1 ነገሥት 6 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

1 ነገሥት 6:1-38

ሰሎሞን ቤተ መቅደሱን መሥራት ጀመረ

6፥1-29 ተጓ ምብ – 2ዜና 3፥1-14

1እስራኤላውያን ከግብፅ በወጡ በአራት መቶ ሰማንያ6፥1 ዕብራይስጡ ከዚህ ጋር ይስማማል፤ የሰብዓ ሊቃናት ትርጕም አራት መቶ አርባ ይላሉ። ዓመት፣ ሰሎሞን በእስራኤል ላይ በነገሠ በአራተኛው ዓመት፣ ዚፍ በተባለው በሁለተኛው ወር ሰሎሞን የእግዚአብሔርን ቤተ መቅደስ መሥራት ጀመረ።

2ንጉሥ ሰሎሞን ለእግዚአብሔር የሠራው ቤተ መቅደስ ርዝመቱ ስድሳ ክንድ፣ ወርዱ ሃያ ክንድ፣ ቁመቱ ሠላሳ ክንድ6፥2 ርዝመቱ 27 ሜትር፣ ወርዱ 9 ሜትር እንዲሁም ቁመቱ 13.5 ሜትር ያህል ነው። ነበር። 3በቤተ መቅደሱ ዋነኛ አዳራሽ ፊት ለፊት ያለው በረንዳ ወርዱ እንደ ቤተ መቅደሱ ወርድ ሁሉ ሃያ ክንድ6፥3 9 ሜትር ያህል ነው። ሲሆን፣ ርዝመቱ ዐሥር ክንድ6፥3 4.5 ሜትር ያህል ነው። ወደ ውጭ የወጣ ነበር። 4ለቤተ መቅደሱም ባለ ዐይነ ርግብ መስኮቶች አበጀ። 5በዋናው ቤተ መቅደስና በቅድስተ ቅዱሳኑ ግድግዳ ዙሪያ ልዩ ክፍሎች ያሉት ተቀጥላ ግንብ ሠራ። 6የምድር ቤቱ ወርድ አምስት ክንድ፣6፥6 በዚህ እንዲሁም በ10 እና 24 ላይ 2.3 ሜትር ያህል ነው። የመካከለኛው ፎቅ ስድስት ክንድ፣6፥6 2.7 ሜትር ያህል ነው። የሦስተኛው ፎቅ ሰባት ክንድ6፥6 3.1 ሜትር ያህል ነው። ነበር፤ የቤተ መቅደሱን ግድግዳ ዘልቆ እንዳይገባም፣ ከቤተ መቅደሱ ግንብ ውጭ ዙሪያውን እርከኖች አደረገ።

7ቤተ መቅደሱ የተሠራው እዚያው ድንጋዩ ተቈፍሮ ከወጣበት ቦታ በተዘጋጀ ድንጋይ በመሆኑ የመራጃ፣ የመሮ ወይም የሌላ ብረት ነክ መሣሪያ ድምፅ በቤተ መቅደሱ አካባቢ አልተሰማም ነበር።

8የምድር ቤቱ6፥8 የሰብዓ ሊቃናት ትርጕም ከዚህ ጋር ይስማማል፤ ዕብራይስጡ ግን የመካከለኛው ደርብ ይላሉ። መግቢያ በስተ ደቡብ በኩል ባለው የቤተ መቅደሱ ጐን ሲሆን፣ ወደ መካከለኛውና ከዚያም ወደ መጨረሻው ፎቅ የሚያስወጣ ደረጃ ነበረው። 9ቤተ መቅደሱንም በዚሁ ሁኔታ ሠርቶ ጨረሰ፤ ለጣራው ተሸካሚ አደረገለት፤ በዝግባ ሳንቃም ከደነው። 10በቤተ መቅደሱም ዙሪያ በሙሉ፣ ቁመታቸው አምስት አምስት ክንድ የሆነ ክፍሎች ሠራ፤ እነዚህንም ከቤተ መቅደሱ ጋር በዝግባ አግዳሚ ዕንጨቶች አያያዛቸው።

