مزمور 30 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

مزمور 30:1-12

الْمَزْمُورُ الثَّلاثُونَ

مَزْمُورٌ نَشِيدٌ بِمُنَاسَبَةِ تَدْشِينِ الْبَيْتِ. لِدَاوُدَ

1أُمَجِّدُكَ يَا رَبُّ لأَنَّكَ انْتَشَلْتَنِي وَلَمْ تَجْعَلْ أَعْدَائِي يَشْمَتُونَ بِي. 2يَا رَبُّ إِلَهِي اسْتَغَثْتُ بِكَ فَشَفَيْتَنِي 3يَا رَبُّ، أَنْتَ انْتَشَلْتَ نَفْسِي مِنْ شَفَا الْهَاوِيَةِ. وَأَنْقَذْتَنِي مِنْ بَيْنِ الْمُنْحَدِرِينَ إِلَى عَالَمِ الأَمْوَاتِ. 4يَا أَتْقِيَاءَ الرَّبِّ رَنِّمُوا لَهُ، وَارْفَعُوا الشُّكْرَ لاسْمِهِ الْمُقَدَّسِ، 5فَإِنَّ غَضَبَهُ يَدُومُ لِلَحْظَةٍ، أَمَّا رِضَاهُ فَمَدَى الْحَيَاةِ. يَبْقَى الْبُكَاءُ لِلَيْلَةٍ، أَمَّا فِي الصَّبَاحِ فَيَعُمُّ الابْتِهَاجُ.

6وَأَنَا قُلْتُ فِي أَثْنَاءِ طُمَأْنِينَتِي: لَا أَتَزَعْزَعُ أَبَداً. 7أَنْتَ يَا رَبُّ قَدْ وَطَّدْتَ بِرِضَاكَ قُوَّتِي كَالْجَبَلِ الرَّاسِخِ، لَكِنْ حِينَ حَجَبْتَ وَجْهَكَ عَنِّي ارْتَعَبْتُ. 8يَا رَبُّ إِلَيْكَ صَرَخْتُ، وَإِلَيْكَ يَا سَيِّدِي تَضَرَّعْتُ. 9مَاذَا يُجْدِيكَ مَوْتِي وَنُزُولِي إِلَى الْقَبْرِ؟ أَيَسْتَطِيعُ تُرَابِي أَنْ يَحْمَدَكَ أَوْ يُحَدِّثَ بِأَمَانَتِكَ؟ 10اسْمَعْنِي يَا رَبُّ، وَارْحَمْنِي. كُنْ مُعِيناً لِي. 11حَوَّلْتَ نَوْحِي إِلَى رَقْصٍ. خَلَعْتَ عَنِّي مِسْحَ الْحِدَادِ وَكَسَوْتَنِي رِدَاءَ الْفَرَحِ. 12لِتَتَرَنَّمْ لَكَ نَفْسِي وَلَا تَسْكُتْ، يَا رَبُّ إِلَهِي إِلَى الأَبَدِ أَحْمَدُكَ.

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 30:1-12

स्तोत्र 30

एक स्तोत्र. मंदिर के समर्पणोत्सव के लिए एक गीत, दावीद की रचना.

1याहवेह, मैं आपकी महिमा और प्रशंसा करूंगा,

क्योंकि आपने मुझे गहराई में से बचा लिया है

अब मेरे शत्रुओं को मुझ पर हंसने का संतोष प्राप्‍त न हो सकेगा.

2याहवेह, मेरे परमेश्वर, मैंने सहायता के लिए आपको पुकारा,

आपने मुझे पुनःस्वस्थ कर दिया.

3याहवेह, आपने मुझे अधोलोक से ऊपर खींच लिया;

आपने मुझे जीवनदान दिया, उनमें से बचा लिया, जो अधोलोक-कब्र में हैं.

4याहवेह के भक्तो, उनके स्तवन गान गाओ;

उनकी महिमा में जय जयकार करो.

5क्योंकि क्षण मात्र का होता है उनका कोप,

किंतु आजीवन स्थायी रहती है उनकी कृपादृष्टि;

यह संभव है रोना रात भर रहे,

किंतु सबेरा उल्लास से भरा होता है.

6अपनी समृद्धि की स्थिति में मैं कह उठा,

“अब मुझ पर विषमता की स्थिति कभी न आएगी.”

7याहवेह, आपने ही मुझ पर कृपादृष्टि कर,

मुझे पर्वत समान स्थिर कर दिया;

किंतु जब आपने मुझसे अपना मुख छिपा लिया,

तब मैं निराश हो गया.

8याहवेह, मैंने आपको पुकारा;

मेरे प्रभु, मैंने आपसे कृपा की प्रार्थना की:

9“क्या लाभ होगा मेरी मृत्यु से,

मेरे अधोलोक में जाने से?

क्या मिट्टी आपकी स्तुति करेगी?

क्या वह आपकी सच्चाई की साक्ष्य देगी?

10याहवेह, मेरी विनती सुनिए, मुझ पर कृपा कीजिए;

याहवेह, मेरी सहायता कीजिए.”

11आपने मेरे विलाप को उल्‍लास-नृत्य में बदल दिया;

आपने मेरे शोक-वस्त्र टाट उतारकर मुझे हर्ष का आवरण दे दिया,

12कि मेरा हृदय सदा आपका गुणगान करता रहे और कभी चुप न रहे.

याहवेह, मेरे परमेश्वर, मैं सदा-सर्वदा आपके प्रति आभार व्यक्त करता रहूंगा.