ዘሌዋውያን 13 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ዘሌዋውያን 13:1-59

ተላላፊ የቈዳ በሽታ

1እግዚአብሔር (ያህዌ) ሙሴንና አሮንን እንዲህ አላቸው፤ 2“ማንኛውም ሰው በሰውነቱ ቈዳ ላይ ዕብጠት ወይም ችፍታ ወይም ቋቍቻ ቢወጣበትና ይህም ወደ ተላላፊ የቈዳ በሽታ13፥2 በልማድ ለምጽ ይባላል፤ የዕብራይስጡ ቃል ከቈዳ ጋር ለተያያዘ በሽታ ሁሉ የሚገባ ነው። በዚህ ምዕራፍ ሌላም ስፍራ ይገኛል። የሚለወጥበት ከሆነ፣ ወደ ካህኑ አሮን ወይም ካህናት ከሆኑት ልጆቹ13፥2 ወይም ዘሮቹ ወደ አንዱ ያምጡት። 3ካህኑም በሰውየው ቈዳ ላይ ያለውን ቍስል ይመርምር፤ በቍስሉ በተበከለው አካባቢ ያለው ጠጕር ወደ ነጭነት ተለውጦ ቢያገኘውና ቦታው ጐድጕዶ13፥3 ወይም ከሌላው የቈዳ ክፍል ጠልቆ ቢገባ፤ በዚህ ምዕራፍ በሌላ ስፍራም ይገኛል። ወደ ውስጥ ቢገባ፣ ይህ ተላላፊ የቈዳ በሽታ ነው። ካህኑም መርምሮ ይህን ባወቀ ጊዜ፣ ሰውየው በአምልኮው ሥርዐት መሠረት ርኩስ መሆኑ ይገለጽ። 4በቈዳው ላይ ያለው ቋቁቻ ነጭ ሆኖ ቢታይ፣ ነገር ግን ከቈዳው በታች ዘልቆ ባይገባና በቦታው ላይ የሚገኘው ጠጕር ወደ ነጭነት ባይለወጥ፣ ካህኑ በሽተኛውን ሰባት ቀን ያግልለው። 5በሰባተኛውም ቀን ካህኑ በሽተኛውን ይመርምረው፤ ቍስሉ ለውጥ ካላመጣና በቈዳውም ላይ ካልተስፋፋ እንደ ገና ሰባት ቀን ያግልለው። 6በሰባተኛው ቀን ካህኑ እንደ ገና ይመርምረው፤ ቍስሉ ከከሰመና በቈዳው ላይ ካልተስፋፋ፣ ካህኑ ሰውየው ንጹሕ መሆኑን ያስታውቅ፤ ቍስሉ ችፍታ እንጂ ሌላ አይደለም። ሰውየው ልብሱን ይጠብ፤ ንጹሕም ይሆናል። 7ራሱን ለካህን አሳይቶ መንጻቱ ከታወቀ በኋላ፣ ችፍታው በቈዳው ላይ እየተስፋፋ ከሆነ፣ እንደ ገና ካህኑ ፊት ይቅረብ፤ 8ካህኑም ይመርምረው፤ ችፍታው በቈዳው ላይ ተስፋፍቶ ከተገኘ፣ ካህኑ ሰውየው ርኩስ መሆኑን ያስታውቅ፤ ተላላፊ የቈዳ በሽታ ነው።

9“ማንኛውም ሰው ተላላፊ የቈዳ በሽታ ከያዘው፣ ወደ ካህኑ ያምጡት፤ 10ካህኑም ይመርምረው፤ በሰውነቱ ላይ ጠጕሩን ወደ ነጭነት የለወጠ ነጭ ዕባጭ ካለና በዕብጠቱም ውስጥ ቀይ ሥጋ ቢታይ፣ 11ሥር የሰደደ የቈዳ በሽታ ነውና ሰውየው ርኩስ መሆኑን ካህኑ ያስታውቅ፤ ርኩስ መሆኑ ግልጽ ስለሆነም ሰውየውን አያግልለው።

