إنجيل متى 19 – NAV & NCA

Ketab El Hayat

إنجيل متى 19:1-30

الطلاق

1بَعْدَمَا أَنْهَى يَسُوعُ هَذَا الْكَلامَ، انْتَقَلَ مِنَ الْجَلِيلِ ذَاهِباً إِلَى نَوَاحِي مِنْطَقَةِ الْيَهُودِيَّةِ مَا وَرَاءَ نَهْرِ الأُرْدُنِّ. 2وَتَبِعَتْهُ جُمُوعٌ كَثِيرَةٌ، فَشَفَى مَرْضَاهُمْ هُنَاكَ.

3وَتَقَدَّمَ إِلَيْهِ بَعْضُ الْفَرِّيسِيِّينَ يُجَرِّبُونَهُ، فَسَأَلُوهُ: «هَلْ يَحِلُّ لِلرَّجُلِ أَنْ يُطَلِّقَ زَوْجَتَهُ لأَيِّ سَبَبٍ؟» 4فَأَجَابَهُمْ قَائِلاً: «أَلَمْ تَقْرَأُوا أَنَّ الْخَالِقَ جَعَلَ الإِنْسَانَ مُنْذُ الْبَدْءِ ذَكَراً وَأُنْثَى، 5وَقَالَ: لِذَلِكَ يَتْرُكُ الرَّجُلُ أَبَاهُ وَأُمَّهُ وَيَتَّحِدُ بِزَوْجَتِهِ، فَيَصِيرُ الاثْنَانِ جَسَداً وَاحِداً؟ 6فَلَيْسَا فِيمَا بَعْدُ اثْنَيْنِ، بَلْ جَسَداً وَاحِداً. فَلا يُفَرِّقَنَّ الإِنْسَانُ مَا جَمَعَهُ اللهُ!» 7فَسَأَلُوهُ: «فَلِمَاذَا أَوْصَى مُوسَى بِأَنْ تُعْطَى الزَّوْجَةُ وَثِيقَةَ طَلاقٍ فَتُطَلَّقُ؟» 8أَجَابَ: «بِسَبَبِ قَسَاوَةِ قُلُوبِكُمْ، سَمَحَ لَكُمْ مُوسَى بِتَطْلِيقِ زَوْجَاتِكُمْ. وَلَكِنَّ الأَمْرَ لَمْ يَكُنْ هَكَذَا مُنْذُ الْبَدْءِ. 9وَلَكِنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ الَّذِي يُطَلِّقُ زَوْجَتَهُ لِغَيْرِ عِلَّةِ الزِّنَى، وَيَتَزَوَّجُ بِغَيْرِهَا، فَإِنَّهُ يَرْتَكِبُ الزِّنَى. وَالَّذِي يَتَزَوَّجُ بِمُطَلَّقَةٍ، يَرْتَكِبُ الزِّنَى». 10فَقَالَ لَهُ تَلامِيذُهُ: «إِنْ كَانَتْ هَذِهِ حَالَةَ الزَّوْجِ مَعَ الزَّوْجَةِ، فَعَدَمُ الزَّوَاجِ أَفْضَلُ!» 11فَأَجَابَهُمْ: «هَذَا الْكَلامُ لَا يَقْبَلُهُ الْجَمِيعُ، بَلِ الَّذِينَ أُنْعِمَ عَلَيْهِمْ بِذَلِكَ. 12فَإِنَّ بَعْضَ الْخِصْيَانِ يُوْلَدُونَ مِنْ بُطُونِ أُمَّهَاتِهِمْ خِصْيَاناً؛ وَبَعْضُهُمْ قَدْ خَصَاهُمُ النَّاسُ؛ وَغَيْرُهُمْ قَدْ خَصَوْا أَنْفُسَهُمْ مِنْ أَجْلِ مَلَكُوتِ السَّمَاوَاتِ. فَمَنِ اسْتَطَاعَ أَنْ يَقْبَلَ هَذَا، فَلْيَقْبَلْهُ!»

