1 ቆሮንቶስ 7 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

1 ቆሮንቶስ 7:1-40

ጋብቻን በተመለከተ

1ስለ ጻፋችሁልኝ ጕዳይ፣ ሰው ወደ ሴት ባይደርስ መልካም ነው7፥1 ወይም ሰው ከሴት ጋር የግብረ ሥጋ ግንኙነት ባያደርግ መልካም ነው2ነገር ግን ከዝሙት ለመጠበቅ፣ እያንዳንዱ ሰው የራሱ ሚስት ትኑረው፤ እያንዳንዷም ሴት የራሷ ባል ይኑራት። 3ባል ለሚስቱ የሚገባትን ሁሉ ያድርግላት፤ ሚስትም እንዲሁ ለባሏ የሚገባውን ሁሉ ታድርግለት። 4ሚስት አካሏ የራሷ አይደለም፤ የባሏ ነው፤ እንዲሁም ባል አካሉ የራሱ አይደለም፣ የሚስቱ ነው። 5በጸሎት ለመትጋት ተስማምታችሁ ለተወሰነ ጊዜ ካልሆነ በስተቀር፣ እርስ በርሳችሁ አትከላከሉ፤ ራሳችሁን ባለመግዛት ሰይጣን እንዳይፈታተናችሁ እንደ ገና አብራችሁ ሁኑ። 6ይህን የምለው ግን እንደ ትእዛዝ ሳይሆን እንደ ምክር ነው። 7ሰው ሁሉ እንደ እኔ ቢሆን ምኞቴ ነው። ነገር ግን እያንዳንዱ ሰው ከእግዚአብሔር የተቀበለው የራሱ የሆነ ስጦታ አለው፤ አንዱ አንድ ዐይነት ስጦታ ሲኖረው፣ ሌላው ደግሞ ሌላ ዐይነት ስጦታ አለው።

8ላላገቡና ባሎቻቸው ለሞቱባቸው ሴቶች ግን እንዲህ እላለሁ፤ ሳያገቡ እንደ እኔ ቢኖሩ ለእነርሱ መልካም ነው። 9ነገር ግን ራሳቸውን መግዛት ካልቻሉ ያግቡ፤ በምኞት ከመቃጠል ማግባት ይሻላልና።

10ላገቡት ይህን ትእዛዝ እሰጣለሁ፤ ይህም ትእዛዝ የጌታ እንጂ የእኔ አይደለም። ሚስት ከባሏ አትለያይ፤ 11ብትለያይ ግን ሳታገባ ትኑር፤ አለዚያ ከባሏ ጋር ትታረቅ፤ ባልም ሚስቱን አይፍታት።

12ለሌሎች ደግሞ እንዲህ እላለሁ፤ ይህንም የምለው እኔ እንጂ ጌታ አይደለም። ያላመነች ሚስት ያለው ወንድም ቢኖርና ሚስቱ አብራው ለመኖር የምትፈቅድ ከሆነ፣ ሊፈታት አይገባውም። 13ያላመነ ባል ያላት ሴት ብትኖርና እርሱም አብሯት ለመኖር የሚፈቅድ ከሆነ፣ ልትፈታው አይገባትም። 14ያላመነ ባል በሚስቱ ተቀድሷልና፤ ያላመነችም ሚስት በሚያምን ባሏ ተቀድሳለች፤ አለዚያማ ልጆቻችሁ ርኩሳን በሆኑ ነበር፤ አሁን ግን የተቀደሱ ናቸው።

15ነገር ግን የማያምነው ወገን መለየት ከፈለገ ይለይ፤ አንድ ወንድም ወይም እኅት በዚህ ሁኔታ የታሰሩ አይደሉም፤ እግዚአብሔር የጠራን በሰላም እንድንኖር ነው። 16አንቺ ሴት፤ ባልሽን ታድኚው እንደ ሆነ ምን ታውቂያለሽ? ወይስ አንተ ሰው፤ ሚስትህን ታድናት እንደ ሆነ ምን ታውቃለህ?

