أعمال 18 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

أعمال 18:1-28

في كورنثوس

1بَعْدَ ذَلِكَ تَرَكَ بُولُسُ أَثِينَا، وَسَافَرَ إِلى مَدِينَةِ كُورِنْثُوسَ. 2فَالْتَقَى هُنَاكَ بِيَهُودِيٍّ اسْمُهُ أَكِيلا، مِنْ مَوَالِيدِ بُنْطُسَ، كَانَ قَدْ جَاءَ حَدِيثاً مَعَ زَوْجَتِهِ بِرِيسْكِلا مِنْ إِيْطَالِيَةَ، لأَنَّ الْقَيْصَرَ كُلُودِيُوسَ أَمَرَ بِطَرْدِ الْيَهُودِ مِنْ رُومَا، فَقَصَدَ بُولُسُ إِلَيْهِمَا. 3وَإِذْ كَانَ مِنْ أَهْلِ مِهْنَتِهِمَا، وَهِيَ صِنَاعَةُ الْخِيَامِ، أَقَامَ عِنْدَهُمَا وَكَانَ يَشْتَغِلُ مَعَهُمَا.

4وَكَانَ فِي كُلِّ سَبْتٍ يُنَاقِشُ الْحَاضِرِينَ فِي الْمَجْمَعِ لإِقْنَاعِ الْيَهُودِ وَالْيُونَانِيِّينَ.

5وَلَمَّا وَصَلَ سِيلا وَتِيمُوثَاوُسُ مِنْ مُقَاطَعَةِ مَقِدُونِيَّةَ، تَفَرَّغَ بُولُسُ تَمَاماً لِلتَّبْشِيرِ، شَاهِداً لِلْيَهُودِ أَنَّ يَسُوعَ هُوَ الْمَسِيحُ. 6وَلَكِنَّهُمْ عَارَضُوا شَهَادَتَهُ وَأَخَذُوا يَشْتِمُونَ. فَمَا كَانَ مِنْهُ إِلّا أَنْ نَفَضَ ثَوْبَهُ وَقَالَ لَهُمْ: «دَمُكُمْ عَلَى رُؤُوسِكُمْ. أَنَا بَرِيءٌ! وَمُنْذُ الآنَ أَتَوَجَّهُ لِتَبْشِيرِ غَيْرِ الْيَهُودِ». 7ثُمَّ تَرَكَ بُولُسُ مَكَانَ إِقَامَتِهِ، وَنَزَلَ ضَيْفاً بِبَيْتِ رَجُلٍ غَيْرِ يَهُودِيٍّ يَتَعَبَّدُ لِلهِ، اسْمُهُ تِيطُسُ يُوسْتُسُ، كَانَ بَيْتُهُ مُلاصِقاً لِلْمَجْمَعِ. 8فَآمَنَ كِرِيسْبُسُ رَئِيسُ الْمَجْمَعِ بِالرَّبِّ، هُوَ وَأَهْلُ بَيْتِهِ جَمِيعاً. وَسَمِعَ كَثِيرُونَ مِنْ أَهْلِ كُورِنْثُوسَ تَبْشِيرَ بُولُسَ، فَآمَنُوا وَتَعَمَّدُوا.

9وَذَاتَ لَيْلَةٍ رَأَى بُولُسُ الرَّبَّ فِي رُؤْيَا يَقُولُ لَهُ: «لا تَخَفْ، بَلْ تَكَلَّمْ وَلا تَسْكُتْ، 10فَأَنَا مَعَكَ، وَلَنْ يَقْدِرَ أَحَدٌ أَنْ يُؤْذِيَكَ، لأَنَّ لِي شَعْباً كَثِيراً فِي هَذِهِ الْمَدِينَةِ». 11فَبَقِيَ بُولُسُ فِي كُورِنْثُوسَ سَنَةً وَسِتَّةَ أَشْهُرٍ يُعَلِّمُ النَّاسَ كَلِمَةَ اللهِ.

