ዳንኤል 11 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ዳንኤል 11:1-45

1እኔም፣ ሜዶናዊው ዳርዮስ በነገሠ በመጀመሪያው ዓመት፣ እርሱን ለማገዝና ለማበረታታት በአጠገቡ ቆሜ ነበር።

የሰሜንና የደቡብ ነገሥታት

2“አሁንም እውነቱን እነግርሃለሁ፤ እነሆ፤ ሦስት ሌሎች ነገሥታት በፋርስ ይነሣሉ፤ አራተኛውም ከሌሎቹ ሁሉ ይልቅ እጅግ ባለጠጋ ይሆናል። በባለጠግነቱም እጅግ በበረታ ጊዜ፣ ሌላውን ሁሉ አሳድሞ በግሪክ መንግሥት ላይ ያስነሣል። 3ከዚያም በታላቅ ኀይል የሚገዛና የወደደውንም ሁሉ የሚያደርግ ኀያል ንጉሥ ይነሣል። 4በኀይል እየገነነ ሳለም፣ መንግሥቱ ይፈርሳል፤ ወደ አራቱ የሰማይ ነፋሳትም ይከፋፈላል። መንግሥቱ ተወስዶ ለሌሎች ስለሚሰጥ፣ ለዘሩ አይተላለፍም፤ ኀይሉም እንደ መጀመሪያው አይሆንም።

5“የደቡቡ ንጉሥ ይበረታል፤ ነገር ግን ከጦር አዛዦቹ አንዱ ከእርሱ የበለጠ የበረታ ይሆናል፤ ግዛቱም ታላቅ ይሆናል። 6ከጥቂት ዓመታት በኋላም አንድነት ይፈጥራሉ። የደቡቡ ንጉሥ ሴት ልጅ ስምምነት ለማድረግ ወደ ሰሜኑ ንጉሥ ትሄዳለች፤ ነገር ግን ኀይሏን ይዛ መቈየት አትችልም፤ እርሱም ሆነ የእርሱ ኀይል11፥6 ወይም ዘሩ አይጸናም። በእነዚያ ቀናት እርሷ ከቤተ መንግሥት አጃቢዎቿ፣ ከአባቷና11፥6 ወይም ከልጇና (ቫልጌትንና ሱርስትን ይመ) ከደጋፊዎቿ ጋር ዐልፋ ትሰጣለች።

7“ከዘመዶቿ አንዱ ስፍራዋን ሊይዝ ይነሣል፤ የሰሜንን ንጉሥ ሰራዊት ይወጋል፤ ምሽጎቹንም ጥሶ ይገባል፤ ከእነርሱም ጋር ተዋግቶ ድል ያደርጋል። 8አማልክታቸውን፣ የብረት ምስሎቻቸውን፣ ከብርና ከወርቅ የተሠሩ የከበሩ ዕቃዎቻቸውን ይማርካል፤ ወደ ግብፅም ይወስዳል። ለጥቂት ዓመታትም ከሰሜኑ ንጉሥ ጋር ከመዋጋት ይቈጠባል። 9የሰሜኑም ንጉሥ፣ የደቡቡን ንጉሥ ግዛት ይወርራል፤ ነገር ግን አፈግፍጎ ወደ ገዛ አገሩ ይመለሳል። 10ወንዶች ልጆቹም ለጦርነት ይዘጋጃሉ፤ እስከ ጠላት ምሽግ ደርሶ የሚዋጋና ሊቋቋሙት እንደማይቻል ጐርፍ የሚጠራርግ ታላቅ ሰራዊት ያሰባስባሉ።

