مزمور 88 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

مزمور 88:1-18

الْمَزْمُورُ الثَّامِنُ وَالثَّمَانُونَ

تَسْبِيحَةٌ: مَزْمُورٌ لِبَنِي قُورَحَ. لِقَائِدِ الْمُنْشِدِينَ عَلَى النَّايِ الْحَزِينِ لِلْغِنَاءِ الْخَافِتِ. قَصِيدَةٌ تَعْلِيمِيَّةٌ لِهَيْمَانَ الأَزْرَاحِيِّ

1يَا رَبُّ يَا إِلَهَ خَلاصِي، أَمَامَكَ أَصْرُخُ نَهَاراً وَلَيْلاً. 2لِتَأْتِ صَلاتِي أَمَامَكَ، أَمِلْ أُذُنَكَ إِلَى صَرْخَتِي، 3فَإِنَّ نَفْسِي شَبِعَتْ مَصَائِبَ، وَحَيَاتِي تَقْتَرِبُ مِنَ الْمَوْتِ. 4حُسِبْتُ فِي عِدَادِ الْهَابِطِينَ إِلَى قَعْرِ هُوَّةِ الْمَوْتِ، وَكَرَجُلٍ لَا قُوَّةَ لَهُ. 5تَرَكُونِي أَمُوتُ كَقَتْلَى الْحَرْبِ الْمُمَدَّدِينَ فِي الْقَبْرِ، الَّذِينَ لَا تَعُودُ تَذْكُرُهُمْ وَتَكُفُّ يَدَكَ عَنْ إِغَاثَتِهِمْ. 6قَدْ طَرَحْتَنِي فِي الْهُوَّةِ السُّفْلَى، فِي الأَمَاكِنِ الْمُظْلِمَةِ وَالْعَمِيقَةِ. 7اسْتَقَرَّ علَيَّ غَضَبُكَ، وَبِأَمْوَاجِكَ الطَّامِيَةِ ذَلَّلْتَنِي. 8أَبْعَدْتَ عَنِّي أَصْحَابِي، وَجَعَلْتَنِي عَاراً عِنْدَهُمْ. قَدْ حُبِسْتُ فَلَا نَجَاةَ لِي. 9كَلَّتْ عَيْنَايَ مِنْ فَرْطِ البُكَاءِ. إِيَّاكَ يَا رَبُّ دَعَوْتُ كُلَّ يَوْمٍ بَاسِطاً إِلَيْكَ يَدَيَّ.

10هَلْ تَصْنَعُ عَجَائِبَ لِلأَمْوَاتِ، أَمْ تَقُومُ أَشْبَاحُ الْمَوْتَى فَتُمَجِّدَكَ؟ 11أَفِي الْقَبْرِ تُعْلَنُ رَحْمَتُكَ، وَفِي الْهَاوِيَةِ أَمَانَتُكَ؟ 12هَلْ فِي الظَّلامِ تُعْرَفُ عَجَائِبُكَ، وَفِي أَرْضِ النِّسْيَانِ يَظْهَرُ بِرُّكَ؟

13أَمَّا أَنَا فَإِلَيْكَ أَصْرُخُ مُسْتَغِيثاً يَا رَبُّ، وَفِي الصَّبَاحِ تَمْثُلُ صَلاتِي أَمَامَكَ. 14لِمَاذَا يَا رَبُّ تَرْفُضُ نَفْسِي، وَتَحْجُبُ عَنِّي وَجْهَكَ؟ 15إِنَّنِي مِسْكِينٌ، وَمُشْرِفٌ عَلَى الْمَوْتِ مُنْذُ صِبَايَ، وَقَدْ قَاسَيْتُ أَهْوَالَكَ، وَذُهِلْتُ. 16اجْتَاحَنِي غَضَبُكَ الشَّدِيدُ وَأَفْنَتْنِي أَهْوَالُكَ. 17أَحَاطَتْ بِي طُولَ النَّهَارِ كَالْمِيَاهِ وَأَطْبَقَتْ عَلَيَّ كُلُّهَا. 18فَرَّقْتَ عَنِّي الأَصْدِقَاءَ فَصَارَ الظَّلامُ مُلازِماً لِي.