17ብቻ እያንዳንዱ ሰው ጌታ እንደ ወሰነለት፣ እያንዳንዱም እግዚአብሔር እንደ ጠራው በዚያው ይመላለስ። በአብያተ ክርስቲያናትም ሁሉ የምንደነግገው ይህንኑ ነው። 18አንድ ሰው ተገርዞ ሳለ ቢጠራ፣ እንዳልተገረዘ ሰው አይሁን፤ ሳይገረዝም ተጠርቶ ከሆነ አይገረዝ። 19መገረዝም ሆነ አለመገረዝ አይጠቅምም፤ ዋናው ነገር የእግዚአብሔርን ትእዛዝ መፈጸሙ ነው። 20እያንዳንዱ ሰው በተጠራበት ሁኔታ ጸንቶ ይኑር። 21በተጠራህ ጊዜ ባሪያ ነበርህን? በዚህ አትጨነቅ፤ ነጻነትህን ማግኘት ከቻልህ ግን ነጻነትህን ተቀበል። 22ምክንያቱም ባሪያ ሆኖ ሳለ በጌታ የተጠራ፣ የጌታ ነጻ ሰው ነው፤ እንዲሁም ሲጠራ ነጻ የነበረ ሰው የክርስቶስ ባሪያ ነው። 23በዋጋ ተገዝታችኋል፤ ስለዚህ የሰው ባሪያዎች አትሁኑ። 24ወንድሞች ሆይ፤ እያንዳንዱ ሰው በተጠራበት ሁኔታ ከእግዚአብሔር ጋር ጸንቶ ይኑር።

25ስለ ደናግል፣ ከጌታ የተቀበልሁት ትእዛዝ የለኝም፤ ይሁን እንጂ፣ ከጌታ ምሕረት የተነሣ እንደ ታማኝ ሰው፣ ምክሬን እሰጣለሁ። 26አሁን ካለው ችግር የተነሣ ባላችሁበት ሁኔታ ብትኖሩ መልካም ይመስለኛል። 27አግብተህ ከሆነ መፋታትን አትሻ፤ ካላገባህም ሚስት ለማግባት አትፈልግ። 28ብታገባ ግን ኀጢአት አልሠራህም፤ ድንግሊቱም ብታገባ ኀጢአት አላደረገችም። ነገር ግን የሚያገቡ ሰዎች በዚህ ዓለም ብዙ ችግር ይገጥማቸዋል፤ እኔም ይህ እንዳይደርስባችሁ እወድዳለሁ።

29ወንድሞች ሆይ፤ ሐሳቤ እንዲህ ነው፤ ዘመኑ ዐጭር ነው፤ ከእንግዲህ ሚስት ያላቸው እንደሌላቸው ሆነው ይኑሩ። 30የሚያለቅሱ እንደማያለቅሱ፣ ደስተኞች ደስ እንደማይላቸው ይሁኑ፤ ዕቃ የሚገዙም የገዙት ነገር የእነርሱ እንዳልሆነ ይቍጠሩ፤ 31በዚህ ዓለም ነገር የሚጠቀሙም እንደማይጠቀሙበት ይሁኑ፤ የዚህ ዓለም መልክ ዐላፊ ነውና።

32እኔስ ያለ ጭንቀት እንድትኖሩ እወድዳለሁ። ያላገባ ሰው ጌታን ደስ ለማሰኘት ስለ ጌታ ነገር ያስባል፤ 33ያገባ ሰው ግን ሚስቱን ደስ ለማሰኘት የዚህን ዓለም ነገር ያስባል፤ 34በዚህም ልቡ ተከፍሏል። ያላገባች ሴት ወይም ድንግል ስለ ጌታ ነገር ታስባለች፤ ዐላማዋም በሥጋና በመንፈስ ለጌታ መቀደስ ነው። ያገባች ሴት ግን ባሏን ደስ ለማሰኘት የዚህን ዓለም ነገር ታስባለች። 35ይህንም የምለው ለእናንተ የሚበጃችሁን ነገር በማሰብ እንጂ ላስጨንቃችሁ አይደለም፤ ዐላማዬም ልባችሁ ሳይከፈል በጌታ ጸንታችሁ በአግባብ እንድትኖሩ ነው።