11“ከዚያም የደቡቡ ንጉሥ በቍጣ ወጥቶ የሰሜኑን ንጉሥ ይወጋል። የሰሜኑ ንጉሥ ታላቅ ሰራዊት ቢያሰባስብም ይሸነፋል። 12የደቡቡ ንጉሥ ብዙ ሰራዊት በሚማርክበት ጊዜ ልቡ በትዕቢት ይሞላል፤ በብዙ ሺሕ የሚቈጠሩ ሰዎችንም ይገድላል፤ ነገር ግን በድል አድራጊነቱ አይጸናም። 13የሰሜን ንጉሥ ከመጀመሪያው የሚበልጥ ታላቅ ሰራዊት ያሰባስባል፤ ከብዙ ዓመትም በኋላ በትጥቅ እጅግ ከተደራጀ ታላቅ ሰራዊት ጋር ተመልሶ ይመጣል።

14“በዚያም ዘመን ብዙዎች በደቡብ ንጉሥ ላይ ይነሣሉ፤ ራእዩ ይፈጸም ዘንድ፣ ከሕዝብህ መካከል ዐመፀኛ የሆኑ ሰዎች ይነሣሉ፤ ነገር ግን አይሳካላቸውም። 15የሰሜኑም ንጉሥ መጥቶ የዐፈር ድልድል ይክባል፤ የተመሸገችውንም ከተማ ይይዛል። የደቡቡ ሰራዊትም ለመቋቋም ኀይል ያጣል፤ የተመረጡት ተዋጊዎቻቸው እንኳ ጸንተው መዋጋት አይችሉም። 16ወራሪው ደስ ያሰኘውን ያደርጋል፤ ማንም ሊቋቋመው አይችልም። በመልካሚቱ ምድር ላይ ይገዛል፤ እርሷን ለማጥፋትም ኀይል ይኖረዋል። 17በመንግሥቱ ያለውን ሰራዊት ሁሉ ይዞ ለመምጣት ይወስናል፤ ከደቡብም ንጉሥ ጋር ይስማማል፤ ይህንም መንግሥት ለመጣል ሴት ልጁን ይድርለታል፤ ይሁን እንጂ ዕቅዱ11፥17 ወይም እርሷ አይሳካለትም፤ ያሰበውም ነገር አይጠቅመውም። 18ከዚህም በኋላ በባሕር ጠረፍ ወዳሉት አገሮች ፊቱን በመመለስ ብዙዎቹን ይይዛል፤ ነገር ግን አንድ አዛዥ ትዕቢቱን ያከሽፍበታል፤ በራሱም ላይ ይመልስበታል። 19በገዛ አገሩ ወዳሉት ምሽጎችም ፊቱን ይመልሳል፤ ነገር ግን ተሰናክሎ ይወድቃል፤ ዳግምም አይታይም።

20“በእርሱ ቦታ የሚተካውም የመንግሥቱን ክብር ለማስጠበቅ ግብር አስገባሪ ይልካል፤ ይሁን እንጂ በቍጣ ወይም በጦርነት ሳይሆን በጥቂት ዓመታት ውስጥ ይገደላል።

21“በእርሱም ፈንታ የተናቀ ሰው ይነግሣል፤ ንጉሣዊ ክብርም አይሰጠውም፤ ሕዝቡ በሰላም ተቀምጦ ሳለ በተንኰል መንግሥቱን ይይዛል። 22ከፊቱ የሚቆመውን ታላቅ ሰራዊት፣ የቃል ኪዳኑንም አለቃ ሳይቀር ይደመስሳል። 23ከእርሱ ጋር ስምምነት ከተደረገ በኋላ የማታለል ሥራውን ይሠራል፤ ከጥቂት ሰዎች ጋር ለሥልጣን ይበቃል። 24የበለጸጉትን ክፍለ አገሮች በሰላም ሳሉ በድንገት ይወርራቸዋል፤ አባቶቹም ሆኑ አያቶቹ ያላደረጉትን ነገር ያደርጋል፤ ይከናወንለታልም፤ ብዝበዛውን፣ ምርኮውንና የተገኘውን ሀብት ሁሉ ለተከታዮቹ ያካፍላቸዋል፤ ምሽጎችን ለመጣል ያሤራል፤ ይህን የሚያደርገውም ለጥቂት ጊዜ ብቻ ነው።

