ማርቆስ 5 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ማርቆስ 5:1-43

አጋንንት ያደሩበት ሰው መፈወሱ

5፥1-17 ተጓ ምብ – ማቴ 8፥28-34ሉቃ 8፥26-37

5፥18-20 ተጓ ምብ – ሉቃ 8፥3839

1ባሕሩን ተሻግረው ጌራሴኖን5፥1 አንዳንድ ቅጆች ደግሞ ጌርጌሴኖን ይላሉ። ወደ ተባለ አገር መጡ። 2ኢየሱስ ከጀልባ እንደ ወረደ፣ ርኩስ5፥2 ወይም ክፉ፤ እንዲሁም 8 እና 13 ይመ መንፈስ ያደረበት ሰው ከመቃብር ቦታ ወጥቶ ሊገናኘው ወደ እርሱ መጣ። 3ይህ ሰው በመቃብር ቦታ ውስጥ የሚኖርና ማንም በሰንሰለት እንኳ ሊያስረው የማይችል ነበር። 4ብዙ ጊዜ በእግር ብረትና በሰንሰለት ይታሰር ነበር፤ ነገር ግን የእጅ ሰንሰለቱን ይበጥስ፣ የእግር ብረቱንም ይሰብር ነበር። ማንም ይዞ ሊያቈየው የሚችል አልነበረም።

5በመቃብሮቹና በተራራዎቹ መካከል ቀንና ሌሊት እየተዘዋወረ በመጮኽ ሰውነቱን በድንጋይ ይቈራርጥ ነበር።

6ይህም ሰው ኢየሱስን ከሩቅ ባየው ጊዜ ወደ እርሱ ሮጦ ከፊቱ ተንበርክኮ ሰገደለት፤ 7በታላቅ ድምፅ ጮኾም፣ “አንተ የልዑል እግዚአብሔር ልጅ ኢየሱስ ሆይ፤ ከእኔ ምን አለህ? እንዳታሠቃየኝ በእግዚአብሔር ይዤሃለሁ” አለው። 8ይህንም ያለው ኢየሱስ፣ “አንተ ርኩስ መንፈስ ከዚህ ሰው ውጣ!” ብሎት ስለ ነበር ነው።

9ከዚያም ኢየሱስ፣ “ስምህ ማን ነው?” ብሎ ጠየቀው።

“ብዙ ነንና ስሜ ሌጌዎን ነው” አለው። 10ከአገር እንዳያስወጣቸውም አጥብቆ ለመነው።

11በአቅራቢያውም በሚገኝ ኰረብታ ላይ ትልቅ የዐሣማ መንጋ ተሰማርቶ ነበር። 12ርኩሳን መናፍስቱም ኢየሱስን፣ “ወደ ዐሣማዎቹ ስደደን፤ እንድንገባባቸውም ፍቀድልን” ብለው ለመኑት። 13እርሱም ፈቀደላቸው። ርኩሳን መናፍስቱም ወጥተው በዐሣማዎቹ ገቡባቸው፤ ሁለት ሺሕ ያህል ዐሣማዎችም በገደሉ አፋፍ በመንደርደር ቍልቍል ወርደው በባሕር ውስጥ ሰጠሙ።

14እረኞቹ ሸሽተው ሄዱ፤ ወሬውን በከተማና በገጠር አዳረሱት፤ ሕዝቡም የሆነውን ለማየት ካለበት ወጣ። 15ወደ ኢየሱስም በመጡ ጊዜ፣ የአጋንንት ሰራዊት ዐድረውበት የነበረው ሰው፣ ልብስ ለብሶና አእምሮው ተመልሶለት በዚያ ተቀምጦ አዩት፤ ፈሩም። 16ይህን ያዩ ሰዎችም አጋንንት ስላደረበት ሰው የተደረገውንና ስለ ዐሣማዎቹም ለሕዝቡ አወሩ። 17ከዚያም ሕዝቡ አገራቸውን ለቅቆ እንዲሄድላቸው ኢየሱስን ይለምኑት ጀመር።

18ኢየሱስ ወደ ጀልባዪቱ በሚገባበት ጊዜ፣ አጋንንት ዐድሮበት የነበረው ሰው አብሮት ለመሄድ ለመነው። 19ኢየሱስ አልፈቀደለትም፤ ነገር ግን፣ “ወደ ቤትህ ሂድ፣ ለዘመዶችህም ጌታ ምን ያህል ታላቅ ነገር እንዳደረገልህና ያሳየህን ምሕረት ንገራቸው” አለው። 20ሰውየውም ሄደ፤ ኢየሱስ ያደረገለትን ነገር ሁሉ ዐሥር ከተማ5፥20 ዐሥር ከተማ የሚባለውን አካባቢ ግሪኩ ዴካፖሊስ ይለዋል። በተባለው አገር ያወራ ጀመር፤ የሰሙትም ሁሉ ተደነቁ።

