الدينونة والخلاص
1«قَدْ أَعْلَنْتُ ذَاتِي لِمَنْ لَمْ يَسْأَلُوا عَنِّي، وَوَجَدَنِي مَنْ لَمْ يَطْلُبْنِي، وَقُلْتُ: ’هَأَنَذَا‘ لأُمَّةٍ لَمْ تَدْعُ بِاسْمِي. 2بَسَطْتُ يَدَيَّ الْيَوْمَ كُلَّهُ إِلَى شَعْبٍ مُتَمَرِّدٍ يَسْلُكُ فِي طَرِيقٍ غَيْرِ صَالِحٍ، تَابِعِينَ أَهْوَاءَهُمْ، 3شَعْبٍ يُثَابِرُ عَلَى إِغَاظَتِي فِي وَجْهِي، إِذْ يُقَرِّبُ ذَبَائِحَ لأَصْنَامِهِ فِي الْحَدَائِقِ وَيُحْرِقُ بَخُوراً فَوْقَ مَذَابِحِ الطُّوبِ. 4يَجْلِسُ بَيْنَ الْمَقَابِرِ وَيَبِيتُ اللَّيْلَ فِي أَمَاكِنَ سِرِّيَّةٍ، وَيَأْكُلُ لَحْمَ الْخِنْزِيرِ، وَفِي أَوَانِيهِ مَرَقُ لُحُومٍ نَجِسَةٍ. 5وَيَقُولُ أَحَدُهُمْ لِلآخَرِ: ’لَا تَقْتَرِبْ مِنِّي لِئَلَّا تُدَنِّسَنِي، لأَنِّي أَقْدَسُ مِنْكَ‘ (فَيُثِيرُونَ غَيْظِي) كَدُخَانٍ فِي أَنْفِي وَنَارٍ تَتَّقِدُ طُولَ النَّهَارِ. 6انْظُرُوا قَدْ كُتِبَ أَمَامِي: لَنْ أَصْمُتَ بَلْ أُجَازِي، وَأُلْقِي فِي أَحْضَانِهِمْ 7خَطَايَاهُمْ وَخَطَايَا آبَائِهِمْ مَعاً». يَقُولُ الرَّبُّ «لأَنَّهُمْ أَحْرَقُوا بَخُوراً عَلَى الْجِبَالِ، وَأَهَانُونِي عَلَى الآكَامِ، فَإِنِّي أَكِيلُ أَعْمَالَهُمُ الأُولَى وَأَطْرَحُهَا فِي أَحْضَانِهِمْ عِقَاباً لَهُمْ».
8وَلَكِنْ هَذَا مَا يَقُولُهُ الرَّبُّ: «كَمَا أَنَّ (الكَرَّامَ) لَا يَطْرَحُ العُنْقُودَ الفَاسِدَ إِذْ يُقَالُ لَهُ إِنَّ فِي عِنَبِهِ بَعْضَ الْخَمْرِ الطَيِّبِ، كَذَلِكَ لَنْ أَطْرَحَ مِنْ أَمَامِي كُلَّ إِسْرَائِيلَ لِئَلَّا أَقْضِيَ عَلَى خُدَّامِي جَمِيعاً. 9بَلْ أُخْرِجُ مِنْ صُلْبِ يَعْقُوبَ ذُرِّيَّةً، وَمِنْ يَهُوذَا وَارِثاً لِجِبَالِي، فَيَمْلِكُهَا مُخْتَارِيَّ، وَيُقِيمُ فِيهَا عَبِيدِي، 10وَتُصْبِحُ أَرْضُ شَارُونَ مَرْعىً لِلْقُطْعَانِ، وَوَادِي عَخُورَ مَرْبِضَ بَقَرٍ لِشَعْبِي الَّذِي طَلَبَنِي».