25“ታላቅ ሰራዊት አደራጅቶ ኀይሉንና ብርታቱን በደቡብ ንጉሥ ላይ ያነሣሣል፤ የደቡብ ንጉሥም ቍጥሩ እጅግ ብዙ የሆነ ኀያል ሰራዊት ይዞ ጦርነትን ያውጃል፤ ነገር ግን ከተዶለተበት ሤራ የተነሣ መቋቋም አይችልም። 26ከንጉሥ ማዕድ አብረውት ሲበሉ የነበሩት ሊያጠፉት ያሤራሉ፤ ሰራዊቱም ይደመሰሳል፤ ብዙዎቹም በጦርነት ይወድቃሉ። 27ልባቸው ወደ ክፋት ያዘነበለው ሁለቱ ነገሥታት፣ በአንድ ገበታ አብረው ይቀመጣሉ፤ እርስ በርሳቸውም ሐሰትን ይነጋገራሉ፤ ነገር ግን የተወሰነው ጊዜ ገና ስለሆነ አይከናወንላቸውም። 28የሰሜን ንጉሥ ብዙ ሀብት ይዞ ወደ ገዛ አገሩ ይመለሳል፤ ነገር ግን ልቡ በተቀደሰው ኪዳን ላይ ይነሣሣል፤ ክፉ ነገርም ያደርግበታል፤ ከዚያም ወደ ገዛ አገሩ ይመለሳል።

29“በተወሰነው ጊዜ ደቡቡን እንደ ገና ይወርራል፤ በዚህ ጊዜ ግን ውጤቱ ከበፊቱ የተለየ ይሆናል። 30የኪቲም11፥30 ወይም የምዕራብ ባሕር ዳር አገሮች መርከቦች ይቃወሙታል፤ ልቡም ይሸበራል። ወደ ኋላም ይመለሳል፤ ቍጣውን በተቀደሰው ኪዳን ላይ ያወርዳል፤ ተመልሶም የተቀደሰውን ኪዳን የተዉትን ይንከባከባል።

31“የጦር ሰራዊቶቹም ቤተ መቅደሱንና ቅጥሩን ያረክሳሉ፤ የዘወትሩንም መሥዋዕት ያስቀራሉ፤ በዚያም ጥፋትን የሚያመጣውን የጥፋት ርኩሰት ይተክላሉ። 32ኪዳኑን የሚተላለፉትን በማታለል ያስታል፤ አምላካቸውን የሚያውቁ ሕዝብ ግን ጸንተው ይቃወሙታል፤ ርምጃም ይወስዳሉ።

33“ለጊዜው በሰይፍ ቢወድቁም፣ ቢቃጠሉም፣ ቢማረኩና ቢዘረፉም፣ ጥበበኛ የሆኑ ሰዎች ብዙዎችን ያስተምራሉ። 34በሚወድቁበት ጊዜ መጠነኛ ርዳታ ያገኛሉ፤ እውነተኛ ያልሆኑ ብዙ ሰዎችም ይተባበሯቸዋል። 35ጥበበኛ ከሆኑ ሰዎች አንዳንዶቹ ይሰናከላሉ፤ ይህም እስከ ፍጻሜ ዘመን ድረስ የጠሩ፣ የነጠሩና እንከን የሌለባቸው ይሆኑ ዘንድ ነው፤ የተወሰነው ጊዜ ገና አልደረሰምና።