يسوع والأطفال

13ثُمَّ قَدَّمَ إِلَيْهِ بَعْضُهُمْ أَوْلاداً صِغَاراً لِيَضَعَ يَدَيْهِ عَلَيْهِمْ وَيُصَلِّيَ، فَزَجَرَهُمُ التَّلامِيذُ. 14وَلَكِنَّ يَسُوعَ قَالَ: «دَعُوا الصِّغَارَ يَأْتُونَ إِلَيَّ وَلا تَمْنَعُوهُمْ، لأَنَّ لِمِثْلِ هَؤُلاءِ مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ!» 15وَوَضَعَ يَدَيْهِ عَلَيْهِمْ، ثُمَّ ذَهَبَ مِنْ هُنَاكَ.

الشاب الغني

16وَإذَا شَابٌّ يَتَقَدَّمُ إِلَيْهِ وَيَسْأَلُ: «أَيُّهَا الْمُعَلِّمُ الصَّالِحُ، أَيَّ صَلاحٍ أَعْمَلُ لأَحْصُلَ عَلَى الْحَيَاةِ الأَبَدِيَّةِ؟» 17فَأَجَابَهُ: «لِمَاذَا تَسْأَلُنِي عَنِ الصَّالِحِ؟ وَاحِدٌ هُوَ الصَّالِحُ. وَلكِنْ، إِنْ أَرَدْتَ أَنْ تَدْخُلَ الْحَيَاةَ، فَاعْمَلْ بِالْوَصَايَا». 18فَسَأَلَ: «أَيَّةِ وَصَايَا؟» أَجَابَهُ يَسُوعُ: «لا تَقْتُلْ؛ لَا تَزْنِ؛ لَا تَسْرِقْ؛ لَا تَشْهَدْ بِالزُّورِ؛ 19أَكْرِمْ أَبَاكَ وَأُمَّكَ؛ وَأَحِبَّ قَرِيبَكَ كَنَفْسِكَ.» 20قَالَ لَهُ الشَّابُّ: «هَذِهِ كُلُّهَا عَمِلْتُ بِها مُنْذُ صِغَرِي، فَمَاذَا يَنْقُصُنِي بَعْدُ؟» 21فَأَجَابَهُ يَسُوعُ: «إِنْ أَرَدْتَ أَنْ تَكُونَ كَامِلاً، فَاذْهَبْ وَبِعْ كُلَّ مَا تَمْلِكُ، وَوَزِّعْ عَلَى الْفُقَرَاءِ، فَيَكُونَ لَكَ كَنْزٌ فِي السَّمَاوَاتِ. وَتَعَالَ اتْبَعْنِي!» 22فَلَمَّا سَمِعَ الشَّابُّ هَذَا الْكَلامَ، مَضَى حَزِيناً لأَنَّهُ كَانَ صَاحِبَ ثَرْوَةٍ كَبِيرَةٍ.

23فَقَالَ يَسُوعُ لِتَلامِيذِهِ: «الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ مِنَ الصَّعْبِ عَلَى الْغَنِيِّ أَنْ يَدْخُلَ مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ. 24وَأَيْضاً أَقُولُ: إِنَّهُ لأَسْهَلُ أَنْ يَدْخُلَ الْجَمَلُ فِي ثَقْبِ إِبْرَةٍ مِنْ أَنْ يَدْخُلَ الْغَنِيُّ مَلَكُوتَ اللهِ». 25فَدُهِشَ التَّلامِيذُ جِدّاً لَمَّا سَمِعُوا ذَلِكَ، وَسَأَلُوا: «إِذَنْ، مَنْ يَقْدِرُ أَنْ يَنْجُوَ؟» 26فَنَظَرَ إِلَيْهِمْ وَقَالَ لَهُمْ: «هَذَا مُسْتَحِيلٌ عِنْدَ النَّاسِ. أَمَّا عِنْدَ اللهِ، فَكُلُّ شَيْءٍ مُسْتَطَاعٌ!»

