إنجيل مرقس 13 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

إنجيل مرقس 13:1-37

علامات نهاية الزمان

1وَبَيْنَمَا كَانَ يُغَادِرُ الْهَيْكَلَ، قَالَ لَهُ أَحَدُ تَلامِيذِهِ: «يَا مُعَلِّمُ، انْظُرْ مَا أَجْمَلَ هذِهِ الْحِجَارَةَ وَهذِهِ الْمَبَانِيَ!» 2فَأَجَابَهُ يَسُوعُ: «أَتَرَى هذِهِ الْمَبَانِيَ الْعَظِيمَةَ؟ لَنْ يُتْرَكَ مِنْهَا حَجَرٌ فَوْقَ حَجَرٍ إِلّا وَيُهْدَمُ!»

3وَفِيمَا هُوَ جَالِسٌ عَلَى جَبَلَ الزَّيْتُونِ مُقَابِلَ الْهَيْكَلِ، سَأَلَهُ بُطْرُسُ وَيَعْقُوبُ وَيُوحَنَّا وَأَنْدَرَاوُسُ عَلَى انْفِرَادٍ: 4«أَخْبِرْنَا مَتَى يَحْدُثُ هَذَا، وَمَا هِيَ الْعَلامَةُ عِنْدَمَا تُوشِكُ هذِهِ الأُمُورُ أَنْ تَتِمَّ؟» 5فَأَخَذَ يَسُوعُ يُجِيبُهُمْ قَائِلاً: «انْتَبِهُوا! لَا يُضَلِّلْكُمْ أَحَدٌ! 6فَإِنَّ كَثِيرِينَ سَيَأْتُونَ بِاسْمِي قَائِلِينَ، إِنِّي أَنَا هُوَ وَيُضَلِّلُونَ كَثِيرِينَ. 7وَلكِنْ، عِنْدَمَا تَسْمَعُونَ بِالْحُرُوبِ وَأَخْبَارِ الْحُرُوبِ لَا تَرْتَعِبُوا؛ فَإِنَّ ذلِكَ لابُدَّ أَنْ يَحْدُثَ، وَلكِنْ لَيْسَتِ النِّهَايَةُ بَعْدُ. 8فَسَوْفَ تَنْقَلِبُ أُمَّةٌ عَلَى أُمَّةٍ، وَمَمْلَكَةٌ عَلَى مَمْلَكَةٍ، وَتَحْدُثُ زَلازِلُ فِي عِدَّةِ أَمَاكِنَ، كَمَا تَحْدُثُ مَجَاعَاتٌ وَلكِنَّ هَذَا أَوَّلُ الْمَخَاضِ. 9فَانْتَبِهُوا لأَنْفُسِكُمْ، لأَنَّهُمْ سَوْفَ يُسَلِّمُونَكُمْ إِلَى الْمَحَاكِمِ وَالْمَجَامِعِ، فَتُضْرَبُونَ وَتَمْثُلُونَ أَمَامَ حُكَّامٍ وَمُلُوكٍ مِنْ أَجْلِي، شَهَادَةً عِنْدَهُمْ. 10وَيَجِبُ أَنْ يُبَشَّرَ أَوَّلاً بِالإِنْجِيلِ فِي جَمِيعِ الأُمَمِ. 11فَإِذَا سَاقُوكُمْ لِيُسَلِّمُوكُمْ، لَا تَنْشَغِلُوا مُسْبَقاً بِمَا تَقُولُونَ: وَإِنَّمَا كُلُّ مَا تُلْهَمُونَ فِي تِلْكَ السَّاعَةِ، فَبِهِ تَكَلَّمُوا، لأَنَّكُمْ لَسْتُمْ أَنْتُمُ الْمُتَكَلِّمِينَ بَلِ الرُّوحُ الْقُدُسُ. 12وَسَوْفَ يُسَلِّمُ الأَخُ أَخَاهُ إِلَى الْمَوْتِ، وَالأَبُ وَلَدَهُ، وَيَنْقَلِبُ الأَوْلادُ عَلَى وَالِدِيهِمْ وَيَقْتُلُونَهُمْ. 13وَتَكُونُونَ مَكْرُوهِينَ لَدَى الْجَمِيعِ مِنْ أَجْلِ اسْمِي. وَلكِنَّ الَّذِي يَثْبُتُ حَتَّى النِّهَايَةِ، فَهُوَ يَخْلُصُ.

