1 ሳሙኤል 25 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

1 ሳሙኤል 25:1-44

ዳዊት፣ ናባልና አቢግያ

1ሳሙኤልም ሞተ፤ እስራኤል ሁሉ ተሰብስበው አለቀሱለት፤ አርማቴም ባለው ቤቱም ቀበሩት።

ከዚያም ዳዊት ተነሥቶ ወደ ማዖን ምድረ በዳ ወረደ። 2በማዖን ምድር በቀርሜሎስ ንብረት ያለው አንድ ባለጠጋ ሰው ነበረ፤ እርሱም አንድ ሺሕ ፍየሎችና በቀርሜሎስ የሚሸልታቸው ሦስት ሺሕ በጎች ነበሩት። 3የሰውየው ስም ናባል፣ የሚስቱም ስም አቢግያ ነበረ። እርሷም አስተዋይና ውብ ነበረች፤ ባሏ ግን ባለጌና ምግባረ ብልሹ ሰው ነበረ፤ እርሱም ከካሌብ ወገን ነበር።

4ዳዊት በምድረ በዳ ሳለ ናባል በጎቹን እንደሚሸልት ሰማ። 5እርሱም ዐሥር ወጣቶችን እንዲህ ሲል ላካቸው፤ “ወደ ቀርሜሎስ ወደ ናባል ውጡ፤ በስሜም ሰላምታ አቅርቡለት። 6እንዲህም በሉት፤ ‘ዕድሜህ ይርዘም! ሰላም ለአንተ ይሁን፤ ሰላም ለቤተ ሰብህና የአንተ ለሆነው ሁሉ ይሁን።

7“ ‘በዚህ ጊዜ በጎች እንደምትሸልት ሰምቻለሁ፤ እረኞችህ ከእኛ ጋር በነበሩበት ጊዜ፣ ያደረስንባቸው ጕዳት የለም፤ ቀርሜሎስ በነበሩበት ጊዜ ሁሉ፣ የጠፋባቸው አንዳች ነገር አልነበረም። 8የገዛ አገልጋዮችህን ጠይቅ፤ እነርሱም ይነግሩሃል። ስለዚህ አመጣጣችን በጥሩ ቀን በመሆኑ፣ እነዚህ ወጣቶቼ በፊትህ ሞገስ ያግኙ። እባክህን ለአገልጋዮችህና ለልጅህ ለዳዊት የምትችለውን ያህል ስጥ።’ ”

9የዳዊት ሰዎች ከዚያ እንደ ደረሱም፣ በዳዊት ስም ይህንኑ መልእክት ለናባል ከተናገሩ በኋላ ምላሹን ይጠባበቁ ጀመር።

10ናባልም ለዳዊት አገልጋዮች እንዲህ ሲል መለሰ፤ “ለመሆኑ ይህ ዳዊት ማነው? የእሴይስ ልጅ ማን ነው? በአሁኑ ጊዜ ከጌቶቻቸው የሚኰበልሉ አገልጋዮች ብዙ ናቸው። 11ታዲያ እንጀራዬንና ውሃዬን እንዲሁም በጎቼን ለሚሸልቱልኝ ሰዎች ያረድሁትን ፍሪዳ ከየት እንደ መጡ ለማይታወቁ ሰዎች የምሰጠውስ ለምንድን ነው?”

12የዳዊት ሰዎችም ወደ መጡበት ተመለሱ፤ እዚያም እንደ ደረሱ የተባሉትን ሁሉ ነገሩት። 13ዳዊትም ሰዎቹን፣ “በሉ ሁላችሁም ሰይፋችሁን ታጠቁ” አላቸው። ስለዚህ ሁሉም ሰይፋቸውን ታጠቁ፤ ዳዊትም የራሱን ታጠቀ። አራት መቶ ያህል ሰዎች ከዳዊት ጋር ሲወጡ መቶ ያህሉ ግን ጓዝ ለመጠበቅ ቀሩ።

