إنجيل متى 25 – NAV & NCA

Ketab El Hayat

إنجيل متى 25:1-46

مَثل العشر العذارى

1حِينَئِذٍ يُشَبَّهُ مَلَكُوتُ السَّمَاوَاتِ بِعَشْرِ عَذَارَى أَخَذْنَ مَصَابِيحَهُنَّ وَانْطَلَقْنَ لِمُلاقَاةِ الْعَرِيسِ. 2وَكَانَتْ خَمْسٌ مِنْهُنَّ حَكِيمَاتٍ، وَخَمْسٌ جَاهِلاتٍ. 3فَأَخَذَتِ الْجَاهِلاتُ مَصَابِيحَهُنَّ دُونَ زَيْتٍ. 4وَأَمَّا الْحَكِيمَاتُ، فَأَخَذْنَ مَعَ مَصَابِيحِهِنَّ زَيْتاً وَضَعْنَهُ فِي أَوْعِيَةٍ. 5وَإِذْ أَبْطَأَ الْعَرِيسُ، نَعَسْنَ جَمِيعاً وَنِمْنَ. 6وَفِي مُنْتَصَفِ اللَّيْلِ، دَوَّى الْهُتَافُ: هَا هُوَ الْعَرِيسُ آتٍ؛ فَانْطَلِقْنَ لِمُلاقَاتِهِ! 7فَنَهَضَتِ الْعَذَارَى جَمِيعاً وَجَهَّزْنَ مَصَابِيحَهُنَّ. 8وَقَالَتِ الْجَاهِلاتُ لِلْحَكِيمَاتِ: أَعْطِينَنَا بَعْضَ الزَّيْتِ مِنْ عِنْدِكُنَّ، فَإِنَّ مَصَابِيحَنَا تَنْطَفِئُ! 9فَأَجَابَتِ الْحَكِيمَاتُ: رُبَّمَا لَا يَكْفِي لَنَا وَلَكُنَّ. فَاذْهَبْنَ بِالأَحْرَى إِلَى بَائِعِي الزَّيْتِ وَاشْتَرِينَ لَكُنَّ! 10وَبَيْنَمَا الْعَذَارَى الْجَاهِلاتُ ذَاهِبَاتٌ لِلشِّرَاءِ، وَصَلَ الْعَرِيسُ، فَدَخَلَتِ الْعَذَارَى الْمُسْتَعِدَّاتُ مَعَهُ إِلَى قَاعَةِ الْعُرْسِ، وَأُغْلِقَ الْبَابُ. 11وَبَعْدَ حِينٍ، رَجَعَتِ الْعَذَارَى الأُخْرَيَاتُ، وَقُلْنَ: يَا سَيِّدُ، يَا سَيِّدُ، افْتَحْ لَنَا! 12فَأَجَابَ الْعَرِيسُ: الْحَقَّ أَقُولُ لَكُنَّ: إِنِّي لَا أَعْرِفُكُنَّ! 13فَاسْهَرُوا إِذَنْ، لأَنَّكُمْ لَا تَعْرِفُونَ الْيَوْمَ وَلا السَّاعَةَ!