11የእግዚአብሔርም ቃል እንዲህ ሲል ወደ ሰሎሞን መጣ፤ 12“ስለምትሠራው ስለዚህ ቤተ መቅደስ ሥርዐቴን ብትከተል፣ ፍርዴን በተግባር ብትገልጸው፣ ትእዛዞቼን ብትጠብቅና ብትመላለስባቸው ለአባትህ ለዳዊት የሰጠሁትን ተስፋ በአንተ እፈጽመዋለሁ፤ 13በእስራኤላውያን መካከል እኖራለሁ፤ ሕዝቤን እስራኤልንም አልተወውም።”

14ስለዚህ ሰሎሞን ቤተ መቅደሱን ሠርቶ ፈጸመ፤ 15የውስጡን ግድግዳ ከቤተ መቅደሱ ወለል እስከ ጣራው ድረስ በዝግባ ሳንቃ ለበጠ፤ የቤተ መቅደሱንም ወለል የጥድ ሳንቃ አለበሰው። 16በቤተ መቅደሱም ውስጥ በስተ ኋላ በኩል፣ ሃያውን ክንድ ቅድስተ ቅዱሳን እንዲሆን፣ ከወለሉ አንሥቶ እስከ ጣራው ድረስ በዝግባ ሳንቃዎች ጋረደው፤ 17በቅድስተ ቅዱሳኑ ፊት ለፊት ያለው ዋና አዳራሽ ርዝመቱ አርባ ክንድ6፥17 18 ሜትር ያህል ነው። ነበር። 18የቤተ መቅደሱም፣ ውስጡ በሙሉ በዝግባ የተለበጠ ሲሆን፣ ይህም በእንቡጥ አበቦችና በፈኩ አበቦች ቅርጽ የተጌጠ ነበር፤ በሙሉ ዝግባ እንጂ የሚታይ ድንጋይ አልነበረም።

19በቤተ መቅደሱም ውስጠኛ ክፍል የእግዚአብሔር የቃል ኪዳኑ ታቦት የሚቀመጥበትን ቅድስተ ቅዱሳን ሠራ። 20ቅድስተ ቅዱሳኑም ርዝመቱ ሃያ ክንድ፣ ወርዱ ሃያ ክንድ፣ ቁመቱም ሃያ ክንድ6፥20 ርዝመቱ፣ ወርዱና ቁመቱ 9 ሜትር ያህል ነው። ነበር፤ ውስጡን በንጹሕ ወርቅ ለበጠው፤ ከዝግባ የተሠራውንም መሠዊያ በወርቅ ለበጠው። 21ሰሎሞንም ቤተ መቅደሱን በውስጥ በኩል በንጹሕ ወርቅ ለበጠው፤ በወርቅ በተለበጠው ቅድስተ ቅዱሳን ፊት ለፊትም የወርቅ ሰንሰለቶች ዘረጋ። 22ስለዚህ ውስጡን በሙሉ በወርቅ ለበጠው፤ በቅድስተ ቅዱሳኑ ውስጥ ያለውን መሠዊያም እንደዚሁ በወርቅ ለበጠው። 23በቅድስተ ቅዱሳኑም ውስጥ ቁመታቸው ዐሥር ክንድ6፥23 4.5 ሜትር ያህል ነው። የሆነ ሁለት የኪሩቤል ቅርጽ ከወይራ ዕንጨት ሠራ፤ 24የአንደኛው ኪሩብ አንዱ ክንፍ አምስት ክንድ ሲሆን፣ ሌላውም ክንፉ እንደዚሁ አምስት ክንድ ነበር፤ ይህም ከአንዱ ክንፍ ጫፍ እስከ ሌላው ክንፍ ጫፍ ዐሥር ክንድ ማለት ነው። 25የሁለተኛውም ኪሩብ ክንፍ እንደዚሁ ዐሥር ክንድ ሆነ፤ ሁለቱ ኪሩቤል በመጠንና በቅርጽ አንድ ዐይነት ነበሩና። 26የእያንዳንዱም ኪሩብ ቁመት ዐሥር ክንድ ነበር። 27ክንፎቻቸው እንደ ተዘረጋ፣ ኪሩቤልን ወስዶ በቅድስተ ቅዱሳኑ አኖራቸው፤ የአንዱ ኪሩብ ክንፍ አንዱን ግድግዳ ሲነካ፣ የሌላው ኪሩብ ክንፍ ደግሞ ሌላውን ግድግዳ ይነካ ነበር፤ ሌሎቹ ክንፎቻቸውም በቅድስተ ቅዱሳኑ መካከል እርስ በርሳቸው ይነካኩ ነበር። 28ኪሩቤልንም በወርቅ ለበጣቸው።