27عِنْدَئِذٍ قَالَ بُطْرُسُ: «هَا نَحْنُ قَدْ تَرَكْنَا كُلَّ شَيْءٍ وَتَبِعْنَاكَ، فَمَاذَا يَكُونُ نَصِيبُنَا؟» 28فَأَجَابَهُمْ يَسُوعُ: «الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ فِي زَمَنِ التَّجْدِيدِ، عِنْدَمَا يَجْلِسُ ابْنُ الإِنْسَانِ عَلَى عَرْشِ مَجْدِهِ، تَجْلِسُونَ أَنْتُمُ الَّذِينَ تَبِعْتُمُونِي عَلَى اثْنَيْ عَشَرَ عَرْشاً لِتَدِينُوا أَسْبَاطَ إِسْرَائِيلَ الاثْنَيْ عَشَرَ. 29فَأَيُّ مَنْ تَرَكَ بُيُوتاً أَوْ إِخْوَةً أَوْ أَخَوَاتٍ أَوْ أَباً أَوْ أُمّاً أَوْ أَوْلاداً أَوْ أَرَاضِيَ مِنْ أَجْلِ اسْمِي، فَإِنَهُ يَنَالُ مِئَةَ ضِعْفٍ وَيَرِثُ الْحَيَاةَ الأَبَدِيَّةَ. 30وَلكِنْ أَوَّلُونَ كَثِيرُونَ يَصِيرُونَ آخِرِينَ، وَآخِرُونَ كَثِيرُونَ يَصِيرُونَ أَوَّلِينَ.

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

मत्ती 19:1-30

तलाक

(मरकुस 10:1-12)

1ए बातमन ला कहे के बाद, यीसू ह गलील प्रदेस ले चल दीस, अऊ यरदन नदी के ओ पार यहूदिया प्रदेस के सीमना म आईस। 2मनखेमन के एक बड़े भीड़ ह ओकर पाछू हो लीस, अऊ यीसू ह उहां बेमरहामन ला चंगा करिस।

3कुछू फरीसीमन यीसू ला परखे बर ओकर करा आईन अऊ ओमन यीसू ले पुछिन, “का कोनो भी कारन ले अपन घरवाली ला तियाग देवई कानून के मुताबिक सही अय?”

4यीसू ह जबाब दीस, “का तुमन परमेसर के बचन म नइं पढ़े हवव कि संसार के रचइया ह ओमन ला सुरूआत ले नर अऊ नारी करके बनाईस, 5अऊ कहिस, ‘एकरे कारन मनखे ह अपन दाई-ददा ला छोंड़के अपन घरवाली के संग रहिही, अऊ ओ दूनों एक तन होहीं।’ 6ओमन ह अब दू नइं पर एक तन अंय। एकरसेति जऊन ला परमेसर ह एक संग जोड़े हवय, ओला मनखे ह अलग झन करय।”

7ओमन यीसू ला कहिन, “त फेर मूसा ह ए हुकूम काबर देय हवय कि मनखे ह अपन घरवाली ला तियाग पतर देके ओला छोंड़ दे।”

8यीसू ह ओमन ला जबाब दीस, “तुम्‍हर हिरदय के कठोरता के कारन, मूसा ह तुमन ला अपन घरवाली ला तियागे के अनुमती दीस। पर सुरू ले अइसने नइं रिहिस। 9मेंह तुमन ला कहत हंव कि जऊन मनखे ह बेभिचार के छोंड़ कोनो आने कारन ले अपन घरवाली ला तियाग देथे, अऊ आने माईलोगन ले बिहाव कर लेथे, त ओह बेभिचार करथे।”

10चेलामन यीसू ला कहिन, “यदि मनखे के संबंध ह अपन घरवाली के संग अइसने अय, तब बिहाव नइं करई ठीक अय।”

11यीसू ह ओमन ला कहिस, “जम्मो मनखे ए सिकछा ला माने नइं सकंय, पर सिरिप ओहीच मन मान सकथें, जऊन मन ला ए बरदान दिये गे हवय। 12काबरकि कुछू हिजड़ामन हवंय, जऊन मन अपन दाई के पेट ले अइसने जनमे हवंय। कुछू झन ला मनखेमन हिजड़ा बना देय हवंय, पर कुछू मनखेमन स्‍वरग राज के खातिर बिहाव नइं करे हवंय। जऊन ह ए बात ला मान सकथे, ओला मानना चाही।”