11«أَمَّا أَنْتُمُ الَّذِينَ نَبَذْتُمُ الرَّبَّ وَنَسِيتُمْ جَبَلِي الْمُقَدَّسَ، وَهَيَّأْتُمْ مَذْبَحاً لإِلَهِ ’الْحَظِّ‘ وَمَلَأْتُمُ الْكُؤُوسَ خَمْراً مَمْزُوجَةً لإِلَهِ ’الْقَدَرِ‘، 12فَأجْعَلُ مَصِيرَكُمُ الْهَلاكَ بِالسَّيْفِ، وَتَسْجُدُونَ جَمِيعاً لِذَابِحِيكُمْ لأَنَّنِي دَعَوْتُ فَلَمْ تُجِيبُوا، تَكَلَّمْتُ فَلَمْ تَسْمَعُوا، وَارْتَكَبْتُمُ الشَّرَّ عَلَى مَرْأَى مِنِّي وَاخْتَرْتُمْ مَا أُبْغِضُهُ». 13لِذَلِكَ هَكَذَا يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: «هَا عَبِيدِي يَأْكُلُونَ وَأَنْتُمْ تَجُوعُونَ، وَيَشْرَبُونَ وَأَنْتُمْ تَظْمَأُونَ، وَيَفْرَحُونَ وَأَنْتُمْ تَخْزَوْنَ، 14وَيَتَرَنَّمُونَ فِي غِبْطَةِ الْقَلْبِ وَأَنْتُمْ تُعْوِلُونَ مِنْ أَسَى الْقَلْبِ، وَتُوَلْوِلُونَ مِنِ انْكِسَارِ الرُّوحِ، 15وَتُخْلِفُونَ اسْمَكُمْ لَعْنَةً عَلَى شِفَاهِ مُخْتَارِيَّ، وَيُمِيتُكُمُ الرَّبُّ وَيُطْلِقُ عَلَى عَبِيدِهِ اسْماً آخَرَ. 16فَيَكُونُ كُلُّ مَنْ يُبَارِكُ نَفْسَهُ فِي الأَرْضِ إِنَّمَا يُبَارِكُ نَفْسَهُ بِالإِلَهِ الْحَقِّ، وَمَنْ يُقْسِمُ فِي الأَرْضِ إِنَّمَا يُقْسِمُ بِالإِلَهِ الْحَقِّ، لأَنَّ الضِّيقَاتِ الأُولَى قَدْ نُسِيَتْ وَاحْتَجَبَتْ عَنْ عَيْنَيَّ.
سماوات جديدة وأرض جديدة
17لأَنَّنِي هَا أَنَا أَخْلُقُ سَمَاوَاتٍ جَدِيدَةً وَأَرْضاً جَدِيدَةً، تَمْحُو ذِكْرَ الأُولَى فَلا تَعُودُ تَخْطُرُ عَلَى بَالٍ 18إِنَّمَا افْرَحُوا وَابْتَهِجُوا إِلَى الأَبَدِ بِمَا أَنَا خَالِقُهُ، فَهَا أَنَا أَخْلُقُ أُورُشَلِيمَ بَهْجَةً، وَشَعْبَهَا فَرَحاً. 19وَأَبْتَهِجُ بِأُورُشَلِيمَ وَأَغْتَبِطُ بِشَعْبِي، وَلا يَعُودُ يُسْمَعُ فِيهَا صَوْتُ بُكَاءٍ أَوْ نَحِيبٍ، 20وَلا يَكُونُ فِيهَا بَعْدُ طِفْلٌ لَا يَعِيشُ سِوَى أَيَّامٍ قَلائِلَ، أَوْ شَيْخٌ لَا يَسْتَوْفِي أَيَّامَهُ. وَمَنْ يَمُوتُ ابْنَ مِئَةِ سَنَةٍ يُعْتَبَرُ فَتىً، وَمَنْ لَا يَبْلُغُهَا يَكُونُ مَلْعُوناً. 21يَغْرِسُ النَّاسُ كُرُومَهُمْ وَيَأْكُلُونَ ثِمَارَهَا، وَيَبْنُونَ بُيُوتَهُمْ وَيُقِيمُونَ فِيهَا، 22لَا يَبْنُونَ لِيَأْتِيَ آخَرُ فَيَسْكُنَ فِيهَا، وَلا يَغْرِسُونَ كُرُوماً لِيَجْنِيَهَا آخَرُ، لأَنَّ أَيَّامَ شَعْبِي تَكُونُ مَدِيدَةً كَأَيَّامِ الشَّجَرِ، وَيَتَمَتَّعُ مُخْتَارِيَّ بِعَمَلِ أَيْدِيهِمْ. 