صموئيل الأول 22 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

صموئيل الأول 22:1-23

داود في عدلام والمصفاة

1وَهَرَبَ دَاوُدُ مِنْ جَتَّ وَلَجَأَ إِلَى مَغَارَةِ عَدُلَّامَ، فَلَمَّا سَمِعَ إِخْوَتُهُ وَسَائِرُ بَيْتِ أَبِيهِ بِوُجُودِهِ هُنَاكَ جَاءُوا إِلَيْهِ. 2وَانْضَمَّ إِلَيْهِ نَحْوَ أَرْبَعِ مِئَةِ رَجُلٍ مِنَ الْمُتَضَايِقِينَ وَالْمَدْيُونِينَ وَالثَّائِرِينَ، فَتَرَأَّسَ عَلَيْهِمْ. 3ثُمَّ انْتَقَلَ دَاوُدُ مِنْ هُنَاكَ إِلَى مِصْفَاةِ مُوآبَ، وَقَالَ لِمَلِكِ مُوآبَ: «دَعْ أَبِي وَأُمِّي فِي عُهْدَتِكُمْ رَيْثَمَا أَعْلَمُ مَا يَصْنَعُ بِيَ اللهُ». 4فَأَوْدَعَهُمَا عِنْدَ مَلِكِ مُوآبَ، فَأَقَامَا عِنْدَهُ طَوَالَ مُدَّةِ إِقَامَةِ دَاوُدَ فِي الْحِصْنِ. 5فَقَالَ جَادٌ النَّبِيُّ لِدَاوُدَ «لا تُقِمْ فِي الْحِصْنِ، بَلِ امْضِ وَادْخُلْ أَرْضَ يَهُوذَا». فَانْتَقَلَ دَاوُدُ إِلَى غَابَةِ حَارِثٍ.

شاول يقتل كهنة نوب

6وَبَلَغَ شَاوُلَ مَا أَصَابَ دَاوُدَ وَرِجَالَهُ مِنْ شُهْرَةٍ. وَكَانَ شَاوُلُ آنَئِذٍ مُقِيماً فِي جِبْعَةَ، يَجْلِسُ تَحْتَ الأَثْلَةِ فِي الرَّامَةِ مُحَاطاً بِأَفْرَادِ حَاشِيَتِهِ، وَرُمْحُهُ بِيَدِهِ. 7فَقَالَ شَاوُلُ لِرِجَالِهِ: «اسْتَمِعُوا يَا بِنْيَامِينِيُّونَ: أَلَعَلَّ ابْنَ يَسَّى يُعْطِيكُمْ جَمِيعاً حُقُولاً وَكُرُوماً أَوْ يَجْعَلُكُمْ جَمِيعاً رُؤَسَاءَ عَلَى أُلُوفِ الْجُنُودِ أَوْ عَلَى مِئَاتٍ مِنْهُمْ، 8حَتَّى تَحَالَفْتُمْ كُلُّكُمْ عَلَيَّ، فَلَمْ يُخْبِرْنِي أَحَدٌ مِنْكُمْ بِالْعَهْدِ الَّذِي أَبْرَمَهُ ابْنِي مَعَ ابْنِ يَسَّى، وَلَيْسَ بَيْنَكُمْ مَنْ يَأْسَى لِي أَوْ يُنْبِئُنِي بِأَنَّ ابْنِي قَدْ أَثَارَ خَادِمِي لِيَكْمُنَ لِي كَمَا يَفْعَلُ الْيَوْمَ؟» 9فَأَجَابَ دُوَاغُ الأَدُومِيُّ الَّذِي كَانَ وَاقِفاً بَيْنَ حَاشِيَةِ شَاوُلَ: «لَقَدْ شَاهَدْتُ ابْنَ يَسَّى قَادِماً إِلَى نُوبٍ إِلَى أَخِيمَالِكَ بْنِ أَخِيطُوبَ 10فَاسْتَشَارَ لَهُ الرَّبَّ وَزَوَّدَهُ بِطَعَامٍ وَأَعْطَاهُ سَيْفَ جُلْيَاتَ».

