ዘፀአት 12 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ዘፀአት 12:1-51

የፋሲካ በዓል

12፥14-20 ተጓ ምብ – ዘሌ 23፥4-8ዘኍ 28፥16-25ዘዳ 16፥1-8

1እግዚአብሔር (ያህዌ) ሙሴንና አሮንን በግብፅ እንዲህ አላቸው፤ 2“ይህ ወር ለእናንተ የወር መጀመሪያ፣ የዓመቱም መጀመሪያ ይሁንላችሁ። 3ለመላው የእስራኤል ሕዝብ ይህን ንገሩ፤ ይህ ወር በገባ በዐሥረኛው ቀን እያንዳንዱ ሰው አንዳንድ ጠቦት ለቤተ ሰቡ፣ አንዳንድ ጠቦት ለአባቱ ቤት ያዘጋጅ። 4ማንኛውም ቤተ ሰብ ለአንድ ሙሉ ጠቦት ቍጥሩ አነስተኛ ከሆነ፣ በጎረቤት ያሉትን ሰዎች ቍጥር እስከ ቅርብ ከሆነው ጋር መካፈል ይኖርበታል፤ እያንዳንዱ ሰው በሚበላው መጠንም ምን ያህል ጠቦት እንደሚያስፈልግ መወሰን ይኖርባችኋል። 5የምትመርጡት ጠቦት በግ ወይም ፍየል ሊሆን ይችላል፤ ነገር ግን ምንም ነውር የሌለበትና አንድ ዓመት የሞላው ተባዕት መሆን አለበት። 6ወሩ በገባ እስከ ዐሥራ አራተኛው ቀን ድረስ ጠብቋቸው። በዚያ ምሽት ጀምበር ስትጠልቅ የእስራኤል ሕዝብ ሁሉ ይረዷቸው። 7ከዚያም ከደሙ ወስደው የጠቦቶቹ ሥጋ የሚበላበትን የእያንዳንዱን ቤት ደጃፍ መቃንና ጕበን ይቀቡ። 8ሥጋውንም በዚያችው ሌሊት በእሳት ላይ ጠብሰው ከመራራ ቅጠልና ካልቦካ ቂጣ ጋር ይብሉት። 9ጥሬውን ሥጋ ወይም ቅቅሉን አትብሉ፤ ነገር ግን ጭንቅላቱን፣ እግሮቹንና ሆድ ዕቃውን በእሳት ላይ ጠብሳችሁ ብሉት። 10ከሥጋው ተርፎ አይደር፤ ያደረ ቢኖር ግን በእሳት ይቃጠል። 11ስትበሉም ልብሳችሁን ለብሳችሁ፣ በዐጭር ታጥቃችሁ፣ ጫማችሁን አድርጋችሁ በትራችሁን ይዛችሁ በጥድፊያ ብሉት፤ የእግዚአብሔር (ያህዌ) ፋሲካ ነው።

12“እኔም በዚያች ሌሊት በግብፅ ምድር ላይ ዐልፋለሁ፤ ከሰውም ከእንስሳም የተወለደውን የበኵር ልጅ ሁሉ እገድላለሁ፤ የግብፅን አማልክት ሁሉ እፈርድባቸዋለሁ፤ እኔ እግዚአብሔር (ያህዌ) ነኝ። 13ደሙም ያላችሁበትን ቤት ለይቶ የሚያሳይ ምልክት ይሆንላችኋል፤ እኔ ደሙን በማይበት ጊዜ እናንተን ዐልፋለሁ፤ ግብፅን ስቀጣ መቅሠፍቱ አይደርስባችሁም።

14“ይህን ቀን መታሰቢያ ታደርጉታላችሁ፤ በሚቀጥሉት ትውልዶች ሁሉ ቋሚ ሥርዐት ሆኖ የእግዚአብሔር (ያህዌ) በዓል አድርጋችሁ ታከብሩታላችሁ። 15ለሰባት ቀናት እርሾ የሌለበትን ቂጣ ብሉ፤ በመጀመሪያው ቀን እርሾን ሁሉ ከቤታችሁ አስወግዱ፤ በእነዚህ ሰባት ቀናት እርሾ ያለበትን ቂጣ የበላ ማንኛውም ሰው ከእስራኤል ይወገድ። 16በመጀመሪያውና በሰባተኛው ቀን የተቀደሰ ጉባኤ አድርጉ። በእነዚህ ቀናት ምንም ዐይነት ሥራ አትሥሩ፤ የምትሠሩት ሥራ ቢኖር ለእያንዳንዱ ምግብ ማዘጋጀት ብቻ ይሆናል።

