ማርቆስ 12 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ማርቆስ 12:1-44

የወይን ስፍራ የተከራዩ ገበሬዎች ምሳሌ

12፥1-12 ተጓ ምብ – ማቴ 21፥33-46ሉቃ 20፥9-19

1ከዚያም እንዲህ እያለ በምሳሌ ይነግራቸው ጀመር፤ “አንድ ሰው ወይን ተከለ፤ ዙሪያውን ዐጠረ፤ ለመጭመቂያው ጕድጓድ ቈፈረ፤ የመጠበቂያም ማማ ሠራለት፤ ከዚያም ለገበሬዎች አከራይቶ ወደ ሌላ አገር ሄደ። 2በመከር ጊዜም ከወይኑ ፍሬ እንዲያመጣለት ከአገልጋዮቹ አንዱን ወደ ገበሬዎቹ ላከ። 3እነርሱ ግን ይዘው ደበደቡት፤ ባዶ እጁንም ሰደዱት። 4እንደ ገናም ሌላ አገልጋይ ላከ። እነርሱም ራሱን ፈንክተውና አዋርደው መለሱት። 5አሁንም እንደ ገና ሌላ ላከ፤ ይህኛውንም ገደሉት፤ ከሌሎች ከብዙዎቹ መካከል አንዳንዶቹን ደበደቡ፤ አንዳንዶቹንም ገደሉ።

6“አሁንም የሚላክ ሌላ ነበረው፤ እርሱም የሚወድደው ልጁ ነበረ፤ ‘ልጄንስ ያከብሩታል’ በማለት ከሁሉ በኋላ ላከው።

7“ገበሬዎቹ ግን እርስ በርሳቸው፣ ‘ይህማ ዋናው ወራሹ ነው፤ ኑ እንግደለው፤ ርስቱ የእኛ ይሆናል’ ተባባሉ፤ 8ከዚያም ይዘው ገደሉት፤ ከወይኑ ስፍራም አውጥተው ጣሉት።

9“እንግዲህ የወይኑ አትክልት ባለቤት ምን የሚያደርግ ይመስላችኋል? ይመጣል፤ ገበሬዎቹን ይገድላል፤ የወይኑንም አትክልት ለሌሎች ይሰጣል። 10እንዲህ የሚለውን የመጽሐፍ ቃል አላነበባችሁምን፤

“ ‘ግንበኞች የናቁት ድንጋይ፣

እርሱ የማእዘን ራስ12፥10 ወይም የማእዘን ድንጋይ ሆነ፤

11ጌታ ይህን አድርጓል፣

ይህም ለዐይናችን ድንቅ ነው’?”

12ምሳሌውን የተናገረው ስለ እነርሱ መሆኑን ስላወቁ፣ ሊይዙት ፈለጉ፤ ነገር ግን ሕዝቡን ስለ ፈሩ ትተውት ሄዱ።

ለቄሳር ግብር ስለ መክፈል

12፥13-17 ተጓ ምብ – ማቴ 22፥15-22ሉቃ 20፥20-26

13ከዚያም በነገር እንዲያጠምዱት ከፈሪሳውያንና ከሄሮድስ ወገን ሰዎች ወደ እርሱ ላኩ። 14እነርሱም መጥተው እንዲህ አሉት፤ “መምህር ሆይ፤ አንተ ትክክለኛ ሰው መሆንህን እናውቃለን፤ የሰዎች ማንነት ስለማይገድህም አታዳላም፤ የእግዚአብሔርን መንገድ ብቻ በእውነት ታስተምራለህ፤ ለመሆኑ ለቄሳር ግብር መክፈል ይገባል ወይስ አይገባም? 15እኛስ እንክፈል ወይስ አንክፈል?”

ኢየሱስ ግን ግብዝነታቸውን ዐውቆ፣ “ለምን ልታጠምዱኝ ትፈልጋላችሁ? እስቲ አንድ ዲናር አምጡልኝና ልየው” አላቸው። 16እነርሱም አመጡለት፣ “ይህ የማን መልክ ነው? ጽሕፈቱስ የማን ነው?”