مَثل الوزنات

14فَذَلِكَ أَشْبَهُ بِإِنْسَانٍ مُسَافِرٍ، اسْتَدْعَى عَبِيدَهُ وَسَلَّمَهُمْ أَمْوَالَهُ، 15فَأَعْطَى وَاحِداً مِنْهُمْ خَمْسَ وَزْنَاتٍ (مِنَ الْفِضَّةِ)، وَأَعْطَى آخَرَ وَزْنَتَيْنِ، وَأَعْطَى الثَّالِثَ وَزْنَةً وَاحِدَةً، كُلَّ وَاحِدٍ عَلَى قَدْرِ طَاقَتِهِ، ثُمَّ سَافَرَ. 16وَفِي الْحَالِ مَضَى الَّذِي أَخَذَ الْوَزْنَاتِ الْخَمْسَ وَتَاجَرَ بِها، فَرَبِحَ خَمْسَ وَزْنَاتٍ أُخْرَى. 17وَعَمِلَ مِثْلَهُ الَّذِي أَخَذَ الوَزْنَتَيْنِ، فَرَبِحَ وَزْنَتَيْنِ أُخْرَيَيْنِ. 18وَلَكِنَّ الَّذِي أَخَذَ الْوَزْنَةَ الْوَاحِدَةَ، مَضَى وَحَفَرَ حُفْرَةً فِي الأَرْضِ وَدَفَنَ مَالَ سَيِّدِهِ. 19وَبَعْدَ مُدَّةٍ طَوِيلَةٍ، رَجَعَ سَيِّدُ أُولئِكَ الْعَبِيدِ وَاسْتَدْعَاهُمْ لِيُحَاسِبَهُمْ. 20فَجَاءَهُ الَّذِي أَخَذَ الْوَزْنَاتِ الْخَمْسَ، وَقَدَّمَ الْوَزْنَاتِ الْخَمْسَ الأُخْرَى، وَقَالَ: يَا سَيِّدُ، أَنْتَ سَلَّمْتَنِي خَمْسَ وَزْنَاتٍ، فَهَذِهِ خَمْسُ وَزْنَاتٍ غَيْرُهَا رَبِحْتُهَا! 21فَقَالَ لَهُ سَيِّدُهُ: حَسَناً فَعَلْتَ أَيُّهَا الْعَبْدُ الصَّالِحُ وَالأَمِينُ! كُنْتَ أَمِيناً عَلَى الْقَلِيلِ، فَسَأُقِيمُكَ عَلَى الْكَثِيرِ. اُدْخُلْ إِلَى فَرَحِ سَيِّدِكَ! 22ثُمَّ جَاءَهُ أَيْضاً الَّذِي أَخَذَ الْوَزْنَتَيْنِ وَقَالَ: يَا سَيِّدُ أَنْتَ سَلَّمْتَنِي وَزْنَتَيْنِ، فَهَاتَانِ وَزْنَتَانِ غَيْرُهُمَا رَبِحْتُهُمَا! 23فَقَالَ لَهُ سَيِّدُهُ: حَسَناً فَعَلْتَ أَيُّهَا الْعَبْدُ الصَّالِحُ وَالأَمِينُ! كُنْتَ أَمِيناً عَلَى الْقَلِيلِ، فَسَأُقِيمُكَ عَلَى الْكَثِيرِ. اُدْخُلْ إِلَى فَرَحِ سَيِّدِكَ! 24ثُمَّ جَاءَهُ أَيْضاً الَّذِي أَخَذَ الْوَزْنَةَ الْوَاحِدَةَ، وَقَالَ: يَا سَيِّدُ، عَرَفْتُكَ رَجُلاً قَاسِياً، تَحْصُدُ مِنْ حَيْثُ لَمْ تَزْرَعْ، وَتَجْمَعُ مِنْ حَيْثُ لَمْ تَبْذُرْ، 25فَخِفْتُ، فَذَهَبْتُ وَدَفَنْتَ وَزْنَتَكَ فِي الأَرْضِ. فَهَذَا هُوَ مَالُكَ! 26فَأَجَابَهُ سَيِّدُهُ: أَيُّهَا الْعَبْدُ الشِّرِّيرُ الْكَسُولُ! عَرَفْتَ أَنِّي أَحْصُدُ مِنْ حَيْثُ لَمْ أَزْرَعْ، وَأَجْمَعُ مِنْ حَيْثُ لَمْ أَبْذُرْ، 27فَكَانَ يَحْسُنُ بِكَ أَنْ تُوْدِعَ مَالِي عِنْدَ الصَّيَارِفَةِ لِكَيْ أَسْتَرِدَّهُ لَدَى عَوْدَتِي مَعَ فَائِدَتِهِ! 28ثُمَّ قَالَ لِعَبِيدِهِ: خُذُوا مِنْهُ الْوَزْنَةَ، وَأَعْطُوهَا لِصَاحِبِ الْوَزْنَاتِ الْعَشْرِ: 29فَإِنَّ كُلَّ مَنْ عِنْدَهُ، يُعْطَى الْمَزِيدَ فَيَفِيضُ؛ وَمَنْ لَيْسَ عِنْدَهُ، فَحَتَّى الَّذِي عِنْدَهُ يُنْتَزَعُ مِنْهُ. 30أَمَّا هَذَا الْعَبْدُ الَّذِي لَا نَفْعَ مِنْهُ، فَاطْرَحُوهُ فِي الظُّلْمَةِ الْخَارِجِيَّةِ، هُنَاكَ يَكُونُ البُكَاءُ وَصَرِيرُ الأَسْنَانِ!