12“ደዌው በአካላቱ ሁሉ ላይ በመውጣት በሽተኛውን ከራስ ጠጕር እስከ እግር ጥፍር ያለበሰው መሆኑን ካህኑ እስካየ ድረስ፣ 13ካህኑ ይመርምረው፤ ደዌው የሰውየውን ሰውነት ሙሉ በሙሉ ሸፍኖት ከተገኘ፣ ያ ሰው ንጹሕ መሆኑን ያስታውቅ፤ ሙሉ በሙሉ ነጭ ስለሆነ ንጹሕ ነው፤ 14ነገር ግን ቍስሉ አመርቅዞ ቀይ ሥጋ ቢታይበት ርኩስ ይሁን። 15ካህኑም የተገለጠውን ቀይ ሥጋ በሚያይበት ጊዜ ርኩስ መሆኑን ያስታውቅ፤ ቀይ ሥጋ ርኩስ ስለሆነ፣ ተላላፊ በሽታ ነው። 16ቀይ ሥጋ ተለውጦ ከነጣ ግን ወደ ካህኑ ይሂድ፤ 17ካህኑም ይመርምረው፤ ቍስሎች ወደ ነጭነት ተለውጠው ከተገኙ፣ የታመመው ሰው ንጹሕ መሆኑን ካህኑ ያስታውቅ፤ ንጹሕም ይሆናል።

18“አንድ ሰው በገላው ላይ ዕባጭ ወጥቶ ቢድን፣ 19ዕባጩ በነበረበት ቦታ ላይም ነጭ ዕብጠት ወይም ነጣ ያለ ቀይ ቋቍቻ ቢታይ፣ ካህኑ ዘንድ ይቅረብ። 20ካህኑም ይመርምረው፤ ከቈዳው በታች ዘልቆ የገባ ቢሆን በቦታውም ያለው ጠጕር ቢነጣ፣ ሰውየው ርኩስ መሆኑን ካህኑ ያስታውቅ። 21ነገር ግን ካህኑ በሚመረምርበት ጊዜ ነጭ ጠጕር በውስጡ ከሌለ፣ ዘልቆ ካልገባና የከሰመ ቢሆን፣ ካህኑ ሰባት ቀን ያግልለው። 22በቈዳው ላይ ተስፋፍቶ ካገኘውም፣ ርኩስ መሆኑን ካህኑ ያስታውቅ፤ የሚተላለፍ ነው። 23ቋቍቻው ግን ባለበት ከቈየና ወደ ሌላ ስፍራ ካልተስፋፋ፣ የዕባጩ ጠባሳ እንጂ ሌላ አይደለም፤ ካህኑም ንጹሕ መሆኑን ያስታውቅ።

24“አንድ ሰው እሳት ቈዳውን ቢያቃጥለውና በተቃጠለው ስፍራ ነጣ ያለ ቀይ ወይም ነጭ ቋቍቻ ቢታይበት፣ 25ካህኑ ይመርምረው፤ ቋቍቻው ባለበትም ቦታ ያለው ጠጕር ቢነጣና ከቈዳው በታች ዘልቆ ቢገባ፣ በቃጠሎው ሰበብ ከውስጥ የወጣ ተላላፊ በሽታ ነው፤ ሰውየው ርኩስ መሆኑን ካህኑ ያስታውቅ፤ ተላላፊ የቈዳ በሽታ ነው። 26ነገር ግን ካህኑ በሚመረምርበት ጊዜ ነጭ ጠጕር የሌለበት፣ ከቈዳውም በታች ዘልቆ ያልገባና የከሰመ ቢሆን፣ ካህኑ ሰውየውን ሰባት ቀን ያግልለው። 27በሰባተኛው ቀን ካህኑ ይመርምረው፤ በሽታውም በቈዳው ላይ ተስፋፍቶ ቢያገኘው፣ ሰውየው ርኩስ መሆኑን ካህኑ ያስታውቅ፤ ተላላፊ የቈዳ በሽታ ነው። 28ቋቍቻ ባለበት ከቈየና በቈዳው ላይ ካልተስፋፋ፣ ይልቁንም እየከሰመ ከሄደ፣ በቃጠሎው ሰበብ የተከሠተ ዕብጠት ነውና ካህኑ ንጹሕ መሆኑን ያስታውቅ፤ የቃጠሎው ጠባሳ እንጂ ሌላ አይደለም።