አላቸው፤ እነርሱም፣ “የቄሳር ነው” አሉት።

17ኢየሱስም፣ “የቄሳርን ለቄሳር፣ የእግዚአብሔርን ለእግዚአብሔር ስጡ” አላቸው። እነርሱም በእርሱ ተደነቁ።

ጋብቻና ትንሣኤ

12፥18-27 ተጓ ምብ – ማቴ 22፥23-33ሉቃ 20፥27-38

18ከዚህ በኋላ የሙታን ትንሣኤ የለም የሚሉ ሰዱቃውያን ወደ እርሱ መጥተው እንዲህ ሲሉ ጠየቁት፤ 19“መምህር ሆይ፤ የአንድ ሰው ወንድም ሚስት አግብቶ ልጅ ሳይወልድ ቢሞት፣ ይህ ሰው ሴትየዋን አግብቶ ለወንድሙ ዘር እንዲተካ ሙሴ ጽፎልናል። 20ታዲያ ሰባት ወንድማማቾች ነበሩ፤ የመጀመሪያው አግብቷት ዘር ሳይተካ ሞተ፤ 21ሁለተኛውም ሴትየዋን አገባት፤ እርሱም ዘር ሳይተካ ሞተ፤ ሦስተኛውም እንዲሁ፤ 22ሰባቱም አገቧት፤ ዘር ግን አልተኩም፤ በመጨረሻም ሴትየዋ ሞተች። 23እንግዲህ፣ ሰባቱም አግብተዋታልና በትንሣኤ12፥23 አንዳንድ ቅጆች በትንሣኤ ሰዎች ከሙታን ሲነሡ የሚል አላቸው ለማናቸው ሚስት ልትሆን ነው?” አሉት።

24ኢየሱስም፣ እንዲህ ሲል መለሰላቸው፤ “የምትስቱት እኮ ቅዱሳት መጻሕፍትንና የእግዚአብሔርን ኀይል ስለማታውቁ ነው! 25ሙታን በሚነሡበት ጊዜ እንደ ሰማይ መላእክት ይሆናሉ እንጂ አያገቡም፤ አይጋቡም። 26ስለ ሙታን መነሣት ግን፣ በሙሴ መጽሐፍ ይኸውም ስለ ቍጥቋጦው በተነገረው ክፍል፣ እግዚአብሔር ‘እኔ የአብርሃም አምላክ፣ የይስሐቅ አምላክ፣ የያዕቆብ አምላክ ነኝ’ ያለውን አላነበባችሁምን? 27እግዚአብሔር የሕያዋን አምላክ እንጂ የሙታን አምላክ አይደለም፤ ስለዚህ እጅግ ተሳስታችኋል።”

ከሁሉ የሚበልጠው ትእዛዝ

12፥28-34 ተጓ ምብ – ማቴ 22፥34-40

28ከጸሐፍትም አንዱ መጥቶ ሲከራከሩ ሰማቸው፤ ኢየሱስ ለቀረበለት ጥያቄ ተገቢውን መልስ መስጠቱን አስተውሎ፣ “ለመሆኑ ከትእዛዞች ሁሉ የሚበልጠው የትኛው ነው?” ሲል ጠየቀው።

29ኢየሱስም እንዲህ ሲል መለሰለት፤ “ከሁሉ የሚበልጠው ይህ ነው፤ ‘እስራኤል ሆይ ስማ፤ ጌታ አምላካችን አንድ ጌታ ነው፤ 30አንተም ጌታ አምላክህን በፍጹም ልብህ፣ በፍጹም ነፍስህ፣ በፍጹም ሐሳብህና በፍጹም ኀይልህ ውደድ።’ 31ሁለተኛውም ይህ ነው፤ ‘ባልንጀራህን እንደ ራስህ ውደድ።’ ከእነዚህም የሚበልጥ ትእዛዝ የለም።”

32ጸሓፊውም እንዲህ አለው፤ “መምህር ሆይ፤ መልካም ብለሃል፤ እርሱ አንድ መሆኑን፣ ከእርሱም ሌላ አለመኖሩን መናገርህ ትክክል ነው፤ 33እርሱን በፍጹም ልብህ፣ በፍጹም አእምሮህ፣ በፍጹም ነፍስህ፣ በፍጹም ኀይልህ መውደድ፣ እንዲሁም ባልንጀራህን እንደ ራስህ መውደድ ከሚቃጠል መሥዋዕት ሁሉና ከሌሎችም መሥዋዕቶች ይበልጣል።”

34ኢየሱስም በማስተዋል እንደ መለሰለት አይቶ፣ “አንተ ከእግዚአብሔር መንግሥት የራቅህ አይደለህም” አለው። ከዚህ በኋላ ሊጠይቀው የደፈረ ማንም አልነበረም።

ክርስቶስ የማን ልጅ ነው?