12وَلَمَّا كَانَ الْحَاكِمُ الرُّومَانِيُّ غَالِيُونُ يَتَوَلَّى الْحُكْمَ عَلَى بِلادِ أَخَائِيَةَ، تَجَمَّعَ الْيَهُودُ ضِدَّ بُولُسَ بِرَأْيٍ وَاحِدٍ، وَسَاقُوهُ إِلَى الْمَحْكَمَةِ، 13وَاشْتَكَوْا عَلَيْهِ قَائِلِينَ: «هَذَا الرَّجُلُ يُحَاوِلُ إِقْنَاعَ النَّاسِ بِأَنْ يَعْبُدُوا اللهَ بِطَرِيقَةٍ تُخَالِفُ شَرِيعَتَنَا». 14وَكَادَ بُولُسُ أَنْ يَبْدَأَ دِفَاعَهُ لَوْلا أَنَّ غَالِيُونَ قَالَ لِلْيَهُودِ: «أَيُّهَا الْيَهُودُ، لَوْ كَانَتِ الْقَضِيَّةُ جَرِيمَةً أَوْ ذَنْباً، لَكُنْتُ أَحْتَمِلُكُمْ كَمَا يَقْضِي الْعَدْلُ. 15وَلَكِنْ مَادَامَتِ الْقَضِيَّةُ جَدَلاً فِي أَلْفَاظٍ وَأَسْمَاءَ وَفِي شَرِيعَتِكُمْ، فَعَلَيْكُمْ أَنْ تُعَالِجُوهَا بِأَنْفُسِكُمْ. أَنَا لَا أُرِيدُ أَنْ أَحْكُمَ فِي هَذِهِ الْقَضَايَا!» 16ثُمَّ طَرَدَهُمْ مِنَ الْمَحْكَمَةِ، 17فَأَخَذُوا سُوسْتَانِيسَ رَئِيسَ الْمَجْمَعِ وَضَرَبُوهُ أَمَامَ الْمَحْكَمَةِ، وَلَكِنَّ غَالِيُونَ لَمْ يَهُمَّهُ شَيْءٌ مِنْ ذَلِكَ!

بريسكلا وأكيلا وأبولس

18وَبَقِيَ بُولُسُ فِي كُورِنْثُوسَ فَتْرَةً طَوِيلَةً، ثُمَّ وَدَّعَ الإِخْوَةَ وَسَافَرَ بَحْراً مُتَّجِهاً إِلَى سُورِيَّةَ وَمَعَهُ بِرِيسْكِلا وَأَكِيلا، بَعْدَمَا حَلَقَ رَأْسَهُ فِي مَدِينَةِ كَنْخِرِيَا، إِذْ كَانَ عَلَيْهِ نَذْرٌ. 19فَلَمَّا وَصَلُوا إِلَى أَفَسُسَ تَرَكَهُمَا بُولُسُ فِيهَا، وَدَخَلَ مَجْمَعَ الْيَهُودِ وَخَطَبَ فِيهِمْ. 20فَطَلَبُوا مِنْهُ أَنْ يَقْضِيَ عِنْدَهُمْ فَتْرَةً أَطْوَلَ، فَلَمْ يَقْبَلْ، 21وَوَدَّعَهُمْ قَائِلاً: «سَأَعُودُ إِلَيْكُمْ إِنْ شَاءَ اللهُ!» ثُمَّ سَافَرَ بَحْراً مِنْ أَفَسُسَ، 22وَنَزَلَ فِي مِينَاءِ قَيْصَرِيَّةَ فَصَعِدَ وَسَلَّمَ عَلَى الْكَنِيسَةِ، ثُمَّ نَزَلَ إِلَى مَدِينَةِ أَنْطَاكِيَةَ، 23فَأَمْضَى فِيهَا بَعْضَ الْوَقْتِ. ثُمَّ طَافَ مُقَاطَعَتَيْ غَلاطِيَّةَ وَفِرِيجِيَّةَ مُنْتَقِلاً مِنْ بَلْدَةٍ إِلَى أُخْرَى وَهُوَ يُشَدِّدُ عَزِيمَةَ التَّلامِيذِ جَمِيعاً.