14ከአገልጋዮቹ አንዱ ለናባል ሚስት ለአቢግያ እንዲህ አላት፤ “እነሆ፤ ዳዊት ሰላምታውን እንዲያቀርቡለት ከምድረ በዳ ወደ ጌታችን መልእክተኞች ልኮ ነበር፤ እርሱ ግን የስድብ ናዳ አወረደባቸው። 15እነዚህ ሰዎች ግን እጅግ መልካም ነበሩ፤ ጕዳትም አላደረሱብንም፤ በዱር አብረናቸው በነበርንበት ጊዜም ሁሉ፣ ምንም ነገር አልጠፋብንም። 16በጎቻችንን እየጠበቅን አብረናቸው ባሳለፍነው ጊዜ ሁሉ፣ ቀንም ሆነ ሌሊት በዙሪያችን ዐጥር ሆነውን ነበር። 17አሁንም በጌታችንና በመላው ቤተ ሰቡ ላይ መከራ እያንዣበበ ስለሆነ፣ አስቢበትና የምታደርጊውን አድርጊ፤ እርሱ እንደ ሆነ እንዲህ ያለ ባለጌ ሰው ስለሆነ፣ ደፍሮ የሚነግረው አንድም ሰው የለም።”

18አቢግያም ጊዜ አላጠፋችም፤ ሁለት መቶ እንጀራ፣ ሁለት አቍማዳ የወይን ጠጅ፣ አምስት የተሰናዱ በጎች፣ አምስት መስፈሪያ25፥18 37 ሊትር ያህል ነው። የተጠበሰጠ እሸት፣ መቶ የወይን ዘለላና ዘቢብ፣ ሁለት መቶ ጥፍጥፍ የበለስ ፍሬ ወስዳ በአህዮች ላይ ጫነች። 19ከዚያም አገልጋዮቿን፣ “ቀድማችሁኝ ሂዱ፤ እኔም እከተላችኋለሁ” አለቻቸው፤ ለባሏ ለናባል ግን አልነገረችውም።

20እርሷም በአህያዋ ላይ ተቀምጣ ወደ ሸለቆው በምትወርድበት ጊዜ ዳዊትና ሰዎቹ ወደ እርሷ ወረዱ፤ እርሷም አገኘቻቸው። 21ዳዊትም እንዲህ ብሎ ነበር፤ “ምንም ነገር እንዳይጠፋበት የዚህን ሰው ሀብት በምድረ በዳ ያን ያህል መጠበቄ ለካ በከንቱ ኖሯል፤ ደግ በሠራሁ ይኸው ክፉ መለሰልኝ። 22ነገ ጧት የእርሱ ከሆነው ሁሉ አንድ ወንድ እንኳ በሕይወት ባስቀር እግዚአብሔር በዳዊት ላይ25፥22 አንዳንድ የሰብዓ ሊቃናት ትርጕሞች ከዚህ ጋር ይስማማሉ፤ ዕብራይስጡ ግን በዳዊት ጠላቶች ላይ ይላል። እንዲህ ያለውን ነገር ያድርግበት፣ ከዚህም የከፋ ይጨምርበት!”

23አቢግያም ዳዊትን ባየች ጊዜ ወዲያው ከአህያዋ ወርዳ፣ በዳዊትም ፊት በግምባሯ ተደፍታ እጅ ነሣች። 24በእግሩም ላይ ወድቃ እንዲህ አለች፤ “ጌታዬ ሆይ፤ በደሉ በእኔ ላይ ብቻ ይሁን፤ እባክህ አገልጋይህ ታናግርህ፤ የምትልህንም ስማ። 25ጌታዬ፣ ያን ባለጌ ሰው ናባልን ከቁም ነገር አይቍጠረው፤ ስሙ ራሱ ጅል ማለት ስለሆነ፣ ሰውየውም ልክ እንደ ስሙ ነው፤ ጅልነትም አብሮት የኖረ ነው። እኔ አገልጋይህ ግን ጌታዬ የላካቸውን ጕልማሶች አላየኋቸውም። 26ጌታዬ ሆይ፤ ሕያው እግዚአብሔርን! በሕያው ነፍስህም እምላለሁ፤ ደም ከማፍሰስና በገዛ እጅህ ከመበቀል የጠበቀህ እግዚአብሔር ነው፤ አሁንም ጠላቶችህና ጌታዬን ሊጐዱ የሚፈልጉ ሁሉ እንደ ናባል ይሁኑ፤ 27አገልጋይህም ለጌታዬ ያመጣችው ይህ ስጦታ አንተን ለሚከተሉ ጕልማሶች ይሰጥ። 28ጌታዬ የእግዚአብሔርን ጦርነት ስለሚዋጋ እግዚአብሔርም ለጌታዬ ሥርወ መንግሥቱን በርግጥ ለዘላለም የሚያጸናለት በመሆኑ፣ እባክህ የእኔን የአገልጋይህን በደል ይቅር በል፤ በሕይወት ዘመንህም ሁሉ ክፋት አይገኝብህ። 29ማንም ሰው ሕይወትህን ለማጥፋት ቢያሳድድህ እንኳ፣ የጌታዬ ሕይወት በሕያዋን አንድነት እስራት ውስጥ በአምላክህ በእግዚአብሔር ዘንድ በሰላም ትጠበቃለች፤ የጠላቶችህን ሕይወት ግን፣ እንደ ወንጭፍ ድንጋይ ይወነጭፋል። 30እግዚአብሔር ለጌታዬ በሰጠው ተስፋ መሠረት በጎውን ነገር ሁሉ ባደረገለትና በእስራኤልም ላይ ባነገሠው ጊዜ፣ 31ጌታዬ የምታዝንበት ምክንያት ወይም የኅሊና ጸጸት አይኖርህም፤ በከንቱ ያፈሰስኸውም ደም ሆነ በገዛ እጅህ የተበቀልኸው የለምና። እግዚአብሔር በጎ ነገር ባደረገልህ ጊዜ እኔን አገልጋይህን ዐስበኝ።”

