كورنثوس الثانية 11 – NAV & NCA

Ketab El Hayat

كورنثوس الثانية 11:1-33

بولس والرسل الكذابون

1لَيْتَكُمْ تَحْتَمِلُونَ مِنِّي بَعْضَ الْغَبَاوَةِ، بَلْ إِنَّكُمْ فِي الْوَاقِعِ تَحْتَمِلُونَنِي. 2فَإِنِّي أَغَارُ عَلَيْكُمْ غَيْرَةً مِنْ عِندِ اللهِ لأَنِّي خَطَبْتُكُمْ لِرَجُلٍ وَاحِدٍ هُوَ الْمَسِيحُ، لأُقَدِّمَكُمْ إِلَيْهِ عَذْرَاءَ عَفِيفَةً. 3غَيْرَ أَنِّي أَخْشَى أَنْ تُضَلَّلَ عُقُولُكُمْ عَنِ الإِخْلاصِ وَالطَّهَارَةِ تُجَاهَ الْمَسِيحِ مِثْلَمَا أَغْوَتِ الْحَيَّةُ بِمَكْرِهَا حَوَّاءَ. 4فَإِذَا كَانَ مَنْ يَأْتِيكُمْ يُبَشِّرُ بِيَسُوعَ آخَرَ لَمْ نُبَشِّرْ بِهِ نَحْنُ أَوْ كُنْتُمْ تَنَالُونَ رُوحاً آخَرَ لَمْ تَنَالُوهُ، أَوْ تَقْبَلُونَ إِنْجِيلاً لَمْ تَقْبَلُوهُ، فَإِنَّكُمْ تَحْتَمِلُونَ ذَلِكَ بِكُلِّ سُرُورٍ. 5فَإِنِّي أَعْتَبِرُ نَفْسِي غَيْرَ مُتَخَلِّفٍ فِي شَيْءٍ عَنْ أُولئِكَ الرُّسُلِ الْمُتَفَوِّقِينَ. 6فَمَعَ أَنِّي أَتَكَلَّمُ كَلامَ الْعَامَّةِ غَيْرَ الْفَصِيحِ، فَلا تَنْقُصُنِي الْمَعْرِفَةُ. وَإِنَّمَا أَظْهَرْنَا لَكُمْ ذَلِكَ فِي كُلِّ شَيْءٍ أَمَامَ الْجَمِيعِ.

7أَيَكُونُ ذَنْبِي إِذَنْ، أَنِّي بَشَّرْتُكُمْ بِالإِنْجِيلِ دُونَ أُجْرَةٍ مِنْكُمْ، فَأَنْقَصْتُ قَدْرِي لِيَزْدَادَ قَدْرُكُمْ؟ 8ظَلَمْتُ كَنَائِسَ أُخْرَى بِتَحْمِيلِهَا نَفَقَةَ خِدْمَتِكُمْ. 9وَحِينَ كُنْتُ عِنْدَكُمْ وَاحْتَجْتُ، لَمْ أُثَقِّلْ عَلَى أَحَدٍ مِنْكُمْ. إِذْ سَدَّ حَاجَتِي الإِخْوَةُ الَّذِينَ جَاءُوا مِنْ مُقَاطَعَةِ مَقِدُونِيَّةَ. وَقَدْ حَفِظْتُ نَفْسِي، وَسَأَحْفَظُهَا أَيْضاً، مِنْ أَنْ أَكُونَ ثَقِيلاً عَلَيْكُمْ فِي أَيِّ شَيْءٍ. 10وَمَادَامَ حَقُّ الْمَسِيحِ فِيَّ، لَنْ يُوقِفَ أَحَدٌ افْتِخَارِي هَذَا فِي بِلادِ أَخَائِيَةَ كُلِّهَا! 11لِمَاذَا؟ أَلأَنِّي لَا أُحِبُّكُمْ؟ اللهُ يَعْلَمُ! 12وَلَكِنْ، سَأَفْعَلُ مَا أَنَا فَاعِلُهُ الآنَ لأُسْقِطَ حُجَّةَ الَّذِينَ يَلْتَمِسُونَ حُجَّةً تُبَيِّنُ أَنَّهُمْ مِثْلُنَا فِي مَا يَفْتَخِرُونَ بِهِ. 13فَإِنَّ أَمْثَالَ هَؤُلاءِ هُمْ رُسُلٌ دَجَّالُونَ، عُمَّالٌ مَاكِرُونَ، يُظْهِرُونَ أَنْفُسَهُمْ بِمَظْهَرِ رُسُلِ الْمَسِيحِ. 14وَلا عَجَبَ! فَالشَّيْطَانُ نَفْسُهُ يُظْهِرُ نَفْسَهُ بِمَظْهَرِ مَلاكِ نُورٍ. 15فَلَيْسَ كَثِيراً إِذَنْ أَنْ يُظْهِرَ خُدَّامُهُ أَنْفُسَهُمْ بِمَظْهَرِ خُدَّامِ الْبِرِّ. وَإِنَّ عَاقِبَتَهُمْ سَتَكُونُ عَلَى حَسَبِ أَعْمَالِهِمْ.