17“የቂጣን በዓል አክብሩ፤ ሰራዊታችሁን ከግብፅ ምድር ያወጣሁት በዚች ዕለት ነውና። ይህን ዕለት ለሚቀጥለው ትውልድ ቋሚ ሥርዐት በማድረግ አክብሩት። 18ከመጀመሪያው ወር ከዐሥራ አራተኛው ቀን ምሽት እስከ ሃያ አንደኛው ቀን ምሽት ድረስ እርሾ የሌለበት ያልቦካ ቂጣ ትበላላችሁ። 19ለሰባት ቀን እርሾ በቤታችሁ አይኑር፤ መጻተኛም ሆነ የአገር ተወላጅ እርሾ ያለበትን ቂጣ የበላ ከእስራኤል ማኅበር ይወገድ። 20እርሾ ያለበትን ምንም ነገር አትብሉ፤ በምትኖሩበት ስፍራ ሁሉ ያልቦካ ቂጣ ነው መብላት ያለባችሁ።”

21ከዚያም ሙሴ የእስራኤልን ሕዝብ አለቆች በሙሉ አስጠርቶ እንዲህ አላቸው፤ “ቶሎ ሄዳችሁ ለየቤተ ሰቦቻችሁ የሚሆን ጠቦት መርጣችሁ የፋሲካን በግ ዕረዱ። 22ከዚያም ጭብጥ የሂሶጵ ቅጠል በመውሰድ፣ በሳሕን ውስጥ ካለው ደም ነክራችሁ የየቤቶቻችሁን ጕበንና ግራ ቀኝ መቃኑን ቀቡ። ከእናንተ አንድም ሰው እስኪነጋ ድረስ ከቤቱ አይውጣ። 23እግዚአብሔር (ያህዌ) ግብፃውያንን ለመቅሠፍ በምድሪቱ ላይ በሚያልፍበት ጊዜ በጕበኑና በመቃኑ ላይ ያለውን ደም ሲያይ ያንን ደጃፍ ዐልፎ ይሄዳል፤ ቀሣፊውም ወደ ቤታችሁ ገብቶ እንዳይገድላችሁ ይከለክለዋል።

24“እናንተም ሆነ ልጆቻችሁ ይህን መመሪያ ቋሚ ሥርዐት አድርጋችሁ ትታዘዛላችሁ። 25እግዚአብሔር (ያህዌ) እሰጣችኋለሁ ብሎ በገባው ቃል መሠረት ወደ ምድሪቱ ስትገቡ ይህን ሥርዐት ጠብቁ። 26ልጆቻችሁ ስለ ሥርዐቱ ምንነት ሲጠይቋችሁ፣ 27‘ግብፃውያንን በቀሠፈ ጊዜ፣ በግብፅ ምድር የእስራኤላውያንን ቤት ዐልፎ በመሄድ ቤታችንን ላተረፈ፣ ለእግዚአብሔር (ያህዌ) የፋሲካ መሥዋዕት ነው’ ብላችሁ ንገሯቸው።” ከዚያም ሕዝቡ አጐነበሱ፤ ሰገዱም። 28እስራኤላውያንም እግዚአብሔር (ያህዌ) ሙሴንና አሮንን እንዳዘዛቸው አደረጉ።

29እኩለ ሌሊት ላይ እግዚአብሔር (ያህዌ) በግብፅ ምድር በዙፋን ላይ ከተቀመጠው ከፈርዖን የበኵር ልጅ ጀምሮ፣ በጨለማ እስር ቤት ውስጥ እስካለው እስረኛ የበኵር ልጅ ድረስ ያለውንና የእንስሳቱን በኵሮች ሁሉ ቀሠፋቸው። 30ፈርዖን፣ ሹማምቱና የግብፅ ሕዝብ በሙሉ ሌሊቱን ከመኝታቸው ተነሡ፤ እነሆ በመላዪቱ ግብፅ ልቅሶና ዋይታ ነበር፤ ሰው ያልሞተበት አንድም ቤት አልነበረምና።

