الخروج 9 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

الخروج 9:1-35

ضربة إهلاك المواشي

1ثُمَّ قَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: «امْضِ إِلَى فِرْعَوْنَ وَقُلْ لَهُ: هَذَا مَا يُعْلِنُهُ إِلَهُ الْعِبْرَانِيِّينَ أَطْلِقْ شَعْبِي لِيَعْبُدَنِي. 2لأَنَّكَ إنْ أَبَيْتَ أَنْ تُطْلِقَهُمْ وَحَجَزْتَهُمْ لَدَيْكَ، 3فَإِنَّ يَدَ الرَّبِّ سَتُهْلِكُ مَوَاشِيكَ الَّتِي فِي الْحُقُولِ، وَالْخُيُولَ، وَالْحَمِيرَ وَالجِّمَالَ وَالْثِّيرَانَ وَالْغَنَمَ، بِوَبَأٍ شَدِيدٍ جِدّاً. 4وَأُمَيِّزُ بَيْنَ مَوَاشِي إِسْرَائِيلَ وَمَوَاشِي الْمِصْرِيِّينَ. فَلا يَهْلِكُ شَيْءٌ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ». 5وَعَيَّنَ الرَّبُّ مَوْعِداً لِذَلِكَ قَائِلاً: «غَداً يَصْنَعُ الرَّبُّ هَذَا فِي الأَرْضِ». 6وَفِي الْغَدِ صَنَعَ الرَّبُّ هَذَا الأَمْرَ. فَهَلَكَتْ جَمِيعُ مَوَاشِي الْمِصْرِيِّينَ، أَمَّا مَوَاشِي بَنِي إِسْرَائِيلَ فَلَمْ يَهْلِكْ مِنْهَا وَاحِدٌ. 7وَأَرْسَلَ فِرْعَوْنُ لِيَتَحَقَّقَ مِنَ الأَمْرِ، وَإذَا مَوَاشِي إِسْرَائِيلَ لَمْ يَهْلِكْ مِنْهَا وَاحِدٌ. وَتَصَلَّبَ قَلْبُ فِرْعَوْنَ فَلَمْ يُطْلِقْ الشَّعْبَ.

ضربة الدمامل

8فَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى وَهَرُونَ: «لِيَأْخُذْ كُلٌّ مِنْكُمَا حَفْنَةً مِنْ رَمَادِ الْأَتُونِ، وَلْيُذَرِّ مُوسَى الرَّمَادَ نَحْوَ السَّمَاءِ بِمَرْأَى مِنْ فِرْعَوْنَ، 9فَيَتَحَوَّلَ إِلَى غُبَارٍ يُغَطِّي كُلَّ أَرْضِ مِصْرَ، فَيُصَابَ النَّاسُ وَالْبَهَائِمُ بِدَمَامِلَ مُتَقَيِّحَةٍ فِي كُلِّ أَرْضِ مِصْرَ». 10فَأَخَذَا رَمَاداً مِنَ الأَتُونِ، وَوَقَفَا أَمَامَ فِرْعَوْنَ، ثُمَّ ذَرَّاهُ مُوسَى نَحْوَ السَّمَاءِ، فَتَحَوَّلَ إِلَى دَمَامِلَ مُتَقَيِّحَةٍ أَصَابَتِ النَّاسَ وَالْبَهَائِمَ. 11وَلَمْ يَسْتَطِعِ السَّحَرَةُ أَنْ يُواجِهُوا مُوسَى مِن جَرَّاءِ الدَّمَامِلِ، لأَنَّ الدَّمَامِلَ أَصَابَتِ السَّحَرَةَ وَكُلَّ الْمِصْرِيِّينَ أَيْضاً. 12لَكِنَّ الرَّبَّ قَسَّى قَلْبَ فِرْعَوْنَ فَلَمْ يَسْمَعْ لَهُمَا، تَمَاماً كَمَا قَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى.