الخراف والجداء

31وَعِنْدَمَا يَعُودُ ابْنُ الإِنْسَانِ فِي مَجْدِهِ وَمَعَهُ جَمِيعُ مَلائِكَتِهِ، فَإِنَّهُ يَجْلِسُ عَلَى عَرْشِ مَجْدِهِ، 32وَتَجْتَمِعُ أَمَامَهُ الشُّعُوبُ كُلُّهَا، فَيَفْصِلُ بَعْضَهُمْ عَنْ بَعْضٍ كَمَا يَفْصِلُ الرَّاعِي الْغَنَمَ عَنِ الْمِعَازِ، 33فَيُوقِفُ الْغَنَمَ عَنْ يَمِينِهِ، وَالْمِعَازِ عَنْ يَسَارِهِ؛ 34ثُمَّ يَقُولُ الْمَلِكُ لِلَّذِينَ عَنْ يَمِينِهِ: تَعَالَوْا يَا مَنْ بَارَكَهُمْ أَبِي، رِثُوا الْمَلَكُوتَ الَّذِي أُعِدَّ لَكُمْ مُنْذُ إِنْشَاءِ الْعَالَمِ: 35لأَنِّي جُعْتُ فَأَطْعَمْتُمُونِي، عَطِشْتُ فَسَقَيْتُمُونِي، كُنْتُ غَرِيباً فَآوَيْتُمُونِي، 36عُرْيَاناً فَكَسَوْتُمُونِي، مَرِيضاً فَزُرْتُمُونِي، سَجِيناً فَأَتَيْتُمْ إِلَيَّ! 37فَيَرُدُّ الصَّالِحونَ قَائِلِينَ: يَا رَبُّ، مَتَى رَأَيْنَاكَ جَائِعاً فَأَطْعَمْنَاكَ، أَوْ عَطْشَاناً فَسَقَيْنَاكَ؟ 38وَمَتَى رَأَيْنَاكَ غَرِيباً فَآوَيْنَاكَ، أَوْ عُرْيَاناً فَكَسَوْنَاكَ؟ 39وَمَتَى رَأَيْنَاكَ مَرِيضاً أَوْ سَجِيناً فَزُرْنَاكَ؟ 40فَيُجِيبُهُمُ الْمَلِكُ: الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: بِمَا أَنَّكُمْ فَعَلْتُمْ ذَلِكَ بِأَحَدِ إِخْوَتِي هَؤُلاءِ الصِّغَارِ، فَبِي فَعَلْتُمْ!