የሞተችው ልጅና የታመመችው ሴት

5፥22-43 ተጓ ምብ – ማቴ 9፥18-26ሉቃ 8፥41-56

21ኢየሱስ እንደ ገና በጀልባ ወደ ማዶ በተሻገረ ጊዜ፣ ብዙ ሕዝብ በዙሪያው ተሰባሰበ፤ በባሕሩ ዳርቻም እንዳለ፣ 22ከምኵራብ አለቆች አንዱ ኢያኢሮስ የተባለው ወደዚያ መጥቶ ስለ ነበር፣ ኢየሱስን ባየው ጊዜ በእግሩ ላይ ወድቆ፣ 23“ትንሿ ልጄ በሞት አፋፍ ላይ ናትና ድና በሕይወት እንድትኖር መጥተህ እጅህን ጫንባት” በማለት አጥብቆ ለመነው። 24ኢየሱስም አብሮት ሄደ።

ብዙ ሕዝብም ዙሪያውን እያጨናነቀው ተከተለው። 25ዐሥራ ሁለት ዓመት ደም ሲፈስሳት የኖረችም ሴት በዚያ ነበረች፤ 26በብዙ ባለ መድኀኒቶች ዘንድ በመንከራተት ያላትን ሁሉ ብትጨርስም፣ ሕመሙ ባሰባት እንጂ አልተሻላትም ነበር። 27ስለ ኢየሱስም በሰማች ጊዜ፣ ከበስተ ኋላው በሰዎች መካከል መጥታ ልብሱን ነካች፤ 28ምክንያቱም፣ “እንደ ምንም ብዬ ልብሱን ብቻ እንኳ ብነካ እፈወሳለሁ” የሚል እምነት ነበራት። 29የሚፈስሰው ደሟ ወዲያውኑ ቆመ፤ ከሥቃይዋ መገላገሏም በሰውነቷ ታወቃት።

30ወዲያውኑ ኢየሱስ፣ ኀይል ከእርሱ እንደ ወጣ ዐውቆ፤ ወደ ሕዝቡ ዘወር በማለት፣ “ልብሴን የነካው ማን ነው?” አለ።

31ደቀ መዛሙርቱም፣ “ሕዝቡ ተጨናንቆ ሲጋፋህ እያየህ፣ ‘ማን ነው የነካኝ?’ እንዴት ትላለህ?” አሉት።

32ኢየሱስ ግን ይህን ያደረገው ማን እንደ ሆነ ለማየት ዙሪያውን ተመለከተ። 33ሴትዮዋም ምን እንደ ተደረገላት ባወቀች ጊዜ እየፈራችና እየተንቀጠቀጠች መጥታ በፊቱ ተደፋች፤ እውነቱንም ሁሉ ነገረችው። 34እርሱም፣ “ልጄ ሆይ፤ እምነትሽ አድኖሻል፤ በሰላም ሂጂ፤ ከሥቃይሽም ዕረፊ” አላት።

35ኢየሱስም በመነጋገር ላይ እያለ፣ ሰዎች ከምኵራቡ አለቃ ከኢያኢሮስ ቤት መጥተው፣ “ልጅህ ሞታለች፤ ከእንግዲህ መምህሩን ለምን ታደክመዋለህ?” አሉት።

36ኢየሱስ ግን ሰዎቹ የተናገሩትን ችላ በማለት የምኵራቡን አለቃ፣ “እመን ብቻ እንጂ አትፍራ፤” አለው።

37ከጴጥሮስና ከያዕቆብ እንዲሁም ከያዕቆብ ወንድም ከዮሐንስ በቀር ማንም እንዲከተለው አልፈቀደም። 38ወደ ምኵራቡ አለቃ ቤት እንደ ደረሱ፣ ኢየሱስ ግርግሩንና ሰዎቹም ዋይ ዋይ እያሉ አምርረው ሲያለቅሱ ተመለከተ። 39ወደ ቤትም ገብቶ፣ “ይህ ሁሉ ግርግርና ልቅሶ ምንድን ነው? ብላቴናዪቱ ተኝታለች እንጂ አልሞተችም” አላቸው። 40ሰዎቹ ግን ሣቁበት።