23فَهُمْ لَنْ يَتْعَبُوا بَاطِلاً وَلا تُنْجِبُ نِسَاؤُهُمْ أَوْلاداً لِلرُّعْبِ، لأَنَّهُمْ يَكُونُونَ ذُرِّيَّةَ مُبَارَكِي الرَّبِّ، وَيَتَبَارَكُ أَوْلادُهُمْ مَعَهُمْ. 24وَقَبْلَ أَنْ يَدْعُوا أَسْتَجِيبُ، وَفِيمَا هُمْ يَتَكَلَّمُونَ أُنْصِتُ إِلَيْهِمْ. 25وَيَرْعَى الذِّئْبُ وَالْحَمَلُ مَعاً، وَيَأْكُلُ الأَسَدُ التِّبْنَ كَالْبَقَرِ، وَتَأْكُلُ الْحَيَّةُ التُّرَابَ. لَا يُؤْذُونَ وَلا يُهْلِكُونَ فِي كُلِّ جَبَلِ قُدْسِي» يَقُولُ الرَّبُّ.
न्याय और उद्धार
1“मैंने अपने आपको उन लोगों में प्रकट किया, जिन्होंने मेरे विषय में पूछताछ ही नहीं की;
मैंने अपने आपको उन लोगों के लिए उपलब्ध करा दिया, जिन्होंने मुझे खोजने की कोशिश भी न की थी.
वह देश जिसने मेरे नाम की दोहाई ही न दी थी,
मैं उसका ध्यान इस प्रकार करता रहा, ‘देख मैं यहां हूं.’
2एक विद्रोही जाति के लिए
मैं सारे दिन अपने हाथ फैलाए रहा,
जो अपनी इच्छा से बुरे रास्तों पर
चलते हैं,
3जो ईंटों पर धूप जलाकर तथा बागों में बलि चढ़ाकर,
मुझे क्रोधित करते हैं;
4जो कब्रों के बीच बैठे रहते
तथा सुनसान जगहों पर रात बिताते हैं;
जो सूअर का मांस खाते,
और घृणित वस्तुओं का रस अपने बर्तनों में रखते हैं;
5वे कहते हैं, ‘अपने आप काम करो; मत आओ हमारे पास,
तुमसे अधिक पवित्र मैं हूं!’
मेरे लिए तो यह मेरे नाक में धुएं व उस आग के समान है,
जो सारे दिन भर जलती रहती है.
6“देखो, यह सब मेरे सामने लिखा है:
मैं चुप न रहूंगा, किंतु मैं बदला लूंगा;
वरन तुम्हारे और तुम्हारे पूर्वजों के भी अधर्म के कामों का बदला तुम्हारी गोद में भर दूंगा.
7क्योंकि उन्होंने पर्वतों पर धूप जलाया है
और पहाड़ियों पर उन्होंने मेरी उपासना की है,
इसलिये मैं उनके द्वारा
पिछले कामों का बदला उन्हीं की झोली में डाल दूंगा.”
8याहवेह कहते हैं,
“जिस प्रकार दाख के गुच्छे में ही नया दाखमधु भरा होता है
जिसके विषय में कहा जाता है, ‘इसे नष्ट न करो,
यही हमें लाभ करेगा,’
इसी प्रकार मैं भी अपने सेवकों के लिये काम करूंगा;
कि वे सबके सब नष्ट न हो जाएं.
9मैं याकोब के वंश को जमा करूंगा,
और यहूदिया से मेरे पर्वतों का उत्तराधिकारी चुना जायेगा;
वे मेरे चुने हुए वारिस होंगे,
और वहां मेरे सेवक बस जायेंगे.
10शारोन में उसकी भेड़-बकरियां चरेंगी,
और गाय-बैल आकोर घाटी में विश्राम करेंगे,
क्योंकि मेरी प्रजा मेरी खोज करने लगी है.