29“በወንድ ወይም በሴት ዐናት ወይም አገጭ ላይ ቍስል ቢወጣ፣ 30ካህኑ ቍስሉን ይመርምር፤ ከቈዳው በታች ዘልቆ ከገባ፣ በውስጡም ያለው ጠጕር ቢጫና ቀጭን ከሆነ ያ ሰው ርኩስ መሆኑን ካህኑ ያስታውቅ፤ የሚያሳክክ የራስ ወይም የአገጭ ተላላፊ በሽታ ነው። 31ካህኑ እንዲህ ዐይነቱን ቍስል በሚመረምርበት ጊዜ፣ ከቈዳው በታች ዘልቆ ካልገባና በውስጡም ጥቍር ጠጕር ከሌለ፣ ካህኑ ሰውየውን ሰባት ቀን ያግልለው። 32ካህኑም በሰባተኛው ቀን ቍስሉን ይመርምር፤ የሚያሳክከው ቦታ ያልሰፋ፣ ቢጫ ጠጕር የሌለውና ከቈዳው በታች ዘልቆ ያልገባ ከሆነ፣ 33ከቈሰለው ቦታ በስተቀር ጠጕሩን ይላጭ፤ ካህኑ ሰባት ተጨማሪ ቀን ሰውየውን ያግልል። 34ካህኑ በሰባተኛው ቀን የሚያሳክከውን የሰውየውን ቍስል ይመርምር፤ በቈዳው ላይ ካልሰፋና ከቈዳው በታች ዘልቆ ካልገባ ካህኑ ያ ሰው ንጹሕ መሆኑን ያስታውቅ፤ ልብሱን ዐጥቦ ንጹሕ ይሁን። 35ንጹሕ መሆኑ ከተገለጠ በኋላ ግን የሚያሳክከው ቍስል ተስፋፍቶ ቢገኝ፣ 36ካህኑ ይመርምረው፤ ቍስሉ በቈዳው ላይ ከሰፋ፣ ካህኑ የጠጕሩን ቢጫ መሆን አለመሆን ማየት አያሻውም፤ ሰውየው ርኩስ ነው። 37ነገር ግን ቍስሉ በካህኑ አመለካከት ለውጥ ያላሳየ ከሆነና በውስጡ ጥቍር ጠጕር ካበቀለ ቍስሉ ድኗል፤ ሰውየው ነጽቷል፤ ካህኑም ንጹሕ መሆኑን ያስታውቅ።

38“በወንድ ወይም በሴት ቈዳ ላይ ቋቍቻ ቢወጣ፣ 39ካህኑ ይመርምራቸው፤ ቋቍቻው ዳለቻ ከሆነ፣ በቈዳ ላይ የወጣ ጕዳት የማያስከትል ችፍታ ነው፤ ሰውየውም ንጹሕ ነው።

40“አንድ ሰው የራሱ ጠጕር ከዐናቱ ዐልቆ መላጣ ቢሆን ንጹሕ ነው። 41ጠጕሩ ከፊት ለፊት ተመልጦ ራሰ በራ ቢሆንም ንጹሕ ነው። 42ነገር ግን በመላጣው ወይም በበራው ላይ ነጣ ያለ ቀይ ቍስል ቢወጣበት፣ ያ ከመላጣው ወይም ከበራው የወጣ ተላላፊ በሽታ ነው። 43ካህኑ ይመርምረው፤ በመላጣው ወይም በበራው ላይ ያበጠው ተላላፊ የቈዳ በሽታ የሚመስል ነጣ ያለ ቍስል ከሆነ፣ 44ሰውየው ደዌ አለበት፤ ርኩስም ነው፤ በራሱ ላይ ካለው ቍስል የተነሣም ሰውየው ርኩስ መሆኑን ካህኑ ያስታውቅ።