36አንድ ሰው ያጫትን ድንግል በአግባቡ ካልያዘ፣ እርሷም በዕድሜ እየገፋች ከሄደች፣ ሊያገባት ካሰበ የወደደውን ያድርግ፤ ኀጢአት የለበትምና ይጋቡ። 37ነገር ግን በዚህ ጕዳይ ልቡን አረጋግቶ፣ ሳይናወጥ፣ ራሱንም በመግዛት ድንግሊቱን ላለማግባት የወሰነ ሰው መልካም አድርጓል። 38ስለዚህ ድንግሊቱን ያገባ መልካም አደረገ፤ ያላገባም የተሻለ አደረገ7፥36-38 ወይም አንድ ሰው ድንግል የሆነችውን ልጁን በሚገባ እንዳልያዛት ካሰበና እርሷም በዕድሜ እየገፋች ከሄደች፣ ማግባት እንዳለባት ካሰበ የወደደውን ያድርግ፤ ኀጢአት የለበትምና እንድታገባ ሊፈቅድላት ይገባል 38 ስለዚህ ድንግል የሆነችውን ልጁን ለጋብቻ የሰጠ መልካም አደረገ፤ ለጋብቻ ያልሰጣትም የተሻለ አደረገ

39አንዲት ሴት ባሏ በሕይወት እስካለ ድረስ ከእርሱ ጋር የታሰረች ናት፤ ባሏ ቢሞት ግን፣ የፈለገችውን ሰው ለማግባት ነጻነት አላት፤ ሰውየው ግን በጌታ መሆን አለበት። 40እንደ እኔ ከሆነ ግን ሳታገባ እንዲሁ ብትኖር ይበልጥ ደስተኛ ትሆናለች፤ እኔም ደግሞ የእግዚአብሔር መንፈስ በእኔ ላይ ያለ ይመስለኛል።

Hindi Contemporary Version

1 कोरिंथ 7:1-40

विवाह और कौमार्य

1अब वे विषय जिनके संबंध में तुमने मुझसे लिखकर पूछा है: पुरुष के लिए उचित तो यही है कि वह स्त्री का स्पर्श ही न करे 2किंतु व्यभिचार से बचने के लिए हर एक पुरुष की अपनी पत्नी तथा हर एक स्त्री का अपना पति हो. 3यह आवश्यक है कि पति अपनी पत्नी के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करे तथा इसी प्रकार पत्नी भी अपने पति के प्रति. 4पत्नी ने अपने पति को अपने शरीर पर अधिकार दिया है, वैसे ही पति ने अपनी पत्नी को अपने शरीर पर अधिकार दिया है. 5पति-पत्नी एक दूसरे को शारीरिक संबंधों से दूर न रखें—सिवाय आपसी सहमति से प्रार्थना के उद्देश्य से सीमित अवधि के लिए. इसके तुरंत बाद वे दोबारा साथ हो जाएं कि कहीं संयम टूटने के कारण शैतान उन्हें परीक्षा में न फंसा ले. 6यह मैं सुविधा अनुमति के रूप में कह रहा हूं—आज्ञा के रूप में नहीं. 7वैसे तो मेरी इच्छा तो यही है कि सभी पुरुष ऐसे होते जैसा स्वयं मैं हूं किंतु परमेश्वर ने तुममें से हर एक को भिन्‍न-भिन्‍न क्षमताएं प्रदान की हैं.