41ثُمَّ يَقُولُ لِلَّذِينَ عَنْ يَسَارِهِ: ابْتَعِدُوا عَنِّي يَا مَلاعِينُ إِلَى النَّارِ الأَبَدِيَّةِ الْمُعَدَّةِ لإِبْلِيسَ وَأَعْوَانِهِ! 42لأَنِّي جُعْتُ فَلَمْ تُطْعِمُونِي، وَعَطِشْتُ فَلَمْ تَسْقُونِي، 43كُنْتُ غَرِيباً فَلَمْ تَأْوُونِي، عُرْيَاناً فَلَمْ تَكْسُونِي، مَرِيضاً وَسَجِيناً فَلَمْ تَزُورُونِي! 44فَيَرُدُّ هَؤُلاءِ أَيْضاً قَائِلِينَ: يَا رَبُّ، مَتَى رَأَيْنَاكَ جَائِعاً أَوْ عَطْشَاناً أَوْ غَرِيباً أَوْ عُرْيَاناً أَوْ مَرِيضاً أَوْ سَجِيناً، وَلَمْ نَخْدِمْكَ؟ 45فَيُجِيبُهُمْ: الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: بِمَا أَنَّكُمْ لَمْ تَفْعَلُوا ذَلِكَ بِأَحَدِ إِخْوَتِي هَؤُلاءِ الصِّغَارِ، فَبِي لَمْ تَفْعَلُوا! 46فَيَذْهَبُ هَؤُلاءِ إِلَى الْعِقَابِ الأَبَدِيِّ، وَالصَّالِحونَ إِلَى الْحَيَاةِ الأَبَدِيَّةِ!»

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

मत्ती 25:1-46

दस कुवांरीमन के पटं‍तर

1“ओ समय स्‍वरग के राज ह ओ दस कुवांरीमन सहीं होही, जऊन मन अपन-अपन दीया ला लेके दुल्‍हा के संग भेंट करे बर गीन। 2ओमन म पांच झन मुरुख अऊ पांच झन बुद्धिमान रिहिन। 3मुरुख कुवांरीमन दीयामन ला तो लीन, पर अपन संग तेल नइं ले गीन। 4पर बुद्धिमान कुवांरीमन अपन-अपन दीया के संग बोतल म तेल घलो ले गीन। 5दुल्‍हा के आय म देरी होईस, त ओमन ला उंघासी आईस अऊ ओमन सुत गीन।

6आधा रतिहा ए चिचियाय के अवाज आईस, ‘देखव, दुल्‍हा ह आवत हवय। ओकर संग भेंट करे बर आवव।’ 7तब जम्मो कुवांरीमन जाग गीन अऊ अपन-अपन दीया ला ठीक करे लगिन। 8मुरुख कुवांरीमन बुद्धिमान कुवांरीमन ला कहिन, ‘अपन तेल म ले थोरकन हमन ला घलो देवव, काबरकि हमर दीयामन बुझावत हवंय।’

9पर बुद्धिमान कुवांरीमन जबाब दीन, ‘सायद, हमर बर अऊ तुम्‍हर बर तेल ह नइं पूरही, एकरसेति तुमन तेल बेचइयामन करा जावव अऊ अपन बर तेल बिसो लेवव।’

10पर जब ओमन तेल बिसोय बर गे रिहिन, त दुल्‍हा ह आ गीस। जऊन कुवांरीमन तियार रिहिन, ओमन ओकर संग बिहाव के भोज म भीतर गीन। अऊ कपाट ह बंद हो गीस।

11बाद म ओ आने कुवांरीमन घलो आईन अऊ कहिन, ‘हे मालिक, हे मालिक! हमर बर कपाट ला खोल दे।’

12पर ओह जबाब दीस, ‘मेंह तुमन ला सच कहत हंव, मेंह तुमन ला नइं जानंव।’

13एकरसेति, सचेत रहव, काबरकि तुमन न तो ओ दिन ला जानत हव अऊ न ही ओ समय ला।”

सिक्‍कामन के पटं‍तर

(लूका 19:11-27)