24وَجَاءَ إِلَى أَفَسُسَ يَهُودِيٌّ اسْمُهُ أَبُلُّوسُ، إِسْكَنْدَرِيُّ الْمَوْلِدِ، فَصِيحُ اللِّسَانِ، خَبِيرٌ فِي الْكِتَابِ. 25كَانَ قَدْ تَلَقَّنَ طَرِيقَ الرَّبِّ. فَبَدَأَ يَخْطُبُ بِحَمَاسَةٍ شَدِيدَةٍ، وَيُعَلِّمُ الْحَقَائِقَ الْمُخْتَصَّةَ بِيَسُوعَ تَعْلِيماً صَحِيحاً. وَمَعَ أَنَّهُ لَمْ يَكُنْ يَعْرِفُ سِوَى مَعْمُودِيَّةِ يُوحَنَّا، 26فَقَدْ أَخَذَ يَتَكَلَّمُ فِي الْمَجْمَعِ بِجُرْأَةٍ. فَسَمِعَهُ أَكِيلا وَبِرِيسْكِلا، فَأَخَذَاهُ إِلَيْهِمَا وَأَوْضَحَا لَهُ طَرِيقَ اللهِ بِأَكْثَرِ دِقَّةٍ. 27وَقَرَّرَ أَبُلُّوسُ أَنْ يُسَافِرَ إِلَى بِلادِ أَخَائِيَةَ فَشَجَّعَهُ الإِخْوَةُ وَكَتَبُوا إِلَى التَّلامِيذِ هُنَاكَ أَنْ يُرَحِّبُوا بِهِ. وَلَمَّا وَصَلَ إِلَى هُنَاكَ أَعَانَ الَّذِينَ كَانُوا قَدْ آمَنُوا إِعَانَةً كُبْرَى بِمَا لَهُ مِنَ النِّعْمَةِ: 28فَقَدْ كَانَ جَرِيئاً فِي مُجَادَلاتِهِ الْعَلَنِيَّةِ مَعَ الْيَهُودِ، وَكَانَ يُفْحِمُهُمْ مُسْتَنِداً إِلَى الْكِتَابِ فَيُثْبِتُ أَنَّ يَسُوعَ هُوَ الْمَسِيحُ.

Hindi Contemporary Version

प्रेरितों 18:1-28

कोरिन्थॉस नगर में कलीसिया की नींव

1इसके बाद पौलॉस अथेनॉन नगर से कोरिन्थॉस नगर चले गए. 2वहां उनकी भेंट अकुलॉस नामक एक यहूदी से हुई. वह जन्मतः पोन्तॉस नगर का निवासी था. कुछ ही समय पूर्व वह अपनी पत्नी प्रिस्का के साथ इतालिया से पलायन कर आया था क्योंकि सम्राट क्लॉदियॉस ने रोम से सारे यहूदियों के निकल जाने की आज्ञा दी थी. पौलॉस उनसे भेंट करने गए. 3पौलॉस और अकुलॉस का व्यवसाय एक ही था इसलिये पौलॉस उन्हीं के साथ रहकर काम करने लगे—वे दोनों ही तंबू बनानेवाले थे. 4हर एक शब्बाथ पर पौलॉस यहूदी आराधनालय में प्रवचन देते और यहूदियों तथा यूनानियों की शंका दूर करते थे.

5जब मकेदोनिया से सीलास और तिमोथियॉस वहां आए तो पौलॉस मात्र वचन की शिक्षा देने के प्रति समर्पित हो गए और यहूदियों के सामने यह साबित करने लगे कि येशु ही वह मसीह हैं. 6उनकी ओर से प्रतिरोध और निंदा की स्थिति में पौलॉस अपने वस्त्र झटक कर कह दिया करते थे, “अपने विनाश के लिए तुम स्वयं दोषी हो—मैं निर्दोष हूं. अब मैं गैर-यहूदियों के मध्य जा रहा हूं.”

7पौलॉस यहूदी आराधनालय से निकलकर तीतॉस युस्तस नामक व्यक्ति के घर चले गए. वह परमेश्वर भक्त व्यक्ति था. उसका घर यहूदी आराधनालय के पास ही था. 8यहूदी आराधनालय के प्रभारी क्रिस्पॉस ने सपरिवार प्रभु में विश्वास किया. अनेक कोरिन्थवासी वचन सुन विश्वास कर बपतिस्मा लेते जा रहे थे.

9प्रभु ने पौलॉस से रात में दर्शन में कहा, “अब भयभीत न होना. वचन का प्रचार करते जाओ. मौन न रहो. 10मैं तुम्हारे साथ हूं. कोई तुम पर आक्रमण करके तुम्हें हानि नहीं पहुंचा सकता क्योंकि इस नगर में मेरे अनेक भक्त हैं.” 11इसलिये पौलॉस वहां एक वर्ष छः माह तक रहे और परमेश्वर के वचन की शिक्षा देते रहे.

