ኢዮብ 27 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ኢዮብ 27:1-23

1ኢዮብም እንዲህ ሲል ንግግሩን ቀጠለ፤

2“ፍትሕ የነሣኝ ሕያው እግዚአብሔርን!

ነፍሴንም መራራ ያደረጋት፣ ሁሉን ቻይ አምላክን!

3በውስጤ የሕይወት እስትንፋስ፣

በአፍንጫዬም ውስጥ የእግዚአብሔር መንፈስ እስካለ ድረስ፣

4ከንፈሬ ኀጢአትን አትናገርም፤

አንደበቴም ሽንገላ አይወጣውም።

5እናንተን እንደ ቅኖች መቍጠር፣

የማላደርገው ነገር ነው፤ ጨዋነቴንም እስክሞት ድረስ አልጥልም።

6ጽድቄን አጥብቄ እይዛለሁ፤ አልለቀውምም፤

በዘመኔም ሁሉ ኅሊናዬ አይወቅሠኝም።

7“ጠላቴ እንደ በደለኛ፣

ባላንጣዬም እንደ ክፉ ይሁን።

8እግዚአብሔር ሲያስወግደው፣

ነፍሱንም ሲወስድበት ዐመፀኛ ምን ተስፋ አለው?

9በውኑ መከራ በገጠመው ጊዜ፣

እግዚአብሔር ጩኸቱን ይሰማልን?

10ሁሉን በሚችል አምላክ ደስ ይለዋልን?

ዘወትርስ እግዚአብሔርን ይጠራልን?

11“ስለ እግዚአብሔር ክንድ አስተምራችኋለሁ፤

የሁሉን ቻዩንም አምላክ ዕቅድ አልሸሽግም።

12ሁላችሁ ይህን አይታችኋል፤

ታዲያ፣ ይህ ከንቱ ንግግር ምንድን ነው?

13“እግዚአብሔር ለክፉው የመደበው ዕድል ፈንታ፣

ግፈኛም ሁሉን ከሚችል አምላክ የሚቀበለው ቅርስ ይህ ነው፦

14ልጆቹ የቱንም ያህል ቢበዙም ለሰይፍ ይዳረጋሉ፤

ዘሩም ጠግቦ አያድርም።

15የተረፉለትም በመቅሠፍት ዐልቀው ይቀበራሉ፤

መበለቶቻቸውም አያለቅሱላቸውም።

16ብርን እንደ ዐፈር ቢከምር፣

ልብስንም እንደ ሸክላ ጭቃ ቢያከማች፣

17እርሱ ያከማቸውን ጻድቃን ይለብሱታል፤

ብሩንም ንጹሓን ይከፋፈሉታል።

18የሚሠራው ቤት እንደ ሸረሪት ድር፣

እህል ጠባቂም እንደ ቀለሰው መጠለያ ነው።

19ሀብታም ሆኖ ይተኛል፤ ዘለቄታ ግን የለውም፤

ዐይኑን በገለጠ ጊዜ ሀብቱ ሁሉ በቦታው የለም።

20ድንጋጤ እንደ ጐርፍ ድንገት ያጥለቀልቀዋል፤

ዐውሎ ነፋስም በሌሊት ይዞት ይሄዳል።

21የምሥራቅ ነፋስ ይወስደዋል፤ እርሱም አይገኝም፤

ከስፍራውም ይጠርገዋል።

22ከነፋሱ ብርታት ለማምለጥ ይሮጣል፤

ነገር ግን እየተወረወረ ያለ ርኅራኄ ይደርስበታል፤

23እጁንም እያጨበጨበ ያሾፍበታል፤

በፉጨትም ከስፍራው ያሽቀነጥረዋል።”

Hindi Contemporary Version

अय्योब 27:1-23

अय्योब का अंतिम भाषण

1तब अपने वचन में अय्योब ने कहा:

2“जीवित परमेश्वर की शपथ, जिन्होंने मुझे मेरे अधिकारों से वंचित कर दिया है,

सर्वशक्तिमान ने मेरे प्राण को कड़वाहट से भर दिया है,

3क्योंकि जब तक मुझमें जीवन शेष है,

जब तक मेरे नथुनों में परमेश्वर का जीवन-श्वास है,

4निश्चयतः मेरे मुख से कुछ भी असंगत मुखरित न होगा,

और न ही मेरी जीभ कोई छल उच्चारण करेगी.

5परमेश्वर ऐसा कभी न होने दें, कि तुम्हें सच्चा घोषित कर दूं;

मृत्युपर्यंत मैं धार्मिकता का त्याग न करूंगा.

6अपनी धार्मिकता को मैं किसी भी रीति से छूट न जाने दूंगा;

जीवन भर मेरा अंतर्मन मुझे नहीं धिक्कारेगा.

7“मेरा शत्रु दुष्ट-समान हो,

मेरा विरोधी अन्यायी-समान हो.

8जब दुर्जन की आशा समाप्‍त हो जाती है, जब परमेश्वर उसके प्राण ले लेते हैं,

तो फिर कौन सी आशा बाकी रह जाती है?

9जब उस पर संकट आ पड़ेगा,

क्या परमेश्वर उसकी पुकार सुनेंगे?

10तब भी क्या सर्वशक्तिमान उसके आनंद का कारण बने रहेंगे?

क्या तब भी वह हर स्थिति में परमेश्वर को ही पुकारता रहेगा?

11“मैं तुम्हें परमेश्वर के सामर्थ्य की शिक्षा देना चाहूंगा;

सर्वशक्तिमान क्या-क्या कर सकते हैं, मैं यह छिपा नहीं रखूंगा.

12वस्तुतः यह सब तुमसे गुप्‍त नहीं है;

तब क्या कारण है कि तुम यह व्यर्थ बातें कर रहे हो?

13“परमेश्वर की ओर से यही है दुर्वृत्तों की नियति,

सर्वशक्तिमान की ओर से वह मीरास, जो अत्याचारी प्राप्‍त करते हैं.

14यद्यपि उसके अनेक पुत्र हैं, किंतु उनके लिए तलवार-घात ही निर्धारित है;

उसके वंश कभी पर्याप्‍त भोजन प्राप्‍त न कर सकेंगे.

15उसके उत्तरजीवी महामारी से कब्र में जाएंगे,

उसकी विधवाएं रो भी न पाएंगी.

16यद्यपि वह चांदी ऐसे संचित कर रहा होता है,

मानो यह धूल हो तथा वस्त्र ऐसे एकत्र करता है, मानो वह मिट्टी का ढेर हो.

17वह यह सब करता रहेगा, किंतु धार्मिक व्यक्ति ही इन्हें धारण करेंगे

तथा चांदी निर्दोषों में वितरित कर दी जाएगी.

18उसका घर मकड़ी के जाले-समान निर्मित है,

अथवा उस आश्रय समान, जो चौकीदार अपने लिए बना लेता है.

19बिछौने पर जाते हुए, तो वह एक धनवान व्यक्ति था;

किंतु अब इसके बाद उसे जागने पर कुछ भी नहीं रह जाता है.

20आतंक उसे बाढ़ समान भयभीत कर लेता है;

रात्रि में आंधी उसे चुपचाप ले जाती है.

21पूर्वी वायु उसे दूर ले उड़ती है, वह विलीन हो जाता है;

क्योंकि आंधी उसे ले उड़ी है.

22क्योंकि यह उसे बिना किसी कृपा के फेंक देगा;

वह इससे बचने का प्रयास अवश्य करेगा.

23लोग उसकी स्थिति को देख आनंदित हो ताली बजाएंगे

तथा उसे उसके स्थान से खदेड़ देंगे.”