1يَا لَيْتَ رَأْسِي فَيْضُ مِيَاهٍ، وَعَيْنَيَّ يَنْبُوعُ دُمُوعٍ، فَأَبْكِيَ نَهَاراً وَلَيْلاً قَتْلَى بِنْتِ شَعْبِي 2يَا لَيْتَ لِي فِي الصَّحْرَاءِ مَبِيتَ عَابِرِ سَبِيلٍ، فَأَهْجُرَ شَعْبِي وَأَنْطَلِقَ بَعِيداً عَنْهُمْ، لأَنَّهُمْ جَمِيعاً زُنَاةٌ وَجَمَاعَةُ خَوَنَةٍ. 3«قَدْ وَتَّرُوا أَلْسِنَتَهُمْ كَقِسِيٍّ جَاهِزَةٍ لِيُطْلِقُوا الأَكَاذِيبَ الَّتِي تَقَوَّلُوا بِها فِي الأَرْضِ مِنْ دُونِ الْحَقِّ، إِذْ أَنَّهُمُ انْتَهَوْا مِنْ شَرٍّ إِلَى شَرٍّ، وَإِيَّايَ لَمْ يَعْرِفُوا» يَقُولُ الرَّبُّ. 4«لِيَحْتَرِسْ كُلُّ وَاحِدٍ مِنْ جَارِهِ، وَلا يَثِقْ بِأَحَدٍ مِنْ أَقْرِبَائِهِ، لأَنَّ كُلَّ قَرِيبٍ مُخَادِعٌ، وَكُلَّ صَاحِبٍ وَاشٍ. 5كُلُّ وَاحِدٍ مِنْهُمْ يَخْدَعُ جَارَهُ وَلا يَنْطِقُونَ بِالصِّدْقِ. دَرَّبُوا أَلْسِنَتَهُمْ عَلَى قَوْلِ الْكَذِبِ، وَأَرْهَقُوا أَنْفُسَهُمْ فِي ارْتِكَابِ الإِثْمِ. 6يَجْمَعُونَ ظُلْماً فَوْقَ ظُلْمٍ، وَخِدَاعاً عَلَى خِدَاعٍ، وَأَبَوْا أَنْ يَعْرِفُونِي».
7لِذَلِكَ يُعْلِنُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ: «هَا أَنَا أُمَحِّصُهُمْ وَأَمْتَحِنُهُمْ، إِذْ أَيُّ شَيْءٍ آخَرَ يُمْكِنُ أَنْ أَفْعَلَهُ عِقَاباً لِخَطَايَا أُورُشَلِيمَ؟ 8لِسَانُهُمْ كَسَهْمٍ قَاتِلٍ يَتَفَوَّهُ بِالْكَذِبِ. وَبِفَمِهِ يُخَاطِبُ جَارَهُ بِحَدِيثِ السَّلامِ، أَمَّا فِي قَلْبِهِ فَيَنْصِبُ لَهُ كَمِيناً. 9أَلا أُعَاقِبُهُمْ عَلَى هَذِهِ الأُمُورِ؟» يَقُولُ الرَّبُّ. «أَلا أَنْتَقِمُ لِنَفْسِي مِنْ أُمَّةٍ كَهَذِهِ؟»
10سَأَنْتَحِبُ وَأَنُوحُ عَلَى الْجِبَالِ وَأَنْدُبُ عَلَى مَرَاعِي الْبَرِّيَّةِ لأَنَّهَا احْتَرَقَتْ وَأَوْحَشَتْ، فَلا يَجْتَازُ بِها عَابِرٌ وَلا يَتَرَدَّدُ فِيهَا صَوْتُ الْقُطْعَانِ، وَقَدْ هَجَرَتْهَا طُيُورُ السَّمَاءِ وَالْوُحُوشُ. 11«سَأَجْعَلُ أُورُشَلِيمَ رُجْمَةَ خَرَابٍ، وَمَأْوَى لِبَنَاتِ آوَى، وَأُحَوِّلُ مُدُنَ يَهُوذَا إِلَى قَفْرٍ مَهْجُورٍ». 12مَنْ هُوَ الإِنْسَانُ الْحَكِيمُ حَتَّى يَفْهَمَ هَذَا؟ وَمَنْ خَاطَبَهُ فَمُ الرَّبِّ حَتَّى يُعْلِنَهَا؟ لِمَاذَا خَرِبَتِ الأَرْضُ، وَأَوْحَشَتْ كَالْبَرِّيَّةِ فَلا يَقْطَعُهَا عَابِرٌ؟ 13وَيَقُولُ الرَّبُّ: «لأَنَّهُمْ نَبَذُوا شَرِيعَتِي الَّتِي وَضَعْتُهَا أَمَامَهُمْ، وَلَمْ يُطِيعُوا صَوْتِي أَوْ يَسْلُكُوا بِمُقْتَضَاهَا، 14بَلْ ضَلُّوا وَرَاءَ عِنَادِ قُلُوبِهِمْ، وَانْسَاقُوا خَلْفَ آلِهَةِ الْبَعْلِيمِ الَّتِي لَقَّنَهُمْ آبَاؤُهُمْ عِبَادَتَهَا. 15لِذَلِكَ هَا أَنَا أُطْعِمُ هَذَا الشَّعْبَ طَعَاماً مُرّاً، وَأَسْقِيهِمْ مَاءً مَسْمُوماً، 16وَأُشَتِّتُهُمْ بَيْنَ الأُمَمِ الَّتِي لَمْ يَعْرِفُوهَا هُمْ وَلا آبَاؤُهُمْ، وَأَجْعَلُ سَيْفَ الدَّمَارِ يَتَعَقَّبُهُمْ حَتَّى أُفْنِيَهُمْ».
17وَهَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ الْقَدِيرُ: «تَأَمَّلُوا وَاسْتَدْعُوا النَّادِبَاتِ لِيَأْتِينَ، وَأَرْسِلُوا إِلَى الْحَكِيمَاتِ فَيُقْبِلْنَ. 18لِيُسْرِعْنَ حَتَّى يُطْلِقْنَ أَصْوَاتَهُنَّ عَلَيْنَا بِالنَّدْبِ فَتَذْرِفَ عُيُونُنَا دُمُوعاً، وَتَفِيضَ أَجْفَانُنَا مَاءً. 19هَا صَوْتُ رِثَاءٍ قَدْ تَجَاوَبَ فِي صِهْيَوْنَ: مَا أَشَدَّ دَمَارَنَا، وَمَا أَعْظَمَ عَارَنَا، لأَنَّنَا قَدْ فَارَقْنَا أَرْضَنَا، وَلأَنَّهُمْ قَدْ هَدَمُوا مَسَاكِنَنَا!» 20فَاسْمَعْنَ أَيَّتُهَا النِّسَاءُ قَضَاءَ الرَّبِّ، وَلْتَفْهَمْ آذَانُكُنَّ كَلِمَةَ فَمِهِ: لَقِّنَّ بَنَاتِكُنَّ الرِّثَاءَ، وَلْتُعَلِّمْ كُلٌّ مِنْهُنَّ صَاحِبَتَهَا النَّدْبَ، 21فَإِنَّ الْمَوْتَ قَدْ تَسَلَّقَ إِلَى كُوَانَا وَتَسَلَّلَ إِلَى قُصُورِنَا، فَاسْتَأْصَلَ الأَطْفَالَ مِنَ الشَّوَارِعِ وَالشُّبَّانَ مِنَ السَّاحَاتِ. 22وَهَذَا مَا يُعْلِنُهُ الرَّبُّ: «سَتَتَهَاوَى جُثَثُ النَّاسِ مِثْلَ نُفَايَةٍ عَلَى وَجْهِ الْحَقْلِ، وَتَتَسَاقَطُ كَقَبَضَاتٍ وَرَاءَ الْحَاصِدِ، وَلَيْسَ مَنْ يَجْمَعُهَا».
23«فَلا يَفْتَخِرَنَّ الْحَكِيمُ بِحِكْمَتِهِ، وَلا يَزْهُوَنَّ الْجَبَّارُ بِجَبَرُوتِهِ، وَلا الْغَنِيُّ بِثَرْوَتِهِ. 24بَلْ لِيَفْتَخِرِ الْمُفْتَخِرُ بِأَنَّهُ يُدْرِكُ وَيَعْرِفُنِي أَنِّي أَنَا الرَّبُّ الَّذِي يُمَارِسُ الرَّحْمَةَ وَالْعَدْلَ وَالْبِرَّ فِي الأَرْضِ لأَنِّي أُسَرُّ بِها».