14فَعِنْدَمَا تَرَوْنَ رَجَاسَةَ الْخَرَابِ قَائِمَةً حَيْثُ لَا يَنْبَغِي، لِيَفْهَمْ الْقَارِئُ! عِنْدَئِذٍ لِيَهْرُبْ الَّذِينَ فِي مِنْطَقَةِ الْيَهُودِيَّةِ إِلَى الْجِبَالِ؛ 15وَمَنْ كَانَ عَلَى السَّطْحِ، فَلا يَنْزِلْ إِلَى الْبَيْتِ وَلا يَدْخُلْ لِيَأْخُذَ مَا فِي بَيْتِهِ؛ 16وَمَنْ كَانَ فِي الْحَقْلِ، فَلا يَرْجِعْ لِيَأْخُذَ ثَوْبَهُ. 17وَالْوَيْلُ لِلْحَبَالَى وَالْمُرْضِعَاتِ فِي تِلْكَ الأَيَّامِ! 18فَصَلُّوا لِكَي لَا يَقَعَ ذلِكَ فِي شِتَاءٍ: 19فَسَوْفَ تَحْدُثُ فِي تِلْكَ الأَيَّامِ ضِيقَةٌ لَمْ يَحْدُثْ مِثْلُهَا مُنْذُ بَدْءِ الْخَلِيقَةِ الَّتِي خَلَقَهَا اللهُ إِلَى الآنَ وَلَنْ يَحْدُثَ. 20وَلَوْلا أَنَّ الرَّبَّ قَدِ اخْتَصَرَ تِلْكَ الأَيَّامَ، لَمَا كَانَ أَحَدٌ مِنَ الْبَشَرِ يَنْجُو. وَلكِنَّهُ لأَجْلِ الْمُخْتَارِينَ الَّذِينَ اخْتَارَهُمْ، قَدِ اخْتَصَرَ تِلْكَ الأَيَّامَ. 21فَإِنْ قَالَ لَكُمْ أَحَدٌ عِنْدَئِذٍ: هَا إِنَّ الْمَسِيحَ هُنَا! أَوْ: هَا هُوَ هُنَاكَ! فَلا تُصَدِّقُوا. 22فَسَوْفَ يَبْرُزُ أَكْثَرُ مِنْ مَسِيحٍ دَجَّالٍ وَنَبِيٍّ دَجَّالٍ، وَيُقَدِّمُونَ آيَاتٍ وَأَعَاجِيبَ، لِيُضَلِّلُوا حَتَّى الْمُخْتَارِينَ، لَوِ اسْتَطَاعُوا. 23فَانْتَبِهُوا إِذَنْ! هَا أَنَا قَدْ أَخْبَرْتُكُمْ بِالأُمُورِ كُلِّهَا قَبْلَ حُدُوثِهَا.

24وَلكِنْ فِي تِلْكَ الأَيَّامِ، بَعْدَ تِلْكَ الضِّيقَةِ، تُظْلِمُ الشَّمْسُ وَيَحْجُبُ الْقَمَرُ ضَوْءَهُ، 25وَتَتَهَاوَى نُجُومُ السَّمَاءِ، وَتَتَزَعْزَعُ الْقُوَّاتُ الَّتِي فِي السَّمَاوَاتِ. 26وَعِنْدَئِذٍ سَوْفَ يُبْصِرُونَ ابْنَ الإِنْسَانِ آتِياً فِي السُّحُبِ بِقُدْرَةٍ عَظِيمَةٍ وَمَجْدٍ. 27فَيُرْسِلُ عِنْدَئِذٍ مَلائِكَتَهُ وَيَجْمَعُ مُخْتَارِيهِ مِنَ الْجِهَاتِ الأَرْبَعِ، مِنْ أَقْصَى الأَرْضِ إِلَى أَقْصَى السَّمَاءِ.

28فَمِنْ شَجَرَةِ التِّينِ تَعَلَّمُوا هَذَا الْمَثَلَ: عِنْدَمَا تَلِينُ أَغْصَانُهَا وَتُطْلِعُ أَوْرَاقَهَا، تَعْلَمُونَ أَنَّ الصَّيْفَ قَرِيبٌ. 29فَكَذَلِكَ أَنْتُمْ أَيْضاً، حِينَمَا تَرَوْنَ هذِهِ الأُمُورَ تَحْدُثُ، فَاعْلَمُوا أَنَّهُ قَرِيبٌ، بَلْ عَلَى الأَبْوَابِ. 30الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: لَا يَزُولُ هَذَا الْجِيلُ أَبَداً حَتَّى تَحْدُثَ هذِهِ الأُمُورُ كُلُّهَا. 31إِنَّ السَّمَاءَ وَالأَرْضَ تَزُولانِ، وَلكِنَّ كَلامِي لَا يَزُولُ أَبَداً.