12जब गैलियो आखाया प्रदेश का राज्यपाल था, यहूदी एक मत होकर पौलॉस के विरुद्ध खड़े हो गए और उन्हें न्यायालय ले गए. 13उन्होंने उन पर आरोप लगाया, “यह व्यक्ति लोगों को परमेश्वर की आराधना इस प्रकार से करने के लिए फुसला रहा है, जो व्यवस्था के आदेशों के विपरीत है.”

14जब पौलॉस अपनी-अपनी रक्षा में कुछ बोलने पर ही थे, गैलियो ने यहूदियों से कहा, “ओ यहूदियों! यदि तुम मेरे सामने किसी प्रकार के अपराध या किसी घोर दुष्टता का आरोप लेकर आते तो मैं उसके लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल करता 15किंतु यदि यह विवादित शब्दों, नामों या तुम्हारे ही अपने विधान से संबंधित है तो इसका निर्णय तुम स्वयं करो. मैं इसका निर्णय नहीं करना चाहता.” 16फिर उसने उन्हें न्यायालय के बाहर खदेड़ दिया. 17यहूदियों ने यहूदी आराधनालय के प्रधान सोस्थेनेस को पकड़कर न्यायालय के सामने ही पीटना प्रारंभ कर दिया. गैलियो पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

पौलॉस की तीसरी यात्रा का प्रारंभ

18वहां अनेक दिन रहने के बाद पौलॉस भाई बहिनों से विदा लेकर जलमार्ग से सीरिया प्रदेश चले गए. उनके साथ प्रिस्का और अकुलॉस भी थे. केनख्रेया नगर में पौलॉस ने अपना मुंडन करवा लिया क्योंकि उन्होंने एक संकल्प लिया था. 19वे इफ़ेसॉस नगर में आए. पौलॉस उन्हें वहीं छोड़कर यहूदी सभागृह में जाकर यहूदियों से वाद-विवाद करने लगे. 20वे पौलॉस से कुछ दिन और ठहरने की विनती करते रहे किंतु पौलॉस राज़ी नहीं हुए. 21पौलॉस ने उनसे यह कहते हुए आज्ञा चाही “यदि परमेश्वर चाहेंगे तो मैं दोबारा लौटकर तुम्हारे पास आऊंगा” और वह इफ़ेसॉस नगर छोड़कर जलमार्ग से आगे चले गए. 22कयसरिया नगर पहुंचकर येरूशलेम जाकर उन्होंने कलीसिया से भेंट की और फिर अंतियोख़ नगर चले गए.

23अंतियोख़ नगर में कुछ दिन बिता कर वह वहां से विदा हुए और नगर-नगर यात्रा करते हुए सभी गलातिया प्रदेश और फ़्रिजिया क्षेत्र में से होते हुए शिष्यों को प्रोत्साहित करते हुए आगे बढ़ गए.

24अपोल्लॉस नामक एक यहूदी व्यक्ति थे, जिनका जन्म अलेक्सान्द्रिया नगर में हुआ था. वह इफ़ेसॉस नगर आए. वह प्रभावशाली वक्ता और पवित्र शास्त्र के बड़े ज्ञानी थे 25किंतु उन्हें प्रभु के मार्ग की मात्र ज़ुबानी शिक्षा दी गई थी. वह अत्यंत उत्साही स्वभाव के थे तथा मसीह येशु के विषय में उनकी शिक्षा सटीक थी किंतु उनका ज्ञान मात्र योहन के बपतिस्मा तक ही सीमित था. 26अपोल्लॉस निडरता से यहूदी आराधनालय में प्रवचन देने लगे किंतु जब प्रिस्का और अकुलॉस ने उनका प्रवचन सुना तो वे उन्हें अलग ले गए और वहां उन्होंने अपोल्लॉस को परमेश्वर के शिक्षा-सिद्धान्त की सच्चाई को और अधिक साफ़ रीति से समझाया.

27जब अपोल्लॉस ने आखाया प्रदेश के आगे जाने की इच्छा व्यक्त की तो भाई बहिनों ने उन्हें प्रोत्साहित किया तथा आखाया प्रदेश के शिष्यों को पत्र लिखकर विनती की कि वे उन्हें स्वीकार करें. इसलिये जब अपोल्लॉस वहां पहुंचे, उन्होंने उन शिष्यों का बहुत प्रोत्साहन किया, जिन्होंने अनुग्रह द्वारा विश्वास किया था 28क्योंकि वह सार्वजनिक रूप से यहूदियों का खंडन करते और पवित्र शास्त्र के आधार पर प्रमाणित करते थे कि येशु ही वह मसीह हैं.