ሰዎቹን ሁሉ ከቤት ካስወጣ በኋላ፣ የብላቴናዪቱን አባትና እናት እንዲሁም አብረውት የመጡትን ደቀ መዛሙርት አስከትሎ ብላቴናዪቱ ወዳለችበት ገባ። 41ከዚያም የብላቴናዪቱን እጅ ይዞ፣ “ጣሊታ ቁሚ!” አላት፤ ትርጕሙም፣ “አንቺ ልጅ ተነሺ” ማለት ነው። 42ብላቴናዪቱም ወዲያውኑ ተነሥታ ቆመች፤ ወዲያ ወዲህም ሄደች። ዕድሜዋም ዐሥራ ሁለት ዓመት ነበር። ሰዎቹም በሁኔታው እጅግ ተደነቁ። 43እርሱም ይህን ነገር ማንም እንዳያውቅ አጥብቆ አስጠነቀቃቸው፤ የሚበላ ነገር እንዲሰጧትም ነገራቸው።

Hindi Contemporary Version

मार्कास 5:1-43

दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति

1तब वे झील के दूसरे तट पर गिरासेन क्षेत्र में आए. 2मसीह येशु के नाव से नीचे उतरते ही एक मनुष्य जिसमें अशुद्ध आत्मा थी कब्र से निकलकर उनके पास आया. 3वह कब्रों के मध्य ही रहा करता था. अब कोई भी उसे सांकलों तथा बेड़ियों से भी बांध पाने में समर्थ न था. 4बहुधा उसे बेड़ियों तथा सांकलों में बांधे जाने के प्रयास किए गए किंतु वह सांकलों को तोड़ देता तथा बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर डालता था. अब किसी में इतनी क्षमता न थी कि उसे वश में कर सके. 5रात-दिन कब्रों के मध्य तथा पहाड़ियों में वह चिल्लाता रहता था तथा स्वयं को पत्थर मार-मार कर घायल कर लेता था.

6दूर से ही जब उसने मसीह येशु को देखा, वह दौड़कर उनके पास आया, अपना सिर झुकाया 7और उसमें से ऊंची आवाज में ये शब्द सुनाई दिए, “परम प्रधान परमेश्वर के पुत्र येशु! मेरा आपका कोई लेनदेन नहीं. आपको परमेश्वर की शपथ, मुझे कोई कष्ट न दें,” 8क्योंकि मसीह येशु उसे आज्ञा दे चुके थे, “ओ दुष्टात्मा, इस मनुष्य में से निकल आ!”

9तब मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या नाम है तेरा?”

दुष्टात्मा ने उत्तर दिया, “सेना5:9 मूल में लेगिओन—क्योंकि हम बहुत हैं.” 10दुष्टात्मा मसीह येशु से विनती करने लगा कि वह उसे उस प्रदेश से बाहर न भेजें.

11वहीं पहाड़ी पर सूअरों का एक विशाल झुंड चर रहा था. 12दुष्टात्मा-समूह ने मसीह येशु से विनती की, “हमें इन सूअरों में भेज दीजिए कि हम उनमें जा बसें.” 13मसीह येशु ने उन्हें यह आज्ञा दे दी. वे दुष्टात्मा बाहर निकलकर उन सूअरों में प्रवेश कर गए. लगभग दो हज़ार सूअरों का वह झुंड पहाड़ की तीव्र ढलान पर तेज गति से दौड़ता हुआ झील में जा डूबा.

14भयभीत रखवाले भाग गए तथा नगर और पास के क्षेत्रों में जाकर इस घटना के विषय में बताने लगे. नगरवासी, जो कुछ हुआ था, उसे देखने वहां आने लगे. 15जब वे मसीह येशु के पास पहुंचे, उन्होंने देखा कि वह दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति वस्त्र धारण किए हुए सचेत स्थिति में वहां बैठा था. यह वही व्यक्ति था जिसमें दुष्टात्माओं की सेना पैठी थी. यह देख वे डर गए. 16सारे घटनाक्रम को देखनेवाले लोगों ने उनके सामने इसका बयान किया कि दुष्टात्मा से पीड़ित व्यक्ति तथा सूअरों के साथ क्या-क्या हुआ है. 17इस पर वे मसीह येशु से विनती करने लगे कि वह उनके क्षेत्र से बाहर चले जाएं.

18जब मसीह येशु नाव पर सवार हो रहे थे, दुष्टात्माओं से विमुक्त हुआ व्यक्ति मसीह येशु से विनती करने लगा कि उसे उनके साथ ले लिया जाए. 19मसीह येशु ने उसे इसकी अनुमति नहीं दी परंतु उसे आदेश दिया, “अपने परिजनों के पास लौट जाओ और उन्हें बताओ कि तुम्हारे लिए प्रभु ने कैसे-कैसे आश्चर्यकर्म किए हैं तथा तुम पर उनकी कैसी कृपादृष्टि हुई है.” 20वह देकापोलिस नगर में गया और उन कामों का वर्णन करने लगा, जो मसीह येशु ने उसके लिए किए थे. यह सुन सभी चकित रह गए.