ከግብፅ መውጣት

31ፈርዖን ሙሴንና አሮንን ሌሊቱን አስጠርቶ እንዲህ አላቸው፤ “ተነሡ፤ እናንተና እስራኤላውያን ከሕዝቤ መካከል ውጡ፤ ሂዱ፤ በጠየቃችሁት መሠረት እግዚአብሔርን (ያህዌ) አምልኩ፤ 32እንዳላችሁት የበግና የፍየል መንጋችሁን፣ የቀንድና የጋማ ከብቶቻችሁን ይዛችሁ ሂዱ፤ እኔንም ባርኩኝ።”

33ግብፃውያን አገራቸውን በአስቸኳይ ለቅቀው እንዲወጡላቸው እስራኤላውያንን አጣደፏቸው። “አለዚያማ ሁላችንም ማለቃችን ነው” አሉ። 34ስለዚህ ሕዝቡ ያልቦካውን ሊጥ በየቡሖ ዕቃው አድርገው በጨርቅ ጠቅልለው በትከሻቸው ተሸከሙ። 35እስራኤላውያን ሙሴ እንዳዘዛቸው የብርና የወርቅ ዕቃዎች፣ እንደዚሁም ልብስ እንዲሰጧቸው ግብፃውያኑን ጠየቋቸው። 36እግዚአብሔር (ያህዌ) በግብፃውያን ፊት ለእስራኤላውያን ሞገስ ስለሰጣቸው፣ የጠየቋቸውን ሁሉ ሰጧቸው፤ ስለዚህ የግብፃውያንን ንብረት በዝብዘው ወሰዱ።

37እስራኤላውያን ከራምሴ ተነሥተው ወደ ሱኮት ሄዱ። ከሴቶቹና ከልጆቹ ሌላ፣ ስድስት መቶ ሺሕ እግረኛ ወንዶች ነበሩ። 38ከእነርሱም ጋር ቍጥሩ የበዛ ሌላ ድብልቅ ሕዝብ አብሯቸው ወጣ፤ እንዲሁም አያሌ የበግ፣ የፍየል፣ የጋማና የቀንድ ከብት መንጋ ይዘው ወጡ። 39ከግብፅ ይዘው ከወጡት ሊጥ ያልቦካ ቂጣ ጋገሩ፤ ሊጡ አልቦካም ነበር፤ ምክንያቱም ከግብፅ በጥድፊያ እንዲወጡ ስለተደረጉ፣ ለራሳቸው ምግብ ለማዘጋጀት ጊዜ አልነበራቸውም።

40እንግዲህ እስራኤላውያን በግብፅ12፥40 ማሶሬቴክ ቅጅ እንዲሁ ሲል፣ ኦሪተ ሳምራውያንና የሰብዓ ሊቃናት ትርጕም በግብፅና በከነዓን ይላሉ። የኖሩበት ዘመን አራት መቶ ሠላሳ ዓመት ነበር።

41ልክ አራት መቶ ሠላሳው ዓመት በተፈጸመ ዕለት የእግዚአብሔር (ያህዌ) ሰራዊት ሁሉ ግብፅን ለቅቆ ወጣ።

42እግዚአብሔር (ያህዌ) በዚያች ሌሊት እነርሱን ከግብፅ ለማውጣት ዘብ የቆመበት በመሆኑ፣ ለሚቀጥሉት ትውልዶች ሁሉ እግዚአብሔርን (ያህዌ) ያከብሩ ዘንድ፣ በዚያች ሌሊት እስራኤላውያን ሁሉ ዘብ መቆም ይኖርባቸዋል።

የፋሲካ በዓል እንዴት መከበር እንዳለበት

43እግዚአብሔር (ያህዌ) ሙሴንና አሮንን እንዲህ አላቸው፤ “የፋሲካ በዓል አከባበር ሥርዐት እንዲህ ነው፤ ባዕድ የሆነ ሰው ከፋሲካው ምግብ አይብላ፤ 44በገንዘብ የገዛኸው ማንኛውም ባሪያ ከገረዝኸው በኋላ መብላት ይችላል፣ 45ነገር ግን ለጊዜው የተቀመጠ እንግዳና ቅጥር ሠራተኛ መብላት የለበትም።