25«هَا أَيَّامٌ مُقْبِلَةٌ»، يَقُولُ الرَّبُّ، «أُعَاقِبُ فِيهَا كُلَّ مَخْتُونٍ وَأَغْلَفَ 26أَهْلَ مِصْرَ وَيَهُوذَا وَأَدُومَ وَبَنِي عَمُّونَ وَمُوآبَ، وَسَائِرَ الْمُقِيمِينَ فِي الصَّحْرَاءِ مِمَّنْ يَقُصُّونَ شَعْرَ أَصْدَاغِهِمْ، لأَنَّ جَمِيعَ الشُّعُوبِ غُلْفٌ، أَمَّا كُلُّ بَيْتِ إِسْرَائِيلَ فَإِنَّهُمْ ذَوُو قُلُوبٍ غَلْفَاءَ».
1अच्छा होता कि मेरा सिर जल का सोता
तथा मेरे नेत्र आंसुओं से भरे जाते
कि मैं घात किए गए अपने प्रिय लोगों के लिए
रात-दिन विलाप करता रहता!
2अच्छा होता कि मैं मरुभूमि में
यात्रियों का आश्रय-स्थल होता,
कि मैं अपने लोगों को परित्याग कर
उनसे दूर जा सकता;
उन सभी ने व्यभिचार किया है,
वे सभी विश्वासघातियों की सभा हैं.
3“वे अपनी जीभ का प्रयोग
अपने धनुष सदृश करते हैं;
देश में सत्य नहीं
असत्य व्याप्त हो चुका है.
वे एक संकट से दूसरे संकट में प्रवेश करते जाते हैं;
वे मेरे अस्तित्व ही की उपेक्षा करते हैं,”
यह याहवेह की वाणी है.
4“उपयुक्त होगा कि हर एक अपने पड़ोसी से सावधान रहे;
कोई अपने भाई-बन्धु पर भरोसा न करे.
क्योंकि हर एक भाई का व्यवहार धूर्ततापूर्ण होता है,
तथा हर एक पड़ोसी अपभाषण करता फिरता है.
5हर एक अपने पड़ोसी से छल कर रहा है,
और सत्य उसके भाषण में है ही नहीं.
अपनी जीभ को उन्होंने झूठी भाषा में प्रशिक्षित कर दिया है;
अंत होने के बिंदु तक वे अधर्म करते जाते हैं.
6तुम्हारा आवास धोखे के मध्य स्थापित है;
धोखा ही वह कारण है, जिसके द्वारा वे मेरे अस्तित्व की उपेक्षा करते हैं,”
यह याहवेह की वाणी है.
7इसलिये सेनाओं के याहवेह की चेतावनी यह है:
“यह देख लेना, कि मैं उन्हें आग में शुद्ध करूंगा तथा उन्हें परखूंगा,
क्योंकि अपने प्रिय लोगों के कारण मेरे समक्ष इसके सिवा
और कौन सा विकल्प शेष रह जाता है?
8उनकी जीभ घातक बाण है;
जिसका वचन फंसाने ही का होता है.
अपने मुख से तो वह अपने पड़ोसी को कल्याण का आश्वासन देता है,
किंतु मन ही मन वह उसके लिए घात लगाने की युक्ति करता रहता है.
9क्या उपयुक्त नहीं कि मैं उन्हें इन कृत्यों के लिए दंड दूं?”
यह याहवेह की वाणी है.
“क्या मैं इस प्रकार के राष्ट्र से
स्वयं बदला न लूं?”
10पर्वतों के लिए मैं विलाप करूंगा
और चराइयों एवं निर्जन क्षेत्रों के लिए मैं शोक के गीत गाऊंगा.
क्योंकि अब वे सब उजाड़ पड़े है कोई भी उनके मध्य से चला फिरा नहीं करता,
वहां पशुओं के रम्भाने का स्वर सुना ही नहीं जाता.
आकाश के पक्षी एवं पशु भाग चुके हैं,
वे वहां हैं ही नहीं.
11“येरूशलेम को मैं खंडहरों का ढेर,
और सियारों का बसेरा बना छोड़ूंगा;
यहूदिया प्रदेश के नगरों को मैं उजाड़ बना दूंगा
वहां एक भी निवासी न रहेगा.”
