ኤርምያስ 18 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ኤርምያስ 18:1-23

በሸክላ ሠሪው ቤት

1ከእግዚአብሔር ወደ ኤርምያስ እንዲህ የሚል ቃል መጣ፦ 2“ተነሥተህ ወደ ሸክላ ሠሪው ቤት ውረድ፤ በዚያ መልእክቴን እሰጥሃለሁ።” 3እኔም ወደ ሸክላ ሠሪው ቤት ወረድሁ፤ ሸክላውንም በመንኰራኵር ላይ ይሠራ ነበር። 4ከጭቃ ይሠራው የነበረውም ሸክላ በእጁ ላይ ተበላሸ፤ ሸክላ ሠሪውም በሚፈልገው ሌላ ቅርጽ መልሶ አበጀው።

5የእግዚአብሔርም ቃል ወደ እኔ እንዲህ ሲል መጣ፤ 6“የእስራኤል ቤት ሆይ፤ ሸክላ ሠሪው እንደሚሠራው፣ እኔ በእናንተ ላይ መሥራት አይቻለኝምን?” ይላል እግዚአብሔር፤ “የእስራኤል ቤት ሆይ፤ ጭቃው በሸክላ ሠሪው እጅ እንዳለ፣ እናንተም እንዲሁ በእጄ ውስጥ ናችሁ። 7አንድ ሕዝብ ወይም መንግሥት እንዲነቀል፣ እንዲፈርስና እንዲጠፋ በተናገርሁ ጊዜ፣ 8ያስጠነቀቅሁት ሕዝብ ከክፋቱ ቢመለስ፣ እኔ ላደርስበት ያሰብሁትን ክፉ ነገር እተዋለሁ። 9በሌላም ጊዜ አንድን ሕዝብ ወይም መንግሥት አንጸውና እተክለው ዘንድ ተናግሬ፣ 10በፊቴ ክፉ ነገር ቢያደርግና ባይታዘዘኝ፣ አደርግለታለሁ ብዬ ያሰብሁትን መልካም ነገር አስቀርበታለሁ።

11“አሁንም እንግዲህ ለይሁዳ ሕዝብና በኢየሩሳሌም ለሚኖሩ እንዲህ በላቸው፤ ‘እግዚአብሔር እንዲህ ይላል፤ “እነሆ፤ ጥፋትን እያዘጋጀሁላችሁ ነው፤ ክፋትንም እየጠነሰስሁላችሁ ነው። ስለዚህ ሁላችሁ ከክፉ መንገዳችሁ ተመለሱ፤ መንገዳችሁንና ተግባራችሁን አቅኑ።” ’ 12እነርሱ ግን፣ ‘በከንቱ አትድከም፤ ባቀድነው እንገፋበታለን፤ እያንዳንዳችንም የክፉ ልባችንን እልኸኝነት እንከተላለን’ ይላሉ።”

13ስለዚህ እግዚአብሔር እንዲህ ይላል፤

“እስቲ አሕዛብን፣

‘እንዲህ ዐይነት ነገር በመካከላችሁ ተሰምቶ ያውቃል?’ ብላችሁ ጠይቁ።

ድንግሊቱ እስራኤል፣

እጅግ ክፉ ነገር አድርጋለች።

14የሊባኖስ ተራራ ድንጋያማ ተረተር፣

በረዶ ተለይቶት ያውቃልን?

ከጋራው የሚወርደውስ ቀዝቃዛ ውሃ፤

መፍሰሱን ያቋርጣልን?18፥14 በዕብራይስጡ የዚህ ዐረፍተ ነገር ትርጕም በግልጽ አይታወቅም።

15ሕዝቤ ግን ረስቶኛል፤

ለማይረቡ ነገሮች ዐጥኗል፣

በራሱ መንገድ፣

በቀደሞው ጐዳና ተሰናክሏል፤

በሻካራው መሄጃ፣

ባልቀናውም ጥርጊያ መንገድ ሄዷል።

16ምድራቸው ባድማ፣

ለዘላለም መሣለቂያ ይሆናል፤

በዚያ የሚያልፍ ሁሉ ይደነቃል፤

በመገረምም ራሱን ይነቀንቃል።

17ከምሥራቅ እንደሚወጣ ነፋስ፣

በጠላቶቻቸው ፊት እበትናቸዋለሁ፤

በመጥፊያቸው ቀን፣

ጀርባዬን እንጂ ፊቴን አላሳያቸውም።”