45“እንዲህ ያለ ተላላፊ በሽታ ያለበት ሰው የተቀደደ ልብስ ይልበስ፤ ጠጕሩን ይግለጥ፤13፥45 ወይም ራሱንም አይሸፍን እስከ አፍንጫውም ድረስ ተሸፋፍኖ ‘ርኩስ ነኝ! ርኩስ ነኝ!’ እያለ ይጩኽ። 46ተላላፊ በሽታው እስካለበት ጊዜ ድረስ ርኩስ ነው፤ ብቻውን ይቀመጥ፤ ከሰፈር ውጪም ይኑር።

በልብስ ላይ የሚታይ ተላላፊ በሽታ

47“ከበግ ጠጕር ወይም ከበፍታ የተሠራ ማንኛውም ዐይነት ልብስ በተላላፊ በሽታ ቢበከል፣ 48በሸማኔ ዕቃ ወይም በእጅ የተሠራ ማንኛውም ዐይነት የበግ ጠጕር ወይም የበፍታ ልብስ ወይም ማንኛውም ቈዳ ወይም ከቈዳ የተሠራ ነገር ቢሆን፣ 49በልብስ ወይም በዐጐዛ፣ በሸማኔ ዕቃ በተሠራ ወይም በእጅ በተጠለፈ ወይም ከቈዳ በተሠራ ዕቃ ላይ አረንጓዴ ወይም ቀይ መሳይ ደዌ ቢከሠት፣ እየሰፋ የሚሄድ ተላላፊ በሽታ ስለሆነ ካህኑ ይየው። 50ካህኑ ደዌውን ይመርምር፤ በደዌ የተበከለውንም ዕቃ ሰባት ቀን ያግልል። 51በሰባተኛውም ቀን ይመርምረው፤ ደዌው በልብሱ፣ በሸማኔ ዕቃ በተሠራው ወይም በእጅ በተጠለፈው ጨርቅ ወይም ለማናቸውም አገልግሎት በሚውል ዐጐዛ ላይ ተስፋፍቶ ቢገኝ፣ ክፉ ደዌ ነው፤ ዕቃውም ርኩስ ነው። 52ልብሱን ወይም በሸማኔ ዕቃ የተሠራውን ወይም በእጅ የተጠለፈውን የበግ ጠጕር ወይም በፍታ ወይም ደዌው ያለበትን ማንኛውንም ከቈዳ የተሠራ ዕቃ ያቃጥል፤ ደዌው ክፉ ነውና፤ ዕቃው ይቃጠል።

53“ነገር ግን ካህኑ በሚመረምርበት ጊዜ ደዌው በልብሱ ወይም በሸማኔ ዕቃ በተሠራው ወይም በእጅ በተጠለፈው ጨርቅ ላይ፣ ወይም ከቈዳ በተሠራው ዕቃ ላይ ተስፋፍቶ ካልተገኘ፣ 54ካህኑ ደዌው ያለበት ነገር እንዲታጠብ ይዘዝ፤ ዕቃውንም ሰባት ቀን ደግሞ ያግልል። 55ደዌው ያለበት ዕቃ ከታጠበ በኋላ ካህኑ ይመርምረው፤ ደዌው ባይስፋፋም እንኳ መልኩን ካልለወጠ፣ ርኩስ ነው፤ ደዌው የወጣው በውስጥም ሆነ በውጭ ዕቃው በእሳት ይቃጠል። 56ዕቃው ከታጠበ በኋላ ካህኑ በሚመረምርበት ጊዜ ደዌው ከስሞ ቢገኝ፣ በደዌ የተበከለውን ቦታ ከልብሱ ወይም ከቈዳው ወይም በሸማኔ ዕቃ ከተሠራው ወይም በእጅ ከተጠለፈው ጨርቅ ቀዶ ያውጣ። 57ነገር ግን ደዌው በልብሱ ወይም በሸማኔ ዕቃ በተሠራው ወይም በእጅ በተጠለፈው ጨርቅ ላይ ወይም ከቈዳ በተሠራው ዕቃ ላይ ቢታይ፣ መስፋፋቱ ስለሆነ ደዌው ያለበት ማንኛውም ነገር በእሳት ይቃጠል። 58ታጥቦ ከደዌ የጠራ ልብስ ወይም በሸማኔ ዕቃ የተሠራ ወይም በእጅ የተጠለፈ ጨርቅ ወይም ከቈዳ የተሠራ ማንኛውም ዕቃ እንደ ገና ይታጠብ፤ ንጹሕም ይሆናል።”

