صموئيل الأول 10 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

صموئيل الأول 10:1-27

1وَأَخَذَ صَمُوئِيلُ قِنِّينَةَ زَيْتٍ وَصَبَّ عَلَى رَأْسِ شَاوُلَ وَقَبَّلَهُ وَقَالَ: «لَقَدْ مَسَحَكَ الرَّبُّ رَئِيساً عَلَى مِيرَاثِهِ. 2حَالَمَا تَنْصَرِفُ مِنْ عِنْدِي الْيَوْمَ تُصَادِفُ رَجُلَيْنِ بِالْقُرْبِ مِنْ قَبْرِ رَاحِيلَ فِي صَلْصَحَ فِي أَرْضِ بِنْيَامِينَ، فَيَقُولانِ لَكَ: قَدْ تَمَّ الْعُثُورُ عَلَى الْحَمِيرِ الَّتِي ذَهَبْتَ تَبْحَثُ عَنْهَا، وَقَدْ تَبَدَّدَ قَلَقُ أَبِيكَ بِشَأْنِهَا. إِلّا أَنَّ الْقَلَقَ اسْتَبَدَّ بِهِ عَلَيْكُمَا قَائِلاً: كَيْفَ يُمْكِنُ أَنْ أَعْثُرَ عَلَى وَلَدِي؟ 3وَتُتَابِعُ سَيْرَكَ مِنْ هُنَاكَ حَتَّى تَصِلَ إِلَى بَلُّوطَةِ تَابُورَ، فَيَلْتَقِيَكَ هُنَاكَ ثَلاثَةُ رِجَالٍ فِي طَرِيقِهِمْ إِلَى بَيْتِ إِيلَ لِيُقَدِّمُوا قُرْبَاناً لِلهِ، يَحْمِلُ أَحَدُهُمْ ثَلاثَةَ جِدَاءٍ، وَيَحْمِلُ الثَّانِي ثَلاثَةَ أَرْغِفَةِ خُبْزٍ، وَيَحْمِلُ الثَّالِثُ زِقَّ خَمْرٍ، 4فَيُحَيُّونَكَ وَيُقَدِّمُونَ لَكَ رَغِيفَيْ خُبْزٍ، فَاقْبَلْهُمَا مِنْهُمْ. 5بَعْدَ ذَلِكَ تَصِلُ إِلَى تَلِّ اللهِ فِي جِبْعَةَ حَيْثُ تُعَسْكِرُ حَامِيَةٌ لِلْفِلِسْطِينِيِّينَ. فَتُصَادِفُكَ عِنْدَ مَدْخَلِ جِبْعَةَ مَجْمُوعَةٌ مِنَ الأَنْبِيَاءِ نَازِلِينَ مِنَ التَّلِّ يَعْزِفُونَ عَلَى الرَّبَابِ وَالدُّفِّ وَالنَّايِ وَالْعُودِ وَهُمْ يَتَنَبَّأُونَ، 6فَيَحِلُّ عَلَيْكَ رُوحُ الرَّبِّ فَتَتَنَبَّأُ مَعَهُمْ وَتَصِيرُ رَجُلاً آخَرَ. 7وَعِنْدَمَا تَتَحَقَّقُ هَذِهِ الْعَلامَاتُ لَكَ، فَافْعَلْ مَا تَرَاهُ مُوَافِقاً، لأَنَّ الرَّبَّ مَعَكَ. 8وَعَلَيْكَ أَنْ تَسْبِقَنِي إِلَى الْجِلْجَالِ لأَنَّنِي قَادِمٌ إِلَيْهَا لأُصْعِدَ لِلرَّبِّ مُحْرَقَاتٍ وَأُقَرِّبَ ذَبَائِحَ سَلامٍ، فَامْكُثْ هُنَاكَ سَبْعَةَ أَيَّامٍ رَيْثَمَا آتِي إِلَيْكَ لأُطْلِعَكَ عَمَّا يَتَوَجَّبُ عَلَيْكَ عَمَلُهُ».