29በመቅደሱ ግድግዳ ዙሪያ ላይ ሁሉ በውስጥም በውጭም ኪሩቤልን፣ ከዘንባባ ዛፎችና ከፈነዱ አበቦች ጋር ቀረጸ። 30እንዲሁም የቅድስተ ቅዱሳኑንና የመቅደሱን ወለል በሙሉ በወርቅ ለበጠ።

31ለቅድስተ ቅዱሳኑም መግቢያ የወይራ ዕንጨት ደጃፎች ሠራ፤ መቃኖቻቸውንና መድረኮቻቸውን ባለ አምስት ማእዘን አደረገ። 32በሁለቱ የወይራ ዕንጨት መዝጊያዎችም ላይ ኪሩቤልን፣ የዘንባባ ዛፎችንና የፈነዱ አበቦችን ቀረጸ፤ በወርቅም ለበጣቸው። 33እንዲሁም ለዋናው አዳራሽ መግቢያ ባለ አራት ማእዘን የወይራ ዕንጨት መቃን ሠራ፤ 34እያንዳንዳቸው በማጠፊያ የተያያዙ ሁለት ሁለት ሳንቃዎች ያሏቸው ሁለት መዝጊያዎች አበጀ። 35ኪሩቤልን፣ የዘንባባ ዛፎችንና የፈኩ አበቦችንም ቀረጸባቸው፤ ቅርጹን ሠራ፤ ጥሩ አድርጎም በወርቅ ለበጠው።

36የውስጠኛውን አደባባይ በሦስት ረድፍ ጥርብ ድንጋይና በአንድ ረድፍ የዝግባ ሳንቃ ሠራው።

37የእግዚአብሔር ቤተ መቅደስም በአራተኛው ዓመት ዚፍ በተባለው ወር መሠረቱ ተጣለ፤ 38በዐሥራ አንደኛው ዓመት ቡል በተባለውም በስምንተኛው ወር ቤተ መቅደሱ በዝርዝር ጥናቱ መሠረት እንደ ታቀደው ተፈጸመ፤ ሠርቶ የጨረሰውም በሰባት ዓመት ጊዜ ውስጥ ነበር።

Hindi Contemporary Version

1 राजा 6:1-38

मंदिर का निर्माण

1यह उस समय की बात है, जब इस्राएलियों को मिस्र देश से निकले हुए चार सौ अस्सी साल हो चुके थे, और इस्राएल पर शलोमोन के शासन के चार साल. शलोमोन ने साल के ज़ीव नामक दूसरे महीने में याहवेह के लिए भवन बनाना शुरू किया.