اليوم والساعة غير معروفين

32وَأَمَّا ذَلِكَ الْيَوْمُ وَتِلْكَ السَّاعَةُ فَلا يَعْرِفُهُمَا أَحَدٌ، لَا الْمَلائِكَةُ الَّذِينَ فِي السَّمَاءِ وَلا الاِبْنُ، إِلّا الآبُ. 33فَانْتَبِهُوا وَاسْهَرُوا لأَنَّكُمْ لَا تَعْرِفُونَ مَتَى يَحِينُ الْوَقْتُ! 34فَالأَمْرُ أَشْبَهُ بِإِنْسَانٍ مُسَافِرٍ، تَرَكَ بَيْتَهُ، وَأَعْطَى عَبِيدَهُ السُّلْطَةَ مُعَيِّناً لِكُلِّ وَاحِدٍ عَمَلَهُ، وَأَوْصَى حَارِسَ الْبَابِ أَنْ يَسْهَرَ. 35إِذَنِ اسْهَرُوا، لأَنَّكُمْ لَا تَعْرِفُونَ مَتَى يَعُودُ رَبُّ الْبَيْتِ: أَمَسَاءً، أَمْ فِي مُنْتَصَفِ اللَّيْلِ، أَمْ عِنْدَ صِيَاحِ الدِّيكِ، أَمْ صَبَاحاً، 36لِئَلّا يَعُودَ فَجْأَةً وَيَجِدَكُمْ نَائِمِينَ. 37وَمَا أَقُولُهُ لَكُمْ، أَقُولُهُ لِلْجَمِيعِ: اسْهَرُوا!»

Hindi Contemporary Version

मार्कास 13:1-37

अंत काल की घटनाओं का प्रकाशन

1जब मसीह येशु मंदिर से बाहर निकल रहे थे, उनके एक शिष्य ने उनका ध्यान मंदिर परिसर की ओर खींचते हुए कहा, “देखिए, गुरुवर, कितने विशाल हैं ये पत्थर और कितने बड़े हैं ये भवन!”

2मसीह येशु ने उससे कहा, “तुम्हें ये भवन बड़े लग रहे हैं! सच तो यह है कि एक दिन इन भवनों का एक भी पत्थर दूसरे पर रखा न दिखेगा—हर एक पत्थर भूमि पर होगा.”

3मसीह येशु ज़ैतून पर्वत पर मंदिर की ओर मुख किए हुए बैठे थे. एकांत पाकर पेतरॉस, याकोब, योहन तथा आन्द्रेयास ने मसीह येशु से यह प्रश्न किया, 4“हमको यह बताइए कि यह कब घटित होगा तथा इन सबके निष्पादन (पूरा किया जाना) के समय का लक्षण क्या होगा?”

5तब मसीह येशु ने यह वर्णन करना प्रारंभ किया: “इस विषय में सावधान रहना कि कोई तुम्हें भरमाने न पाए 6क्योंकि मेरे नाम में अनेक यह दावा करते आएंगे, ‘मैं ही मसीह हूं’ और इसके द्वारा अनेकों को भरमा देंगे. 7तुम युद्धों के विषय में तो सुनोगे ही साथ ही उनके विषय में उड़ते-उड़ते समाचार भी. ध्यान रहे कि तुम इससे घबरा न जाओ क्योंकि इनका होना अवश्य है—किंतु इसे ही अंत न समझ लेना. 8राष्ट्र-राष्ट्र के तथा, राज्य-राज्य के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. हर जगह अकाल पड़ेंगे तथा भूकंप आएंगे, किंतु ये सब घटनाएं प्रसववेदना का प्रारंभ मात्र होंगी.

9“फिर भी चौकस रहना. वे तुम्हें पकड़कर न्यायालय को सौंप देंगे, यहूदी सभागृहों में तुम्हें कोड़े लगाए जाएंगे, मेरे लिए तुम्हें शासकों तथा राजाओं के सामने प्रस्तुत किया जाएगा कि तुम उनके सामने मेरे गवाह हो जाओ. 10यह ज़रूरी है कि इसके पहले सभी राष्ट्रों में सुसमाचार का प्रचार किया जाए. 11जब तुम बंदी बनाए जाओ और तुम पर मुकद्दमा चलाया जाए तो यह चिंता न करना कि तुम्हें वहां क्या कहना है. तुम वही कहोगे, जो कुछ तुम्हें वहां उसी समय बताया जाएगा क्योंकि वहां तुम नहीं परंतु पवित्र आत्मा अपना पक्ष प्रस्तुत कर रहे होंगे.