بولس يفتخر بآلامه

16أَقُولُ مَرَّةً أُخْرَى: لَا يَظُنَّ أَحَدٌ أَنِّي غَبِيٌّ وَإلَّا، فَاقْبَلُونِي وَلَوْ كَغَبِيٍّ، كَيْ أَفْتَخِرَ أَنَا أَيْضاً قَلِيلاً! 17وَمَا أَتَكَلَّمُ بِهِ هُنَا، لَا أَتَكَلَّمُ بِهِ وَفْقاً لِلرَّبِّ، بَلْ كَأَنِّي فِي الْغَبَاوَةِ، وَلِي هذِهِ الثِّقَةُ الَّتِي تَدْفَعُنِي إِلَى الافْتِخَارِ: 18بِمَا أَنَّ كَثِيرِينَ يَفْتَخِرُونَ بِمَا يُوَافِقُ الْجَسَدَ، فَأَنَا أَيْضاً سَأَفْتَخِرُ. 19فَلأَنَّكُمْ عُقَلاءُ، تَحْتَمِلُونَ الأَغْبِيَاءَ بِسُرُورٍ! 20فَإِنَّكُمْ تَحْتَمِلُونَ كُلَّ مَنْ يَسْتَعْبِدُكُمْ، وَيَفْتَرِسُكُمْ، وَيَسْتَغِلُّكُمْ، وَيَتَكَبَّرُ عَلَيْكُمْ، وَيَلْطِمُكُمْ عَلَى وُجُوهِكُمْ. 21يَالَلْمَهَانَةِ! كَمْ كُنَّا ضُعَفَاءَ فِي مُعَامَلَتِنَا لَكُمْ!