ضربة سقوط البرد

13ثُمَّ قَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: «قُمْ مُبَكِّراً فِي الصَّبَاحِ وَامْثُلْ أَمَامَ فِرْعَوْنَ وَقُلْ لَهُ: هَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ إِلَهُ الْعِبْرَانِيِّينَ: أَطْلِقْ شَعْبِي لِيَعْبُدَنِي. 14لأَنَّنِي فِي هَذِهِ الْمَرَّةِ سَأُوَجِّهُ جَمِيعَ ضَرَبَاتِي إِلَى قَلْبِكَ وَإِلَى حَاشِيَتِكَ وَإِلَى شَعْبِكَ، لِكَيْ تَعْرِفَ أَنَّهُ لَيْسَ مَثِيلٌ لِي فِي كُلِّ الأَرْضِ. 15فَقَدْ كَانَ بِوُسْعِي حَتَّى الآنَ أَنْ أَمُدَّ يَدِي وَأَضْرِبَكَ وَأَضْرِبَ شَعْبَكَ أَيْضاً بِالوَبَأِ لِتُبَادَ مِنَ الأَرْضِ، 16وَلَكِنَّنِي أَقَمْتُكَ لأُرِيَكَ قُوَّتِي، وَلِكَيْ يُذَاعَ اسْمِي فِي جَمِيعِ الأَرْضِ. 17وَهَا أَنْتَ مَازِلْتَ تُقَاوِمُ شَعْبِي وَلا تُطْلِقُهُ. 18لِذَلِكَ غَداً فِي مِثْلِ هَذَا الْوَقْتِ أُمْطِرُ بَرَداً ثَقِيلاً لَمْ تَشْهَدْهُ مِصْرُ مُنْذُ يَوْمِ تَأْسِيسِهَا حَتَّى الآنَ. 19فَأَرْسِلِ الآنَ وَاجْمَعْ مَوَاشِيَكَ وَكُلَّ مَالَكَ فِي الْحَقْلِ، لأَنَّ كُلَّ مَنْ يَمْكُثُ فِي الْحَقْلِ مِنَ النَّاسِ وَالْبَهَائِمِ وَلا يَلْجَأُ إِلَى مَأْوىً، يَنْهَمِرُ عَلَيْهِ الْبَرَدُ فَيَمُوتُ». 20فَكُلُّ مَنْ خَافَ كَلِمَةَ الرَّبِّ مِنْ رِجَالِ فِرْعَوْنَ لاذَ بِعَبِيدِهِ وَمَاشِيَتِهِ بِالْبُيُوتِ، 21أَمَّا الَّذِينَ اسْتَخَفُّوا بِكَلامِ الرَّبِّ فَقَدْ تَرَكُوا عَبِيدَهُمْ وَمَوَاشِيَهُمْ فِي الْحَقْلِ.

22وَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: «مُدَّ يَدَكَ نَحْوَ السَّمَاءِ فَيَنْهَمِرَ الْبَرَدُ عَلَى كُلِّ أَرْضِ مِصْرَ، وَعَلَى الرِّجَالِ وَالْبَهَائِمِ وَعَلَى عُشْبِ الْحَقْلِ فِي جَمِيعِ أَرْضِ مِصْرَ». 23فَمَدَّ مُوسَى عَصَاهُ نَحْوَ السَّمَاءِ، فَأَرْسَلَ الرَّبُّ رُعُوداً وَبَرَداً. وَأَصَابَتِ الصَّوَاعِقُ الأَرْضَ، وَأَمْطَرَ الرَّبُّ بَرَداً عَلَى كُلِّ بِلادِ مِصْرَ، 24فَانْهَمَرَ الْبَرَدُ، وَاخْتَلَطَتِ الصَّوَاعِقُ بِالْبَرَدِ، فَكَانَتْ أَسْوَأَ عَاصِفَةٍ شَهِدَتْهَا أَرْضُ مِصْرَ مُنْذُ أَنْ صَارَتْ أُمَّةً. 25وَأَصَابَ الْبَرَدُ فِي كُلِّ أَرْجَاءِ مِصْرَ جَمِيعَ مَا فِي الْحُقُولِ مِنْ نَاسٍ وَبَهَائِمَ. وَأَتْلَفَ كُلَّ نَبَاتٍ نَامٍ فِي الْحَقْلِ وَكَسَّرَ جَمِيعَ الأَشْجَارِ. 26أَمَّا أَرْضُ جَاسَانَ حَيْثُ يُقِيمُ بَنُو إِسْرَائِيلَ، فَإِنَّهَا وَحْدَهَا لَمْ يَسْقُطْ فِيهَا بَرَدٌ.