شاول يصبح ملكاً

9وَمَا إِنِ انْصَرَفَ مِنْ عِنْدِ صَمُوئِيلَ، وَبَدَأَ رِحْلَةَ عَوْدَتِهِ حَتَّى أَنْعَمَ اللهُ عَلَيْهِ بِقَلْبٍ جَدِيدٍ وَتَحَقَّقَتْ لَهُ جَمِيعُ تِلْكَ الْعَلامَاتِ. 10وَعِنْدَمَا وَصَلَ جِبْعَةَ قَابَلَتْهُ مَجْمُوعَةٌ مِنَ الأَنبِيَاءِ، فَحَلَّ عَلَيْهِ رُوحُ اللهِ وَتَنَبَّأَ فِي وَسَطِهِمْ. 11وَحِينَ شَاهَدَهُ الَّذِينَ كَانُوا يَعْرِفُونَهُ مِنْ قَبْلُ يَتَنَبَّأُ، تَسَاءَلُوا فِيمَا بَيْنَهُمْ: «مَاذَا جَرَى لابنِ قَيْسٍ؟ أَشَاوُلُ أَيْضاً بَيْنَ الأَنْبِيَاءِ؟» 12فَأَجَابَ رَجُلٌ مِنَ الْمُقِيمِينَ هُنَاكَ: «وَمَنْ هُوَ أَبُو الأَنْبِيَاءِ؟» وَهَكَذَا صَارَ الْقَوْلُ: «أَشَاوُلُ أَيْضاً بَيْنَ الأَنْبِيَاءِ» مَثَلاً. 13وَلَمَّا فَرَغَ مِنَ التَّنَبُّوءِ، صَعِدَ إِلَى الْمُرْتَفَعِ، 14فَرَآهُ عَمُّهُ، وَرَأَى غُلَامَهَ، فَسَأَلَهُمَا: «إِلَى أَيْنَ ذَهَبْتُمَا؟» فَأَجَابَهُ: «لِلْبَحْثِ عَنِ الْحَمِيرِ، وَلَمَّا أَخْفَقْنَا فِي الْعُثُورِ عَلَيْهَا قَدِمْنَا إِلَى صَمُوئِيلَ». 15فَقَالَ عَمُّ شَاوُلَ: «أَنْبِئْنِي مَاذَا قَالَ لَكُمَا صَمُوئِيلُ؟» 16فَأَجَابَ شَاوُلُ عَمَّهُ: «أَعْلَمَنَا أَنَّ الْحَمِيرَ قَدْ تَمَّ الْعُثُورُ عَلَيْهَا». وَلَكِنَّهُ كَتَمَ عَنْهُ أَمْرَ الْمَمْلَكَةِ الَّذِي حَدَّثَهُ بِهِ صَمُوئِيلُ.

17وَاسْتَدْعَى صَمُوئِيلُ الشَّعْبَ لِلاجْتِمَاعِ إِلَى الرَّبِّ فِي الْمِصْفَاةِ. 18وَأَبْلَغَهُمْ رِسَالَةَ الرَّبِّ لَهُمُ، الَّتِي تَقُولُ: «إِنِّي قَدْ أَخْرَجْتُ إِسْرَائِيلَ مِنْ مِصْرَ وَأَنْقَذْتُكُمْ مِنْ قَبْضَةِ الْمِصْرِيِّينَ وَمِنْ جَوْرِ الْمَمَالِكِ الأُخْرَى الَّتِي ضَايَقَتْكُمْ، 19وَلَكِنَّكُمُ الْيَوْمَ تَنَكَّرْتُمْ لإِلَهِكُمْ، مُخَلِّصِكُمْ مِنْ جَمِيعِ الْمُسِيئِينَ إِلَيْكُمْ وَمِنْ مُضَايِقِيكُمْ، وَقُلْتُمْ لَهُ: نَصِّبْ عَلَيْنَا مَلِكاً. وَالآنَ امْثُلُوا أَمَامَ الرَّبِّ حَسَبَ أَسْبَاطِكُمْ وَعَشَائِرِكُمْ». 20وَطَلَبَ صَمُوئِيلُ مِنْ كُلِّ سِبْطٍ أَنْ يَتَقَدَّمَ بِدَوْرِهِ لِلْمُثُولِ أَمَامَ الرَّبِّ، فَاخْتَارَ الرَّبُّ سِبْطَ بِنْيَامِينَ. 21ثُمَّ تَقَدَّمَتْ عَشَائِرُ سِبْطِ بِنْيَامِينَ، فَاخْتَارَ الرَّبُّ عَشِيرَةَ مَطْرِي، وَمِنْهَا وَقَعَ الاخْتِيَارُ عَلَى شَاوُلَ بْنِ قَيْسٍ. فَبَحَثُوا عَنْهُ فَلَمْ يَعْثُرُوا عَلَيْهِ. 22فَسَأَلُوا الرَّبَّ: «أَلَمْ يَأْتِ الرَّجُلُ إِلَى هُنَا بَعْدُ؟» فَأَجَابَ: «هُوَذَا قَدِ اخْتَبَأَ بَيْنَ الأَمْتِعَةِ». 23فَتَرَاكَضُوا وَأَحْضَرُوهُ مِنْ هُنَاكَ. فَوَقَفَ بَيْنَ الشَّعْبِ، فَكَانَ أَطْوَلَهُمْ قَامَةً مِنْ كَتِفَيْهِ فَمَا فَوْقُ. 24فَقَالَ صَمُوئِيلُ لِجَمِيعِ الشَّعْبِ: «أَشَاهَدْتُمْ مَنِ اخْتَارَهُ الرَّبُّ لِيَكُونَ مَلِكاً عَلَيْكُمْ؟ لَيْسَ لَهُ نَظِيرٌ فِي كُلِّ الشَّعْبِ»؛ فَهَتَفُوا: «لِيَحْيَ الْمَلِكُ!» 25وَأَطْلَعَ صَمُوئِيلُ الشَّعْبَ عَلَى حُقُوقِ الْمَلِكِ وَوَاجِبَاتِهِ وَدَوَّنَهَا فِي كِتَابٍ وَوَضَعَهُ أَمَامَ الرَّبِّ. ثُمَّ صَرَفَ صَمُوئِيلُ جَمِيعَ الشَّعْبِ إِلَى بُيُوتِهِمْ. 26وَمَضَى شَاوُلُ أَيْضاً إِلَى بَيْتِهِ إِلَى جِبْعَةَ تُرَافِقُهُ الْجَمَاعَةُ الَّتِي مَسَّ اللهُ قَلْبَهَا. 27غَيْرَ أَنَّ فِئَةً مِنَ الغَوْغَاءِ قَالُوا: «كَيْفَ يُنْقِذُنَا هَذَا؟» فَاحْتَقَرُوهُ وَلَمْ يُقَدِّمُوا لَهُ هَدَايَا. أَمَّا شَاوُلُ فَاعْتَصَمَ بِالصَّمْتِ.