59ከበግ ጠጕር ወይም ከበፍታ የተሠራ ልብስ ወይም በሸማኔ ዕቃ የተሠራ ወይም በእጅ የተጠለፈ ጨርቅ ወይም ከቈዳ የተሠራ ማንኛውም ዕቃ በደዌ ቢበከል፣ ንጹሕ ወይም ርኩስ መሆኑን ለማወቅ ሕጉ ይህ ነው።

Hindi Contemporary Version

लेवी 13:1-59

त्वचा के रोगों के बारे में नियम

1याहवेह ने मोशेह और अहरोन को यह आदेश दिया, 2“यदि किसी व्यक्ति की त्वचा पर सूजन, चकत्ते अथवा कोई चमकीला धब्बा हो, और यदि यह उसकी त्वचा पर कोढ़ का संक्रमण बन जाए, तब उस व्यक्ति को पुरोहित अहरोन अथवा उनके किसी पुरोहित पुत्र के सामने लाया जाए. 3पुरोहित उस व्यक्ति की त्वचा पर के धब्बे का निरीक्षण करेगा और यदि उस संक्रमित स्थान के रोएं सफेद हो गए हों, और संक्रमण त्वचा से गहरा ज्ञात होता हो, तो यह निश्चित ही कोढ़ का संक्रमण है. फिर जब पुरोहित उस व्यक्ति का निरीक्षण पूरा कर ले, तब उसे अशुद्ध घोषित कर दे. 4यदि त्वचा पर का धब्बा सफेद तो है, किंतु संक्रमण त्वचा से गहरा मालूम नहीं होता है, और इस स्थान के रोएं भी सफेद नहीं हुए हैं, तो पुरोहित उस संक्रमित व्यक्ति को सात दिन के लिए अलग रखे. 5सातवें दिन पुरोहित उस व्यक्ति का निरीक्षण करे और यदि उसे प्रतीत हो कि संक्रमण तो ज्यों का त्यों है, किंतु वह त्वचा में फैला नहीं है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को और सात दिन के लिए अलग रखे. 6सातवें दिन पुरोहित दोबारा उस व्यक्ति का निरीक्षण करे; यदि संक्रमित स्थान का सुधार होने के कारण उसका रंग हल्का हो गया है, और वह त्वचा पर नहीं फैला है; तो पुरोहित उसे शुद्ध घोषित कर दे; यह एक चकत्ते मात्र है. वह व्यक्ति अपने वस्त्र धो ले और शुद्ध हो जाए. 7किंतु यदि पुरोहित के सामने शुद्ध प्रमाणित होने के बाद वह धब्बा त्वचा पर फैलने लगे, तो वह व्यक्ति स्वयं को दोबारा पुरोहित के सामने प्रस्तुत करे. 8पुरोहित इसका निरीक्षण करे और यदि उसे यह जान पड़े कि त्वचा पर धब्बा फैल रहा है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह कोढ़ का रोग है.

9“यदि कोढ़ का संक्रमण किसी पुरुष पर है, तो उसे पुरोहित के सामने लाया जाए. 10पुरोहित उसका निरीक्षण करे. यदि उसकी त्वचा में सफेद रंग की सूजन है और उसके उस स्थान के रोएं भी सफेद हो गए हैं तथा सूजन में खुला घाव है, 11तो यह उस व्यक्ति की त्वचा पर पुराना कोढ़ का रोग है, पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे, किंतु वह उस व्यक्ति को इसलिये दूसरे लोगों से अलग न करे, कि वह अशुद्ध है.