18እነርሱም፣ “ሕግ ከካህናት፣ ምክር ከጠቢባን፣ ቃልም ከነቢያት ስለማይታጣ ኑና በኤርምያስ ላይ እንማከር፤ ኑ፤ በአንደበታችን እናጥቃው፣ እርሱ የሚናገረውንም ሁሉ አንስማ” አሉ።

19እግዚአብሔር ሆይ፤ ስማኝ፤

ባላንጣዎቼ የሚሉትን አድምጥ።

20የመልካም ተግባር ወሮታው ክፉ ነውን?

እነርሱ ግን ጕድጓድ ቈፈሩልኝ፤

ቍጣህን ከእነርሱ እንድትመልስ፣

በፊትህ ቆሜ፣

ስለ እነርሱ እንደ ተናገርሁ ዐስብ።

21ስለዚህ ልጆቻቸውን ለራብ፣

ለሰይፍም ስለት አሳልፈህ ስጥ፤

ሚስቶቻቸው የወላድ መካን፣ መበለትም ይሁኑ፤

ወንዶቻቸው በሞት ይቀሠፉ፤

ጕልማሶቻቸው በጦር ሜዳ ለሰይፍ ይዳረጉ።

22ሊይዙኝ ጕድጓድ ስለ ቈፈሩ፣

ለእግሮቼም በስውር ወጥመድ ስለ ዘረጉ፣

በድንገት ወራሪ ስታመጣባቸው፣

ከቤታቸው ጩኸት ይሰማ።

23አንተ ግን እግዚአብሔር ሆይ፤

ሊገድሉኝ ያሤሩብኝን ሤራ ሁሉ ታውቃለህ፤

በደላቸውን ይቅር አትበል፤

ኀጢአታቸውንም ከፊትህ አትደምስስ፤

በፊትህ ወድቀው የተጣሉ ይሁኑ፤

በቍጣህም ጊዜ አትማራቸው።

Hindi Contemporary Version

येरेमियाह 18:1-23

कुम्हार के घर में

1वह संदेश जो याहवेह द्वारा येरेमियाह के लिए प्रगट किया गया: 2“कुम्हार के घर जाओ, वहीं मैं तुम पर अपनी बातें प्रकाशित करूंगा.” 3मैं कुम्हार के आवास पर गया, जहां वह अपने चक्र पर कुछ गढ़ रहा था. 4किंतु वह बर्तन, जिसे वह मिट्टी से बना रहा था, वह उसके हाथों में ही विकृत हो गया; इसलिये उसने उसी से जैसा उसे उपयुक्त लगा, एक अन्य बर्तन का निर्माण कर दिया.

5तब याहवेह ने अपना संदेश मुझे इस प्रकार प्रगट किया. 6“इस्राएल वंशजों, क्या तुम्हारे साथ मैं भी वही नहीं कर सकता, जो यह कुम्हार किया करता है?” यह याहवेह की वाणी है. “यह समझ लो इस्राएल वंशजों: मेरे हाथों में तुम्हारी स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसी कुम्हार के हाथों में उस मिट्टी की होती है. 7यह संभव है कि मैं एक क्षण किसी राष्ट्र अथवा किसी राज्य के अंत, पतन अथवा विध्वंस की वाणी करूं. 8किंतु वह राष्ट्र, जिसके संबंध में मैंने विध्वंस की वाणी की थी, यदि अपने कुकृत्यों से विमुख हो जाता है ओर मैं उसके विरुद्ध योजित विध्वंस का विचार ही त्याग दूं. 9अथवा दूसरे क्षण में किसी राष्ट्र, किसी राज्य के विषय में उसके निर्माण अथवा रोपण का विचार व्यक्त करूं, 10यदि वह राष्ट्र अथवा राज्य मेरे आदेश की अवज्ञा करते हुए मेरी दृष्टि में बुरा करता है, तब मैं उसके कल्याण के लिए की गई अपनी प्रतिज्ञा पर पुनर्विचार करूंगा.

