ ला धरके अलग ले गीस अऊ ओकर ले पुछिस, “तेंह मोला का बताय चाहत हस?”

20ओह कहिस, “यहूदीमन एका करे हवंय कि ओमन तोर ले बिनती करहीं कि कल पौलुस ला धरम-महासभा म लाने जावय, मानो धरम-महासभा ह ओकर बारे म अऊ सही-सही बात जाने चाहत हवय। 21पर तेंह ओमन के बात ला झन मानबे, काबरकि ओम ले चालीस ले जादा मनखेमन पौलुस के घात म हवंय। ओमन ए कसम खाय हवंय कि जब तक ओमन पौलुस ला नइं मार डारहीं, तब तक ओमन न तो खाहीं अऊ न पीहीं। ओमन अभी तियार हवंय अऊ तोर हुकूम के बाट जोहत हवंय।”

22तब सेनापति ह पौलुस के भांचा ला बिदा करिस पर ओला चेताके कहिस, “कोनो ला झन कहिबे कि तेंह मोला ए बात बताय हवस।”

पौलुस ला कैसरिया पठोय जाथे

23तब सेनापति अपन दू झन अधिकारीमन ला बलाके हुकूम दीस, “दू सौ सैनिक, सत्तर घुड़सवार अऊ दू सौ बरछीधारी मनखेमन ला आज रतिहा लगभग नौ बजे कैसरिया जाय बर तियार रखव। 24पौलुस के सवारी बर घोड़ा रखव कि ओला राजपाल फेलिक्स करा सही-सलामत पहुंचा दिये जावय।”

25ओह ए चिट्ठी घलो लिखिस:

26“महा परतापी,

राजपाल फेलिक्स ला क्लौदियुस लुसियास के जोहार।

27ए मनखे ला यहूदीमन धरके के मार डारे चाहत रिहिन। पर जब मोला पता चलिस कि एह रोमी नागरिक ए, त मेंह सेना ले जाके एला छुड़ाके ले आएंव। 28मेंह ए जाने बर चाहत रहेंव कि ओमन एकर ऊपर काबर दोस लगावत रिहिन। एकरसेति एला ओमन के धरम-महासभा म ले गेंव। 29तब मोला पता चलिस कि ओमन अपन कानून के बारे म कतको ठन सवाल ला लेके ओकर ऊपर दोस लगावत हवंय। पर मार डारे जावय या जेल म डारे जावय लइक ओम कोनो दोस नइं ए। 30जब मोला ए बताय गीस कि कुछू यहूदीमन ओकर बिरोध म एक सडयंत्र रचे हवंय, त मेंह तुरते ओला तोर करा पठो देंव। मेंह ओकर ऊपर दोस लगइयामन ला घलो हुकूम दे हवंव कि ओमन तोर आघू म एकर ऊपर नालिस करंय।”

31सैनिकमन ला जइसने हुकूम दिये गे रिहिस, ओमन वइसने करिन। ओमन पौलुस ला रातों-रात अन्तिपतरिस सहर ले आईन। 32ओकर आने दिन, ओमन घुड़सवारमन ला पौलुस के संग जाय बर छोंड़के, खुद किला म लहुंट गीन। 33घुड़सवारमन कैसरिया पहुंचके राजपाल फेलिक्स ला चिट्ठी दीन अऊ पौलुस ला घलो ओला सऊंप दीन।

34राजपाल ह चिट्ठी ला पढ़के पुछिस, “ओह कोन प्रदेस के अय?” जब ओह जानिस कि पौलुस ह किलिकिया के अय, 35त राजपाल ह ओला कहिस, “जब तोर ऊपर दोस लगइयामन इहां आहीं, तब मेंह तोर मामला ला सुनहूं।” तब ओह हुकूम दीस कि पौलुस ला हेरोदेस के महल म पहरा म रखे जावय।

Nueva Versión Internacional (Castilian)

Hechos 23:1-35

1Pablo se quedó mirando fijamente al Consejo y dijo:

―Hermanos, hasta hoy yo he actuado delante de Dios con toda buena conciencia.

2Ante esto, el sumo sacerdote Ananías ordenó a los que estaban cerca de Pablo que lo golpearan en la boca.

3―¡Hipócrita,23:3 Hipócrita. Lit. Pared blanqueada. a ti también te va a golpear Dios! —reaccionó Pablo—. ¡Ahí estás sentado para juzgarme según la ley!, ¿y tú mismo violas la ley al mandar que me golpeen?

4Los que estaban junto a Pablo le interpelaron:

―¿Cómo te atreves a insultar al sumo sacerdote de Dios?