وَلَكِنْ، مَادُمْتُ أَتَكَلَّمُ فِي غَبَاوَةٍ، فَكُلُّ مَا يَتَجَرَّأُ عَلَيْهِ هَؤُلاءِ، أَتَجَرَّأُ عَلَيْهِ أَنَا أَيْضاً. 22فَإِنْ كَانُوا عِبْرَانِيِّينَ، فَأَنَا كَذَلِكَ؛ أَوْ إِسْرَائِيلِيِّينَ، فَأَنَا كَذَلِكَ؛ أَوْ مِنْ نَسْلِ إِبْرَاهِيمَ؛ فَأَنَا كَذَلِكَ! 23وَإِنْ كَانُوا خُدَّامَ الْمَسِيحِ، أَتَكَلَّمُ كَأَنِّي فَقَدْتُ صَوَابِي، فَأَنَا مُتَفَوِّقٌ عَلَيْهِمْ: فِي الأَتْعَابِ أَوْفَرُ مِنْهُمْ جِدّاً، فِي الْجَلْدَاتِ فَوْقَ الْحَدِّ، فِي السُّجُونِ أَوْفَرُ جِدّاً، فِي التَّعَرُّضِ لِلْمَوْتِ أَكْثَرُ مِرَاراً. 24مِنَ الْيَهُودِ تَلَقَّيْتُ الْجَلْدَ خَمْسَ مَرَّاتٍ، كُلَّ مَرَّةٍ أَرْبَعِينَ جَلْدَةً إِلّا وَاحِدَةً. 25ضُرِبْتُ بِالْعِصِيِّ ثَلاثَ مَرَّاتٍ. رُجِمْتُ بِالْحِجَارَةِ مَرَّةً. تَحَطَّمَتْ بِيَ السَّفِينَةُ ثَلاثَ مَرَّاتٍ. قَضَّيْتُ فِي عَرْضِ الْبَحْرِ يَوْماً بِنَهَارِهِ وَلَيْلِهِ. 26سَافَرْتُ أَسْفَاراً عَدِيدَةً؛ وَوَاجَهَتْنِي أَخْطَارُ السُّيُولِ الْجَارِفَةِ، وَأَخْطَارُ قُطَّاعِ الطُّرُقِ، وَأَخْطَارٌ مِنْ بَنِي جِنْسِي، وَأَخْطَارٌ مِنَ الْوَثَنَيِّينَ، وَأَخْطَارٌ فِي الْمُدُنِ، وَأَخْطَارٌ فِي الْبَرَارِي، وَأَخْطَارٌ فِي الْبَحْرِ، وَأَخْطَارٌ بَيْنَ إِخْوَةٍ دَجَّالِينَ.

27وَكَمْ عَانَيْتُ مِنَ التَّعَبِ وَالْكَدِّ وَالسَّهَرِ الطَّوِيلِ، وَالْجُوعِ وَالْعَطَشِ وَالصَّوْمِ الْكَثِيرِ، وَالْبَرْدِ وَالْعُرْيِ. 28وَفَضْلاً عَنْ هَذِهِ الْمَخَاطِرِ الْخَارِجِيَّةِ، يَزْدَادُ عَلَيَّ الضَّغْطُ يَوْماً بَعْدَ يَوْمٍ، إِذْ أَحْمِلُ هَمَّ جَمِيعِ الْكَنَائِسِ. 29أَهُنَالِكَ مَنْ يَضْعُفُ وَلا أَضْعُفُ أَنَا، وَمَنْ يَتَعَثَّرُ وَلا أَحْتَرِقُ أَنَا؟ 30إِنْ كَانَ لابُدَّ مِنَ الافْتِخَارِ، فَإِنِّي سَأَفْتَخِرُ بِأُمُورِ ضَعْفِي. 31وَيَعْلَمُ اللهُ، أَبُو رَبِّنَا يَسُوعَ، الْمُبَارَكُ إِلَى الأَبَدِ، أَنِّي لَسْتُ أَكْذِبُ: 32فَإِنَّ الْحَاكِمَ الَّذِي أَقَامَهُ الْمَلِكُ الْحَارِثُ عَلَى وِلايَةِ دِمَشْقَ، شَدَّدَ الْحِرَاسَةَ عَلَى مَدِينَةِ دِمَشْقَ، رَغْبَةً فِي الْقَبْضِ عَلَيَّ، 33وَلَكِنِّي تَدَلَّيْتُ فِي سَلَّةٍ مِنْ نَافِذَةٍ فِي السُّورِ، فَنَجَوْتُ مِنْ يَدِهِ.

