ራእይ 13 – NASV & NCA

New Amharic Standard Version

ራእይ 13:1-18

1ዘንዶውም13፥1 አንዳንድ የጥንት ቅጆች እኔም በባሕሩ ዳር ቆሜ ነበር ይላሉ። በባሕሩ ዳር ቆሞ ነበር።

ከባሕር የወጣው አውሬ

ከዚያም አንድ አውሬ ከባሕር ሲወጣ አየሁ፤ እርሱም ዐሥር ቀንዶችና ሰባት ራሶች ነበሩት፤ በቀንዶቹም ላይ ዐሥር ዘውዶች፣ በራሶቹም ላይ የስድብ ስሞች ነበሩት። 2ያየሁትም አውሬ ነብር ይመስል ነበር፤ ነገር ግን እግሮቹ የድብ፣ አፉ ደግሞ የአንበሳ አፍ ይመስል ነበር፤ ዘንዶው የራሱን ኀይልና የራሱን ዙፋን እንዲሁም ታላቅ ሥልጣን ለአውሬው ሰጠው። 3ከአውሬው ራሶች አንዱ ለሞት የሚያደርስ ቍስል ያለበት ይመስል ነበር። ነገር ግን ለሞት የሚያደርሰው ቍስሉ ዳነ፤ ዓለም በሙሉ በመደነቅ አውሬውን ተከተለው። 4ሰዎችም ለዘንዶው ሰገዱለት፤ ምክንያቱም ሥልጣኑን ለአውሬው ሰጥቶታል። ደግሞም፣ “አውሬውን የሚመስል ማን ነው? ከእርሱስ ጋር ማን ሊዋጋ ይችላል?” በማለት ለአውሬው ሰገዱለት።

5አውሬው የትዕቢት ቃል የሚናገርበትና የሚሳደብበት አፍ ተሰጠው፤ አርባ ሁለት ወር በሥልጣን እንዲሠራም ተፈቀደለት። 6እርሱም እግዚአብሔርን ለመሳደብ እንዲሁም ስሙንና ማደሪያውን፣ በሰማይም የሚኖሩትን ለመሳደብ አፉን ከፈተ። 7ቅዱሳንን እንዲዋጋና ድልም እንዲነሣቸው ኀይል ተሰጠው። በነገድ፣ በወገን፣ በቋንቋና በሕዝብም ሁሉ ላይ ሥልጣን ተሰጠው። 8ዓለም ከተፈጠረ ጀምሮ13፥8 ወይም ዓለም ከተፈጠረ ጀምሮ ስሞቻቸው በታረደው በግ የሕይወት መጽሐፍ ውስጥ የተጻፈው በታረደው በግ የሕይወት መጽሐፍ ላይ ስሞቻቸው ያልተጻፈ የምድር ሰዎች ሁሉ ለአውሬው ይሰግዳሉ።

9ጆሮ ያለው ቢኖር ይስማ።

10ማንም የሚማረክ ቢኖር፣

እርሱ ይማረካል፤

ማንም በሰይፍ የሚገደል13፥10 አንዳንድ የጥንት ቅጆች የሚገድል ይላሉ። ቢኖር፣

እርሱ በሰይፍ ይገደላል።

ይህም የቅዱሳን ትዕግሥትና እምነት የሚታየው በዚህ እንደ ሆነ ያስገነዝባል።

ከምድር የወጣው አውሬ

11ከዚያም ሌላ አውሬ ከምድር ሲወጣ አየሁ፤ እርሱም እንደ በግ ሁለት ቀንዶች ነበሩት፤ ነገር ግን እንደ ዘንዶ ይናገር ነበር። 12በመጀመሪያው አውሬ ስም በሙሉ ሥልጣን ይሠራ ነበር፤ ምድርና በእርሷም የሚኖሩ ሁሉ፣ ለሞት ከሚያደርሰው ቍስል የዳነውን የመጀመሪያውን አውሬ እንዲያመልኩ አደረገ። 13በሰዎቹም ፊት እሳት ከሰማይ ወደ ምድር እስኪያወርድ ድረስ ታላላቅ ምልክቶችን አደረገ። 14በመጀመሪያው አውሬ ስም ምልክቶችን እንዲያደርግ ሥልጣን ስለ ተሰጠው፣ በምድር የሚኖሩ ሰዎችን አሳተ፤ በሰይፍ ቈስሎ ለነበረው፣ ነገር ግን በሕይወት ለሚኖረው አውሬ ምስል እንዲያቆሙም አዘዛቸው። 15ደግሞም የመጀመሪያው አውሬ ምስል መናገር እንዲችል ለምስሉ እስትንፋስ ለመስጠትና ለዚህም ምስል የማይሰግዱ ሁሉ እንዲገደሉ ለማድረግ ሥልጣን ተሰጠው። 16እንዲሁም ታናናሾችና ታላላቆች፣ ሀብታሞችና ድኾች፣ ጌቶችና ባሮች ሁሉ በቀኝ እጃቸው ወይም በግንባራቸው ላይ ምልክት እንዲቀበሉ አስገደዳቸው፤ 17ይህም የሆነው የአውሬው ምልክት፣ ይኸውም ስሙ ወይም የስሙ ቍጥር የሌለው ማንም ሰው ለመግዛትም ሆነ ለመሸጥ እንዳይችል ነው።