11“परंतु तुम जिन्होंने याहवेह को छोड़ दिया हैं
और जो मेरे पवित्र पर्वत को भूल जाते हैं,
वे भाग्य देवता के लिए मेज़ पर खाना सजाते हैं
और भावी देवी के लिये मसाला मिला दाखमधु रखते हैं,
12मैं तुम्हारे लिए तलवार लाऊंगा,
तुम सभी वध होने के लिए झुक जाओगे;
क्योंकि तुमने मेरे बुलाने पर उत्तर न दिया,
जब मैंने कहा तुमने न सुना.
तुमने वही किया, जो मेरी दृष्टि में गलत है
तथा वही करना चाहा जो मुझे नहीं भाता.”
13तब प्रभु याहवेह ने कहा:
“देखो, मेरे सेवक तो भोजन करेंगे,
पर तुम भूखे रह जाओगे;
कि मेरे सेवक पिएंगे,
पर तुम प्यासे रह जाओगे;
मेरे सेवक आनंदित होंगे,
पर तुम लज्जित किए जाओगे.
14मेरे सेवक आनंद से
जय जयकार करेंगे,
पर तुम दुःखी दिल से रोते
और तड़पते रहोगे.
15मेरे चुने हुए लोग
तुम्हारा नाम लेकर शाप देंगे;
और प्रभु याहवेह तुमको नाश करेंगे,
परंतु अपने दासों का नया नाम रखेंगे.
16क्योंकि वह जो पृथ्वी पर धन्य है
वह सत्य के परमेश्वर द्वारा आशीषित किया गया है;
वह जो पृथ्वी पर शपथ लेता है
वह सत्य के परमेश्वर की शपथ लेगा.
क्योंकि पुरानी विपत्तियां दूर हो जायेंगी,
वह मेरी आंखों से छिप गया है.
नया आकाश और नयी पृथ्वी
17“क्योंकि देखो,
मैं नया आकाश और पृथ्वी बनाऊंगा.
पुरानी बातें न सोची,
और न याद की जायेंगी.
18इसलिये मैं जो कुछ बना रहा हूं
उसमें सर्वदा मगन और खुश रहो,
क्योंकि देखो मैं येरूशलेम को मगन
और आनंदित बनाऊंगा.
19मैं येरूशलेम में खुशी मनाऊंगा
तथा अपनी प्रजा से मैं खुश रहूंगा;
फिर येरूशलेम में न तो रोने
और न चिल्लाने का शब्द सुनाई देगा.
20“अब वहां ऐसा कभी न होगा
कि कुछ दिन का बच्चा,
या किसी वृद्ध की अचानक मृत्यु हो जाए;
क्योंकि जवान ही की मृत्यु
एक सौ वर्ष की अवस्था में होगी;
तथा वह, जो अपने जीवन में एक सौ वर्ष न देख पाए,
उसे शापित माना जाएगा.
21वे घर बनाकर रहेंगे;
वे दाख की बारी लगायेंगे और उसका फल खाएंगे.
22ऐसा कभी न होगा कि घर तो वे बनाएंगे तथा उसमें कोई और रहने लगेगा;
या वे बीज बोए, और दूसरे फसल काटे.
क्योंकि जितना जीवनकाल वृक्ष का होगा,
उतनी ही आयु मेरी प्रजा की होगी;
मेरे चुने हुए अपने कामों का
पूरा लाभ उठाएंगे.
23उनकी मेहनत बेकार न होगी,
न उनके बालक कष्ट के लिए उत्पन्न होंगे;
क्योंकि वे याहवेह के धन्य वंश होंगे,
और उनके बच्चे उनसे अलग न होंगे.
24उनके पुकारते ही मैं उन्हें उत्तर दूंगा;
और उनके मांगते ही मैं उनकी सुन लूंगा.
25भेड़िये तथा मेमने साथ साथ चरेंगे,
बैल के समान सिंह भूसा खाने लगेगा,
तथा सांप का भोजन धूल होगा.
मेरे पवित्र पर्वत पर
किसी प्रकार की हानि और कष्ट न होगा,”
यह याहवेह का वचन है.