إنجيل متى 11 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

إنجيل متى 11:1-30

يسوع ويوحنا المعمدان

1بَعْدَمَا انْتَهَى يَسُوعُ مِنْ تَوْصِيَةِ تَلامِيذِهِ الاثْنَيْ عَشَرَ، انْتَقَلَ مِنْ هُنَاكَ، وَذَهَبَ يُعَلِّمُ وَيُبَشِّرُ فِي مُدُنِهِمْ. 2وَلَمَّا سَمِعَ يُوحَنَّا، وَهُوَ فِي السِّجْنِ، بِأَعْمَالِ الْمَسِيحِ، أَرْسَلَ إِلَيْهِ بَعْضَ تَلامِيذِهِ، 3يَسْأَلُهُ: «أَأَنْتَ هُوَ الآتِي، أَمْ نَنْتَظِرُ غَيْرَكَ؟» 4فَأَجَابَهُمْ يَسُوعُ قَائِلاً: «اذْهَبُوا أَخْبِرُوا يُوحَنَّا بِمَا تَسْمَعُونَ وَتَرَوْنَ: 5الْعُمْيُ يُبْصِرُونَ، وَالْعُرْجُ يَمْشُونَ، وَالْبُرْصُ يُطَهَّرُونَ، وَالصُّمُّ يَسْمَعُونَ، وَالْمَوْتَى يُقَامُونَ، وَالْمَسَاكِينُ يُبَشَّرُونَ. 6وَطُوبَى لِمَنْ لَا يَشُكُّ فِيَّ!»

7وَمَا إِنِ انْصَرَفَ تَلامِيذُ يُوحَنَّا، حَتَّى أَخَذَ يَسُوعُ يَتَحَدَّثُ إِلَى الْجُمُوعِ عَنْ يُوحَنَّا: «مَاذَا خَرَجْتُمْ إِلَى الْبَرِّيَّةِ لِتَرَوْا؟ أَقَصَبَةً تَهُزُّهَا الرِّيَاحُ؟ 8بَلْ مَاذَا خَرَجْتُمْ لِتَرَوْا: أَإِنْسَاناً يَلْبَسُ ثِيَاباً نَاعِمَةً؟ هَا إِنَّ لابِسِي الثِّيَابِ النَّاعِمَةِ هُمْ فِي قُصُورِ الْمُلُوكِ! 9إِذَنْ، مَاذَا خَرَجْتُمْ لِتَرَوْا؟ أَنَبِيًّا؟ نَعَمْ، أَقُولُ لَكُمْ، وَأَعْظَمَ مِنْ نَبِيٍّ. 10فَهَذَا هُوَ الَّذِي كُتِبَ عَنْهُ: هَا إِنِّي مُرْسِلٌ قُدَّامَكَ رَسُولِي الَّذِي يُمَهِّدُ لَكَ طَرِيقَكَ! 11الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّهُ لَمْ يَظْهَرْ بَيْنَ مَنْ وَلَدَتْهُمْ النِّسَاءُ أَعْظَمُ مِنْ يُوحَنَّا الْمَعْمَدَانِ. وَلَكِنَّ الأَصْغَرَ فِي مَلَكُوتِ السَّمَاوَاتِ أَعْظَمُ مِنْهُ! 12فَمُنْذُ أَنْ بَدَأَ يُوحَنَّا الْمَعْمَدَانُ خِدْمَتَهُ وَالنَّاسُ يَسْعَوْنَ جَاهِدِينِ لِدُخُولِ مَلَكُوتِ السَّمَوَاتِ وَالسَّاعُونَ يَدْخُلُونَهُ بِمَشَقَّةٍ! 13فَإِنَّ الشَّرِيعَةَ وَالأَنْبِيَاءَ تَنَبَّأُوا جَمِيعاً حَتَّى ظُهُورِ يُوحَنَّا. 14وَإِنْ شِئْتُمْ أَنْ تُصَدِّقُوا، فَإِنَّ يُوحَنَّا هَذَا، هُوَ إِيلِيَّا الَّذِي كَانَ رُجُوعُهُ مُنْتَظَراً. 15وَمَنْ لَهُ أُذُنَانِ، فَلْيَسْمَعْ!