مصرع أخيمالك والكهنة

11فَاسْتَدْعَى الْمَلِكُ أَخِيمَالِكَ وَبَقِيَّةَ بَيْتِ أَبِيهِ مِنْ كَهَنَةِ نُوبٍ، فَأَقْبَلُوا جَمِيعاً إِلَى الْمَلِكِ. 12فَقَالَ شَاوُلُ: «اسْمَعْ يَا ابْنَ أَخِيطُوبَ». فَأَجَابَ: «نَعَمْ يَا سَيِّدِي». 13فَقَالَ لَهُ شَاوُلُ: «لِمَاذَا اتَّفَقْتُمْ عَلَيَّ أَنْتَ وَابْنُ يَسَّى بِتَزْوِيدِكَ إِيَّاهُ بِالْخُبْزِ وَبِإِعْطَائِهِ سَيْفاً، وَاسْتَشَرْتَ لَهُ اللهَ لِيَثُورَ عَلَيَّ وَيَكْمُنَ لِي كَمَا يَفْعَلُ هَذَا الْيَوْمَ؟» 14فَأَجَابَ أَخِيمَالِكُ: «أَيُّ وَاحِدٍ مِنْ بَيْنِ جَمِيعِ رِجَالِكَ مِثْلُ دَاوُدَ أَمِينٌ وَصِهْرُ الْمَلِكِ وَقَائِدُ حَرَسِهِ وَذُو مَكَانَةٍ رَفِيعَةٍ فِي بَيْتِكَ؟ 15فَهَلْ هَذِهِ هِيَ أَوَّلُ مَرَّةٍ أَسْتَشِيرُ لَهُ فِيهَا اللهَ؟ مَعَاذَ اللهِ أَنْ يَتَّهِمَنِي الْمَلِكُ أَوْ يَتَّهِمَ جَمِيعَ بَيْتِ أَبِي بِارْتِكَابِ شَيْءٍ». 16فَقَالَ الْمَلِكُ: «إِنَّكَ لَا مَحَالَةَ مَائِتٌ يَا أَخِيمَالِكُ، أَنْتَ وَجَمِيعُ بَيْتِ أَبِيكَ». 17وَأَمَرَ الْمَلِكُ حُرَّاسَهُ الْمَاثِلِينَ لَدَيْهِ: «هَيَّا أَحِيطُوا بِكَهَنَةِ الرَّبِّ وَاقْتُلُوهُمْ، لأَنَّهُمْ أَيْضاً قَدْ تَحَالَفُوا مَعَ دَاوُدَ، وَلأَنَّهُمْ عَرَفُوا أَنَّهُ كَانَ هَارِباً فَلَمْ يُخْبِرُونِي». فَلَمْ يَرْضَ حُرَّاسُ الْمَلِكِ أَنْ يَقْتُلُوا كَهَنَةَ الرَّبِّ. 18فَأَمَرَ الْمَلِكُ دُوَاغَ قَائِلاً: «دُرْ أَنْتَ وَاقْتُلِ الْكَهَنَةَ». فَهَجَمَ دُوَاغُ الأَدُومِيُّ عَلَى الْكَهَنَةِ وَقَتَلَ مِنْهُمْ فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ خَمْسَةً وَثَمَانِينَ رَجُلاً لابِسِي أَفُودِ كَتَّانٍ. 19ثُمَّ اقْتَحَمَ نُوبَ مَدِينَةَ الْكَهَنَةِ وَقَتَلَ بِحَدِّ السَّيْفِ الرِّجَالَ وَالنِّسَاءَ وَالأَطْفَالَ وَالرُّضَّعَ وَالثِّيرَانَ وَالْحَمِيرَ وَالْغَنَمَ.

