ኢዮብ 18 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ኢዮብ 18:1-21

በልዳዶስ

1ሹሐዊው በልዳዶስ እንዲህ ሲል መለሰ፤

2“ይህን ንግግር የምትጨርሰው መቼ ነው?

እስኪ ልብ ግዛ፤ ከዚያ በኋላ እንነጋገራለን።

3ለምን እንደ ከብት መንጋ እንቈጠራለን?

እንደ ደንቈሮስ ለምን ታየናለህ?

4አንተ በቍጣ የነደድህ እንደ ሆነ፣

ምድር ባዶዋን ትቀራለች?

ወይስ ዐለት ከስፍራው ተነቅሎ ይወሰዳል?

5“የክፉዎች መብራት ይጠፋል፤

የእሳቱም ነበልባል ድርግም ይላል።

6የድንኳኑ ብርሃን ይጨልማል፤

መብራቱም በላዩ ይጠፋል፤

7የርምጃው ብርታት ይደክማል፤

የገዛ ዕቅዱም ይጥለዋል።

8እግሩ በወጥመድ ይያዛል፤

በመረብም ይተበተባል።

9አሽክላ ተረከዙን ይይዘዋል፤

ወስፈንጥርም ያጣብቀዋል።

10በምድር ላይ የሸንበቆ ገመድ፣

በመንገዱም ላይ ወጥመድ በስውር ይቀመጥለታል።

11ድንጋጤ በዙሪያው ያስፈራራዋል፤

ተከትሎም ያሳድደዋል።

12መቅሠፍት ሊውጠው ቀርቧል፤

ጥፋትም የእርሱን ውድቀት ይጠባበቃል።

13ደዌ ቈዳውን ይበላል፤

የሞት በኵርም ቅልጥሙን ይውጣል።

14ተማምኖ ከሚኖርበት ድንኳን ይነቀላል፤

ወደ ድንጋጤም ንጉሥ ይነዳል።

15ድንኳኑ በእሳት ይያያዛል፤18፥15 ወይም ምንም አይተርፍለትም ማለት ነው።

በመኖሪያውም ላይ ዲን ይበተናል።

16ሥሩ ከታች ይደርቃል፤

ቅርንጫፉም ከላይ ይረግፋል።

17መታሰቢያው ከምድር ገጽ ይጠፋል፤

ስሙም በአገር አይነሣም።

18ከብርሃን ወደ ጨለማ ይጣላል፤

ከዓለምም ይወገዳል።

19በሕዝቡ መካከል ልጅ ወይም ዘር አይኖረውም፤

በኖረበትም አገር ተተኪ አያገኝም።

20ባጋጠመው ሁኔታ የምዕራብ ሰዎች ይደነግጣሉ፤

የምሥራቅም ሰዎች በፍርሀት ይዋጣሉ።

21በርግጥ የክፉ ሰው መኖሪያ፣

እግዚአብሔርንም የማያውቅ ሰው መድረሻ ይህ ነው።”

Hindi Contemporary Version

अय्योब 18:1-21

न्याय के मार्ग पर क्रोध की शक्तिहीनता

1इसके बाद शूही बिलदद ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की:

2“कब तक तुम इसी प्रकार शब्दों में उलझे रहोगे?

कुछ सार्थक विषय प्रस्तुत करो, कि कुछ परिणाम प्रकट हो सके.

3हमें पशु क्यों समझा जा रहा है?

क्या हम तुम्हारी दृष्टि में मूर्ख हैं?

4तुम, जो क्रोध में स्वयं को फाड़े जा रहे हो,

क्या, तुम्हारे हित में तो पृथ्वी अब उजड़ हो जानी चाहिए?

अथवा, क्या चट्टान को अपनी जगह से अलग किया जाये?

5“सत्य तो यह है कि दुर्वृत्त का दीप वस्तुतः बुझ चुका है;

उसके द्वारा प्रज्वलित अग्निशिखा में तो प्रकाश ही नहीं है.

6उसका तंबू अंधकार में है;

उसके ऊपर का दीपक बुझ गया है.

7उसकी द्रुत चाल को रोक दिया गया है;

तथा उसकी अपनी युक्ति उसे ले डूबी,

8क्योंकि वह तो अपने जाल में जा फंसा है;

उसने अपने ही फंदे में पैर डाल दिया है.

9उसकी एड़ी पर वह फंदा जा पड़ा

तथा संपूर्ण उपकरण उसी पर आ गिरा है,

10भूमि के नीचे उसके लिए वह गांठ छिपाई गई थी;

उसके रास्ते में एक फंदा रखा गया था.

11अब तो आतंक ने उसे चारों ओर से घेर रखा है

तथा उसके पीछे पड़कर उसे सता रहे हैं.

12उसके बल का ठट्ठा हुआ जा रहा है;

विपत्ति उसके निकट ठहरी हुई है.

13उसकी खाल पर घोर व्याधि लगी हुई है;

उसके अंगों को मृत्यु के पहलौठे ने खाना बना लिया है.

14उसके ही तंबू की सुरक्षा में से उसे झपट लिया गया है

अब वे उसे आतंक के राजा के सामने प्रदर्शित हो रहे हैं.

15अब उसके तंबू में विदेशी जा बसे हैं;

उसके घर पर गंधक छिड़क दिया गया है.

16भूमि के भीतर उसकी जड़ें अब शुष्क हो चुकी हैं

तथा ऊपर उनकी शाखाएं काटी जा चुकी हैं.

17धरती के लोग उसको याद नहीं करेंगे;

बस अब कोई भी उसको याद नहीं करेगा.

18उसे तो प्रकाश में से अंधकार में धकेल दिया गया है

तथा मनुष्यों के समाज से उसे खदेड़ दिया गया है.

19मनुष्यों के मध्य उसका कोई वंशज नहीं रह गया है,

जहां-जहां वह प्रवास करता है, वहां उसका कोई उत्तरजीवी नहीं.

20पश्चिमी क्षेत्रों में उसकी स्थिति पर लोग चकित होंगे

तथा पूर्वी क्षेत्रों में भय ने लोगों को जकड़ लिया है.

21निश्चयतः दुर्वृत्तों का निवास ऐसा ही होता है;

उनका निवास, जिन्हें परमेश्वर का कोई ज्ञान नहीं है.”