46“ምግቡ በአንድ ቤት ውስጥ መበላት አለበት፤ ምንም ሥጋ ከቤት እንዳይወጣ፤ ምንም ዐጥንት እንዳትሰብሩ። 47የእስራኤል ሕዝብ ሁሉ በዓሉን ማክበር ይኖርበታል።

48“በመካከላችሁ የሚኖር መጻተኛ የእግዚአብሔርን (ያህዌ) የፋሲካ በዓል ማክበር ቢፈልግ፣ በቤተ ሰቡ ያሉት ወንዶች ሁሉ መገረዝ አለባቸው፤ ከዚያም እንደ ተወላጅ ተቈጥሮ የሥርዐቱ ተካፋይ ይሁን። ያልተገረዘ ወንድ ግን የፋሲካን ምግብ አይብላ። 49ይህም ሕግ በዜጋውም ሆነ በመካከላችሁ በሚኖሩት መጻተኞች ላይ እኩል ተፈጻሚነት ይኖረዋል።”

50እስራኤላውያን በሙሉ እግዚአብሔር (ያህዌ) ሙሴንና አሮንን ያዘዘውን ሁሉ ፈጸሙ። 51በዚያችው ዕለት እግዚአብሔር (ያህዌ) እስራኤላውያንን በየሰራዊታቸው አድርጎ ከግብፅ ምድር አወጣቸው።

Hindi Contemporary Version

निर्गमन 12:1-51

फ़सह पर्व की स्थापना

1याहवेह ने मोशेह तथा अहरोन से कहा, 2“तुम्हारे लिए यह महीना साल का पहला महीना होगा. 3सब इस्राएलियों को बता दो कि इस महीने की दस तारीख को अपने-अपने परिवार के लिए एक-एक मेमना चुनकर अलग कर ले. 4यदि एक परिवार एक पूरे जानवर को खाने के लिए बहुत छोटा है, तो उसे पड़ोस में दूसरे परिवार के साथ विभाग करना. प्रत्येक परिवार के आकार के अनुसार जानवर को विभाजित करें जितना वे खा सकते हैं. 5मेमना एक साल का नर हो, मेमने में कोई दोष न हो और यह भेड़ में से या बकरियों में से लिया जा सकता है. 6लेकिन इसी महीने के चौदहवें दिन तक मेमने का खास ध्यान रखना. फिर पूरे इस्राएली लोग मिलकर सूरज ढलने पर इसे बलि चढ़ाना. 7वे जिस घर में मेमने को खाएंगे, उस घर के दरवाजे के दोनों तरफ और दरवाजे के माथे पर मेमने का खून लगाएं. 8ज़रूरी है कि इस मेमने का मांस उसी रात को आग में भूनकर, बिना खमीर की रोटी और कड़वी सब्जी के साथ खाएं. 9यह मांस न तो कच्चा खाएं और न उबाल कर, इसको आग में भूनकर इसके सिर, पांव तथा अंतड़ियां खानी है. 10इसमें से दूसरे दिन के लिए कुछ भी नहीं बचाना और अगर बच जाता है तो उसे पूरा आग में जलाकर राख कर देना. 11इसको खाते समय कमर पर कमरबंध बांधे, पांवों में जूते पहनकर हाथ में अपनी लाठी लेकर जल्दी से खाना; यही याहवेह का फ़सह पर्व होगा.

12“क्योंकि उस रात मैं मिस्र देश में से होकर निकलूंगा और मिस्र देश की सभी पहली संतान—चाहे मनुष्य का हो या पशु का, सबको मार दूंगा; मैं ही याहवेह हूं और मैं मिस्र देश के सब देवताओं का भी न्याय करूंगा. 13जिस घर के दरवाजे पर मेमने के रक्त का निशान होगा उस घर को मैं छोड़ दूंगा किंतु मिस्र का नाश होगा.