16وَلَكِنْ، بِمَنْ أُشَبِّهُ هَذَا الْجِيلَ؟ إِنَّهُمْ يُشْبِهُونَ أَوْلاداً جَالِسِينَ فِي السَّاحَاتِ الْعَامَّةِ، يُنَادُونَ أَصْحَابَهُمْ قَائِلِينَ: 17زَمَّرْنَا لَكُمْ، فَلَمْ تَرْقُصُوا! وَنَدَبْنَا لَكُمْ، فَلَمْ تَبْكُوا! 18فَقَدْ جَاءَ يُوحَنَّا لَا يَأْكُلُ وَلا يَشْرَبُ، فَقَالُوا: إِنَّ شَيْطَاناً يَسْكُنُهُ! 19ثُمَّ جَاءَ ابْنُ الإِنْسَانِ يَأْكُلُ وَيَشْرَبُ، فَقَالُوا: هَذَا رَجُلٌ شَرِهٌ وَسِكِّيرٌ، صَدِيقٌ لِجُبَاةِ الضَّرَائِبِ وَالْخَاطِئِينَ. وَلَكِنْ تُخْتَبَرُ الْحِكْمَةُ بِأَعْمَالِها».

الويل للمدن التي لم تتب

20ثُمَّ بَدَأَ يَسُوعُ يُوَبِّخُ الْمُدُنَ الَّتِي جَرَتْ فِيهَا أَكْثَرُ مُعْجِزَاتِهِ، لِكَوْنِ أَهْلِهَا لَمْ يَتُوبُوا. 21فَقَالَ: «الْوَيْلُ لَكِ يَا كُورَزِينُ! الْوَيْلُ لَكِ يَا بَيْتَ صَيْدَا! فَلَوْ أُجْرِيَ فِي صُورَ وَصَيْدَا مَا أُجْرِيَ فِيكُمَا مِنَ الْمُعْجِزَاتِ، لَتَابَ أَهْلُهُمَا مُنْذُ الْقَدِيمِ لابِسِينَ الْمُسُوحَ فِي وَسَطِ الرَّمَادِ. 22وَلَكِنِّي أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ حَالَةَ صُورَ وَصَيْدَا فِي الدَّيْنُونَةِ، سَتَكُونُ أَكْثَرَ احْتِمَالاً مِنْ حَالَتِكُمَا! 23وَأَنْتِ يَا كَفْرَنَاحُومَ: هَلِ ارْتَفَعْتِ حَتَّى السَّمَاءِ؟ إِنَّكِ إِلَى قَعْرِ الْهَاوِيَةِ سَتُهْبَطِينَ. فَلَوْ جَرَى فِي سَدُومَ مَا جَرَى فِيكِ مِنَ الْمُعْجِزَاتِ، لَبَقِيَتْ حَتَّى الْيَوْمِ. 24وَلَكِنِّي أَقُولُ لَكُمْ إِنَّ مَصِيرَ سَدُومَ فِي يَوْمِ الدَّيْنُونَةِ، سَيَكُونُ أَكْثَرَ احْتِمَالاً مِنْ حَالَتِكِ!»