पीड़ित स्त्री की चंगाई तथा मरी हुई बालिका का नया जीवन

21मसीह येशु दोबारा झील के दूसरे तट पर चले गए. एक बड़ी भीड़ उनके पास इकट्ठी हो गयी. मसीह येशु झील तट पर ही रहे. 22स्थानीय यहूदी सभागृह का एक अधिकारी, जिसका नाम जाइरूस था, वहां आया. यह देख कि वह कौन हैं, वह उनके चरणों पर गिर पड़ा. 23बड़ी ही विनती के साथ उसने मसीह येशु से कहा, “मेरी बेटी मरने पर है. कृपया चलिए और उस पर हाथ रख दीजिए कि वह स्वस्थ हो जाए और जीवित रहे.” 24मसीह येशु उसके साथ चले गए.

बड़ी भीड़ भी उनके पीछे-पीछे चल रही थी और लोग उन पर गिरे पड़ते थे. 25एक स्त्री बारह वर्ष से लहूस्राव-पीड़ित थी. 26अनेक चिकित्सकों के हाथों से उसने अनेक पीड़ाएं सही थी. इसमें वह अपना सब कुछ व्यय कर चुकी थी, फिर भी इससे उसे लाभ के बदले हानि ही उठानी पड़ी थी. 27मसीह येशु के विषय में सुनकर उसने भीड़ में पीछे से आकर येशु के वस्त्र के छोर को छुआ. 28उसका यह विश्वास था: “यदि मैं उनके वस्त्र को भी छू लूं, तो मैं स्वस्थ हो जाऊंगी.” 29उसी क्षण उसका रक्तस्राव थम गया. स्वयं उसे अपने शरीर में यह मालूम हो गया कि वह अपनी पीड़ा से ठीक हो चुकी है.

30उसी क्षण मसीह येशु को भी यह आभास हुआ कि उनमें से सामर्थ्य निकली है. भीड़ में ही उन्होंने मुड़कर प्रश्न किया, “कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है?”

31शिष्यों ने उनसे कहा, “आप तो देख ही रहे हैं कि किस प्रकार भीड़ आप पर गिरी पड़ रही है, और आप प्रश्न कर रहे हैं, ‘कौन है वह, जिसने मेरे वस्त्र को छुआ है!’ ”

32प्रभु की दृष्टि उसे खोजने लगी, जिसने यह किया था. 33वह स्त्री यह जानते हुए कि उसके साथ क्या हुआ है, भय से कांपती हुई उनके चरणों पर आ गिरी और उन पर सारी सच्चाई प्रकट कर दी. 34मसीह येशु ने उस स्त्री से कहा, “पुत्री, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है. शांति में विदा हो जाओ और स्वस्थ रहो.”

35जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, याइरॉस के घर से आए कुछ लोगों ने यह सूचना दी, “आपकी पुत्री की मृत्यु हो चुकी है. अब गुरुवर को कष्ट देने का क्या लाभ?”

36मसीह येशु ने यह सुन उस यहूदी सभागृह अधिकारी से कहा, “भयभीत न हो—केवल विश्वास करो.”

37उन्होंने पेतरॉस, याकोब तथा याकोब के भाई योहन के अतिरिक्त अन्य किसी को भी अपने साथ आने की अनुमति न दी, 38और ये सब यहूदी सभागृह अधिकारी के घर पर पहुंचे. मसीह येशु ने देखा कि वहां शोर मचा हुआ है तथा लोग ऊंची आवाज में रो-पीट रहे हैं. 39घर में प्रवेश कर मसीह येशु ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा, “यह शोर और रोना-पीटना क्यों! बच्ची की मृत्यु नहीं हुई है—वह केवल सो रही है.” 40यह सुन वे मसीह येशु का ठट्ठा करने लगे.

किंतु मसीह येशु ने उन सभी को वहां से बाहर निकाल बच्ची के माता-पिता तथा अपने साथियों को साथ ले उस कक्ष में प्रवेश किया, जहां वह बालिका थी. 41वहां उन्होंने बालिका का हाथ पकड़कर उससे कहा, “तालीथा कोऊम” (अर्थात् बेटी, उठो!) 42उसी क्षण वह उठ खड़ी हुई और चलने फिरने लगी. इस पर वे सभी चकित रह गए. बालिका बारह वर्ष की थी. 43मसीह येशु ने उन्हें स्पष्ट आदेश दिए कि इस घटना के विषय में कोई भी जानने न पाए और फिर उनसे कहा कि उस बालिका को खाने के लिए कुछ दिया जाए.