الخروج 18 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

الخروج 18:1-27

يثرون يزور موسى

1وَسَمِعَ يَثْرُونُ كَاهِنُ مِدْيَانَ وَحَمُو مُوسَى بِجَمِيعِ مَا أَجْرَاهُ اللهُ لِمُوسَى وَلإِسْرَائِيلَ شَعْبِهِ، وَكَيْفَ أَخْرَجَهُمْ مِنْ مِصْرَ، 2فَأَخَذَ يَثْرُونُ حَمُو مُوسَى صَفُّورَةَ زَوْجَةَ مُوسَى الَّتِي كَانَ قَدْ أَرْجَعَهَا إِلَى أَبِيهَا 3وَابْنَيْهَا اللَّذَيْنِ يُدْعَى أَحَدُهُمَا جِرْشُومَ (وَمَعْنَاهُ: غَرِيبٌ) لأَنَّ (مُوسَى) قَالَ: «كُنْتُ نَزِيلاً فِي أَرْضٍ غَرِيبَةٍ». 4وَاسْمُ الثَّانِي أَلِيعَازَرُ (وَمَعْنَاهُ: إِلَهِي عَوْنٌ لِي) لأَنَّهُ قَالَ: «إِلَهُ أَبِي كَانَ عَوْنِي، فَأَنْقَذَنِي مِنْ سَيْفِ فِرْعَوْنَ». 5وَقَدِمَ يَثْرُونُ حَمُو مُوسَى وَمَعَهُ ابْنَا مُوسَى وَزَوْجَتُهُ إِلَى مُوسَى فِي الصَّحْرَاءِ حَيْثُ كَانَ مُجْتَمِعاً عِنْدَ جَبَلِ اللهِ. 6فَأَرْسَلَ إِلَى مُوسَى قَائِلاً: «أَنَا حَمُوكَ يَثْرُونُ قَادِمٌ إِلَيْكَ وَمَعِي زَوْجَتُكَ وَابْنَاهَا». 7فَخَفَّ مُوسَى لاِسْتِقْبَالِ حَمِيهِ، وَانْحَنَى لَهُ احْتِرَاماً وَقَبَّلَهُ. وَسَأَلَ كُلٌّ مِنْهُمَا الآخَرَ عَنْ أَحْوَالِهِ، ثُمَّ دَخَلا إِلَى الْخَيْمَةِ.

8وَسَرَدَ مُوسَى عَلَى حَمِيهِ كُلَّ مَا أَجْرَاهُ الرَّبُّ عَلَى فِرْعَوْنَ وَالْمِصْرِيِّينَ لإِنْقَاذِ بَنِي إِسْرَائِيلَ، وَمَا تَعَرَّضُوا لَهُ مِنْ مَشَقَّةٍ فِي الطَّرِيقِ، وَكَيْفَ أَنْقَذَهُمُ الرَّبُّ مِنْهَا. 9فَاغْتَبَطَ يَثْرُونُ بِجَمِيعِ مَا صَنَعَهُ الرَّبُّ مِنْ إِحْسَانٍ إِلَى إِسْرَائِيلَ، إذْ أَنْقَذَهُمْ مِنْ يَدِ الْمِصْرِيِّينَ. 10وَقَالَ يَثْرُونُ: «مُبَارَكٌ الرَّبُّ الَّذِي أَنْقَذَكُمْ مِنْ يَدِ الْمِصْرِيِّينَ وَمِنْ يَدِ فِرْعَوْنَ، وَحَرَّرَ الشَّعْبَ مِنْ نِيرِ الْمِصْرِيِّينَ. 11الآنَ أَعْلَمُ أَنَّ الرَّبَّ هُوَ أَعْظَمُ مِنْ جَمِيعِ الآلِهَةِ، لأَنَّهُ عَامَلَهُمْ بِمِثْلِ مَا بَغَوْا بِهِ». 12وَقَدَّمَ يَثْرُونُ حَمُو مُوسَى مُحْرَقَةً وَذَبَائِحَ لِلهِ. وَجَاءَ هَرُونُ وَجَمِيعُ شُيُوخِ إِسْرَائِيلَ لِيَأْكُلُوا طَعَاماً مَعَ حَمِي مُوسَى فِي حَضْرَةِ اللهِ.