14“स्‍वरग के राज ह ओ मनखे के सहीं अय, जऊन ह परदेस जावत बेरा अपन सेवकमन ला बलाईस अऊ ओमन ला अपन संपत्ति सऊंप दीस। 15हर एक ला ओह ओमन के काबिलियत के मुताबिक दीस; एक सेवक ला ओह पांच सिक्‍का, दूसर ला दू सिक्‍का अऊ तीसरा ला एक सिक्‍का दीस। अऊ तब ओह परदेस चल दीस25:15 एक सिक्‍का के मतलब इहां कतको हजार रूपिया अय।16जऊन सेवक ला पांच सिक्‍का मिले रिहिस, ओह तुरते गीस अऊ ओ सिक्‍का ले लेन-देन करके पांच सिक्‍का अऊ कमा लीस। 17वइसने जऊन सेवक ला दू सिक्‍का मिले रिहिस, ओह घलो दू सिक्‍का अऊ कमाईस। 18पर जऊन सेवक ला एक ठन सिक्‍का मिले रिहिस, ओह गीस अऊ भुइयां ला खन के अपन मालिक के पईसा ला उहां लुका दीस।

19बहुंत समय के बाद, ओ सेवकमन के मालिक ह लहुंटिस अऊ ओमन ले हिसाब मांगिस। 20जऊन सेवक ला पांच सिक्‍का मिले रिहिस, ओह पांच सिक्‍का अऊ लेके आईस अऊ कहिस, ‘मालिक, तेंह मोला पांच सिक्‍का देय रहय। देख, मेंह पांच सिक्‍का अऊ कमाय हवंव।’

21ओकर मालिक ह ओला कहिस, ‘बहुंत अछा करय। तेंह बने अऊ ईमानदार सेवक अस। तेंह थोरकन म ईमानदार रहय। मेंह तोला बहुंत चीजमन ऊपर अधिकार दूहूं। आ अऊ अपन मालिक के खुसी म सामिल हो जा।’

22जऊन सेवक ला दू सिक्‍का मिले रिहिस, ओह घलो आईस अऊ कहिस, ‘मालिक, तेंह मोला दू ठन सिक्‍का देय रहय। देख, मेंह दू ठन सिक्‍का अऊ कमाय हवंव।’

23ओकर मालिक ह ओला कहिस, ‘बहुंत अछा करय। तेंह बने अऊ ईमानदार सेवक अस। तेंह थोरकन म ईमानदार रहय। मेंह तोला बहुंत चीजमन ऊपर अधिकार दूहूं। आ अऊ अपन मालिक के खुसी म सामिल हो जा।’

24तब जऊन सेवक ला एक सिक्‍का मिले रिहिस, ओह आईस अऊ कहिस, ‘मालिक, मेंह जानत रहेंव कि तेंह एक कठोर मनखे अस। तेंह जिहां नइं बोए रहस, उहां ले लूथस, अऊ जिहां बीजा नइं बगराय रहस, उहां ले संकेलथस। 25एकरसेति मेंह डर्रा गेंव अऊ बाहिर जाके मेंह तोर सिक्‍का ला भुइयां म गड़िया देंव; ए हवय तोर सिक्‍का।’

26ओकर मालिक ह ओला कहिस, ‘दुस्‍ट अऊ अलाल सेवक! जब तेंह जानत रहय कि जिहां मेंह नइं बोए रहंव, उहां ले लूथंव, अऊ जिहां बीजा नइं बगराय रहंव, उहां ले संकेलथंव। 27त तोला मोर पईसा ला साहूकारमन के इहां जमा कर देना रिहिस, ताकि जब मेंह वापिस आयेंव, त ओला बियाज सहित ले लेतेंव।’

28मालिक ह अपन आने सेवकमन ला कहिस, ‘ए सिक्‍का ला एकर ले लेय लव, अऊ ओला दे दव, जेकर करा दस ठन सिक्‍का हवय। 29काबरकि जेकर करा हवय ओला अऊ देय जाही अऊ ओकर करा बहुंत हो जाही; पर जेकर करा नइं ए, ओकर ले ओला घलो ले लिये जाही, जऊन ह ओकर करा हवय। 30ए बेकार सेवक ला बाहिर अंधियार म फटिक दव, जिहां ओह रोही अऊ अपन दांत पीसही।’ ”