11“इसलिये अब जाकर यहूदिया तथा येरूशलेम के निवासियों से जाकर यह कहना, ‘याहवेह का संदेश यह है: यह समझ लो! मैं तुम्हारे विरुद्ध घोर विपत्ति नियोजित कर रहा हूं और तुम्हारे विरुद्ध एक योजना बना रहा हूं. ओह! तुममें से हर एक अपनी बुराई का परित्याग कर मेरे निकट लौट आए, अपनी जीवनशैली एवं आचरण को परिशुद्ध कर ले.’ 12किंतु उनका प्रत्युत्तर होगा, ‘इससे कोई भी लाभ न होगा. क्योंकि हमने अपनी रणनीति पहले ही निर्धारित कर ली है; हममें से हर एक अपने बुरे हृदय की कठोरता के ही अनुरूप कदम उठाएगा.’ ”

13इसलिये याहवेह का आदेश यह है:

“अब राष्ट्रों के मध्य जाकर यह पूछताछ करो:

क्या कभी किसी ने भी इस प्रकार की घटना के विषय में सुना है?

कुंवारी कन्या इस्राएल ने

अत्यंत भयावह कार्य किया है.

14क्या लबानोन का हिम खुले

मैदान की चट्टान से विलीन हो जाता है?

अथवा अन्य देश से प्रवाहित शीतल जल

कभी छीना जा सका है?

15किंतु मेरी प्रजा है कि उसने मुझे भूलना पसंद कर दिया है;

वे निस्सार देवताओं के लिए धूप जलाते हैं,

तथा वे पूर्व मार्गों पर

चलते हुए लड़खड़ा गए हैं.

वे मुख्य मार्ग पर

न चलकर कदमडंडी पर चलने लगें.

16कि उनका देश निर्जन हो जाए

चिरस्थायी घृणा का विषय;

हर एक जो वहां से निकलेगा चकित हो जाएगा

और आश्चर्य में सिर हिलाएगा.

17मैं उन्हें शत्रु के समक्ष

पूर्वी वायु प्रवाह-सदृश बिखरा दूंगा;

मैं उनके संकट के समय उनके समक्ष अपनी पीठ कर दूंगा

न कि अपना मुखमंडल.”

18तब कुछ लोग विचार-विमर्श करने लगे, “येरेमियाह के विरुद्ध कोई युक्ति गढ़ी जाए; निश्चयतः पुरोहित से तो व्यवस्था-विधान दूर होगा नहीं और न बुद्धिमानों से परामर्श की क्षमता बंद होगी, उसी प्रकार भविष्यवक्ताओं से परमेश्वर का संदेश भी समाप्‍त नहीं किया जा सकेगा. चलो, हम उस पर वाकबाण चलाएं तथा उसके वचन को अनसुनी कर दें.”

19याहवेह, मेरी विनय पर ध्यान दीजिए;

तथा मेरे विरोधियों की बातों को सुन लीजिए!

20क्या संकट के द्वारा कल्याण का प्रतिफल दिया जा सकता है?

उन्होंने तो मेरे लिए गड्ढा खोद रखा है.

स्मरण कीजिए मैं आपके समक्ष कैसे ठहरा रहता था

और उनकी सहायता में ही मत दिया करता था,

कि उनके प्रति आपका क्रोध दूर किया जा सके.

21इसलिये अब उनकी संतान को अकाल को सौंप दीजिए;

तथा उन्हें तलवार की शक्ति के अधीन कर दीजिए.

उनकी पत्नियों को संतानहीन तथा विधवा हो जाने दीजिए;

उनके पतियों को मृत्यु का आहार हो जाने दीजिए,

उनके लड़के युद्ध में तलवार के ग्रसित हो जाएं.

22जब आप उन पर लुटेरों का आक्रमण होने दें,

तब उनके आवासों से चिल्लाहट सुनाई पड़े,

क्योंकि मुझे पकड़ने के लिए उन्होंने मेरे लिए गड्ढा खोद रखा है,

और उन्होंने मेरे मार्ग में फंदे बिछा रखे हैं.

23फिर भी, याहवेह, मेरे समक्ष

उनकी घातक युक्तियां आपको ज्ञात हैं.

उनकी पापिष्ठता को क्षमा न कीजिए

और न उनके पाप आपकी दृष्टि से ओझल हों.

आपके ही समक्ष वे नष्ट हो जाएं;

जब आप क्रुद्ध हों तब आप उनके लिए उपयुक्त कदम उठाएं.