12“भाई अपने भाई को तथा पिता अपनी संतान को हत्या के लिए पकड़वाएगा. बालक अपने माता-पिता के विरुद्ध हो जाएंगे और उनकी हत्या का कारण बन जाएंगे. 13मेरे कारण सभी तुमसे घृणा करेंगे किंतु उद्धार वही पाएगा, जो अंत तक धीरज धरेगा तथा स्थिर रहेगा.

14“उस समय, जब तुम उस विनाशकारी घृणित वस्तु को ऐसे स्थान में खड़ी दिखे, जो उसका निर्धारित स्थान नहीं है—पाठक इसे समझ ले—तब वे, जो यहूदिया प्रदेश में हों पर्वतों पर भागकर जाएं.13:14 दानि 9:27; 11:31; 12:11 15वह, जो घर की छत पर हो, घर में से सामान लेने नीचे न आए. 16वह, जो खेत में हो, अपना कपड़ा लेने पीछे न लौटे. 17दयनीय होगी गर्भवती और शिशुओं को दूध पिलाती स्त्रियों की स्थिति! 18प्रार्थना करते रहो, ऐसा न हो कि तुम्हें जाड़े में भागना पड़े 19क्योंकि वह महाक्लेश काल होगा—ऐसा कि जो न तो सृष्टि के प्रारंभ से आज तक देखा गया, न ही इसके बाद दोबारा देखा जाएगा.

20“यदि प्रभु द्वारा इसकी काल-अवधि घटाई न जाती, तो कोई भी जीवित न रहता. कुछ चुने हुए विशेष लोगों के लिए यह अवधि घटा दी जाएगी. 21उस समय यदि कोई आकर तुम्हें सूचित करे, ‘सुनो-सुनो, मसीह यहां हैं,’ या ‘वह वहां हैं,’ तो विश्वास न करना, 22क्योंकि अनेक झूठे मसीह तथा अनेक झूठे भविष्यवक्ता उठ खड़े होंगे. वे प्रभावशाली चमत्कार चिह्न दिखाएंगे तथा अद्भुत काम करेंगे कि यदि संभव हुआ तो परमेश्वर द्वारा चुने हुओं को भी भटका दें. 23सावधान रहना, मैंने समय से पूर्व ही तुम्हें इसकी चेतावनी दे दी है.

24“उन दिनों में क्लेश के तुरंत बाद,

“ ‘सूर्य अंधेरा हो जाएगा,

और चंद्रमा प्रकाश न देगा;

25तथा आकाश से तारे नीचे गिरने लगेंगे.

आकाशमंडल की शक्तियां हिलायी जाएंगी.’

26“तब आकाश में मनुष्य के पुत्र का चिह्न प्रकट होगा, और वे मनुष्य के पुत्र को आकाश में बादलों पर सामर्थ्य और प्रताप के साथ आता हुआ देखेंगे. 27मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, जो चारों दिशाओं से, पृथ्वी के एक छोर से आकाश के दूसरे छोर तक जाकर उनके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे.

28“अंजीर के पेड़ से शिक्षा लो: जब उसमें कोंपलें फूटने लगती और पत्तियां निकलने लगती हैं तो तुम जान लेते हो कि गर्मी का समय पास है. 29इसी प्रकार तुम जब भी इन सभी घटनाओं को देखो तो समझ लेना कि वह पास है—द्वार पर ही है. 30सच्चाई तो यह है कि इन घटनाओं के हुए बिना इस युग का अंत नहीं होगा. 31आकाश तथा पृथ्वी खत्म हो जाएंगे किंतु मेरे कहे हुए शब्द कभी नहीं.

सतत सावधानी की आज्ञा

32“वैसे उस दिन तथा उस समय के विषय में किसी को भी मालूम नहीं है—न स्वर्गदूतों को और न ही पुत्र को—परंतु मात्र पिता को ही यह मालूम है.” 33अब इसलिये कि तुम्हें उस विशेष क्षण के घटित होने के विषय में कुछ भी मालूम नहीं है, सावधान रहो, सतर्क रहो. 34यह स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी उस व्यक्ति की, जो अपनी सारी गृहस्थी अपने दासों को सौंपकर दूर यात्रा पर निकल पड़ा. उसने हर एक दास को भिन्‍न-भिन्‍न ज़िम्मेदारी सौंपी और द्वारपाल को भी सावधान रहने की आज्ञा दी.

35“इसी प्रकार तुम भी सावधान रहो क्योंकि तुम यह नहीं जानते कि घर का स्वामी लौटकर कब आएगा—शाम को, आधी रात या भोर को मुर्गे की बांग के समय. 36ऐसा न हो कि उसका आना अचानक हो और तुम गहरी नींद में पाए जाओ. 37जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह सभी से संबंधित है: सावधान रहो.”