32ዳዊትም አቢግያን እንዲህ አላት፤ “ዛሬ እንድታገኚኝ ወደ እኔ የላከሽ፣ የእስራኤል አምላክ እግዚአብሔር የተመሰገነ ይሁን። 33ደም እንዳላፈስና በገዛ እጄ እንዳልበቀል ዛሬ ስለ ጠበቅሽኝ ስለ በጎ ሐሳብሽ አንቺም የተባረክሽ ሁኚ። 34ጕዳት እንዳላደርስብሽ የጠበቀኝ የእስራኤል አምላክ ሕያው እግዚአብሔርን! እንዲህ በቶሎ መጥተሽ ባታገኚኝ ኖሮ፣ እስኪነጋ ድረስ ለናባል አንድ ወንድ እንኳ ባልተረፈ ነበር።”

35ከዚያም ዳዊት ያመጣችለትን ከእጇ ተቀብሎ፣ “በሰላም ወደ ቤትሽ ሂጂ፤ እነሆ፤ ቃልሽን ሰምቻለሁ፤ የጠየቅሽኝንም ተቀብያአለሁ” አላት።

36አቢግያም ወደ ናባል በተመለሰች ጊዜ፣ እነሆ፤ በቤቱ እንደ ንጉሥ ግብዣ ትልቅ ግብዣ አድርጎ አገኘችው፤ ክፉኛም ሰክሮ ልቡ በደስታ ተሞልቶ ነበር። ስለዚህ እስኪነጋ ድረስ ምንም አልነገረችውም። 37ነግቶ የወይን ጠጁ ስካር ካለፈለት በኋላ የሆነውን ሁሉ ስትነግረው ልቡ ቀጥ አለ፤ ሰውነቱም እንደ ድንጋይ በድን ሆነ። 38ዐሥር ቀን ያህል ካለፈ በኋላ፣ እግዚአብሔር ናባልን ቀሠፈው፤ እርሱም ሞተ።

39ዳዊትም ናባል መሞቱን በሰማ ጊዜ፣ “የናባልን ስድብ የተበቀለልኝና እኔን አገልጋዩን ክፉ ከማድረግ የጠበቀኝ እግዚአብሔር ይመስገን፤ ናባል የሠራውንም ክፉ ነገር በራሱ ላይ መለሰበት” አለ።

ዳዊትም አቢግያ ሚስት ትሆነው ዘንድ በመጠየቅ መልእክት ላከባት። 40አገልጋዮቹም ወደ ቀርሜሎስ ሄደው አቢግያን፣ “ሚስት ትሆኚው ዘንድ እንድንወስድሽ ዳዊት ወደ አንቺ ልኮናል” አሏት።

41እርሷም ተነሥታ በግምባሯ በመደፋት እጅ ከነሣች በኋላ፣ “እነሆ፤ እኔ ገረድህ አንተን ለማገልገል፣ የጌታዬንም አገልጋዮች እግር ለማጠብ ዝግጁ ነኝ” አለች። 42አቢግያም ወዲያውኑ በአህያ ላይ ተቀምጣ አምስት አገልጋዮቿን በማስከተል፣ ከዳዊት መልእክተኞች ጋር ሄደች፤ ለዳዊትም ሚስት ሆነችው። 43እንዲሁም ዳዊት ኢይዝራኤላዊቷን አኪናሆምን አገባ፣ ሁለቱም ሚስቶቹ ሆኑ። 44ሳኦል ግን የዳዊት ሚስት የነበረችውን ልጁን ሜልኮልን፣ ለጋሊም ተወላጅ ለሌሳ ልጅ ለፈልጢ ሰጥቶ ነበር።