भेड़ अऊ छेरी मन

31“जब मनखे के बेटा ह अपन महिमा म आही अऊ जम्मो स्वरगदूतमन ओकर संग आहीं, त ओह अपन महिमा के सिंघासन म बिराजही। 32अऊ ओकर आघू म संसार के जम्मो मनखेमन ला लाने जाही। जइसने चरवाहा ह भेड़मन ला छेरीमन ले अलग करथे, वइसने ओह मनखेमन ला एक-दूसर ले अलग करही। 33ओह भेड़मन ला अपन जेवनी अंग अऊ छेरीमन ला अपन डेरी अंग करही।

34तब राजा ह अपन जेवनी अंग के मनखेमन ला कहिही, ‘तुमन मोर ददा के आसिसित मनखे अव। आवव, अऊ ओ राज के उत्तराधिकारी बन जावव, जऊन ला तुम्‍हर खातिर संसार के सिरजे के समय ले तियार करे गे हवय। 35काबरकि मेंह भूखा रहेंव अऊ तुमन ह मोला खाना खवाएव; मेंह पियासा रहेंव अऊ तुमन ह मोला पानी पियाएव; मेंह परदेसी रहेंव अऊ तुमन मोला अपन घर म रखेव; 36मोर करा कपड़ा नइं रिहिस अऊ तुमन मोला कपड़ा पहिराएव; मेंह बेमार रहेंव अऊ तुमन मोर देख-रेख करेव, मेंह जेल म रहेंव अऊ तुमन मोर ले मिले बर आयेव।’

37तब धरमीमन ओला कहिहीं, ‘हे परभू, हमन कब तोला भूखा देखेन अऊ खाना खवाएन या कब पियासा देखेन अऊ तोला पानी पीयाएन? 38हमन कब तोला एक परदेसी के रूप म देखेन अऊ अपन घर म ठहिराएन, या कब तोर करा कपड़ा नइं रिहिस अऊ हमन तोला कपड़ा पहिराएन? 39हमन कब तोला बेमार या जेल म देखेन अऊ तोर ले मिले बर आयेंन?’

40तब राजा ह ओमन ला ए जबाब दिही, ‘मेंह तुमन ला सच कहथंव कि जऊन कुछू तुमन मोर ए छोटे ले छोटे भाईमन के कोनो एक झन खातिर करेव, त तुमन ओ मोर बर करेव।25:40 मत्ती 10:40-42

41तब राजा ह अपन डेरी अंग के मनखेमन ला कहिही, ‘तुमन सरापित मनखे अव। मोर ले दूरिहा हटव अऊ ओ सदाकाल के आगी म चले जावव, जऊन ला सैतान अऊ ओकर दूतमन बर तियार करे गे हवय। 42काबरकि मेंह भूखा रहेंव, अऊ तुमन मोला खाना नइं खवाएव; मेंह पियासा रहेंव अऊ तुमन मोला पानी नइं पियाएव। 43मेंह परदेसी रहेंव अऊ तुमन मोला अपन घर म नइं रखेव; मोर करा कपड़ा नइं रिहिस अऊ तुमन मोला कपड़ा नइं पहिराएव; मेंह बेमार रहेंव अऊ जेल म रहेंव अऊ तुमन मोर देख-रेख नइं करेव।’

44तब ओमन कहिहीं, ‘हे परभू! हमन कब तोला भूखा या पियासा या परदेसी या बिगर कपड़ा या बेमार या जेल म देखेन अऊ तोर मदद नइं करेन?’

45तब राजा ह ओमन ला ए जबाब दिही, ‘मेंह तुमन ला, सच कहथंव कि जब भी तुमन ए छोटे मन के कोनो एक झन के मदद नइं करेव, त तुमन मोर घलो मदद नइं करेव।’

46तब ओमन सदाकाल के दंड भोगहीं, पर धरमीमन परमेसर के संग सदाकाल के जिनगी पाहीं।”25:46 मत्ती 18:4-6