Hindi Contemporary Version

1 शमुएल 10:1-27

1और शमुएल ने ज़ैतून के तेल से भरी एक शीशी निकाली, और वह तेल शाऊल के सिर पर उंडेल दिया. तब उन्होंने शाऊल का चुंबन लेते हुए उनसे कहा, “याहवेह ने अपनी मीरास इस्राएल का अगुआ होने के लिए तुम्हारा अभिषेक किया है! 2आज जब तुम मुझसे विदा होकर जाओगे, तुम्हें बिन्यामिन प्रदेश की सीमा पर सेलसाह नामक स्थान पर राहेल की कब्र के निकट दो व्यक्ति मिलेंगे. वे तुमसे कहेंगे, ‘तुम जिन गधों की खोज में निकले थे, वे तो मिल चुके हैं. तुम्हारे पिता को अब गधों की नहीं, बल्कि तुम दोनों की चिंता हो रही है. वह कह रहे हैं, “अब मैं अपने पुत्र के लिए क्या करूं?” ’

3“तब तुम्हारे आगे बढ़ने पर, जब तुम ताबोर के उस विशाल बांज वृक्ष के निकट पहुंचोगे, तुम्हें वहां तीन व्यक्ति मिलेंगे, जो परमेश्वर की वंदना करने बेथेल जा रहे होंगे. एक तो बकरी के तीन बच्‍चे ले जा रहा होगा, उनमें से दूसरा तीन रोटियां तथा तीसरा अंगूर के रस की कुप्पी. 4वे तुम्हारा अभिवादन करेंगे और तुम्हें दो रोटियां दे देंगे, जिन्हें तुम स्वीकार कर लेना.

5“फिर तुम गीबिया-एलोहीम पहुंचोगे, जहां फिलिस्तीनी सेना का गढ़ है. तुम जैसे ही नगर में प्रवेश करोगे, तुम्हें वहां भविष्यवक्ताओं का एक समूह मिलेगा, जो पर्वत शिखर से उतरकर आ रहा होगा और जिनके हाथों में विभिन्‍न वाद्य यंत्र होंगे, जो भविष्यवाणी कर रहे होंगे. 6ठीक उसी समय याहवेह का आत्मा बड़ी सामर्थ्य के साथ तीव्र गति से तुम्हें भर लेगा और तुम स्वयं उनके साथ मिलकर भविष्यवाणी करने लगोगे. यह वह क्षण होगा, जब तुम्हें एक नया व्यक्तित्व प्रदान कर दिया जाएगा. 7जब तुम इन चिन्हों को होते देखो, तुम वही करना शुरू कर देना, जो तुम्हें सही लगेगा, क्योंकि तब स्वयं परमेश्वर तुम्हारे साथ होंगे.

8“तब तुम मुझसे पहले गिलगाल पहुंच जाना. मैं तुमसे वहीं मिलूंगा, कि वहां अग्निबलि एवं मेल की भेंटें अर्पित करूं. आवश्यक होगा कि तुम सात दिन प्रतीक्षा करो—जब तक मैं वहां पहुंचकर तुम्हें यह न समझाऊं कि तुम्हारा क्या करना सही होगा.”

