التثنية 20 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

التثنية 20:1-20

الذهاب إلى الحرب

1إِذَا ذَهَبْتُمْ لِمُحَارَبَةِ عَدُوِّكُمْ، وَوَجَدْتُمْ أَنَّ عَدُوَّكُمْ أَكْثَرُ مِنْكُمْ عَدَداً وخَيْلاً وَمَرْكَبَاتٍ، فَلا تَخَافُوا مِنْهُ، لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمُ الَّذِي حَرَّرَكُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ يَقِفُ مَعَكُمْ. 2وَعِنْدَمَا تَكُونُونَ عَلَى وَشْكِ خَوْضِ الْمَعْرَكَةِ يَتَقَدَّمُ الْكَاهِنُ وَيُخَاطِبُ الْجَيْشَ: 3اسْمَعْ يَا إِسْرَائِيلُ: أَنْتُمُ الْيَوْمَ مُوشِكُونَ عَلَى مُحَارَبَةِ أَعْدَائِكُمْ، فَلا تَهِنْ قُلُوبُكُمْ، لَا تَخَافُوا مِنْهُمْ وَلا تَرْتَعِدُوا وَلا تَرْهَبُوهُمْ، 4لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ سَائِرٌ مَعَكُمْ لِمُحَارَبَةِ أَعْدَائِكُمْ عَنْكُمْ، وَلِيُخَلِّصَكُمْ. 5ثُمَّ يَقُولُ الْقَادَةُ لِلْجَيْشِ: هَلْ بَيْنَكُمْ مَنْ بَنَى بَيْتاً جَدِيداً وَلَمْ يُدَشِّنْهُ بَعْدُ؟ فَلْيَرْجِعْ إِلَى بَيْتِهِ، لِئَلّا يُقْتَلَ فِي الْمَعْرَكَةِ فَيُدَشِّنَهُ رَجُلٌ آخَرُ. 6هَلْ بَيْنَكُمْ مَنْ غَرَسَ كَرْماً وَلَمْ يَجْنِ أَوَّلَ ثِمَارِهِ بَعْدُ؟ فَلْيَرْجِعْ إِلَى بَيْتِهِ لِئَلّا يُقْتَلَ فِي الْمَعْرَكَةِ فَيَجْنِيَ أَوَّلَ ثِمَارِ كَرْمِهِ رَجُلٌ آخَرُ. 7هَلْ بَيْنَكُمْ رَجُلٌ خَطَبَ امْرَأَةً وَلَمْ يَتَزَوَّجْهَا بَعْدُ؟ لِيَرْجِعْ إِلَى بَيْتِهِ لِئَلّا يُقْتَلَ فِي الْمَعْرَكَةِ فَيَتَزَوَّجَهَا رَجُلٌ آخَرُ. 8ثُمَّ يَسْتَطْرِدُ قَادَةُ الْجَيْشِ قَائِلِينَ: هَلْ بَيْنَكُمْ رَجُلٌ خَائِفٌ وَاهِنُ الْقَلْبِ؟ لِيَرْجِعْ إِلَى بَيْتِهِ لِئَلّا يَعْتَرِيَ الْخَوْفُ قُلُوبَ إِخْوَتِهِ مِثْلَهُ. 9وَعِنْدَمَا يَفْرُغُ الْقَادَةُ مِنْ مُخَاطَبَةِ الْجَيْشِ، يُعَيِّنُونَ ضُبَّاطاً عَلَى الْجُنُودِ.