ራሱን ከፍ ከፍ የሚያደርግ ንጉሥ

36“ንጉሡ ደስ እንዳለው ያደርጋል፤ ከአማልክት ሁሉ በላይ ራሱን እጅግ ከፍ በማድረግ በአማልክት አምላክ ላይ ተሰምቶ የማይታወቅ የስድብ ቃል ይናገራል፤ የቍጣውም ዘመን እስኪፈጸም ድረስ ይሳካለታል፤ የተወሰነው ነገር ሁሉ መሆን አለበትና። 37ሴቶች ለሚወድዱትም ሆነ ለአባቶቹ አማልክት ክብርን አይሰጥም፤ ማንኛውንም አምላክ አያከብርም፤ ነገር ግን ራሱን ከእነዚህ ሁሉ በላይ ከፍ ከፍ ያደርጋል። 38በእነርሱም ምትክ የምሽጎችን አምላክ ያከብራል፤ አባቶች የማያውቁትን አምላክ በወርቅ፣ በብር፣ በከበሩ ድንጋዮችና በውድ ስጦታዎች ያከብራል። 39በባዕድ አምላክ ርዳታ ጽኑ ምሽጎችን ይወጋል፤ ለእርሱ የሚገዙትን በእጅጉ ያከብራቸዋል፤ በብዙ ሕዝብ ላይ ገዦች ያደርጋቸዋል፤ ምድሩንም በዋጋ ያከፋፍላቸዋል።

40“በመጨረሻው ዘመን የደቡብ ንጉሥ ጦርነት ያውጅበታል፤ የሰሜን ንጉሥም በፈረሰኞችና በሠረገሎች፣ በብዙ መርከቦችም እንደ ማዕበል ይመጣበታል፤ ብዙ አገሮችን ይወርራል፤ እንደ ጐርፍም እየጠራረገ በመካከላቸው ያልፋል። 41መልካሚቱንም ምድር ይወርራል፤ ብዙ አገሮች በእጁ ይወድቃሉ፤ ኤዶም፣ ሞዓብና የአሞን መሪዎች ግን ከእጁ ያመልጣሉ። 42ሥልጣኑን በብዙ አገሮች ላይ ያንሰራፋል፤ ግብፅም አታመልጥም። 43የወርቅና የብር ክምችትን፣ እንዲሁም የግብፅን ሀብት ሁሉ በቍጥጥሩ ሥር ያደርጋል፤ የሊቢያና የኢትዮጵያ11፥43 ወይም የኑብያ ወይም የኵሽ ሰዎችም ይገዙለታል። 44ነገር ግን ከምሥራቅና ከሰሜን የሚመጣ ወሬ ያስደነግጠዋል፤ ብዙዎችንም ለማጥፋትና ለመደምሰስ በታላቅ ቍጣ ይወጣል። 45ንጉሣዊ ድንኳኖቹን በባሕሮች መካከል11፥45 ወይም በባሕርና ውብ…መካከል ውብ በሆነው ቅዱስ ተራራ ላይ ይተክላል፤ ይሁን እንጂ ወደ ፍጻሜው ይመጣል፤ ማንም አይረዳውም።”

Hindi Contemporary Version

दानिएल 11:1-45

1मादी वंश के राजा दारयावेश के शासन के पहले साल में, मैं उसको समर्थन देने और उसके बचाव के लिए खड़ा हुआ.)

दक्षिण और उत्तर के राजा

2“अब, मैं तुमको सच्ची बात बताता हूं: फारस में तीन और राजाओं का उदय होगा, और उसके बाद एक चौथा राजा होगा, जो दूसरे सब राजाओं से बहुत अधिक धनी होगा. जब वह अपने धन से शक्ति प्राप्‍त कर लेगा, तब वह सब लोगों को यावन राज्य के विरुद्ध भड़काएगा. 3तब एक पराक्रमी राजा का उदय होगा, जो बड़ी शक्ति से राज्य करेगा और उसे जो अच्छा लगेगा, वही करेगा. 4उसके उदय होने के बाद, उसका राज्य टूट जाएगा और चारों दिशाओं में बंट जाएगा. यह उसके संतानों के पास नहीं जाएगा और न ही उसके शक्ति का प्रभाव उस राज्य में होगा, क्योंकि उसका राज्य उससे छीनकर दूसरों को दे दिया जाएगा.