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

2 कुरिन्‍थुस 11:1-33

पौलुस अऊ लबरा प्रेरित

1मोला आसा हवय कि तुमन मोर थोरकन मूर्खता ला सह लूहू, अऊ हां तुमन एला सहत घलो हवव। 2मेंह तुम्‍हर बर ईसवरीय धुन रखथंव। मेंह तुम्‍हर ले सिरिप एकेच घरवाला के वायदा करे हवंव, जऊन ह मसीह अय, ताकि मेंह तुमन ला एक पबितर कुवांरी के रूप म ओला दे सकंव। 3पर मेंह डरत हवंव कि मसीह म तुम्‍हर जऊन ईमानदारी अऊ सुध भक्ति हवय, तुमन ओकर ले भटक झन जावव, जइसने हवा ह सांप के छल-कपट ले धोखा खाय रिहिस। 4काबरकि यदि कोनो तुम्‍हर करा आथे अऊ आने यीसू के परचार करथे, जेकर परचार हमन नइं करे हवन या फेर जऊन आतमा तुमन ला पहिली मिले हवय, ओला छोंड़के कोनो अऊ आतमा के बारे म गोठियाथे या फेर कोनो अऊ किसम के सुघर संदेस सुनाथे, जऊन ला तुमन नइं सुने रहेव, त तुमन ओला असानी से मान लेथव। 5पर मेंह अपन-आप ला ओ बड़े प्रेरितमन ले कोनो बात म कम नइं समझंव। 6मेंह गोठियाय म अनाड़ी अंव, पर मोर करा गियान हवय। हर किसम ले, हमन ए बात ला तुम्‍हर आघू म साफ कर दे हवन।

7का मेंह कोनो पाप करेंव कि तुमन ला परमेसर के सुघर संदेस ला बिगर कोनो दाम लिये सुनांय, अऊ अपन-आप ला दीन-हीन करेंव ताकि तुमन ऊपर उठाय जावव। 8तुम्‍हर बीच म सेवा करे बर, मेंह आने कलीसियामन ले मदद लेंव, ताकि तुम्‍हर सेवा कर सकंव। 9जब मेंह तुम्‍हर संग रहेंव अऊ मोला कोनो चीज के जरूरत होईस, त मेंह काकरो ऊपर बोझ नइं बनेंव, काबरकि जऊन भाईमन मकिदुनिया ले आईन, ओमन मोर जरूरत के चीज ला पूरा करिन। मेंह अब तक तुम्‍हर ऊपर कोनो बोझ नइं बने हवंव, अऊ भविस्य म घलो, मेंह तुम्‍हर ऊपर कोनो किसम ले बोझ नइं बनंव। 10जब तक मसीह के सच्‍चई मोर म हवय, तब तक अखया छेत्र म कोनो मोर ए घमंड करई ला नइं रोकय। 11काबर? का एकरसेति कि मेंह तुम्‍हर ले मया नइं करंव? परमेसर ह जानत हवय कि मेंह तुम्‍हर ले मया करथंव। 12जऊन काम मेंह करत हवंव, ओला मेंह करतेच रहिहूं, ताकि ओ लबरा प्रेरितमन के घमंड करे अऊ ए कहे ला लबरा साबित करंव कि ओमन घलो ओहीच किसम के काम करथें, जइसने हमन करथन।

13काबरकि अइसने मनखेमन लबरा प्रेरित, छल-कपट ले काम करइया अऊ मसीह के प्रेरित के सहीं ढोंग करइया अंय। 14अऊ एह कोनो अचम्भो करे के बात नो हय, काबरकि सैतान ह खुद ज्योतिमय स्‍वरगदूत सहीं रूप धरथे। 15एकरसेति यदि ओकर सेवकमन घलो धरमीपन के सेवक सहीं रूप धरंय, त कोनो बड़े बात नो हय, पर ओमन के अंत ह ओमन के काम के मुताबिक होही।

