الْمَزْمُورُ الْمِئَةُ وَالْحَادِي عَشَرَ
1هَلِّلُويَا! أَشْكُرُ الرَّبَّ مِنْ كُلِّ قَلْبِي فِي مَحْفَلِ أَتْقِيَاءِ الشَّعْبِ. 2مَا أَعْظَمَ أَعْمَالَ الرَّبِّ! يَتَأَمَّلُهَا جَمِيعُ الْمَسْرُورِينَ بِها. 3صَنِيعُهُ جَلالٌ وَبَهَاءٌ، وَعَدْلُهُ ثَابِتٌ إِلَى الأَبَدِ. 4جَعَلَ لِعَجَائِبِهِ ذِكْراً، فَالرَّبُّ حَنَّانٌ وَرَحِيمٌ. 5أَعْطَى مُتَّقِيهِ طَعَاماً، لأَنَّهُ لَا يَنْسَى عَهْدَهُ أَبَداً. 6أَظْهَرَ قُوَّتَهُ لِشَعْبِهِ حِينَ أَوْرَثَهُمْ أَرْضَ الأُمَمِ. 7أَعْمَالُ يَدَيْهِ حَقٌّ وَعَدْلٌ. وَكُلُّ وَصَايَاهُ أَمِينَةٌ. 8رَاسِخَةٌ أَبَدَ الدَّهْرِ، مَصْنُوعَةٌ بِالْحَقِّ وَالاسْتِقَامَةِ. 9افْتَدَى شَعْبَهُ وَكَرَّسَ عَهْدَهُ مَعَهُ إِلَى الأَبَدِ، قَدُّوسٌ وَمَهُوبٌ اسْمُهُ. 10رَأْسُ الْحِكْمَةِ مَخَافَةُ الرَّبِّ. وَالعَامِلُ بِها ذُو فِطْنَةٍ شَدِيدَةٍ. تَسْبِيحُ الرَّبِّ دَائِمٌ إِلَى الأَبَدِ.
स्तोत्र 111
1याहवेह का स्तवन हो.
मैं संपूर्ण हृदय से याहवेह का स्तवन करूंगा,
सीधे मनवालों की समिति और सभा में.
2अति उदात्त हैं याहवेह के कृत्य;
वे उनकी प्रसन्नता का कारण हैं, जो इनको मनन करते हैं.
3महिमामय और भव्य हैं याहवेह के ये कृत्य,
उनकी धार्मिकता सर्वदा है.
4याहवेह ने अपने इन कृत्यों को अविस्मरणीय बना दिया है;
वह उदार एवं कृपालु हैं.
5अपने श्रद्धालुओं के लिए वह आहार का प्रबंध करते हैं;
वह अपनी वाचा सदा-सर्वदा स्मरण रखते हैं.
6उन्होंने अपनी प्रजा पर इन कृत्यों की सामर्थ्य प्रकट कर दी,
जब उन्होंने उन्हें अन्य राष्ट्रों की भूमि प्रदान की.
7उनके द्वारा निष्पन्न समस्त कार्य विश्वासयोग्य और न्याय के हैं;
विश्वासयोग्य हैं उनके सभी उपदेश.
8वे सदा-सर्वदा के लिए अटल हैं,
कि इनका पालन सच्चाई एवं न्याय में किया जाए.
9याहवेह ने अपनी प्रजा का उद्धार किया;
उन्होंने अपनी वाचा सदा-सर्वदा के लिए स्थापित कर दी है.
उनका नाम सबसे अलग तथा पवित्र और भय-योग्य है.
10याहवेह के प्रति श्रद्धा बुद्धि का मूल है;
उन सभी में, जो इसे मानते हैं, उत्तम समझ रहते है.
याहवेह ही हैं सर्वदा वंदना के योग्य.