18ይህ ጥበብ ይጠይቃል፤ አእምሮ ያለው ማንኛውም ሰው የአውሬውን ቍጥር ያስላው፤ ምክንያቱም ቍጥሩ የሰው ቍጥር ነው። ቍጥሩ ስድስት መቶ ስድሳ ስድስት ነው።

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

दरसन 13:1-18

समुंदर ले निकरे पसु

1अऊ मेंह एक ठन पसु ला समुंदर ले निकरत देखेंव। ओकर दस ठन सिंग अऊ सात ठन मुड़ी रिहिस। ओकर दस ठन सिंग म दस ठन मुकुट रहय अऊ ओकर हर एक मुड़ी म एक निन्दा करइया नांव लिखाय रहय। 2जऊन पसु ला मेंह देखेंव, ओह चीता के सहीं रहय, पर ओकर गोड़मन भलुआ के गोड़ सहीं रहंय अऊ ओकर मुहूं ह सिंह के मुहूं सहीं रहय। सांप सहीं पसु ह ए पसु ला अपन सक्ति, अपन सिंघासन अऊ बहुंते अधिकार दीस। 3अइसने लगत रहय कि ओ पसु के एक ठन मुड़ी म एक बड़े घाव होय रिहिस, पर ओ बड़े घाव ह बने हो गे रिहिस। जम्मो संसार के मनखेमन अचरज करिन अऊ ओ पसु के पाछू हो लीन। 4मनखेमन सांप सहीं पसु के पूजा करिन, काबरकि ओह पसु ला अधिकार दे रिहिस; अऊ ओमन ए कहत पसु के घलो पूजा करिन, “ए पसु के सहीं कोन हवय? एकर संग कोन लड़ई कर सकथे?”

5ओ पसु ला डींग मारे के अऊ निन्दा करे के अनुमती दिये गीस। ओला बियालीस महिना तक अपन अधिकार के उपयोग करे के अनुमती घलो दिये गीस। 6ओह परमेसर के निन्दा करिस। ओह परमेसर के नांव अऊ ओकर रहे के जगह अऊ ओ मनखेमन के निन्दा करिस, जऊन मन स्‍वरग म रहिथें। 7ओला अनुमती दिये गीस कि ओह पबितर मनखेमन संग लड़ई करय अऊ ओमन ऊपर जय पावय। अऊ ओला हर एक जाति, मनखे, भासा अऊ देस ऊपर अधिकार दिये गीस। 8धरती के रहइया जम्मो मनखेमन ओ पसु के पूजा करहीं – याने कि ओ जम्मो मनखे, जेमन के नांव ह सिरिस्टी के रचे के पहिली ले जिनगी के किताब म नइं लिखाय हवय। ए जिनगी के किताब ह ओ मेढ़ा-पीला के अय, जऊन ह मार डारे गीस।

9जेकर कान हवय, ओह सुन ले!

10कहूं कोनो ला कैद म जाना हवय,

त ओह कैद म जाही।

कहूं कोनो ला तलवार ले मरना हवय,

त ओह तलवार ले मारे जाही।

एकर खातिर पबितर मनखेमन ला धीरज अऊ बिसवास के जरूरत हवय।

धरती म ले निकरे पसु

11तब मेंह एक ठन अऊ पसु ला देखेंव, जऊन ह धरती म ले निकरत रहय। ओकर मेढ़ा-पीला के सिंग सहीं दू ठन सिंग रहय, पर ओह सांप सहीं पसु जइसने गोठियावय। 12ओह पहिली पसु कोति ले ओकर जम्मो अधिकार के उपयोग करथे। ओह धरती अऊ ओकर रहइयामन ला बाध्य करथे कि ओमन ओ पहिली पसु के पूजा करंय, जेकर एक बड़े घाव ह बने हो गे रिहिस। 13ए दूसरा पसु ह बड़े-बड़े चमतकार देखाईस, अऊ त अऊ ओह मनखेमन के देखत म अकास ले धरती ऊपर आगी बरसा देवत रिहिस। 14पहिली पसु कोति ले, ओला जऊन चमतकार देखाय के अधिकार मिले रिहिस, ओ चमतकार के दुवारा ओह धरती के मनखेमन ला भरमा दीस। ओह मनखेमन ला हुकूम दीस कि ओमन ओ पसु के आदर म एक मूरती बनावंय, जऊन ह तलवार ले घात करे के बाद घलो जीयत रिहिस। 15ओला पहिली पसु के मूरती ला जीयाय के सक्ति दिये गीस, ताकि ओ मूरती ह गोठियावय, अऊ ओ जम्मो झन ला मरवा देवय, जऊन मन ओ मूरती के पूजा नइं करिन। 16ओह छोटे या बड़े, धनी या गरीब, सुतंतर या गुलाम, जम्मो मनखे मन ला बाध्य करथे कि ओमन जेवनी हांथ या अपन माथा म एक छाप लगावंय। 17बिगर ओ छाप के, कोनो घलो मनखे लेन-देन नइं कर सकंय। ओ छाप म पसु के नांव या ओकर नांव के संख्‍या लिखाय रहय।

18एकर खातिर बुद्धि के जरूरत हवय। कहूं काकरो करा बुद्धि हवय, त ओह ए पसु के संख्‍या के हिसाब कर ले, काबरकि एह एक मनखे के संख्‍या ए। एकर संख्‍या 666 ए।