यीसू अऊ छोटे लइकामन

(मरकुस 10:13-16; लूका 18:15-17)

13तब मनखेमन लइकामन ला यीसू करा लानिन ताकि यीसू ह ओमन ऊपर अपन हांथ रखय अऊ ओमन बर पराथना करय। पर चेलामन मनखेमन ला डांटिन।

14यीसू ह कहिस, “लइकामन ला मोर करा आवन दव, अऊ ओमन ला झन रोकव काबरकि स्‍वरग के राज ह अइसने मनखेमन बर अय।” 15अऊ ओह लइकामन ऊपर अपन हांथ रखिस अऊ उहां ले चल दीस।

एक धनी जवान

(मरकुस 10:17-31; लूका 18:18-30)

16एक मनखे ह यीसू करा आईस अऊ पुछिस, “हे गुरू, मेंह का भलई के काम करंव कि मोला परमेसर के संग सदाकाल के जिनगी मिलय?”

17यीसू ह ओला कहिस, “तेंह मोर ले भलई के बारे म काबर पुछथस? सिरिप एके झन ह बने अय। यदि तेंह जिनगी म जाय चाहथस, त हुकूममन ला माने कर।”

18ओ मनखे ह पुछिस, “कोन हुकूममन ला?” यीसू ह कहिस, “हतिया झन कर, बेभिचार झन कर, चोरी झन कर, लबारी गवाही झन दे, 19अपन दाई अऊ ददा के आदर कर, अऊ अपन पड़ोसी ला अपन सहीं मया कर।”

20ओ जवान ह यीसू ला कहिस, “ए जम्मो बात ला मेंह मानत आवत हंव। मोर म अऊ कोन बात के कमी हवय?”

21यीसू ह ओला कहिस, “यदि तेंह सिद्ध बने चाहत हस, त जा; अपन जायदाद ला बेंच अऊ गरीबमन म बांट दे, अऊ तोला स्‍वरग म धन मिलही। तब आ अऊ मोर पाछू हो ले।”

22जब ए बात ला ओ जवान ह सुनिस, त ओह उदास होके उहां ले चल दीस, काबरकि ओह अब्‍बड़ धनवान रिहिस।

23तब यीसू ह अपन चेलामन ला कहिस, “मेंह तुमन ला सच कहत हंव – धनवान मनखे के स्‍वरग राज म जाना कठिन अय। 24मेंह तुमन ला फेर कहत हंव कि परमेसर के राज म धनवान मनखे के जाय के बनिस‍पत सुई के छेदा म ले ऊंट के निकर जवई सरल अय।”

25ए बात ला सुनके चेलामन अब्‍बड़ चकित होईन अऊ कहिन, “तब काकर उद्धार हो सकथे?”

26यीसू ह ओमन कोति देखिस अऊ कहिस, “ए बात ह मनखे के दुवारा संभव नो हय, पर परमेसर के दुवारा जम्मो बात ह संभव अय।”

27तब पतरस ह यीसू ला कहिस, “देख, हमन तो जम्मो कुछू ला छोंड़के तोर पाछू हो ले हवन। त हमन ला का मिलही?”

28यीसू ह ओमन ला कहिस, “मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि नवां संसार म, जब मनखे के बेटा ह महिमा के अपन सिंघासन म बईठही, त तुमन जऊन मन मोर पाछू चलत हव, बारह सिंघासन म बईठहू अऊ इसरायल के बारह गोत्र के नियाय करहू। 29अऊ जऊन कोनो मोर खातिर अपन घर-दुवार या भाई या बहिनी या ददा या दाई या लइका या खेतखार ला छोंड़ देय हवय, ओह सौ गुना पाही अऊ ओह सदाकाल के जिनगी के अधिकारी होही। 30पर कतको झन जऊन मन पहिली हवंय, ओमन आखिरी म हो जाहीं, अऊ कतको मनखे जऊन मन आखिरी म हवंय, ओमन पहिली हो जाहीं।”