راحة المتعبين

25وَفِي ذَلِكَ الْوَقْتِ، تَكَلَّمَ يَسُوعُ فَقَالَ: «أَحْمَدُكَ أَيُّهَا الآبُ، رَبَّ السَّمَاءِ وَالأَرْضِ، لأَنَّكَ حَجَبْتَ هَذِهِ الأُمُورَ عَنِ الْحُكَمَاءِ وَالْفُهَمَاءِ، وَكَشَفْتَهَا لِلأَطْفَالِ! 26نَعَمْ أَيُّهَا الآبُ، لأَنَّهُ هَكَذَا حَسُنَ فِي نَظَرِكَ. 27كُلُّ شَيْءٍ قَدْ سَلَّمَهُ إِلَيَّ أَبِي. وَلا أَحَدٌ يَعْرِفُ الاِبْنَ إِلّا الآبُ، وَلا أَحَدٌ يَعْرِفُ الآبَ إِلّا الاِبْنُ، وَمَنْ أَرَادَ الاِبْنُ أَنْ يُعْلِنَهُ لَهُ.

28تَعَالَوْا إِلَيَّ يَا جَمِيعَ الْمُتْعَبِينَ وَالثَّقِيلِي الأَحْمَالِ، وَأَنَا أُرِيحُكُمْ. 29اِحْمِلُوا نِيرِي عَلَيْكُمْ، وَتعَلَّمُوا مِنِّي، لأَنِّي وَدِيعٌ وَمُتَوَاضِعُ الْقَلْبِ، فَتَجِدُوا الرَّاحَةَ لِنُفُوسِكُمْ. 30فَإِنَّ نِيرِي هَيِّنٌ، وَحِمْلِي خَفِيفٌ!»

Hindi Contemporary Version

मत्तियाह 11:1-30

बपतिस्मा देनेवाले योहन की शंका का समाधान

1जब येशु अपने बारह शिष्यों को निर्देश दे चुके, वह शिक्षा देने और प्रचार के लिए वहां से उनके नगरों में चले गए.

2बंदीगृह में जब योहन ने मसीह के कामों के विषय में सुना उन्होंने अपने शिष्यों को येशु से यह पूछने भेजा, 3“क्या आप वही है, जिसकी प्रतिज्ञा तथा प्रतीक्षा की गई हैं, या हम किसी अन्य का इंतजार करें?”

4येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जो कुछ तुम देख और सुन रहे हो उसकी सूचना योहन को दे दो: 5अंधे देख पा रहे हैं, लंगड़े चल रहे हैं, कोढ़ के रोगियों को शुद्ध किया जा रहा है, बहिरे सुनने लगे हैं, मरे हुए दोबारा जीवित किए जा रहे हैं तथा कंगालों को सुसमाचार सुनाया जा रहा है.11:5 यशा 35:5-6; 42:18; 61:1 6धन्य है वह, जिसका विश्वास मुझ पर से नहीं उठता.”

7जब योहन के शिष्य वहां से जा ही रहे थे, प्रभु येशु ने भीड़ से योहन के विषय में कहना प्रारंभ किया, “तुम्हारी आशा बंजर भूमि में क्या देखने की थी? हवा में हिलते हुए सरकंडे को? 8यदि यह नहीं तो फिर क्या देखने गए थे? कीमती वस्त्र धारण किए हुए किसी व्यक्ति को? जो ऐसे वस्त्र धारण करते हैं उनका निवास तो राजमहलों में होता है. 9तुम क्यों गए थे? किसी भविष्यवक्ता से भेंट करने? हां! मैं तुम्हें बता रहा हूं कि यह वह हैं, जो भविष्यवक्ता से भी बढ़कर हैं 10यह वह हैं जिनके विषय में लिखा गया है:

“ ‘मैं अपना दूत तुम्हारे आगे भेज रहा हूं,

जो तुम्हारे आगे-आगे जाकर तुम्हारे लिए मार्ग तैयार करेगा.’11:10 मला 3:1

11सच तो यह है कि आज तक जितने भी मनुष्य हुए हैं उनमें से एक भी बपतिस्मा देनेवाले योहन से बढ़कर नहीं. फिर भी स्वर्ग-राज्य में छोटे से छोटा भी योहन से बढ़कर है. 12बपतिस्मा देनेवाले योहन के समय से लेकर अब तक स्वर्ग-राज्य प्रबलतापूर्वक फैल रहा है और आकांक्षी-उत्साही व्यक्ति इस पर अधिकार कर रहे हैं. 13भविष्यद्वक्ताओं तथा व्यवस्था की भविष्यवाणी योहन तक ही थी. 14यदि तुम इस सच में विश्वास कर सको तो सुनो: योहन ही वह एलियाह हैं जिनका दोबारा आगमन होना था. 15जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले.