نجاة أبياثار بن أخيمالك

20وَلَمْ يَنْجُ سِوَى ابْنٍ وَاحِدٍ لأَخِيمَالِكَ بْنِ أَخِيطُوبَ يُدْعَى أَبِيَاثَارَ الَّذِي لَجَأَ إِلَى دَاوُدَ، 21وَأَخْبَرَهُ أَنَّ شَاوُلَ قَدْ قَتَلَ كَهَنَةَ الرَّبِّ. 22فَقَالَ دَاوُدُ لأَبِيَاثَارَ: «عِنْدَمَا رَأَيْتُ دُوَاغَ هُنَاكَ فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ أَدْرَكْتُ أَنَّهُ لابُدَّ أَنْ يُخْبِرَ شَاوُلَ. أَنَا هُوَ السَّبَبُ فِي مَوْتِ أَفْرَادِ بَيْتِ أَبِيكَ. 23امْكُثْ مَعِي، لَا تَخَفْ، فَالرَّجُلُ الَّذِي يَسْعَى لِقَتْلِكَ يَسْعَى لِقَتْلِي أَيْضاً، فَأَقِمْ عِنْدِي بِأَمَانٍ».

Hindi Contemporary Version

1 शमुएल 22:1-23

अदुल्लाम और मिज़पाह में दावीद

1तब दावीद ने गाथ से कूच कर अदुल्लाम की एक गुफा में आसरा लिया. जब उनके भाइयों तथा उनके पिता के परिवार को यह मालूम हुआ, वे सभी उनसे भेंटकरने वहां गए. 2वे सभी, जो किसी भी प्रकार की उलझन में थे, जो ऋण के बोझ में दबे जा रहे थे, तथा वे, जिनमें किसी कारण असंतोष समाया हुआ था, दावीद के पास इकट्ठा होने लगे, और दावीद ऐसों के लिए नायक सिद्ध हुए. ऐसे होते-होते उनके पास लगभग चार सौ व्यक्ति इकट्ठा हो गए.

3फिर दावीद वहां से मोआब के मिज़पाह नामक स्थान को चले गए. वहां उन्होंने मोआब के राजा से विनती की, “जब तक परमेश्वर मुझ पर अपनी इच्छा प्रकट न करें, कृपया मेरे माता-पिता को यहां रहने की अनुमति दे दीजिए!” 4तब दावीद ने उन्हें मोआब के राजा के यहां ठहरा दिया, और जब तक दावीद गढ़ में निवास करते रहे वे वहां उनके साथ रहे.

5तब भविष्यद्वक्ता गाद ने दावीद से कहा, “अब गढ़ में निवास न करो. बल्कि अब तुम यहूदिया प्रदेश में चले जाओ.” तब दावीद हेरेथ के वन में जाकर रहने लगे.

नोब नगर के पुरोहितों का वध

6मगर शाऊल को इस बात का पता चल ही गया कि दावीद और उनके साथी कहां हैं. उस दिन शाऊल गिबियाह नामक स्थान पर एक टीले पर झाड़ वृक्ष के नीचे बैठे हुए थे. उनके हाथ में बर्छी थी और उनके आस-पास उनके अधिकारी भी थे. 7शाऊल ने अपने आस-पास के अधिकारियों से कहा, “बिन्यामिन के लोगों! ध्यान से सुनो, क्या यिशै का पुत्र तुम्हें खेत और अंगूर के बगीचे देगा? क्या वह तुम्हें हज़ार सैनिकों पर और सौ-सौ सैनिकों पर अधिकारी चुनेगा? 8तुम सबने मेरे विरुद्ध एका क्यों किया है? कोई भी मुझे सूचना नहीं देता, जब मेरा अपना पुत्र इस यिशै के पुत्र के साथ वाचा बांध लेता है. तुममें से किसी को भी मुझ पर तरस नहीं आता. किसी ने मुझे सूचना नहीं दी कि मेरे अपने पुत्र ने मेरे ही सेवक को मेरे ही विरुद्ध घात लगाकर बैठने का आदेश दे रखा है, जैसा कि आज यहां हो रहा है.”

9मगर एदोमवासी दोएग ने, जो इस समय शाऊल के अधिकारियों के साथ ही था, उन्हें उत्तर दिया, “मैंने यिशै के इस पुत्र को नोब नगर में अहीतूब के पुत्र अहीमेलेख से भेंटकरते देखा है. 10अहीमेलेख ने दावीद के लिए याहवेह से पूछताछ की, उसे भोजन दिया, साथ ही उस फिलिस्तीनी गोलियथ की तलवार भी.”