27فَأَرْسَلَ فِرْعَوْنُ وَاسْتَدْعَى مُوسَى وَهَرُونَ وَقَالَ لَهُمَا: «لَقَدْ أَخْطَأْتُ هَذِهِ الْمَرَّةَ وَالرَّبُّ هُوَ الْبَارُّ، أَمَّا أَنَا وَشَعْبِي فَأَشْرَارٌ، 28فَتَضَرَّعَا إِلَى الرَّبِّ إذْ يَكْفِينَا مَا ابْتُلِينَا بِهِ مِنْ رُعُودٍ وَبَرَدٍ، فَأُطْلِقَكُمْ، وَلا تَمْكُثُونَ هُنَا بَعْدُ». 29فَأَجَابَ مُوسَى: «حَالَمَا أَخْرُجُ مِنَ الْمَدِينَةِ أَبْسُطُ يَدِي فِي الصَّلاةِ إِلَى الرَّبِّ فَيَتَوَقَّفُ الرَّعْدُ وَيَنْقَطِعُ الْبَرَدُ لِكَيْ تَعْرِفَ أَنَّ الأَرْضَ هِيَ للرَّبِّ. 30وَلَكِنَّنِي عَالِمٌ أَنَّكَ أَنْتَ وَحَاشِيَتَكَ مَازِلْتُمْ لَا تَخْشَوْنَ الرَّبَّ الإِلَهَ». 31إنَّ الْكَتَّانَ وَالشَّعِيرَ قَدْ تَلِفَا، لأَنَّ الشَّعِيرَ أَصْبَحَ سَنَابِلَ، وَالكَتَّانَ كَانَ مُبْزِراً، 32أَمَّا الْحِنْطَةُ وَالقَطَانِيُّ فَلَمْ تَتْلَفْ بَعْدُ لأَنَّهَا تَنْمُو مُتَأَخِّرَةً.

33وَانْصَرَفَ مُوسَى مِنْ لَدُنْ فِرْعَوْنَ مِنَ الْمَدِينَةِ وَبَسَطَ يَدَيْهِ إِلَى الرَّبِّ، فَتَوَقَّفَ الرَّعْدُ وَالْبَرَدُ وَانْقَطَعَ الْمَطَرُ عَنِ الانْهِمَارِ عَلَى الأَرْضِ. 34وَعِنْدَمَا رَأَى فِرْعَوْنُ أَنَّ الْمَطَرَ وَالْبَرَدَ وَالرَّعْدَ قَدْ تَوَقَّفَتْ أَخْطَأَ مَرَّةً أُخْرَى وَصَلَّبَ قَلْبَهُ هُوَ وَحَاشِيَتُهُ. 35وَهَكَذَا تَقَسَّى قَلْبُ فِرْعَوْنَ، فَلَمْ يُطْلِقْ بَنِي إِسْرَائِيلَ، تَمَاماً كَمَا أَنْبَأَ الرَّبُّ عَلَى لِسَانِ مُوسَى.