8अविवाहितों तथा विधवाओं से मेरा कहना है कि वे अकेले ही रहें—जैसा मैं हूं 9किंतु यदि उनके लिए संयम रखना संभव नहीं तो वे विवाह कर लें—कामातुर होकर जलते रहने की बजाय विवाह कर लेना ही उत्तम है.

10विवाहितों के लिए मेरा निर्देश है—मेरा नहीं परंतु प्रभु का: पत्नी अपने पति से संबंध न तोड़े. 11यदि पत्नी का संबंध टूट ही जाता है तो वह दोबारा विवाह न करे या पति से मेल-मिलाप कर ले. पति अपनी पत्नी का त्याग न करे.

12मगर बाकियों से मेरा कहना है कि यदि किसी साथी विश्वासी की पत्नी विश्वासी न हो और वह उसके साथ रहने के लिए सहमत हो तो पति उसका त्याग न करे. 13यदि किसी स्त्री का पति विश्वासी न हो और वह उसके साथ रहने के लिए राज़ी हो तो पत्नी उसका त्याग न करे; 14क्योंकि अविश्वासी पति अपनी विश्वासी पत्नी के कारण पवित्र ठहराया जाता है. इसी प्रकार अविश्वासी पत्नी अपने विश्वासी पति के कारण पवित्र ठहराई जाती है. यदि ऐसा न होता तो तुम्हारी संतान अशुद्ध रह जाती; किंतु इस स्थिति में वह परमेश्वर के लिए अलग की गई है.

15फिर भी यदि अविश्वासी दंपति अलग होना चाहे तो उसे हो जाने दिया जाए. कोई भी विश्वासी भाई या विश्वासी बहन इस बंधन में बंधे रहने के लिए बाध्य नहीं. परमेश्वर ने हमें शांति से भरे जीवन के लिए बुलाया है. 16पत्नी यह संभावना कभी भुला न दे: पत्नी अपने पति के उद्धार का साधन हो सकती है, वैसे ही पति अपनी पत्नी के उद्धार का.

आज्ञापालन का निर्देश

17परमेश्वर ने जिसे जैसी स्थिति में रखा है तथा जिस रूप में उसे बुलाया है, वह उसी में बना रहे. सभी कलीसियाओं के लिए मेरा यही निर्देश है. 18क्या किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया गया है, जिसका पहले से ही ख़तना हुआ था? वह अब खतना-रहित न बने. क्या किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया गया है, जो ख़तना रहित है? वह अपना ख़तना न कराए. 19न तो ख़तना कराने का कोई महत्व है और न ख़तना रहित होने का. महत्व है तो मात्र परमेश्वर की आज्ञापालन का. 20हर एक उसी अवस्था में बना रहे, जिसमें उसको बुलाया गया था.

21क्या तुम्हें उस समय बुलाया गया था, जब तुम दास थे? यह तुम्हारे लिए चिंता का विषय न हो किंतु यदि दासत्व से स्वतंत्र होने का सुअवसर आए तो इस सुअवसर का लाभ अवश्य उठाओ. 22वह, जिसको उस समय बुलाया गया, जब वह दास था, अब प्रभु में स्वतंत्र किया हुआ व्यक्ति है; इसी प्रकार, जिसको उस समय बुलाया गया, जब वह स्वतंत्र था, अब वह मसीह का दास है. 23तुम दाम देकर मोल लिए गए हो इसलिये मनुष्य के दास न बन जाओ. 24प्रिय भाई बहनो, तुममें से हर एक उसी अवस्था में, जिसमें उसे बुलाया गया था, परमेश्वर के साथ जुड़ा रहे.