5―Hermanos, no me había dado cuenta de que es el sumo sacerdote —respondió Pablo—; de hecho, está escrito: “No hables mal del jefe de tu pueblo”.23:5 Éx 22:28

6Pablo, sabiendo que unos de ellos eran saduceos y los demás fariseos, exclamó en el Consejo:

―Hermanos, yo soy fariseo de pura cepa. Se me está juzgando porque he puesto mi esperanza en la resurrección de los muertos.

7Apenas dijo esto, surgió un altercado entre los fariseos y los saduceos, y la asamblea quedó dividida. 8(Los saduceos sostienen que no hay resurrección, ni ángeles ni espíritus; los fariseos, en cambio, reconocen todo esto).

9Se produjo un gran alboroto, y algunos de los maestros de la ley que eran fariseos se pusieron de pie y protestaron. «No encontramos ningún delito en este hombre —dijeron—. ¿Acaso no podría haberle hablado un espíritu o un ángel?» 10Se tornó tan violento el altercado que el comandante tuvo miedo de que hicieran pedazos a Pablo. Así que ordenó a los soldados que bajaran para sacarlo de allí por la fuerza y llevárselo al cuartel.

11A la noche siguiente, el Señor se apareció a Pablo y le dijo: «¡Ánimo! Así como has dado testimonio de mí en Jerusalén, es necesario que lo des también en Roma».

Conspiración para matar a Pablo

12Muy de mañana, los judíos tramaron una conspiración y juraron bajo maldición no comer ni beber hasta que lograran matar a Pablo. 13Más de cuarenta hombres estaban implicados en esta conspiración. 14Se presentaron ante los jefes de los sacerdotes y los ancianos, y les dijeron:

―Nosotros hemos jurado bajo maldición no comer nada hasta que logremos matar a Pablo. 15Ahora, con el respaldo del Consejo, pedidle al comandante que haga comparecer al reo ante vosotros, con el pretexto de obtener información más precisa sobre su caso. Nosotros estaremos listos para matarlo en el camino.

16Pero, cuando el hijo de la hermana de Pablo se enteró de esta emboscada, entró en el cuartel y avisó a Pablo. 17Este llamó entonces a uno de los centuriones y le pidió:

―Lleva a este joven al comandante, porque tiene algo que decirle.

18Así que el centurión lo llevó al comandante, y le dijo:

―El preso Pablo me llamó y me pidió que te trajera este joven, porque tiene algo que decirte.

19El comandante tomó de la mano al joven, lo llevó aparte y le preguntó:

―¿Qué quieres decirme?

20―Los judíos se han puesto de acuerdo para pedirte que mañana lleves a Pablo ante el Consejo con el pretexto de obtener información más precisa acerca de él. 21No te dejes convencer, porque más de cuarenta de ellos lo esperan emboscados. Han jurado bajo maldición no comer ni beber hasta que hayan logrado matarlo. Ya están listos; solo aguardan a que tú les concedas su petición.

22El comandante despidió al joven con esta advertencia:

―No le digas a nadie que me has informado de esto.

Trasladan a Pablo a Cesarea

23Entonces el comandante llamó a dos de sus centuriones y les ordenó:

―Alistad un destacamento de doscientos soldados de infantería, setenta de caballería y doscientos lanceros para que vayan a Cesarea esta noche a las nueve.23:23 esta … nueve. Lit. a la tercera hora de la noche. 24Preparad también cabalgaduras para llevar a Pablo sano y salvo al gobernador Félix.

25Además, escribió una carta en estos términos:

26Claudio Lisias,

a su excelencia el gobernador Félix:

Saludos.

27Los judíos prendieron a este hombre y estaban a punto de matarlo, pero yo llegué con mis soldados y lo rescaté, porque me había enterado de que es ciudadano romano. 28Yo quería saber de qué lo acusaban, así que lo llevé al Consejo judío. 29Descubrí que lo acusaban de algunas cuestiones de su ley, pero no había contra él cargo alguno que mereciera la muerte o la cárcel. 30Cuando me informaron que se tramaba una conspiración contra este hombre, decidí enviártelo en seguida. También ordené a sus acusadores que expongan delante de ti los cargos que tengan contra él.

31Así que los soldados, según se les había ordenado, tomaron a Pablo y lo llevaron de noche hasta Antípatris. 32Al día siguiente dejaron que la caballería siguiera con él mientras ellos volvían al cuartel. 33Cuando la caballería llegó a Cesarea, le entregaron la carta al gobernador y le presentaron también a Pablo. 34Félix leyó la carta y preguntó de qué provincia era. Al enterarse de que Pablo era de Cilicia, 35le dijo: «Te daré audiencia cuando lleguen tus acusadores». Y ordenó que lo dejaran bajo custodia en el palacio de Herodes.