Hindi Contemporary Version

1 शमुएल 25:1-44

शमुएल का देहांत

1शमुएल की मृत्यु हो गई. सारा इस्राएलियों ने एकत्र होकर उनके लिए विलाप किया; उन्हें उनके गृहनगर रामाह में गाड़ दिया. इसके बाद दावीद पारान25:1 पारान कुछ पाण्डुलिपियों में माओन के निर्जन प्रदेश में जाकर रहने लगे.

2कालेब के कुल का एक व्यक्ति था, वह माओन नगर का निवासी था. कर्मेल नगर के निकट वह एक भूखण्ड का स्वामी था. वह बहुत ही धनी व्यक्ति था. उसके तीन हज़ार भेड़ें, तथा एक हज़ार बकरियां थी. 3उसका नाम नाबाल था और उसकी अबीगइल नामक पत्नी थी, जो बहुत ही रूपवती एवं विदुषी थी. मगर वह स्वयं बहुत ही नीच, क्रूर तथा क्रुद्ध प्रकृति का था.

4इस समय दावीद निर्जन प्रदेश में थे, और उन्हें मालूम हुआ कि नाबाल भेड़ों का ऊन क़तर रहा है. 5तब दावीद ने वहां दस नवयुवक भेज दिए और उन्हें यह आदेश दिया, “नाबाल से भेंटकरने कर्मेल नगर चले जाओ और उसे मेरी ओर से शुभकामनाएं तथा अभिवंदन प्रस्तुत करना. 6तब तुम उससे कहना: ‘आप पर तथा आपके परिवार पर शांति स्थिर रहें! आप चिरायु हों! आपकी सारी संपत्ति पर समृद्धि बनी रहे!

7“ ‘मुझे यह समाचार प्राप्‍त हुआ है कि आपकी भेड़ों का ऊन क़तरा जा रहा है. जब आपके चरवाहे हमारे साथ थे, सारे समय जब वे कर्मेल में थे, हमने न तो उन्हें अपमानित किया, न उन्हें कोई हानि पहुंचाई है. 8आप स्वयं अपने सेवकों से इस विषय में पूछ सकते हैं. आपकी कृपा हम पर बनी रहे. हम आपकी सेवा में उत्सव के मौके पर आए हैं. कृपया अपने सेवकों को, तथा अपने पुत्र समान सेवक दावीद को, जो कुछ आपको सही लगे, दे दीजिए.’ ”

9दावीद के नवयुवक साथी वहां गए, और दावीद की ओर से नाबाल को यह संदेश दे दिया, और वे नाबाल के प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करने लगे.

10“कौन है यह दावीद?” नाबाल ने दावीद के साथियों को उत्तर दिया, “और कौन है यह यिशै का पुत्र? कैसा समय आ गया है, जो सारे दास अपने स्वामियों को छोड़-छोड़कर भाग रहे हैं. 11अब क्या मेरे लिए यही शेष रह गया है कि मैं अपने सेवकों के हिस्से का भोजन लेकर इन लोगों को दे दूं? मुझे तो यही समझ नहीं आ रहा कि ये लोग कौन हैं, और कहां से आए हैं?”

12तब दावीद के साथी लौट गए. लौटकर उन्होंने दावीद को यह सब सुना दिया. 13दावीद ने अपने साथियों को आदेश दिया, “हर एक व्यक्ति अपनी तलवार उठा ले!” तब सबने अपनी तलवार धारण कर ली. दावीद ने भी अपनी तलवार धारण कर ली. ये सब लगभग चार सौ व्यक्ति थे, जो इस अभियान में दावीद के साथ थे, शेष लगभग दो सौ उनके विभिन्‍न उपकरणों तथा आवश्यक सामग्री की रक्षा के लिए ठहर गए.