अविवाहितों के विषय में

25कुंवारियों के संबंध में मेरे पास प्रभु की ओर से कोई आज्ञा नहीं है किंतु मैं, जो प्रभु की कृपा के कारण विश्वसनीय हूं, अपनी ओर से यह कहना चाहता हूं: 26वर्तमान संकट के कारण मेरे विचार से पुरुष के लिए उत्तम यही होगा कि वह जिस स्थिति में है, उसी में बना रहे. 27यदि तुम विवाहित हो तो पत्नी का त्याग न करो. यदि अविवाहित हो तो पत्नी खोजने का प्रयास न करो. 28यदि तुम विवाह करते ही हो तो भी पाप नहीं करते. यदि कोई कुंवारी कन्या विवाह करती है तो यह पाप नहीं है. फिर भी इनके साथ सामान्य वैवाहिक जीवन संबंधी झंझट लगे रहेंगे और मैं वास्तव में तुम्हें इन्हीं से बचाने का प्रयास कर रहा हूं.

29प्रिय भाई बहनो, मेरा मतलब यह है कि थोड़ा ही समय शेष रह गया है इसलिये अब से वे, जो विवाहित हैं ऐसे रहें, मानो अविवाहित हों. 30जो शोकित हैं उनका शोक प्रकट न हो; जो आनंदित हैं उनका आनंद छुपा रहे और जो मोल ले रहे हैं, वे ऐसे हो जाएं मानो उनके पास कुछ भी नहीं है. 31जिनका लेनदेन सांसारिक वस्तुओं से है, वे उनमें लीन न हो जाएं क्योंकि संसार के इस वर्तमान स्वरूप का नाश होता चला जा रहा है.

32मेरी इच्छा है कि तुम सांसारिक जीवन की अभिलाषाओं से मुक्त रहो. उसके लिए, जो अविवाहित है, प्रभु संबंधी विषयों का ध्यान रखना संभव है कि वह प्रभु को संतुष्ट कैसे कर सकता है; 33किंतु वह, जो विवाहित है, उसका ध्यान संसार संबंधित विषयों में ही लगा रहता है कि वह अपनी पत्नी को प्रसन्‍न कैसे करे, 34उसकी रुचियां बंटी रहती हैं. उसी प्रकार पतिहीन तथा कुंवारी स्त्री की रुचियां प्रभु से संबंधित विषयों में सीमित रह सकती हैं—और इसके लिए वह शरीर और आत्मा में पवित्र रहने में प्रयास करती रहती है, किंतु वह स्त्री, जो विवाहित है, संसार संबंधी विषयों का ध्यान रखती है कि वह अपने पति को प्रसन्‍न कैसे करे. 35मैं यह सब तुम्हारी भलाई के लिए ही कह रहा हूं—किसी प्रकार से फंसाने के लिए नहीं परंतु इसलिये कि तुम्हारी जीवनशैली आदर्श हो तथा प्रभु के प्रति तुम्हारा समर्पण एकचित्त होकर रहे.

36यदि किसी को यह लगे कि वह अपनी पुत्री के विवाह में देरी करने के द्वारा उसके साथ अन्याय कर रहा है, क्योंकि उसकी आयु ढल रही है, वह वही करे, जो वह सही समझता है, वह उसे विवाह करने दे. यह कोई पाप नहीं है. 37किंतु वह, जो बिना किसी बाधा के दृढ़ संकल्प है, अपनी इच्छा अनुसार निर्णय लेने की स्थिति में है तथा जिसने अपनी पुत्री का विवाह न करने का निश्चय कर लिया है, उसका निर्णय सही है. 38इसलिये जो अपनी पुत्री का विवाह करता है, उसका निर्णय भी सही है तथा जो उसका विवाह न कराने का निश्चय करता है, वह और भी सही है.

39पत्नी तब तक पति से जुड़ी रहती है, जब तक पति जीवित है. यदि पति की मृत्यु हो जाए तो वह अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने के लिए स्वतंत्र है—किंतु ज़रूरी यह है कि वह पुरुष भी प्रभु में विश्वासी ही हो. 40मेरा व्यक्तिगत मत यह है कि वह स्त्री उसी स्थिति में बनी रहे, जिसमें वह इस समय है. वह इसी स्थिति में सुखी रहेगी. मुझे विश्वास है कि मुझमें भी परमेश्वर का आत्मा वास करता है.