12कौन है वह बुद्धिमान व्यक्ति जो इसे समझ सकेगा? तथा कौन है वह जिससे याहवेह ने बात की कि वह उसकी व्याख्या कर सके? सारा देश उजाड़ कैसे हो गया? कैसे मरुभूमि सदृश निर्जन हो गई, कि कोई भी वहां से चला फिरा नहीं करता?
13याहवेह ने उत्तर दिया, “इसलिये कि उन्होंने मेरे विधान की अवहेलना की है, जो स्वयं मैंने उनके लिए नियत किया तथा उन्होंने न तो मेरे आदेशों का पालन किया और न ही उसके अनुरूप आचरण ही किया. 14बल्कि, वे अपने हठीले हृदय की समझ के अनुरूप आचरण करते रहे; वे अपने पूर्वजों की शिक्षा पर बाल देवताओं का अनुसरण करते रहें.” 15इसलिये सेनाओं के याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर ने निश्चय किया: “यह देख लेना, मैं उन्हें पेय के लिए कड़वा नागदौन तथा विष से भरा जल दूंगा. 16मैं उन्हें ऐसे राष्ट्रों के मध्य बिखरा दूंगा जिन्हें न तो उन्होंने और न उनके पूर्वजों ने जाना है, मैं उनके पीछे उस समय तक तलवार तैयार रखूंगा, जब तक उनका पूर्ण अंत न हो जाए.”
17यह सेनाओं के याहवेह का आदेश है:
“विचार करके उन स्त्रियों को बुला लो, जिनका व्यवसाय ही है विलाप करना, कि वे यहां आ जाएं;
उन स्त्रियों को, जो विलाप करने में निपुण हैं,
18कि वे यहां तुरंत आएं
तथा हमारे लिए विलाप करें
कि हमारे नेत्रों से आंसू उमड़ने लगे,
कि हमारी पलकों से आंसू बहने लगे.
19क्योंकि ज़ियोन से यह विलाप सुनाई दे रहा है:
‘कैसे हो गया है हमारा विनाश!
हम पर घोर लज्जा आ पड़ी है!
क्योंकि हमने अपने देश को छोड़ दिया है
क्योंकि उन्होंने हमारे आवासों को ढाह दिया है.’ ”
20स्त्रियों, अब तुम याहवेह का संदेश सुनो;
तुम्हारे कान उनके मुख के वचन सुनें.
अपनी पुत्रियों को विलाप करना सिखा दो;
तथा हर एक अपने-अपने पड़ोसी को शोक गीत सिखाए.
21क्योंकि मृत्यु का प्रवेश हमारी खिड़कियों से हुआ है
यह हमारे महलों में प्रविष्ट हो चुका है;
कि गलियों में बालक नष्ट किए जा सकें
तथा नगर चौकों में से जवान.
22यह वाणी करो, “याहवेह की ओर से यह संदेश है:
“ ‘मनुष्यों के शव खुले मैदान में
विष्ठा सदृश पड़े हुए दिखाई देंगे,
तथा फसल काटनेवाले द्वारा छोड़ी गई पूली सदृश,
किंतु कोई भी इन्हें एकत्र नहीं करेगा.’ ”
23याहवेह की ओर से यह आदेश है:
“न तो बुद्धिमान अपनी बुद्धि का अहंकार करे
न शक्तिवान अपने पौरुष का
न धनाढ्य अपनी धन संपदा का,
24जो गर्व करे इस बात पर गर्व करे:
कि उसे मेरे संबंध में यह समझ एवं ज्ञान है,
कि मैं याहवेह हूं जो पृथ्वी पर निर्जर प्रेम,
न्याय एवं धार्मिकता को प्रयोग करता हूं,
क्योंकि ये ही मेरे आनंद का विषय है,”
यह याहवेह की वाणी है.
25“यह ध्यान रहे कि ऐसे दिन आ रहे हैं,” याहवेह यह वाणी दे रहे हैं, “जब मैं उन सभी को दंड दूंगा, जो ख़तनित होने पर भी अख़तनित ही हैं— 26मिस्र, यहूदिया, एदोम, अम्मोन वंशज, मोआब तथा वे सभी, जिनका निवास मरुभूमि में है, जो अपनी कनपटी के केश क़तर डालते हैं. ये सभी जनता अख़तनित हैं, तथा इस्राएल के सारे वंशज वस्तुतः हृदय में अख़तनित ही हैं.”