14“याद रहे कि यह दिन तुम्हारे लिए एक यादगार दिन हो. यह दिन याहवेह के उत्सव के रूप में मनाया करना और—यह तुम्हारी पीढ़ी से पीढ़ियों के लिए हमेशा मनाए जाते रहने के लिए एक नियम बनाया जाए. 15पहले दिन सब अपने-अपने घर से खमीर निकालकर फेंक देना और सात दिन तक बिना खमीर की रोटी खाना. अगर कोई इन सात दिनों में खमीर वाली रोटी खाएगा तो उसे इस्राएलियों के बीच से काट दिया जाएगा. 16पहले और सातवें दिन पवित्र सभा होगी. इन दोनों दिनों में कोई भी काम न करना; केवल वे ही व्यक्ति काम करें जिन्हें खाना बनाना हो.

17“तुम्हारा अखमीरी रोटी का पर्व मनाना ज़रूरी है; क्योंकि यही वह दिन है, जिस दिन मैंने तुम्हें मिस्र देश से बाहर निकाला. यह एक यादगार दिन बनकर इन सब बातों को याद करते हुए यह उत्सव पीढ़ी से पीढ़ी तक मनाया जाए. 18पहले महीने की चौदहवी तारीख को शाम को बिना खमीर रोटी खाना होगा और यही खाना इक्कीसवीं तारीख की शाम तक खाना. 19इन सात दिनों में तुम्हारे घर में खमीर न रखना. और यदि कोई व्यक्ति खमीर वाला भोजन करता हुआ पाया गया, तो उसे इस्राएली प्रजा में से मिटा दिया जाएगा—चाहे वह विदेशी हो या स्वदेशी. 20किसी भी प्रकार का खमीर वाला भोजन करना मना है. अपने घरों में बिना खमीर की रोटी ही खाना.”

21तब मोशेह ने इस्राएलियों के सब प्रधानों को बुलाया और उनसे कहा, “जाकर अपने-अपने परिवारों के अनुसार एक-एक मेमना अलग कर लो, और फ़सह के मेमने की बलि करना. 22जूफ़ा12:22 जूफ़ा लगभग 3 फीट ऊंचा होनेवाला एक खास पौधा. इसका उपयोग कूंचा की तरह हो सके नामक झाड़ी का गुच्छा लेकर उसे मेमने के रक्त में डुबोना, और दरवाजे के दोनों तरफ तथा ऊपर लगाना. तुममें से कोई भी सुबह तक इस दरवाजे से बाहर नहीं निकले, 23क्योंकि याहवेह उस समय मिस्रियों को मारते हुए निकल रहे होंगे. जिस घर के दरवाजे के दोनों तरफ और माथे पर मेमने का खून दिखेगा, उसे छोड़ते हुए आगे निकल जाएंगे और अंदर आकर किसी को नहीं मारेंगे.

24“हमेशा तुम तथा तुम्हारी संतान इसे एक यादगार दिन के रूप में मनाया करना. 25जब तुम उस देश में जाओगे, जिसे याहवेह तुम्हें देंगे, वहां भी तुम इन बातों को मानना. 26जब तुम्हारे बालक तुमसे यह पूछें, ‘क्या मतलब है इस पर्व का जो मनाया जाता है?’ 27तब तुम उन्हें उत्तर देना, ‘यह याहवेह के लिए फ़सह का बलिदान है, जिन्होंने मिस्रियों को मारते हुए हम इस्राएलियों को सुरक्षित रखा, अतः इसी कारण यह पर्व मनाया जाता है.’ ” फिर लोगों ने झुककर प्रणाम किया और परमेश्वर की आराधना की! 28इस्राएलियों ने वैसा ही किया; जैसा याहवेह ने मोशेह एवं अहरोन से कहा था.

29लगभग आधी रात को याहवेह ने मिस्र देश में सभी पहिलौंठों को मार दिया, फ़रोह से लेकर तथा जो बंदीगृह में थे और पशुओं के भी पहलौठे को मार दिया. 30रात में फ़रोह, उसके सेवक तथा सब मिस्रवासी जाग उठे क्योंकि पूरे मिस्र देश में रोने का शब्द सुनाई दे रहा था, कोई भी ऐसा परिवार न था, जहां किसी की मृत्यु न हुई हो.