13وَفِي الصَّبَاحِ جَلَسَ مُوسَى لِيَقْضِيَ لِلشَّعْبِ، وَظَلَّ الشَّعْبُ وَاقِفاً لَدَى مُوسَى مِنَ الصَّبَاحِ إِلَى المَسَاءِ. 14فَلَمَّا رَأَى حَمُو مُوسَى جَمِيعَ مَا يَقُومُ بِهِ لِلشَّعْبِ قَالَ لَهُ: «مَا هَذَا الَّذِي تَصْنَعُهُ لِلشَّعْبِ؟ وَلِمَاذَا تَجْلِسُ وَحْدَك لِلْقَضَاءِ، بِيْنَمَا يَظَلُّ جَمِيعُ الشَّعْبِ وَاقِفاً لَدَيْكَ مِنَ الصَّبَاحِ إِلَى الْمَسَاءِ؟» 15فَأَجَابَ مُوسَى: «لأَنَّ الشَّعْبَ يُقْبِلُ إِلَيَّ لِيَسْتَطْلِعَ إرَادَةَ اللهِ. 16فَإِنْ كَانَ لَهُمْ دَعْوَى يَلْجَأُونَ إِلَيَّ فَأَقْضِي بَيْنَ الرَّجُلِ وَالآخَرِ، وَأُطْلِعُهُمْ عَلَى فَرَائِضِ اللهِ وَشَرَائِعِهِ».

17فَقَالَ حَمُو مُوسَى: «إِنَّ مَا تَفْعَلُهُ لَيْسَ بِالأَمْرِ الصَّائِبِ، 18إذْ لابُدَّ لِلْكَلَلِ أَنْ يَعْتَرِيَكَ أَنْتَ وَكُلَّ هَذَا الشَّعْبِ الَّذِي مَعَكَ، لأَنَّ الأَمْرَ فَوْقَ طَاقَتِكَ، وَلا يُمْكِنُكَ أَنْ تَتَوَلاهُ وَحْدَكَ. 19فَأَصْغِ إِلَى صَوْتِي لأُسْدِيَ لَكَ نَصِيحَةً، وَلْيَكُنِ اللهُ مَعَكَ. فَلْتَكُنْ أَنْتَ مُمَثِّلَ الشَّعْبِ أَمَامَ اللهِ، فَتَرْفَعَ إِلَيْهِ دَعَاوَاهُمْ. 20وَعَلِّمْهُمُ الْفَرَائِضَ وَالشَّرَائِعَ، وَأَعْلِنْ لَهُمُ الطَّرِيقَ الَّذِي يَسْلُكُونَهُ، وَمَا يَسْتَوْجِبُ عَلَيْهِمِ الْقِيَامُ بِهِ مِنْ أَعْمَالٍ. 21وَلَكِنِ اخْتَرْ مِنْ بَيْنِ الشَّعْبِ رِجَالاً مُقْتَدِرِينَ خَائِفِينَ اللهَ أُمَنَاءَ يُبْغِضُونَ الرِّشْوَةَ، تُقِيمُهُمْ عَلَيْهِمْ رُؤَسَاءَ لِفِئَاتِ الأُلُوفِ وَالْمِئَاتِ وَالْخَمَاسِينَ وَالْعَشَرَاتِ. 22فَيَقْضُونَ لِلشَّعْبِ فِي الدَعَاوَى الصَّغِيرَةِ فِي كُلِّ حِينٍ. أَمَّا الْقَضَايَا الْمُسْتَعْصِيَةُ فَيَرْفَعُونَهَا إِلَيْكَ، فَيُخَفِّفُ ذَلِكَ عَنْكَ، إذْ يُشَارِكُونَكَ فِي حَمْلِ الْعِبْءِ. 23فَإِنْ فَعَلْتَ هَذَا وَأَوْصَاكَ اللهُ بِهِ، أَمْكَنَكَ الْقِيَامُ بِمَسْؤولِيَّاتِكَ، وَيَمْضِي جَمِيعُ هَذَا الشَّعْبِ إِلَى مَكَانِهِ بِسَلامٍ».