10وَحِينَ تَتَقَدَّمُونَ لِمُحَارَبَةِ مَدِينَةٍ فَادْعُوهَا لِلصُّلْحِ أَوَّلاً. 11فَإِنْ أَجَابَتْكُمْ إِلَى الصُّلْحِ وَاسْتَسْلَمَتْ لَكُمْ، فَكُلُّ الشَّعْبِ السَّاكِنِ فِيهَا يُصْبِحُ عَبِيداً لَكُمْ. 12وَإِنْ أَبَتِ الصُّلْحَ وَحَارَبَتْكُمْ فَحَاصِرُوهَا 13فَإِذَا أَسْقَطَهَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ فِي أَيْدِيكُمْ، فَاقْتُلُوا جَمِيعَ ذُكُورِهَا بِحَدِّ السَّيْفِ. 14وَأَمَّا النِّسَاءُ وَالأَطْفَالُ وَالْبَهَائِمُ، وَكُلُّ مَا فِي الْمَدِينَةِ مِنْ أَسْلابٍ، فَاغْنَمُوهَا لأَنْفُسِكُمْ، وَتَمَتَّعُوا بِغَنَائِمِ أَعْدَائِكُمُ الَّتِي وَهَبَهَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ لَكُمْ. 15هَكَذَا تَفْعَلُونَ بِكُلِّ الْمُدُنِ النَّائِيَةِ عَنْكُمُ الَّتِي لَيْسَتْ مِنْ مُدُنِ الأُمَمِ الْقَاطِنَةِ هُنَا.

16أَمَّا مُدُنُ الشُّعُوبِ الَّتِي يَهَبُهَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ لَكُمْ مِيرَاثاً فَلا تَسْتَبْقُوا فِيهَا نَسَمَةً حَيَّةً، 17بَلْ دَمِّرُوهَا عَنْ بِكْرَةِ أَبِيهَا، كَمُدُنِ الْحِثِّيِّينَ وَالأَمُورِيِّينَ وَالْكَنْعَانِيِّينَ وَالْفِرِزِّيِّينَ وَالْحِوِّيِّينَ وَالْيَبُوسِيِّينَ كَمَا أَمَرَكُمُ الرَّبُّ إِلَهُكُمْ، 18لِكَيْ لَا يُعَلِّمُوكُمْ رَجَاسَاتِهِمِ الَّتِي مَارَسُوهَا فِي عِبَادَةِ آلِهَتِهِمْ، فَتَغْوُوا وَرَاءَهُمْ وَتُخْطِئُوا إِلَى الرَّبِّ إِلَهِكُمْ.

19وَإذَا حَاصَرْتُمْ مَدِينَةً حِقْبَةً طَوِيلَةً مُعْلِنِينَ الْحَرْبَ عَلَيْهَا لاِفْتِتَاحِهَا، فَلا تَقْطَعُوا أَشْجَارَهَا بِحَدِّ الْفَأْسِ وَتُتْلِفُوهَا لأَنَّكُمْ تَأْكُلُونَ مِنْ ثِمَارِهَا. هَلْ شَجَرَةُ الْحَقْلِ إِنْسَانٌ حَتَّى تَهْرُبَ مِنْ أَمَامِكُمْ فِي الْحِصَارِ؟ 20أَمَّا الأَشْجَارُ الَّتِي لَا يُؤْكَلُ ثَمَرُهَا فَأَتْلِفُوهَا وَاقْطَعُوهَا، لاِسْتِخْدَامِهَا فِي بِنَاءِ حُصُونٍ حَوْلَ الْمَدِينَةِ الْمُحَاصَرَةِ الْمُتَحَارِبَةِ مَعَكُمْ، إِلَى أَنْ يَتِمَّ سُقُوطُهَا.

Hindi Contemporary Version

व्यवस्था 20:1-20

युद्ध संबंधी विधान

1जब तुम शत्रुओं से युद्ध करो और तुम्हें यह दिखाई दे कि उनके घोड़े, रथ और सैनिक तुमसे गिनती में अधिक हैं, भयभीत न हो जाना, क्योंकि याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर जिन्होंने तुम्हें मिस्र देश से निर्गत किया है, तुम्हारे साथ हैं. 2युद्ध के लिए जाने के पूर्व पुरोहित तुम्हारे सामने उपस्थित लोगों से बातें करेगा. 3वह उनसे कहेगा: “हे इस्राएल: सुनो, आज तुम अपने शत्रुओं से युद्ध के लिए आए हो. मन के कच्चे न हो जाओ. न डरना; न उनके सामने थरथरा जाना, 4क्योंकि याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर वह हैं, जो तुम्हारी रक्षा के लिए तुम्हारी ओर से तुम्हारे शत्रुओं से युद्ध करेंगे.”