Hindi Contemporary Version

निर्गमन 9:1-35

मिस्र के पशुओं की मृत्यु

1फिर परमेश्वर ने मोशेह से कहा, “जाकर फ़रोह को यह बता दो, ‘इब्रियों के परमेश्वर याहवेह ने यह कहा है, “मेरी प्रजा को यहां से जाने दो, ताकि वे मेरी वंदना कर सकें.” 2यदि तुम उन्हें जाने नहीं दोगे 3तो याहवेह का हाथ तुम्हारे पशुओं, घोड़ों, गधों, ऊंटों, गायों एवं भेड़-बकरियों पर बढ़ेगा और बड़ी महामारी फैल जायेगी. 4याहवेह मिस्रियों के पशुओं में महामारी फैलायेंगे, लेकिन इस्राएल के पशुओं को कुछ नहीं होगा—जिसके कारण इस्राएल वंश के एक भी पशु की मृत्यु न होगी.’ ”

5याहवेह ने एक समय ठहराकर यह कह दिया: “अगले दिन याहवेह इस देश में महामारी फैलायेंगे.” 6तब याहवेह ने अगले दिन वही किया—मिस्र देश के सभी पशु मर गए; किंतु इस्राएल वंश में एक भी पशु नहीं मरा. 7फ़रोह ने सच्चाई जानने के लिए सेवक को भेजा. तब उन्होंने देखा कि इस्राएल में एक भी पशु की मृत्यु नहीं हुई थी. यह देख फ़रोह का मन और कठोर हो गया, उसने प्रजा को जाने नहीं दिया.

फोड़ों की विपत्ति

8फिर याहवेह ने मोशेह और अहरोन से कहा, “अपने-अपने हाथों में मुट्ठी भरके राख लेना, और उस राख को फ़रोह के सामने आकाश की ओर फेंकना. 9यह राख पूरे देश पर रेत में बदल जाएगी, जिससे पूरे मिस्रवासियों एवं पशुओं के शरीर पर फोड़े फुंसी हो जायेंगे.”

10इसलिये मोशेह तथा अहरोन ने भट्ठे से राख उठाई और फ़रोह के सामने गए. मोशेह ने राख को आकाश की ओर उछाला, जिसके कारण मनुष्यों और पशुओं के शरीर पर फोड़े निकल आए. 11इन फोड़ों के कारण जादूगर मोशेह के सामने खड़े न रह सके, क्योंकि फोड़े न केवल मिस्रवासियों की देह पर निकल आए थे किंतु जादूगरों के शरीर भी फोड़े से भर गये थे! 12याहवेह ने फ़रोह के मन को कठोर बना दिया, और फ़रोह ने मोशेह की बात नहीं मानी; यह बात याहवेह ने मोशेह से पहले ही कह दी थी.

ओलों की विपत्ति

13तब याहवेह ने मोशेह से कहा, “सुबह जल्दी उठकर फ़रोह के पास जाकर यह कहना, ‘याहवेह, इब्रियों के परमेश्वर की यह आज्ञा है कि मेरी प्रजा को यहां से जाने दो, ताकि वे मेरी वंदना कर सकें. 14क्योंकि इस बार मैं और ज्यादा परेशानियां तुम पर, तुम्हारे सेवकों पर तथा तुम्हारी प्रजा पर डाल दूंगा, जिससे तुम्हें यह मालूम हो जाए कि पूरे पृथ्वी पर मेरे तुल्य कोई भी नहीं है. 15क्योंकि अब तक मैं अपना हाथ बढ़ाकर तुम और तुम्हारी प्रजा पर बहुत बड़ी विपत्तियां डालकर तुम्हें मिटा देता. 16तुम्हारी उत्पत्ति के पीछे मेरा एकमात्र उद्देश्य था कि तुमको मेरे प्रताप का प्रदर्शन करूं, और सारी पृथ्वी में मेरे नाम का प्रचार हो. 17लेकिन तुमने मेरी प्रजा को यहां से जाने की अनुमति न देकर अपने आपको महान समझा है! 18अब देखना, कल इसी समय मैं बड़े-बड़े ओले बरसाऊंगा—ऐसा मिस्र देश में आज तक नहीं देखा गया है, 19इसलिये अब सबको बता दो कि मैदानों से अपने पशुओं को तथा जो कुछ इस समय खेतों में रखा हुआ है, सुरक्षित स्थान पर ले जाएं. अगर कोई मनुष्य या पशु, ओले गिरने से पहले अपने घरों में न पहुंचें, वे अवश्य मर जायेंगे.’ ”