5“दक्षिण का राजा शक्तिशाली हो जाएगा, परंतु उसका ही एक सेनापति उससे भी ज्यादा शक्तिशाली हो जाएगा और अपने स्वयं के राज्य पर बड़े शक्ति से शासन करेगा. 6कुछ सालों के बाद, वे सहयोगी बन जाएंगे. दक्षिण के राजा की बेटी उत्तर के राजा के पास एक संधि करने के लिये जाएगी, परंतु उसके पास उसके राज्य की शक्ति न रहेगी, और न ही उत्तर के राजा के पास कोई शक्ति11:6 शक्ति या संतान बचेगी. उन दिनों, दक्षिण के राजा की बेटी को उसके शाही रक्षकों और उसके पिता और उसकी मदद करनेवाले सहित धोखा दिया जाएगा.

7“उसके परिवार का एक जन उसकी जगह में उठ खड़ा होगा. वह उत्तर के राजा के सेना पर आक्रमण करेगा और उसके किले में प्रवेश करेगा; वह उनसे लड़ेगा और विजयी होगा. 8वह उनके देवताओं को, उनके धातु की मूर्तियों को और उनके चांदी एवं सोने के बहुमूल्य पात्रों को ज़ब्त कर लेगा और अपने साथ मिस्र देश ले जाएगा. कुछ वर्षों तक, वह उत्तर के राजा को अकेला छोड़ देगा. 9तब उत्तर का राजा दक्षिण के राजा की सीमा का अतिक्रमण करेगा परंतु अपने ही देश को लौट जाएगा. 10उसके बेटे युद्ध की तैयारी करेंगे और एक बड़ी सेना इकट्ठा करेंगे, जो न रोके जा सकनेवाले बाढ़ के समान तेजी से आगे बढ़ेंगे और लड़ाई को उसके किले तक ले जाएंगे.

11“तब दक्षिण का राजा क्रोधित होकर आगे बढ़ेगा और वह उत्तर के राजा से लड़ाई करेगा, और उत्तर का राजा एक बड़ी सेना खड़ी करेगा, परंतु वह हार जाएगा. 12जब इस बड़ी सेना को हरा दिया जाएगा, तब दक्षिण के राजा मन घमंड से भर जाएगा और कई हजार लोगों को मार डालेगा, तौभी वह विजयी बना न रह सकेगा. 13क्योंकि उत्तर का राजा एक दूसरी सेना खड़ी कर लेगा, जो उसके पहले की सेना से बड़ी होगी; और कई सालों के बाद, वह पूरी तैयारी के साथ एक बड़ी सेना को लेकर आगे बढ़ेगा.

14“उन दिनों में, बहुत से लोग दक्षिण के राजा के विरुद्ध उठ खड़े होंगे. तुम्हारे अपने लोगों के बीच जो हिंसक प्रवृत्ति के हैं, वे इस दर्शन के पूर्ति में विद्रोह करेंगे, किंतु वे सफल न होंगे. 15तब उत्तर का राजा आकर सैनिकों का घेरा डालेगा और एक किला वाले शहर पर कब्जा कर लेगा. दक्षिण की सेना में विरोध करने की शक्ति न होगी, और तो और उनके सबसे अच्छे सैन्य-दलों के पास भी सामना करने की शक्ति न होगी. 16आक्रमणकारी जैसा चाहेगा, वैसा करेगा; कोई भी उसके सामने ठहर न सकेगा. वह अपने आपको उस सुंदर देश में स्थापित करेगा और उसके पास उसे नाश करने की शक्ति होगी. 17वह अपने सारे राज्य की शक्ति के साथ आने की ठान लेगा और वह दक्षिण के राजा के साथ एक संधि करेगा. और उसके राज्य को जीतने के लिये उस राजा को अपनी एक बेटी विवाह में देगा, परंतु उसकी योजना सफल न होगी या उससे उसे कोई मदद नहीं मिलेगी. 18तब वह अपना ध्यान समुद्रतटों पर लगाएगा और उनमें से बहुतों को अपने अधिकार में कर लेगा, परंतु एक सेनापति उसके अहंकार का अंत कर देगा और उसके अहंकार के अनुसार उससे बदला लेगा. 19इसके बाद, वह अपने ही देश के किलों की ओर मुंह मोड़ेगा, किंतु वह लड़खड़ा कर गिरेगा और उसका अस्तित्व ही मिट जाएगा.