2राजा शलोमोन ने यह जो भवन याहवेह के लिए बनाया, उसकी लंबाई सत्ताईस मीटर और चौड़ाई नौ मीटर ऊंचाई चौदह मीटर थी. 3भवन के बीच के द्वार-मंडप की लंबाई भी नौ मीटर थी, जितनी भवन की चौड़ाई थी. भवन के सामने इसकी गहराई साढ़े चार मीटर थी. 4शलोमोन ने भवन की खिड़कियां आकर्षक जालीदार बनाईं थी. 5भवन की बाहरी दीवारों के चारों ओर शलोमोन ने अनेक कमरों का परिसर बनाया, दोनों ओर पीछे भी. 6सबसे नीचे का तल सवा दो मीटर चौड़ा था. बीच वाला तल दो मीटर सत्तर सेंटीमीटर, और तीसरा तीन मीटर पन्द्रह सेंटीमीटर चौड़ा. उन्होंने भवन की बाहरी दीवार कुर्सीदार बना दिए थे, कि बोझ उठाती बल्लियों को मूल भवन के भीतर तक न पहुंचना पड़े.

7भवन के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थरों को वहीं तैयार कर लिया गया था, जहां से उन्हें निकाला जा रहा था. फलस्वरूप जब नया भवन बनाया जा रहा था, वहां न तो घन की, न हथौड़े की और न किसी भी लोहे के औज़ार की आवाज सुनाई दी.

8बीचवाले तल का प्रवेश भवन के दक्षिण ओर था: जब किसी को तीसरे तल को जाना होता था, वह सीढ़ियों से चढ़कर बीचवाले तल पर पहुंचता था, फिर वहां से तीसरे तल को; 9इस प्रकार शलोमोन ने भवन बनाना समाप्‍त किया. भवन की छत उन्होंने देवदार की बल्लियों और पटरियों से बनाई. 10उन्होंने पूरे भवन के आस-पास छज्जे बनाए, जिसकी ऊंचाई सवा दो मीटर थी. इन सभी को मूल भवन के देवदार से जकड़ दिया गया था.

11यह सब हो जाने पर शलोमोन को याहवेह का यह संदेश भेजा गया. 12“तुम जिस भवन को बना रहे हो, उसके संबंध में, यदि तुम मेरी विधियों का पालन करते रहोगे, और मेरी आज्ञाओं को पूरा मानोगे और मेरे आदेशों का पालन करोगे, तब मैं तुम्हारे साथ अपनी वह प्रतिज्ञा पूरी करूंगा, जो मैंने तुम्हारे पिता दावीद से की थी. 13मैं इस्राएल वंशजों के बीच रहूंगा और उन्हें छोड़ न दूंगा.”

14शलोमोन ने भवन बनाना समाप्‍त किया. 15फिर उसने भवन की दीवारों के अंदर से देवदार की पटियां लगवा दीं. उन्होंने भवन की ज़मीन से लेकर भवन की छत तक दीवारों का अंदरूनी भाग देवदार लकड़ी से ढकवा दिया. इसके बाद उन्होंने भवन का तल सनोवर की लकड़ी से ढकवा दिया. 16शलोमोन ने भवन की पीछे की दीवार से नौ मीटर भीतर की ओर एक दीवार बनवाई. यह ज़मीन से छत तक देवदार की बनी हुई थी. इससे एक अंदर का कमरा बन गया. यही परम पवित्र स्थान था. 17इसके सामने बीच वाला स्थान अठारह मीटर लंबा था. 18भवन की दीवारों का अंदरूनी भाग देवदार की लकड़ी से ढका था, जिस पर कलियां और खिले हुए फूल खुद हुए थे. सभी कुछ देवदार से ढका था-पत्थर कहीं से भी दिखाई नहीं पड़ता था.