शाऊल का राजा चुना जाना

9जैसे ही शाऊल शमुएल से विदा होकर मुड़ा, परमेश्वर ने उनका मन बदल दिया, और ये सभी चिन्ह उस दिन पूर्ण हो गए. 10जब वे गिबियाह पहुंचे, उनसे भेंटकरने भविष्यवक्ताओं का एक समूह आ रहा था. तब परमेश्वर का आत्मा तीव्र गति से उनके ऊपर उतरा और वह उनके साथ भविष्यवाणी करने लगे. 11जो लोग शाऊल से पूर्व परिचित थे, उन्हें भविष्यवक्ताओं के साथ भविष्यवाणी करते देख, परस्पर कहने लगे, “क्या हो गया है कीश के पुत्र को? क्या शाऊल भी भविष्यद्वक्ता वृन्द का सदस्य है?”

12वहां खड़े एक व्यक्ति ने प्रश्न किया, “और उनके पिता कौन हैं?” तब वहां यह लोकोक्ति हो गई: “क्या शाऊल भी भविष्यवक्ताओं में से एक हैं?” 13जब शाऊल अपनी भविष्यवाणी पूर्ण कर चुके, वह पर्वत शिखर पर चले गए.

14शाऊल के चाचा ने शाऊल से एवं उनके सेवक से पूछा, “कहां चले गए थे तुम दोनों?”

शाऊल ने उत्तर दिया, “गधों को ढूंढने. मगर जब हमें यह लगा कि गधे खो चुके हैं, तो हम शमुएल से भेंटकरने चले गए.”

15शाऊल के चाचा ने उनसे पूछा, “मुझे बताओ कि शमुएल ने तुमसे क्या-क्या कहा है.”

16शाऊल ने अपने चाचा को उत्तर दिया, “शमुएल ने हमें आश्वासन दिया, कि गधे मिल चुके हैं.” शाऊल ने अपने चाचा को राजत्व से संबंधित कुछ भी नहीं बताया.

17तब शमुएल ने मिज़पाह में याहवेह के सामने एक सार्वजनिक सभा बुलाई. 18उन्होंने इस्राएल को संबोधित करते हुए कहा, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर का संदेश यह है: ‘मैंने इस्राएल को मिस्र देश से बाहर निकाल लिया, और मैंने ही मिस्रियों तथा उन सभी राज्यों के कष्टों से छुड़ाया है जो तुम्हें सताते रहते थे.’ 19मगर आज वह दिन है, जब तुमने अपने परमेश्वर को अस्वीकृत कर दिया है, जो तुम्हारी सभी पीड़ाओं और मुसीबतों से तुम्हें बचाते हैं. तुम्हारी ही यह मांग थी, ‘नहीं! हमारे लिए एक राजा नियुक्त कीजिए.’ ठीक है! याहवेह के सामने अपने गोत्रों एवं वंशों के अनुसार अपना अपना स्थान ले लो.”

20तब शमुएल ने इस्राएल के सभी गोत्रों को निकट बुलाया और बिन्यामिन का गोत्र चुना गया. 21तब बिन्यामिन गोत्र के परिवार निकट लाए गए और मत्री का परिवार चुना गया. और अंततः कीश के पुत्र शाऊल को चुना गया. मगर जब उन्हें खोजा गया तो वह कहीं भी दिखाई न दिया. 22तब उन्होंने पुनः याहवेह से इस विषय में पूछताछ की, “क्या शाऊल यहां आ चुके हैं?”

याहवेह ने उत्तर दिया, “जाकर देखो, वह भण्डारगृह में सामान के बीच में छिपा हुआ है.”

23तब वे दौड़कर गए और उन्हें वहां से ले आए. जब शाऊल उनके मध्य में खड़े हुए, सभी उनके कंधों तक ही पहुंच रहे थे. 24तब जनसभा को संबोधित करते हुए शमुएल ने लोगों से कहा, “क्या उसे देख रहे हो, जिसे याहवेह ने नामित किया है? निःसंदेह सभी लोगों में उसके तुल्य कोई नहीं है!”

सारे जनसमूह ने उच्च घोष किया, “राजा को लंबी आयु मिले!”

25तब शमुएल ने राजा के अधिकारों और कामों से संबंधित नीतियां लोगों के सामने स्पष्ट कर दीं. ये सब उन्होंने एक पुस्तक में लिखकर याहवेह के सामने रख दिया. यह सब होने पर शमुएल ने सब लोगों को उनके घर विदा कर दिया.

26शाऊल भी गिबियाह में अपने घर चले गए. कुछ शूरवीर युवक भी उनके साथ गए. ये युवक परमेश्वर द्वारा चुने गए थे. 27मगर कुछ निकम्मे लोग कहने लगे, “यह व्यक्ति कैसे हमारी रक्षा कर सकेगा?” उन्हें शाऊल से घृणा हो गई, यहां तक कि उन्होंने उन्हें कोई भेंट भी नहीं दी. मगर शाऊल ने इस विषय को कोई महत्व नहीं दिया.