5अधिकारी भी सैनिकों से यह कहें: “क्या तुममें से कोई ऐसा है, जिसने घर को नया नया बनाया है, और अब तक उसका समर्पण नहीं कर सका है? वह अपने घर को लौट जाए; नहीं तो उसकी मृत्यु के बाद कोई दूसरा व्यक्ति इसका समर्पण करेगा. 6क्या तुममें से कोई ऐसा व्यक्ति है, जिसने अंगूर का बगीचा लगाया है और वह अब तक अंगूरों को खा नहीं सका है? वह अपने घर को लौट जाए, नहीं तो कोई दूसरा व्यक्ति अंगूरों का उपभोग करने लगेगा. 7क्या तुममें कोई ऐसा है, जिसके विवाह की बात चल रही है, मगर विवाह नहीं हुआ? वह अपने घर को लौट जाए, नहीं तो उसकी मृत्यु की स्थिति में कोई अन्य पुरुष उस स्त्री से विवाह कर लेगा.” 8इसके बाद अधिकारी सैनिकों से यह भी कहेंगे: “तुममें क्या कोई ऐसा भी है, जो भयभीत और डरपोक है? वह अपने घर को लौट जाए, कि उसके प्रभाव से अन्य भाइयों के भी हृदय पिघल न जाएं.” 9जब अधिकारी सैनिकों से अपनी बातें कह चुकें, तब वे सैनिकों के ऊपर सेनापति ठहरा दें.

10जब तुम उस नगर के निकट पहुंचो, जिस पर तुम हमला करने पर हो, तब तुम उनके सामने संधि करने का प्रस्ताव रखोगे. 11यदि वह संधि के लिए राज़ी हो जाए, और तुम्हारा स्वागत करे, तब सारे नगरवासी तुम्हारे लिए बेगार होकर तुम्हारी सेवा करेंगे. 12मगर यदि वह नगर संधि के लिए राज़ी न हो, बल्कि तुमसे युद्ध करने को तैयार हो जाए, तब तुम उसकी घेराबंदी करोगे. 13जब याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर उसे तुम्हारे अधीन कर देंगे, तब तुम हर एक पुरुष का तलवार से वध कर दोगे. 14स्त्रियां, बालक, पशु और नगर की समस्त सामग्री तुम अपने लिए लूट की सामग्री स्वरूप रख लेना. शत्रुओं से प्राप्‍त सामग्री, जो याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें प्रदान करेंगे, तुम अपने प्रयोग के लिए रख लोगे. 15उन नगरों के प्रति, जो तुम्हारे देश से बहुत दूर रहे, तुम्हारी यही नीति होगी, वे नगर जो तुम्हारे देश से निकटवर्ती हैं, उनके प्रति नहीं.

16सिर्फ उन देशों के नगरों के, जो याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें मीरास-स्वरूप प्रदान कर रहे हैं, तुम किसी भी प्राणी को जीवित नहीं छोड़ोगे. 17जिन्हें तुम पूरी तरह से नाश कर दोगे, वे ये हैं: हित्ती, अमोरी, कनानी, परिज्ज़ी, हिव्वी और यबूसी; जैसा कि याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर का तुम्हारे लिए आदेश है. 18इसलिए कि वे तुम्हें अपनी सारी घृणित प्रथाएं सिखा न दें, जो वे अपने उन देवताओं के सम्मान में करते रहे हैं, कि इनका पालन कर तुम याहवेह, अपने परमेश्वर के विरुद्ध पाप करो.

19जब तुम युद्ध के उद्देश्य से किसी नगर की घेराबंदी कर रहे हो, कि उसे अधीन कर लो और यह प्रक्रिया लंबी होती जा रही हो, तब तुम वृक्षों का काटना शुरू नहीं करोगे; क्योंकि इनसे तुम्हें तुम्हारा भोजन प्राप्‍त हो सकेगा. तुम वृक्षों को नहीं काटोगे. क्या भूमि से उगा हुआ वृक्ष कोई मनुष्य है, कि तुम उसकी घेराबंदी करो? 20सिर्फ वे वृक्ष ही काटे जा सकते हैं, जिनके संबंध में तुम्हें यह निश्चय है कि वे फलदायी वृक्ष नहीं है, कि तुम इनकी लकड़ी से उस नगर के विरुद्ध उसके गिरने तक घेराबंदी के उपकरणों को बना सको, जो तुमसे युद्ध के लिए उठा है.