पौलुस अपन दुःख तकलीफ ऊपर घमंड करथे

16मेंह फेर कहत हंव, कोनो मोला मुरुख झन समझय। पर यदि तुमन मोला मुरुख समझथव, त मोला एक मुरुख के रूप म ही गरहन करव, ताकि मेंह घलो थोरकन घमंड कर सकंव। 17घमंड के ए बात म, मेंह एक मुरुख मनखे के सहीं गोठियावत हंव, मेंह वइसने नइं गोठियावत हवंव, जइसने परभू ह गोठियाही। 18जब कतको झन संसारिक बात के घमंड करथें, त मेंह घलो घमंड करहूं। 19तुमन खुसी ले मुरुखमन के सह लेथव, काबरकि तुमन बहुंत समझदार अव। 20अऊ त अऊ, कहूं कोनो तुमन ला गुलाम बना लेथे, या तुमन ला ठगथे या तुम्‍हर ले फायदा उठाथे या तुम्‍हर आघू म अपन-आप ला बड़े बनाथे या फेर तुम्‍हर गाल म थपरा मारथे, तभो ले तुमन ओकर सह लेथव। 21मोला ए कहत सरम आथे कि हमन ओ जम्मो काम म बहुंत कमजोर रहेंन। पर यदि कोनो मनखे कोनो बात म घमंड करे के हिम्मत करथे, त मेंह एक मुरुख मनखे के सहीं कहत हंव कि मेंह घलो ओ बात म घमंड करे के हिम्मत कर सकथंव। 22का ओमन इबरानी अंय? मेंह घलो अंव। का ओमन इसरायली अंय? मेंह घलो अंव। का ओमन अब्राहम के बंस के अंय? मेंह घलो अंव। 23का ओमन मसीह के सेवक अंय? मेंह ओमन ले जादा बने सेवक अंव – मेंह ए बात एक पागल मनखे के सहीं कहत हंव। मेंह जादा मिहनत करे हवंव, अऊ जादा बार ले जेल गे हवंव, मोला जादा कोर्रा म मारे गे हवय अऊ मेंह बार-बार मिरतू के जोखिम म पड़े हंव। 24पांच बार मेंह यहूदीमन के हांथ ले उनतालीस-उनतालीस कोर्रा खाय हवंव। 25तीन बार मोला लउठी ले मारे गीस, एक बार मोर ऊपर पत्थरवाह करे गीस, तीन बार पानी जहाजमन टूट गीन, जऊन म मेंह जावत रहेंव, एक रात अऊ एक दिन मेंह खुला समुंदर म काटेंव। 26मेंह बार-बार एती-ओती होवत रहेंव। मेंह नदिया के खतरा म, डाकूमन के खतरा म, मोर अपन देस के मनखेमन के खतरा म, आनजातमन के खतरा म, सहर के खतरा म, जंगल के खतरा म, समुंदर के खतरा म अऊ लबरा भाईमन के खतरा म ले गुजर चुके हवंव। 27मेंह मुसिबत ले गुजर चुके हंव अऊ कठिन मिहनत करे हवंव अऊ कतको रतिहा ले उसनिंदा रहे हवंव, मेंह भूख अऊ पियास ला जानत हंव अऊ अक्सर बिगर खाय भूख ला सहे हवंव, मेंह जाड़ा म कम कपड़ा म रहे हवंव। 28अऊ आने बातमन ला का कहंव; हर दिन, जम्मो कलीसियामन बर मोला अपन चिंता खाय जावथे। 29जब कोनो कमजोर होथे, त मेंह घलो ओकर कमजोरी महसूस करथंव; जब कोनो पाप म गिरथे, त मोला दुःख होथे।

30यदि मोला घमंड करना जरूरी ए, त मेंह ओ बात बर घमंड करहूं, जऊन ह मोर कमजोरी ला देखाथे। 31परभू यीसू के ददा परमेसर जेकर महिमा सदा होवय, ओह जानत हवय कि मेंह लबारी नइं मारत हवंव। 32दमिस्क म अरितास राजा के अधीन म जऊन राजपाल रिहिस, ओह मोला पकड़े बर दमिस्क सहर म पहरेदार लगाय रिहिस। 33पर मनखेमन मोला एक ठन टुकनी म बईठारके, सहर के दिवाल म बने एक खिड़की म ले खाल्‍हे उतार दीन अऊ मेंह ओकर हांथ ले बांच गेंव।