11तब राजा ने अहीतूब के पुत्र, पुरोहित अहीमेलेख को बुलाने का आदेश दिया; न केवल उन्हें ही, बल्कि नोब नगर में उनके पिता के परिवार के सारे पुरोहितों को भी. वे सभी राजा की उपस्थिति में आ गए. 12तब उन्हें शाऊल ने कहा, “अहीतूब के पुत्र, ध्यान से सुनो.”

अहीमेलेख ने उत्तर दिया, “आज्ञा दीजिए, मेरे स्वामी!”

13शाऊल ने उनसे कहा, “क्या कारण है कि तुमने और यिशै के पुत्र ने मिलकर मेरे विरुद्ध षड़्‍यंत्र रचा है? तुमने उसे भोजन दिया, उसे तलवार दी, और उसके भले के लिए परमेश्वर से प्रार्थना भी की. अब वह मेरा विरोधी हो गया है, और आज स्थिति यह है कि वह मेरे लिए घात लगाए बैठा है?”

14अहीमेलेख ने राजा को उत्तर में कहा, “महाराज, आप ही बताइए आपके सारे सेवकों में दावीद के तुल्य विश्वासयोग्य और कौन है? वह राजा के दामाद हैं, वह आपके अंगरक्षकों के प्रधान हैं, तथा इन सबके अलावा वह आपके परिवार में बहुत ही सम्माननीय हैं! 15क्या आज पहला मौका है, जो मैंने उनके लिए परमेश्वर से प्रार्थना की है? जी नहीं! महाराज, न तो मुझ पर और न मेरे पिता के परिवार पर कोई ऐसे आरोप लगाएं. क्योंकि आपके सेवक को इन विषयों का कोई पता नहीं है, न पूरी तरह और न ही थोड़ा भी.”

16मगर राजा ने उन्हें उत्तर दिया, “अहीमेलेख, आपके लिए तथा आपके पूरे परिवार के लिए मृत्यु दंड तय है.”

17तब राजा ने अपने पास खड़े रक्षकों को आदेश दिया: “आगे बढ़कर याहवेह के इन पुरोहितों को खत्म करो, क्योंकि ये सभी दावीद ही के सहयोगी हैं. इन्हें यह मालूम था कि वह मुझसे बचकर भाग रहा है, फिर भी इन्होंने मुझे इसकी सूचना नहीं दी.”

मगर राजा के अंगरक्षक याहवेह के पुरोहितों पर प्रहार करने में हिचकते रहे.

18यह देख राजा ने दोएग को आदेश दिया, “चलो, आगे आओ और तुम करो इन सबका वध.” तब एदोमी दोएग आगे बढ़ा और उस दिन उसने पुरोहितों के पवित्र वस्त्र धारण किए हुए पचासी व्यक्तियों का वध कर दिया. 19तब उसने पुरोहितों के नगर नोब जाकर वहां; स्त्रियों, पुरुषों, बालकों, शिशुओं, बैलों, गधों तथा भेड़ों को, सभी को, तलवार से घात कर दिया.

20मगर अहीतूब के पुत्र अहीमेलेख के पुत्रों में से एक बच निकला और दावीद के पास जा पहुंचा. उसका नाम अबीयाथर था. 21अबीयाथर ने दावीद को सूचना दी कि शाऊल ने याहवेह के पुरोहितों का वध करवा दिया है. 22तब दावीद ने अबीयाथर से कहा, “उस दिन, जब मैंने एदोमी दोएग को वहां देखा, मुझे यह लग रहा था कि वह अवश्य ही जाकर शाऊल को उसकी सूचना दे देगा. तुम्हारे पिता के परिवार की मृत्यु का दोषी में ही हूं. 23अब तुम मेरे ही साथ रहो. अब तुम्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है. जो कोई मेरे प्राणों का प्यासा है, वही तुम्हारे प्राणों का भी प्यासा है. मेरे साथ तुम सुरक्षित हो.”