20“तब जो उसकी जगह लेगा, वह राजकीय वैभव को बनाए रखने के लिये कर इकट्ठा करनेवाला भेजेगा. फिर भी, कुछ ही सालों में, वह नाश हो जाएगा, पर उसका विनाश क्रोध में या युद्ध में न होगा.

21“उसके जगह को लेनेवाला एक तिरस्कृत व्यक्ति होगा, जिसे राजसत्ता से सम्मान न मिला होगा. जब लोग सुरक्षित महसूस कर रहे होंगे, तभी वह राज्य पर आक्रमण करेगा और षड़्‍यंत्र करके उसे अपने कब्जे में कर लेगा. 22तब एक बड़ी सेना उसके सामने से पलायन कर जाएगी; इसे और वाचा के एक राजकुमार को नष्ट कर दिया जाएगा. 23उस राजकुमार के साथ एक समझौता होने के बाद, वह छल करेगा, और सिर्फ थोड़े ही लोगों के साथ वह शक्तिशाली हो जाएगा. 24जब धनी राज्य सुरक्षित महसूस कर रहे होंगे, तभी वह उन पर आक्रमण करेगा और ऐसी सफलता प्राप्‍त करेगा, जैसी न तो उसके बाप-दादों और न ही उसके पूर्वजों ने प्राप्‍त की थी. वह लूटी और छीनी गई चीज़ों और संपत्ति को अपने अनुयायियों के बीच बांट देगा. वह किलों को जीतने के लिये षड़्‍यंत्र करेगा—पर सिर्फ थोड़े समय के लिये.

25“एक बड़ी सेना लेकर वह दक्षिण के राजा के विरुद्ध अपनी शक्ति एवं साहस लगा देगा. दक्षिण का राजा भी एक बड़ी और शक्तिशाली सेना लेकर युद्ध करेगा, किंतु उसके विरुद्ध रचे गये षड़्‍यंत्र के कारण, वह ठहर न सकेगा. 26जो राजा के द्वारा दिये गये भोजन को खाया करते थे, वे ही उसे नाश करने की कोशिश करेंगे; उसकी सेना भगा दी जाएगी, और बहुत सारे लोग युद्ध में मारे जाएंगे. 27दोनों ही राजा अपने मन में बुरी बातें रखकर एक ही मेज़ पर बैठेंगे और एक दूसरे से झूठ बोलेंगे, जिससे कोई फायदा न होगा, क्योंकि ठहराए गये समय पर अंत आ जाएगा. 28उत्तर का राजा बहुत संपत्ति के साथ अपने देश को लौट जाएगा, परंतु उसका मन पवित्र वाचा के विरुद्ध लगा रहेगा. वह इसके विरुद्ध कार्यवाही करेगा और तब वह अपने देश लौट जाएगा.

29“निर्धारित समय पर वह फिर से दक्षिण पर आक्रमण करेगा, परंतु इस समय परिणाम पहले से अलग होगा. 30पश्चिमी समुद्रतट11:30 पश्चिमी समुद्रतट मूल भाषा मेंकित्तिम के जहाज़ उसका विरोध करेंगे, और वह हिम्मत हार जाएगा. वह लौटेगा और पवित्र वाचा के विरुद्ध अपना गुस्सा दिखाएगा. वह लौटेगा और उन पर कृपा करेगा, जो पवित्र वाचा को छोड़ देंगे.

31“उसकी सशस्त्र सेनायें मंदिर के किले को अपवित्र करने के लिये आगे बढ़ेंगी और प्रतिदिन चढ़ाये जानेवाला बलिदान बंद कर दिया जाएगा. तब वे घृणित वस्तु की स्थापना करेंगे, जो उजाड़ का कारण बनता है. 32लुभावने शब्दों से वह उनको भ्रष्‍ट करेगा, जो वाचा को तोड़ दिये होंगे, पर जो लोग अपने परमेश्वर को जानते हैं, वे दृढ़ता से उसका विरोध करेंगे.