20तब फ़रोह के उन सेवकों ने, जिन्होंने याहवेह की बात पर ध्यान दिया वे सब जल्दी अपने-अपने लोगों एवं पशुओं को लेकर घर चले गये 21और जिन्होंने उस बात पर ध्यान नहीं दिया, वे सेवक एवं उनके पशु मैदान में ही रह गए.

22याहवेह ने मोशेह को आदेश दिया, “अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ाओ, ताकि पूरे मिस्र देश पर, मनुष्य एवं पशु, और मैदान के हर एक वृक्ष पर ओले गिरना शुरू हो जाएं.” 23मोशेह ने अपनी लाठी आकाश की ओर बढ़ाई, और याहवेह ने आकाश से बादल गरजाये और ओले बरसाए और ओलों के साथ बिजली भी पृथ्वी पर गिरने लगी. 24ओलों के साथ बिजली भी गिर रही थी; ऐसी दशा मिस्र देश में इससे पहले कभी नहीं हुई थी. 25ओले उन सब पर गिरे, जो मैदानों में थे—ओले पौधे तथा वृक्ष पर भी गिरे जो पूरे नष्ट हो गये. 26केवल गोशेन प्रदेश में जहां इस्राएली रहते थे, ओले नहीं गिरे.

27तब फ़रोह ने मोशेह एवं अहरोन को बुलवाया और उनके सामने मान लिया: “मैंने पाप किया है, याहवेह ही महान परमेश्वर हैं, मैं तथा मेरी प्रजा अधर्मी है. 28तुम याहवेह से बिनती करो! बहुत हो चुका गरजना और ओले बरसना. मैं तुमको यहां से जाने दूंगा, तुम यहां मत रुको.”

29मोशेह ने फ़रोह को उत्तर दिया, “जैसे ही मैं नगर से बाहर निकलूंगा, मैं अपनी भुजाएं याहवेह की ओर उठाऊंगा; तब आग तथा ओले गिरना रुक जाएंगे, तब तुमको मालूम हो जाएगा कि पृथ्वी पर याहवेह का ही अधिकार है. 30लेकिन तुम तथा तुम्हारे सेवकों के विषय में मुझे मालूम है कि अब भी तुममें याहवेह परमेश्वर के प्रति भक्ति नहीं है.”

31(इस समय सन एवं जौ की फसल नष्ट हो चुकी थी, क्योंकि जौ की बालें आ चुकी थीं तथा सन में कलियां खिल रही थीं; 32लेकिन गेहूं नष्ट नहीं हुआ था, क्योंकि उसका उपज देर से होता है.)

33तब मोशेह फ़रोह के पास से निकलकर नगर के बाहर चले गए और उन्होंने याहवेह की ओर अपने हाथ उठाए; और तुरंत बादल गरजना एवं ओला गिरना रुक गया, भूमि पर हो रही वर्षा भी रुक गई. 34जैसे ही फ़रोह ने देखा कि ओले गिरना तथा बादल गरजना रुक गया, उन्होंने पाप किया और उसने और उसके सेवकों ने अपना मन कठोर कर लिया. 35कठोर मन से फ़रोह ने इस्राएलियों को जाने नहीं दिया—मोशेह को याहवेह ने पहले ही बता दिया था कि फ़रोह किस प्रकार अपने मन को फिर कठोर करेंगे.