24فَاسْتَمَعَ مُوسَى إِلَى نِصيحَةِ حَمِيهِ، وَنَفَّذَ كُلَّ مَا قَالَهُ لَهُ، 25وَاخْتَارَ مُوسَى مِنْ بَيْنِ جَمِيعِ الإِسْرَائِيلِيِّينَ رِجَالاً مُقْتَدِرِينَ، وَأَقَامَهُمْ عَلَى الشَّعْبِ، رُؤَسَاءَ أُلُوفٍ وَمِئَاتٍ وَخَمَاسِينَ وَعَشَرَاتٍ. 26فَكَانُوا يَقْضُونَ لِلشَّعْبِ فِي كُلِّ الدَعَاوَى الصَّغِيرَةِ. أَمَّا الْقَضَايَا الُمُسْتَعْصِيَةُ فَكَانُوا يَرْفَعُونَهَا إِلَى مُوسَى. 27ثُمَّ شَيَّعَ مُوسَى حَمَاهُ، فَرَجَعَ هَذَا إِلَى أَرْضِهِ.

Hindi Contemporary Version

निर्गमन 18:1-27

मोशेह के ससुर येथ्रो

1मिदियान के पुरोहित, मोशेह के ससुर येथ्रो को यह सब बात मालूम पड़ी कि कैसे परमेश्वर ने मोशेह तथा अपनी प्रजा इस्राएलियों को याहवेह ने मिस्र देश से बाहर निकाला.

2मोशेह ने अपनी पत्नी ज़ीप्पोराह और दोनों बेटों को उनके पिता येथ्रो के पास छोड़ दिया था, 3उनके एक पुत्र का नाम गेरशोम18:3 गेरशोम अर्थ परदेशी रखा क्योंकि मोशेह ने कहा, “मैं दूसरे देश में परदेशी हो गया!” 4दूसरे पुत्र का नाम एलिएज़र18:4 एलिएज़र अर्थ परमेश्वर मेरा सहायक रखा, क्योंकि मोशेह ने यह कहा था, “मेरे पिता के परमेश्वर मेरे सहायक रहे हैं, जिन्होंने मुझे फ़रोह की तलवार से बचाया है.”

5इस निर्जन प्रदेश में जहां इस्राएलियों ने परमेश्वर के पर्वत पर तंबू डाला हुआ था, वहां मोशेह के ससुर, मोशेह की पत्नी तथा दोनों पुत्रों को अपने साथ लेकर आया. 6येथ्रो ने मोशेह से कहा, “मैं येथ्रो, तुम्हारा ससुर, तुम्हारी पत्नी एवं दोनों पुत्रों को लेकर तुमसे मिलने आया हूं.”

7यह सुन मोशेह अपने ससुर से मिलने तंबू से बाहर आये, उनको प्रणाम करके चुंबन किया, और एक दूसरे का हाल पूछा और मोशेह उन्हें अपने तंबू में ले गए. 8मोशेह ने अपने ससुर को सब बातें बताई, जो इस्राएलियों के लिए याहवेह ने फ़रोह तथा मिस्रियों के साथ की थी. मोशेह ने उन्हें सब परेशानियां भी बताईं, जिनका सामना उन्होंने इस यात्रा में किया था, तथा यह भी कि याहवेह ने किस तरह से उनको रास्ते भर बचाया.

9येथ्रो ने जब सुना कि याहवेह ने कैसे इस्राएलियों को संभाला. वे बहुत खुश हुए, कि याहवेह ने इस्राएलियों पर अपनी भलाई की और मिस्रियों से छुड़ाया. 10तब येथ्रो ने कहा, “धन्य हैं याहवेह, जिन्होंने तुम्हें मिस्रियों एवं फ़रोह के अधिकार से छुड़ाया और उनके बंधन से आज़ाद कराया. 11अब मैं जान गया हूं कि याहवेह ही अन्य सभी देवताओं से अधिक शक्तिशाली और बड़े हैं. यह तो उसी समय प्रमाणित हो गया था, जब मिस्रियों ने इस्राएलियों पर अपना अहंकार दिखाया था.” 12तब मोशेह के ससुर येथ्रो ने परमेश्वर के लिए होमबलि एवं मेल बलि चढ़ाई तथा अहरोन सभी इस्राएलियों और मोशेह के ससुर के साथ मिलकर परमेश्वर के आगे भोजन करने आये.