12“यदि कोढ़ त्वचा में और अधिक फूट जाए और कोढ़ उस व्यक्ति के सिर से लेकर पांव तक पूरी देह में फैल जाए, जहां तक पुरोहित इसको देख सके, 13जब पुरोहित इसको बारीकी से देख ले कि कोढ़ उस व्यक्ति के पूरे शरीर में फैल गया है, तो वह उस व्यक्ति को इस रोग से शुद्ध घोषित कर दे; क्योंकि यह पूरी तरह से सफेद रंग का हो गया है, इसलिये वह व्यक्ति शुद्ध होगा. 14किंतु यदि उसे त्वचा पर घाव दिखाई दें, तो वह व्यक्ति अशुद्ध होगा. 15पुरोहित त्वचा के उस घाव को ध्यान से देखे और उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; बिना चमड़ी का मांस अशुद्ध है और यह कोढ़ का रोग है. 16किंतु यदि त्वचा का घाव दोबारा सफेद रंग का हो जाए, तो वह व्यक्ति पुरोहित के सामने आए, 17पुरोहित इसको ध्यान से देखे और यदि वह धब्बा सफेद रंग का हो गया है, तो पुरोहित उस संक्रमित व्यक्ति को शुद्ध घोषित कर दे; वह शुद्ध है.

18“जब किसी व्यक्ति की त्वचा पर फोड़ा हो गया है और वह फोड़ा स्वस्थ हो जाए, 19तथा उस फोड़े के स्थान पर सफेद अथवा लालिमा युक्त सफेद रंग की सूजन हो जाए, तब पुरोहित को इसको दिखवाया जाए; 20पुरोहित इसको ध्यान से देखे; यदि उसे यह लगे कि यह त्वचा में फैल रहा है और इसके रोएं भी सफेद हो गए हैं, तब पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह कोढ़ का संक्रमण है, जिसकी शुरुआत फोड़े से हुई है. 21किंतु यदि पुरोहित इसको ध्यान से देखे और पाए, कि त्वचा के रोएं सफेद नहीं हुए हैं, और यह त्वचा में फैल नहीं रहा है तथा त्वचा का रंग हल्का हो रहा है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को सात दिन अलग रखे; 22यदि यह त्वचा में और अधिक फैल रहा है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह एक संक्रमण है. 23किंतु यदि सफेद रंग का धब्बा त्वचा पर तो है, परंतु यह त्वचा में फैल नहीं रहा है, तो यह फोड़े का चिन्ह मात्र है, तब पुरोहित उस व्यक्ति को शुद्ध घोषित कर दे.

24“यदि किसी की त्वचा अग्नि से जल गई है, और त्वचा पर घाव से एक सफेद अथवा लालिमा युक्त सफेद धब्बा हो गया है, 25तो पुरोहित इसको ध्यान से देखे और यदि इस धब्बे पर के रोएं सफेद हो गए हैं और संक्रमण त्वचा से गहरा मालूम होता हो, तो यह कोढ़ का रोग है. जिसकी शुरुआत जलने के घाव से हुई है, पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह कोढ़ का संक्रमण है. 26किंतु यदि पुरोहित इसको जांचता है और यह पाता है कि उस धब्बे पर के रोएं सफेद नहीं हुए हैं और संक्रमण त्वचा से गहरा नहीं है, परंतु इसका रंग हल्का पड़ गया है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को सात दिन अलग रखे. 27सातवें दिन पुरोहित उसको दोबारा जांचे. यदि यह त्वचा में फैल रहा है, तो पुरोहित उस व्यक्ति को अशुद्ध घोषित कर दे; यह कोढ़ का संक्रमण है. 28किंतु यदि धब्बा तो त्वचा पर ज्यों का त्यों है, परंतु वह त्वचा में फैला नहीं हैं परंतु उसका रंग हल्का पड़ गया है, तो यह जलने के घाव से उत्पन्‍न सूजन है; पुरोहित उस व्यक्ति को तब शुद्ध घोषित कर दे, क्योंकि यह तो जलने से उत्पन्‍न हुआ चिन्ह मात्र है.