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 88:1-18

स्तोत्र 88

एक गीत. कोराह के पुत्रों की स्तोत्र रचना. संगीत निर्देशक के लिये. माहलाथ लान्‍नोथ88:0 हो सकता है कि यह एक राग का नाम है. अर्थ: “परेशानी का पीड़ा” धुन पर आधारित. एज़्रावंश हेमान का मसकील88:0 शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द

1हे याहवेह, मेरे उद्धारकर्ता परमेश्वर;

मैं दिन-रात आपको पुकारता रहता हूं.

2मेरी प्रार्थना आप तक पहुंच सके;

और आप मेरी पुकार सुनें.

3मेरा प्राण क्लेश में डूब चुका है

तथा मेरा जीवन अधोलोक के निकट आ पहुंचा है.

4मेरी गणना उनमें होने लगी है, जो कब्र में पड़े हैं;

मैं दुःखी पुरुष के समान हो गया हूं.

5मैं मृतकों के मध्य छोड़ दिया गया हूं,

उन वध किए गए पुरुषों के समान,

जो कब्र में पड़े हैं, जिन्हें अब आप स्मरण नहीं करते,

जो आपकी हितचिंता के योग्य नहीं रह गए.

6आपने मुझे अधोलोक में डाल दिया है ऐसी गहराई में,

जहां अंधकार ही अंधकार है.

7आपका कोप मुझ पर अत्यंत भारी पड़ा है;

मानो मैं लहरों में दबा दिया गया हूं.

8मेरे निकटतम मित्रों को आपने मुझसे दूर कर दिया है,

आपने मुझे उनकी घृणा का पात्र बना दिया है.

मैं ऐसा बंध गया हूं कि मुक्त ही नहीं हो पा रहा;

9वेदना से मेरी आंखें धुंधली हो गई हैं.

याहवेह, मैं प्रतिदिन आपको पुकारता हूं;

मैं आपके सामने हाथ फैलाए रहता हूं.

10क्या आप अपने अद्भुत कार्य मृतकों के सामने प्रदर्शित करेंगे?

क्या वे, जो मृत हैं, जीवित होकर आपकी महिमा करेंगे?

11क्या आपके करुणा-प्रेम88:11 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द के अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये सब शामिल हैं की घोषणा कब्र में की जाती है?

क्या विनाश में आपकी सच्चाई प्रदर्शित होगी?

12क्या अंधकारमय स्थान में आपके आश्चर्य कार्य पहचाने जा सकेंगे,

अथवा क्या विश्वासघात के स्थान में आपकी धार्मिकता प्रदर्शित की जा सकेगी?

13किंतु, हे याहवेह, सहायता के लिए मैं आपको ही पुकारता हूं;

प्रातःकाल ही मैं अपनी मांग आपके सामने प्रस्तुत कर देता हूं.

14हे याहवेह, आप क्यों मुझे अस्वीकार करते रहते हैं,

क्यों मुझसे अपना मुख छिपाते रहते हैं?

15मैं युवावस्था से आक्रांत और मृत्यु के निकट रहा हूं;

मैं आपके आतंक से ताड़ना भोग रहा हूं तथा मैं अब दुःखी रह गया हूं.

16आपके कोप ने मुझे भयभीत कर लिया है;

आपके आतंक ने मुझे नष्ट कर दिया है.

17सारे दिन ये मुझे बाढ़ के समान भयभीत किए रहते हैं;

इन्होंने पूरी रीति से मुझे अपने में समाहित कर रखा है.

18आपने मुझसे मेरे मित्र तथा मेरे प्रिय पात्र छीन लिए हैं;

अब तो अंधकार ही मेरा घनिष्ठ मित्र हो गया है.