13दूसरे दिन मोशेह लोगों के न्याय करने के लिये न्यायाधीश के आसन पर बैठे हुए थे और लोग सुबह से शाम तक मोशेह के आस-पास खड़े रहे. 14जब मोशेह के ससुर ने मोशेह को देखा, तो उन्होंने मोशेह से पूछा, “तुम यह सब इस प्रकार क्यों कर रहे हो? जब ये सारे लोग सुबह से शाम तक तुम्हारे आस-पास खड़े थे, तुम अकेले ही सब क्यों संभाल रहे हो?”

15मोशेह ने जवाब दिया, “लोग मेरे पास आते हैं क्योंकि वे अपने लिए परमेश्वर की इच्छा जानना चाहते हैं. 16यदि किसी व्यक्ति की अपने पड़ोसी से कोई बहस होती है और वे मेरे पास आते हैं, तब मैं उस व्यक्ति तथा उसके पड़ोसी के विषय में फैसला करके उनको परमेश्वर के नियम तथा उनकी विधियां बता देता हूं.”

17मोशेह के ससुर ने जवाब दिया: “तुम्हारा काम सही नहीं हैं. 18तुम और ये लोग जो तुम्हारे साथ हैं, परेशान हो जाएंगे, क्योंकि यह काम बहुत बड़ा है और तुम अकेले यह सब नहीं कर पाओगे. 19इसलिये मेरी बात सुनो, मैं तुम्हें यह सलाह देना चाहता हूं कि परमेश्वर तुम्हारे साथ रहें—तुम परमेश्वर के सम्मुख लोगों के प्रतिनिधि रहो और उनके विवाद परमेश्वर के सम्मुख लाओ. 20तुम उन्हें नियमों और व्यवस्था की बातें सिखाते जाओ और उन्हें किस तरह रहना हैं और उनकी आदतें कैसी हों यह सिखाओ, और कौन-कौन से काम उन्हें करने हैं यह बताते जाओ. 21साथ ही तुम इन लोगों में से कुछ ऐसे लोगों को चुन लो—जो सच्चाई से परमेश्वर के भय और श्रद्धा में जीने वाले हों, तथा अन्याय के लाभ से नफरत करते हों. इस प्रकार के व्यक्तियों को अलग करके, लोगों को झुंड में बांटकर, जवाबदारी उनको दे दो, जो हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास तथा दस-दस लोगों का झुंड हो. 22ये ज़िम्मेदार व्यक्ति ही उन लोगों की बात सुनें और सुलझायें और जो बात न सुलझ पाए तब ही वे तुम्हारे पास आएं. तब तुम्हारा बोझ हल्का हो जाएगा और पूरे लोगों पर अच्छी तरह नियंत्रण रख पाओगे. 23यदि परमेश्वर ऐसा करने की आज्ञा देते हैं, तो ऐसा ही करना, तब तुम्हारा काम आसान हो जाएगा तथा ये लोग भी शांति से अपनी जगह पहुंच सकेंगे.”

24मोशेह ने अपने ससुर की बात पर ध्यान दिया और वैसा ही किया. 25सभी इस्राएलियों में से उन्होंने सक्षम व्यक्तियों को अगुआ बनाया; जो हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास तथा दस-दस लोगों के समूह के ऊपर अधिकारी थे. 26वे अधिकारी सभी समय लोगों का न्याय करते थे, केवल बहुत मुश्किल विवाद ही मोशेह के पास लाते थे, लेकिन साधारण मामलों का समाधान वे ही करते थे.

27मोशेह ने अपने ससुर को विदा कर दिया. वह विदा होकर अपने घर लौट गये.