29“यदि किसी पुरुष अथवा महिला के सिर या दाढ़ी पर रोग का संक्रमण हो, 30तो पुरोहित इसका निरीक्षण करे और यदि संक्रमण त्वचा में गहरा मालूम हो और उस स्थान के रोम महीन भूरे रंग के हो गए हों, तो पुरोहित उसे अशुद्ध घोषित कर दे, यह सेहुंआ है, सिर एवं दाढ़ी का कोढ़. 31किंतु यदि पुरोहित इस घाव के संक्रमण की जांच करे और यह पाए कि संक्रमण त्वचा से गहरा नहीं है और न ही उस स्थान में काले रोएं हैं, तो पुरोहित उस व्यक्ति को घाव के संक्रमण के कारण सात दिन अलग रखे. 32सातवें दिन पुरोहित संक्रमण की जांच करे और यदि सेहुंआ त्वचा में नहीं फैला है और उस स्थान पर भूरे रोएं भी नहीं हैं, तथा सेहुंए के कारण संक्रमण त्वचा से गहरा नहीं है, 33तो वह व्यक्ति अपना सिर मुंड़ा ले किंतु वह अपने सेहुंए पर उस्तरा न चलाए. तब पुरोहित उस व्यक्ति को सात दिन और अलग रखे. 34फिर सातवें दिन पुरोहित उस सेहुंए की जांच करे; यदि सेहुंआ त्वचा में और अधिक नहीं फैल रहा है और यह त्वचा में गहरा मालूम नहीं होता, तो पुरोहित उस व्यक्ति को शुद्ध घोषित कर दे; वह व्यक्ति अपने वस्त्रों को धोकर शुद्ध हो जाए. 35किंतु यदि उसके शुद्ध होने के बाद वह सेहुंआ उसकी त्वचा में और अधिक फैलता जाता है, 36तो पुरोहित उसकी जांच करे और यदि यह पाए कि यह त्वचा में फैल गया है, तो वह रोम के भूरे होने की प्रतीक्षा न करे; वह व्यक्ति अशुद्ध है. 37किंतु यदि उसकी जांच के अनुसार सेहुंए में कोई बदलाव नहीं है, किंतु उसमें काले रोएं उग आए हैं, तो वह सेहुंआ स्वस्थ हो गया है, वह व्यक्ति शुद्ध है और पुरोहित उसे शुद्ध घोषित कर दे.

38“जब किसी पुरुष अथवा स्त्री की त्वचा पर सफेद चमकदार धब्बे हों, 39तो पुरोहित इसकी जांच करे और यदि त्वचा पर यह चमकदार धब्बे हल्के सफेद रंग के हों, तो यह दाद हैं, जो त्वचा में फूट निकले हैं; वह व्यक्ति शुद्ध है.

40“यदि किसी पुरुष के बाल झड़ गए हों, तो वह गंजापन है, किंतु वह शुद्ध है. 41किंतु यदि उसके सिर के सामने के और सिर के दोनों ओर के बाल झड़ गए हैं और उसका माथा चंदला हो गया है, तो वह शुद्ध है. 42परंतु यदि उसका सिर अथवा माथा चंदला हो गया है और उस पर लालिमा युक्त सफेद रंग का संक्रमण हो गया है, तो यह कोढ़ है, जो उसके चंदूले माथे और सिर से फूट निकला है. 43तब पुरोहित इसकी जांच करे और यदि सिर अथवा बाल के संक्रमण की सूजन त्वचा पर कोढ़ की लालिमा युक्त सफेद रंग की सूजन के समान है, 44तो वह व्यक्ति कोढ़ का रोगी है, तब अशुद्ध है. निश्चित ही पुरोहित उसे अशुद्ध घोषित कर दे; क्योंकि संक्रमण उसके सिर पर हुआ है.