19तब उन्होंने अंदरूनी पवित्र स्थान बनवाया. यह भवन के भीतर था, कि इसमें याहवेह की वाचा का संदूक प्रतिष्ठित किया जा सके. 20अंदरूनी कमरे की लंबाई छः मीटर, चौड़ाई छः मीटर और ऊंचाई भी छः मीटर ही थी. इसे शुद्ध कुन्दन से मढ़ दिया गया था. उन्होंने देवदार से बनी हुई वेदी को भी मढ़ दिया. 21शलोमोन ने भवन के भीतरी भाग को शुद्ध कुन्दन से मढ़वा दिया. तब उन्होंने अंदरूनी पवित्र स्थान के सामने सोने की सांकलें खींचवा दीं. इसे भी उन्होंने सोने से मढ़वा दिया. 22पूरे भवन को उन्होंने सोने से मढ़वा दिया. इस प्रकार पूरे भवन का काम पूरा हुआ. इसके अलावा उन्होंने अंदरूनी पवित्र स्थान की पूरी वेदी को सोने से मढ़वा दिया.

23उन्होंने जैतून की लकड़ी से दो करूब बनवाए. हर एक की ऊंचाई साढ़े चार-साढ़े चार मीटर थी. 24करूब का एक पंख सवा दो मीटर था और दूसरा पंख भी सवा दो मीटर का. पहले पंख के छोर से दूसरे पंख के छोर तक लंबाई साढ़े चार मीटर थी. 25दूसरा करूब भी साढ़े चार मीटर ऊंचा था. दोनों ही करूबों की नाप बराबर थी. 26दोनों करूब की ऊंचाई साढ़े चार मीटर थी. 27शलोमोन ने करूबों को अंदरूनी कमरे के बीच में स्थापित कर दिया. करूबों के पंख फैले हुए थे, जिससे पहले करूब का एक पंख एक दीवार को छू रहा था, तो दूसरे का एक पंख दूसरी दीवार को. इससे भवन के बीच में उनके पंख एक दूसरे को छू रहे थे. 28शलोमोन ने करूबों को भी सोने से मढ़वा दिया था.

29इसके बाद शलोमोन ने भवन की दीवारों के भीतर और बाहर और बाहरी पवित्र स्थानों पर करूब, खजूर के पेड़ और खिले हुए फूलों की आकृतियां खुदवा दीं. 30भवन का फर्श उन्होंने भीतरी और बाहरी पवित्र स्थानों में सोने से मढ़वा दिया.

31अंदरूनी पवित्र स्थान में प्रवेश के लिए शलोमोन ने जैतून के पेड़ की लकड़ी के दरवाजे बनवाए. इनकी चौखट पांच कोण के थे. 32उन्होंने जैतून वृक्ष की लकड़ी के दो दरवाजे बनवाए. इन पर उन्होंने करूबों, खजूर के पेड़ों और खिले हुए फूलों की आकृति खुदवाई और फिर इन्हें सोने से मढ़वा दिया. उन्होंने करूबों और खजूर के पेड़ों पर सोने का पत्रक मढ़वा दिया. 33उन्होंने बीचवाले स्थान में प्रवेश के लिए जैतून की लकड़ी के चौकोर चौखट और 34दरवाजे उन्होंने सनोवर की लकड़ी के बनवाए. हर एक दरवाजे के दो-दो पल्ले थे, जो मोड़ने पर दोहरे हो जाते थे. 35इन पर शलोमोन ने करूब, खजूर के पेड़ और खिले हुए पेड़ों की आकृतियां खुदवाईं. इन सभी पर उन्होंने एक बराबर सोने का पत्रक मढ़वा दिया.

36भीतरी कमरा उन्होंने काटे संवारे गए पत्थरों की तीन पंक्तियों और देवदार की बल्लियों की एक सतह से बनवाया.

37चौथे साल में याहवेह के भवन की नींव रखी गई थी, यह ज़ीव नाम का महीना था. 38ग्यारहवें साल में बूल महीने में जो वास्तव में आठवां महीना है, हर तरह से भवन बनने का काम पूरा हो गया था. यह सब हर रीति से योजना के अनुसार ही हुआ था, यानी भवन बनाने के काम में सात साल लग गए थे.