निर्गमन—इस्राएलियों का प्रस्थान

31अतः फ़रोह ने रात में ही मोशेह तथा अहरोन को बुलवाया और उनसे कहा, “यहां से निकल जाओ और जैसा तुम चाहते हो, तुम इस्राएलियों समेत जाकर याहवेह की वंदना करो. 32अपने पशु एवं भेड़-बकरी भी अपने साथ ले जाओ, और मुझे आशीर्वाद देते जाना.”

33मिस्रवासी इस्राएलियों को जल्दी अपने बीच से भेज देना चाहते थे, क्योंकि उनको डर था कि कहीं उनकी भी मृत्यु न हो जाये. 34इससे पहले कि इस्राएलियों का गूंधा हुआ आटा खमीर हो जाये, उन्होंने उसे कटोरे में रखकर और कपड़ों में बांधकर अपने कंधों पर उठा लिया. 35इस्राएल वंश ने बिलकुल वही किया, जैसा उनसे मोशेह ने कहा था. उन्होंने मिस्र के लोगों से सोने-चांदी के गहने और वस्त्र मांग लिए थे. 36याहवेह ने इस्राएलियों को मिस्र के लोगों के मन में उनके प्रति ऐसी मनोवृत्ति दी कि मिस्रवासी इस्राएलियों की इच्छा पूरी करते गए. इस प्रकार इस्राएलियों ने पूरे मिस्रवासियों को लूट लिया.

37इस्राएली रामेसेस नामक स्थान से पैदल चलकर सुक्कोथ तक पहुंचे. इनमें स्त्रियों और बच्चों के अलावा छः लाख पुरुष थे. 38इन इस्राएलियों के साथ बहुत से मिश्रित वर्ग के लोग भी निकले और भेड़-बकरी, गाय-बैल और बहुत से पशु थे. 39उन्होंने गूंधे हुए आटे से, जो वे मिस्र देश से अपने साथ लाए थे, अपने लिए अखमीरी रोटियां बनाईं. क्योंकि वे मिस्र देश से बहुत जल्दी में निकाले गए थे, उनको वहां रुकने की और हिम्मत नहीं थी. वे तुरंत वहां से निकले और उन्हें अपने लिए खाना बनाने का भी समय नहीं मिला.

40मिस्र देश में इस्राएली चार सौ तीस वर्ष तक रहे. 41जिस दिन चार सौ तीस वर्ष पूरे हुए, उसी दिन याहवेह की सारी सेना मिस्र देश से निकल गई. 42जिस रात वे सब मिस्र से निकले वह रात उनके लिए विशेष रात कहलाई, यह याहवेह की महिमा की रात थी. जिसे, इस्राएल के सभी लोगों को तथा उनकी पूरी पीढ़ियों को, उस दिन को महत्व देना ज़रूरी था.

फ़सह का अध्यादेश

43याहवेह ने मोशेह एवं अहरोन को फ़सह का नियम समझाया:

“इस्राएलियों के अलावा कोई भी परदेशी इस भोजन को न खाए. 44लेकिन जिस व्यक्ति को दाम देकर दास के रूप में खरीदा हो और उसका ख़तना कर लिया हो, वह व्यक्ति इस भोजन को खा सकता है. 45कोई भी परदेशी और मज़दूर इसमें शामिल न किया जाए.

46“खाना एक ही घर में रहकर खाया जाए, और मांस का कोई भी टुकड़ा घर के बाहर न ले जाया जाए और मेमने की हड्डी भी न तोड़ी जाए. 47सभी इस्राएली इस उत्सव में शामिल हों.

48“यदि कोई परदेशी मेहमान इस फ़सह में शामिल होना चाहता है तो, पहले सारे पुरुषों का ख़तना करके याहवेह के उस पर्व में उसे साथ लिया जा सकता है; तब वह उस देश के ही लोग समान हो जाएगा; लेकिन कोई भी बिना ख़तना किए इसमें शामिल न हो. 49नियम स्वदेशी और विदेशी सबके लिए एक जैसा ही हो.”

50सभी इस्राएलियों ने जैसा मोशेह तथा अहरोन को याहवेह ने आदेश दिया वैसा ही किया. 51यह वही दिन था, जब याहवेह ने इस्राएलियों को मिस्र देश से बाहर निकाला था.