16“इस पीढ़ी की तुलना मैं किससे करूं? यह बाजारों में बैठे हुए उन बालकों के समान है, जो पुकारते हुए अन्यों से कह रहे हैं:

17“ ‘जब हमने तुम्हारे लिए बांसुरी बजाई,

तुम न नाचे;

हमने शोक गीत भी गाए,

फिर भी तुम न रोए.’

18योहन रोटी नहीं खाते, और दाखरस नहीं पीते थे. इसलिये लोगों ने घोषणा की, ‘उसमें दुष्टात्मा है.’ 19मनुष्य का पुत्र खाते-पीते आया, और उन्होंने घोषित कर दिया, ‘अरे, वह तो पेटू और पियक्कड़ है; वह तो चुंगी लेनेवालों और अपराधी व्यक्तियों का मित्र है!’ बुद्धि अपने कामों से सही साबित होती है11:19 मूल में “बुद्धि अपनी संतान द्वारा साबित हुई है.” दानि 7:13-14.”

झील तट के नगरों पर विलाप

20येशु ने अधिकांश अद्भुत काम इन्हीं नगरों में किए थे; फिर भी इन नगरों ने पश्चाताप नहीं किया था, इसलिये येशु इन नगरों को धिक्कारने लगे. 21“धिक्कार है तुझ पर कोराज़ीन! धिक्कार है तुझ पर बैथसैदा! ये ही अद्भुत काम, जो तुझमें किए गए हैं यदि सोर और सीदोन नगरों में किए जाते तो वे विलाप-वस्त्र पहन, सिर पर राख डाल कब के पश्चाताप कर चुके होते! 22फिर भी मैं कहता हूं, सुनो: न्याय-दिवस पर सोर और सीदोन नगरों का दंड तेरे दंड से अधिक सहने योग्य होगा. 23और कफ़रनहूम, तू! क्या तू स्वर्ग तक ऊंचा किए जाने की आशा कर रहा है? अरे! तुझे तो पाताल में उतार दिया जाएगा क्योंकि जो अद्भुत काम तुझमें किए गए, यदि वे ही सोदोम नगर में किए गए होते तो वह आज भी बना होता. 24फिर भी आज जो मैं कह रहा हूं उसे याद रख: न्याय-दिवस पर सोदोम नगर का दंड तेरे दंड से अधिक सहने योग्य होगा.”

सरल हृदय लोगों पर ईश्वरीय सुसमाचार का प्रकाशन

25यह वह अवसर था जब येशु ने इस प्रकार कहा: “पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के स्वामी, मैं आपकी स्तुति करता हूं कि आपने ये सभी सच बुद्धिमानों और ज्ञानियों से छुपा रखे और नन्हे बालकों पर प्रकट कर दिए क्योंकि पिता, आपकी दृष्टि में यही अच्छा था. 26सच है, पिता, क्योंकि इसी में आपको परम संतोष था.

27“मेरे पिता द्वारा सब कुछ मुझे सौंप दिया गया है. पिता के अलावा कोई पुत्र को नहीं जानता और न ही कोई पिता को जानता है, सिवाय पुत्र के तथा वे, जिन पर वह प्रकट करना चाहें.

28“तुम सभी, जो थके हुए तथा भारी बोझ से दबे हो, मेरे पास आओ, तुम्हें विश्राम मैं दूंगा. 29मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझसे सीखो क्योंकि मैं दीन और हृदय से नम्र हूं और तुम्हें मन में विश्राम प्राप्‍त होगा 30क्योंकि सहज है मेरा जूआ और हल्का है मेरा बोझ.”