45“वह व्यक्ति, जो कोढ़ के रोग से संक्रमित हुआ है, उसके वस्त्र फाड़ दिए जाएं, उसका सिर उघाड़ दिया जाए और वह अपने मुख का निचला भाग ढक कर ऊंचे स्वर में कहे, ‘अशुद्ध! अशुद्ध!’ 46अपने संक्रमण की पूरी अवधि में वह अशुद्धि की स्थिति में ही होगा; वह अशुद्ध है तथा अकेले में रहेगा; उसका निवास छावनी के बाहर ही होगा.

वस्त्र में कोढ़ की फफूंदी

47“यदि किसी वस्त्र में कोढ़ की फफूंदी पाई जाती है, चाहे वह वस्त्र ऊनी हो अथवा मलमल का, 48मलमल अथवा ऊन के ताने-बाने का हो, चमड़ा हो या चमड़े से बनी कोई वस्तु हो, 49यदि यह संक्रमण वस्त्र अथवा चमड़े के वस्त्र में अथवा ताने में अथवा बाने में हो, या चमड़े से बनी किसी वस्तु में हरे रंग की अथवा लालिमा हो, तो यह कोढ़ है और इसे पुरोहित को दिखाया जाना आवश्यक है. 50तब पुरोहित उस चिन्ह की जांच करे और इस संक्रमित वस्तु को सात दिन अलग रखे. 51सातवें दिन पुरोहित इस चिन्ह की दोबारा जांच करे और यदि संक्रमण वस्त्र में, ताने में अथवा बाने में अथवा चमड़े में फैल गया हो और चाहे वह चमड़ा किसी भी काम के लिए इस्तेमाल किया जाता हो, तो यह असाध्य कुष्ठ रोग का लक्षण है. यह अशुद्ध है. 52जिस वस्त्र, ताने-बाने, ऊन, मलमल अथवा चमड़े की किसी वस्तु में यह संक्रमण पाया जाए, तो आवश्यक है कि उसको जला दिया जाए, क्योंकि यह असाध्य कोढ़ है; आवश्यक है कि इसको अग्नि में जला दिया जाए.

53“किंतु यदि पुरोहित इसकी जांच करे और यह पाए कि संक्रमण वस्त्र में, ताने-बाने में अथवा चमड़े की वस्तु में नहीं फैला है, 54तो पुरोहित उस संक्रमित वस्त्र को धोने का आदेश दे तथा और सात दिन के लिए उसे अलग कर दे. 55जब जिस वस्त्र में संक्रमण पाया गया है और उसको धो लिया गया है, तो पुरोहित इसकी दोबारा जांच करे और यदि इस वस्तु में मौजूद धब्बे में कोई बदलाव नहीं हुआ है और यह फैला भी नहीं है, तो यह अशुद्ध ही माना जाएगा, और आवश्यक है कि तुम अग्नि में इसको जला दे, चाहे यह फफूंद पीछे के भाग में हो अथवा आगे. 56यदि पुरोहित इसकी जांच करे और उसे यह मालूम हो कि धोने के बाद इसकी चमक कम नहीं हुई है, तब पुरोहित उसे उस वस्त्र या चमड़े में से फाड़कर निकाल दे; 57किंतु यदि यह चिन्ह वस्त्र, ताने अथवा बाने और चमड़े पर दोबारा उभर आए, तो यह उसमें फैल रहा है. आवश्यक है कि उस संक्रमित वस्तु को आग में जला दिया जाए. 58जब तुमने उस संक्रमित वस्त्र, ताने अथवा बाने अथवा चमड़े की वस्तु को धो दिया है, तो इसको दूसरी बार धो दिया जाए और यह शुद्ध माना जाएगा.”

59यह किसी कोढ़ से संक्रमित ऊन या मलमल के वस्त्र, ताने अथवा बाने अथवा चमड़े की किसी वस्तु को शुद्ध अथवा अशुद्ध घोषित करने की विधि है.