33“वे जो बुद्धिमान हैं, बहुतों को समझाएंगे, हालांकि कुछ समय के लिये, वे तलवार से मारे जाएंगे या जला दिये जाएंगे या पकड़ लिये जाएंगे या लूट लिये जाएंगे. 34जब वे गिरेंगे, तो उन्हें बहुत थोड़ी मदद मिलेगी, और बहुत लोग जो ईमानदार नहीं हैं, उनमें शामिल हो जाएंगे. 35बुद्धिमान लोगों में से कुछ लड़खड़ाएंगे, ताकि अंत समय के आने तक उन्हें स्वच्छ, शुद्ध और दाग रहित किया जाए, क्योंकि अंत निर्धारित समय पर होगा.

अपने आपको उन्‍नत करनेवाला राजा

36“राजा जैसा चाहेगा, वैसा करेगा. वह अपने आपको सारे देवताओं से ऊंचा और बड़ा करेगा और देवताओं के परमेश्वर के विरुद्ध अनसुनी बातें कहेगा. वह तब तक सफल होता रहेगा, जब तक कि कोप का समय पूरा न हो जाएगा; क्योंकि जो ठहराया गया है, वह अवश्य पूरा होगा. 37वह न तो अपने पूर्वजों के देवताओं के प्रति कोई सम्मान दिखाएगा और न ही वह स्त्रियों के इच्छा की चिंता करेगा, और न किसी देवता का सम्मान करेगा, पर वह अपने आपको उन सबसे ऊपर ठहराएगा. 38उनके बदले, वह किलों के एक देवता को सम्मानित करेगा; एक ऐसा देवता, जिससे उसके पूर्वज भी अनजान थे. वह उस देवता का सम्मान सोना, चांदी, बहुमूल्य रत्नों तथा कीमती उपहारों से करेगा. 39वह एक विदेशी देवता की सहायता से सबसे शक्तिशाली किलों पर आक्रमण करेगा और वह उन्हें बहुत सम्मानित करेगा, जो उसे राजा-स्वरूप स्वीकार करेंगे. वह उन्हें बहुत से लोगों के ऊपर शासक नियुक्त करेगा और एक दाम11:39 दाम या उपहार लेकर भूमि को वितरित करेगा.

40“अंत के समय में, दक्षिण का राजा उसको युद्ध में लगाये रखेगा, और उत्तर का राजा भी रथों, घुड़सवारों और एक बड़े पानी जहाज़ के बेड़ों के साथ उस पर आक्रमण करेगा. वह बहुत से देशों पर आक्रमण करेगा और बाढ़ के पानी की तरह उनमें से होता हुआ निकल जाएगा. 41वह सुंदर देश पर भी आक्रमण करेगा. बहुत से देशों का अंत हो जाएगा, परंतु एदोम, मोआब और अम्मोन के अगुओं को उसके हाथ से बचाया जाएगा. 42वह कई देशों पर अपनी शक्ति का विस्तार करेगा; मिस्र देश भी न बचेगा. 43वह मिस्र देश के सोने और चांदी के खजानों और सब बहुमूल्य चीज़ों को अपने अधीन कर लेगा, और लिबिया तथा कूश देशवासी उसकी अधीनता स्वीकार कर लेंगे. 44किंतु पूर्व और उत्तर दिशाओं से आनेवाले समाचार को सुनकर वह बेचैन हो जाएगा, और बहुत क्रोधित होकर वह बहुतों का नाश करने और उनका अस्तित्व मिटाने को निकल पड़ेगा. 45वह अपना राजकीय तंबू समुद्र और सुंदर पवित्र पर्वत के बीच खड़ा करेगा. तो भी उसका अंत हो जाएगा, और कोई भी उसकी सहायता करने नहीं आएगा.