14इसी बीच नाबाल के एक सेवक ने नाबाल की पत्नी अबीगइल को संपूर्ण घटना का वृत्तांत सुना दिया, “दावीद ने हमारे स्वामी के पास मरुभूमि से अपने प्रतिनिधि भेजे थे, कि वे उन्हें अपनी शुभकामनाएं प्रस्तुत करें, मगर स्वामी ने उन्हें घोर अपमान करके लौटा दिया है. 15ये सभी व्यक्ति हमारे साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण रीति से व्यवहार करते रहे थे. उन्होंने न कभी हमारा अपमान किया, न कभी हमारी कोई हानि ही की. जब हम मैदानों में भेड़ें चराया करते थे हमारी कोई भी भेड़ नहीं खोई. हम सदैव साथ साथ रहे. 16दिन और रात संपूर्ण समय वे मानो हमारे लिए सुरक्षा की दीवार बने रहते थे, जब हम उनके साथ मिलकर भेड़ें चराया करते थे. 17अब आप स्थिति की गंभीरता को पहचान लीजिए और विचार कीजिए, कि अब आपका क्या करना सही होगा, क्योंकि अब हमारे स्वामी और उनके संपूर्ण परिवार के लिए बुरा योजित हो चुका है. वह ऐसा दुष्ट व्यक्ति हैं, कि कोई उन्हें सुझाव भी नहीं दे सकता.”

18यह सुनते ही अबीगइल ने तत्काल दो सौ रोटियां, दो छागलें द्राक्षारस, पांच भेड़ें, जो पकाई जा चुकी थी, पांच माप भुना हुआ अन्‍न, किशमिश के सौ पिंड तथा दो सौ पिंड अंजीरों को लेकर गधों पर लाद दिया. 19“उसने अपने सेवकों को आदेश दिया, मेरे आगे-आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे आऊंगी.” मगर स्वयं उसने इसकी सूचना अपने पति नाबाल को नहीं दी.

20जब वह अपने गधे पर बैठी हुई पर्वत के उस गुप्‍त मार्ग पर थी, उसने देखा कि दावीद तथा उनके साथी उसी की ओर बढ़े चले आ रहे थे, और वे आमने-सामने आ गए. 21इस समय दावीद विचार कर ही रहे थे, “निर्जन प्रदेश में हमने व्यर्थ ही इस व्यक्ति की संपत्ति की ऐसी रक्षा की, कि उसकी कुछ भी हानि नहीं हुई, मगर उसने इस उपकार का प्रतिफल हमें इस बुराई से दिया है. 22यदि प्रातःकाल तक उसके संबंधियों में से एक भी नर जीवित छोड़ दूं, तो परमेश्वर दावीद के शत्रुओं से ऐसा ही, एवं इससे भी बढ़कर करें!”

23दावीद को पहचानते ही अबीगइल तत्काल अपने गधे से उतर पड़ीं, उनके सामने मुख के बल गिर दंडवत हुई. 24तब उन्होंने दावीद के चरणों पर गिरकर उनसे कहा, “दोष सिर्फ मेरा ही है, मेरे स्वामी, अपनी सेविका को बोलने की अनुमति दें, तथा आप मेरा पक्ष सुन लें. 25मेरे स्वामी, कृपया आप इस निकम्मे व्यक्ति नाबाल के कड़वे वचनों पर ध्यान न दें. उसकी प्रकृति ठीक उसके नाम के ही अनुरूप है. उसका नाम है नाबाल और मूर्खता उसमें सचमुच व्याप्‍त है. खेद है कि उस समय मैं वहां न थी, जब आपके साथी वहां आए हुए थे. 26और अब मेरे स्वामी, याहवेह की शपथ, आप चिरायु हों, क्योंकि याहवेह ने ही आपको रक्तपात के दोष से बचा लिया है, और आपको यह काम अपने हाथों से करने से रोक दिया है. अब मेरी कामना है कि आपके शत्रुओं की, जो आपकी हानि करने पर उतारू हैं, उनकी स्थिति वैसी ही हो, जैसी नाबाल की. 27अब आपकी सेविका द्वारा लाई गई इस भेंट को हे स्वामी, आप स्वीकार करें कि इन्हें अपने साथियों में बाट दें.

28“कृपया अपनी सेविका की इस भूल को क्षमा कर दें. याहवेह आपके परिवार को प्रतिष्ठित करेंगे, क्योंकि मेरे स्वामी याहवेह के प्रतिनिधि होकर युद्ध कर रहे हैं. अपने संपूर्ण जीवन में अपने किसी का बुरा नहीं चाहा है. 29यदि कोई आपके प्राण लेने के उद्देश्य से आपका पीछा करना शुरू कर दे, तब मेरे स्वामी का जीवन याहवेह, आपके परमेश्वर की सुरक्षा में जीवितों की झोली में संचित कर लिया जाएगा, मगर आपके शत्रुओं के जीवन को इस प्रकार दूर प्रक्षेपित कर देंगे, जैसे गोफन के द्वारा पत्थर फेंक दिया जाता है. 30याहवेह मेरे स्वामी के लिए वह सब करेंगे, जिसकी उन्होंने आपसे प्रतिज्ञा की है. वह आपको इस्राएल के शासक बनाएंगे, 31अब आपकी अंतरात्मा निर्दोष के लहू बहाने के दोष से न भरेगी, और न आपको इस विषय में कोई खेद होगा कि आपने स्वयं बदला ले लिया. मेरे स्वामी, जब याहवेह आपको उन्‍नत करें, कृपया अपनी सेविका को अवश्य याद रखियेगा.”

32अबीगइल से ये उद्गार सुनकर दावीद ने उन्हें संबोधित कर कहा, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की स्तुति हो, जिन्होंने आपको मुझसे भेंटकरने भेज दिया है. 33सराहनीय है आपका उत्तम अनुमान! आज मुझे रक्तपात से रोक देने के कारण आप स्वयं सराहना की पात्र हैं. आपने मुझे आज स्वयं बदला लेने की भूल से भी बचा लिया है. 34याहवेह, इस्राएल के जीवन्त परमेश्वर की शपथ, जिन्होंने मुझे आपका बुरा करने से रोक दिया है, यदि आप आज इतने शीघ्र मुझसे भेंटकरने न आयी होती, सबेरे, दिन का प्रकाश होते-होते, नाबाल परिवार का एक भी नर जीवित न रहता.”

35तब दावीद ने उसके हाथ से उसके द्वारा लाई गई भेंटें स्वीकार की और उसे इस आश्वासन के साथ विदा किया, “शांति से अपने घर लौट जाओ, मैंने तुम्हारी बात मान ली और तुम्हारी विनती स्वीकार कर लिया.”

36जब अबीगइल घर पहुंची, नाबाल ने अपने आवास पर एक भव्य भोज आयोजित किया हुआ था. ऐसा भोज, मानो वह राजा हो. उस समय वह बहुत ही उत्तेजित था तथा बहुत ही नशे में था. तब अबीगइल ने सुबह तक कोई बात न की. 37सुबह, जब नाबाल से शराब का नशा उतर चुका था, उसकी पत्नी ने उसे इस विषय से संबंधित सारा विवरण सुना दिया. यह सुनते ही नाबाल को पक्षाघात हो गया, और वह सुन्‍न रह गया. 38लगभग दस दिन बाद याहवेह ने नाबाल पर ऐसा प्रहार किया कि उसकी मृत्यु हो गई.

39जब दावीद ने नाबाल की मृत्यु का समाचार सुना, वह कह उठे, “धन्य हैं याहवेह, जिन्होंने नाबाल द्वारा किए गए मेरे अपमान का बदला ले लिया है. याहवेह अपने सेवक को बुरा करने से रोके रहे तथा नाबाल को उसके दुराचार का प्रतिफल दे दिया.”

दावीद ने संदेशवाहकों द्वारा अबीगइल के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा. 40दावीद के संदेशवाहकों ने कर्मेल नगर जाकर अबीगइल को कहा: “हमें दावीद ने आपके पास भेजा है कि हम आपको अपने साथ उनके पास ले जाएं, कि वे आपसे विवाह कर सकें.”

41वह तत्काल उठी, भूमि पर दंडवत होकर उनसे कहा, “आपकी सेविका मेरे स्वामी के सेवकों के चरण धोने के लिए तत्पर दासी हूं.” 42अबीगइल विलंब न करते उठकर तैयार हो गई. वह अपने गधे पर बैठी और दावीद के संदेशवाहकों के साथ चली गई. उसके साथ उसकी पांच सेविकाएं थी. वहां वह दावीद की पत्नी हो गई. 43दावीद ने येज़्रील नगरवासी अहीनोअम से भी विवाह किया. ये दोनों ही उनकी पत्नी बन गईं. 44इस समय तक शाऊल ने अपनी बेटी मीखल, जो वस्तुतः दावीद की पत्नी थी, लायीश के पुत्र पालतिएल को, जो गल्लीम नगर का वासी था, सौंप दी थी.