12፥35-37 ተጓ ምብ – ማቴ 24፥41-46ሉቃ 20፥41-44

12፥38-40 ተጓ ምብ – ማቴ 23፥1-7ሉቃ 20፥45-47

35ኢየሱስ በቤተ መቅደሱ አደባባይ በሚያስተምርበት ጊዜ እንዲህ ሲል ጥያቄ አቀረበ፤ “ጸሐፍት እንዴት ክርስቶስ የዳዊት ልጅ ነው ይላሉ? 36ዳዊት በመንፈስ ቅዱስ ሲናገር፣

“ ‘ጌታ ጌታዬን፣

“ጠላቶችህን ከእግርህ በታች

እስካደርጋቸው ድረስ

በቀኜ ተቀመጥ” ’ አለው። ይላል፤

37ታዲያ ዳዊት ራሱ ‘ጌታ’ ካለው፣ እንዴት ተመልሶ ልጁ ይሆናል?” ብዙ ሕዝብም በደስታ ይሰማው ነበር።

38በሚያስተምርበትም ጊዜ እንዲህ አለ፤ “ከጸሐፍት ተጠንቀቁ፤ የተንዘረፈፈ ቀሚስ ለብሰው መዞርን ይወድዳሉ፤ በየአደባባዩም የአክብሮት ሰላምታ ይሻሉ፤ 39በምኵራብ ከፍተኛውን ወንበር፣ በግብዣም ቦታ የከበሬታን ስፍራ ይፈልጋሉ፤ 40በረጅም ጸሎታቸው እያሳበቡ የመበለቶችን ቤት ያራቍታሉ፤ እነዚህ የባሰ ፍርድ ይቀበላሉ።”

የመበለቲቱ ስጦታ

12፥41-44 ተጓ ምብ – ሉቃ 21፥1-4

41ኢየሱስ በገንዘብ ማስቀመጫው አንጻር ተቀምጦ፣ ብዙ ሰዎች ስጦታቸውን ወደ ቤተ መቅደሱ ገንዘብ ማስቀመጫ ሣጥን ሲያስገቡ ይመለከት ነበር። ብዙ ሀብታሞች ብዙ ገንዘብ አስገቡ፤ 42አንዲት ምስኪን መበለት ግን ከአንድ ሳንቲም የማይበልጡ ሁለት የናስ ቤሳዎች አስገባች።

43ኢየሱስም ደቀ መዛሙርቱን ጠርቶ፣ እንዲህ አላቸው፤ “እውነት እላችኋለሁ፤ ይህች ድኻ መበለት ሣጥኑ ውስጥ ከጣሉት ከሌሎቹ የበለጠ አስገባች። 44እነዚህ ሁሉ ከተረፈው ሀብታቸው ሰጡ፤ እርሷ ግን በድኽነት ዐቅሟ ያላትን ሁሉ አውጥታ ለመኖሪያ የሚሆናትን እንዳለ ሰጠች።”

Hindi Contemporary Version

मार्कास 12:1-44

बुरे किसानों का दृष्टांत

1मसीह येशु ने उन्हें दृष्टान्तों के माध्यम से शिक्षा देना प्रारंभ किया: “एक व्यक्ति ने बगीचे में अंगूर की बेल लगाई, उसके चारों ओर बाड़ लगाई, उसमें रसकुंड खोदा, रक्षा करने का मचान बनाया और उसे किसानों को पट्टे पर देकर यात्रा पर चला गया. 2उपज के अवसर पर उसने अपने एक दास को उन किसानों के पास भेजा कि वह उनसे उपज का कुछ भाग ले आए. 3किसानों ने उस दास को पकड़ा, उसकी पिटाई की तथा उसे खाली हाथ लौटा दिया. 4उस व्यक्ति ने फिर एक अन्य दास को भेजा. किसानों ने उसके सिर पर प्रहार कर उसे घायल कर दिया तथा उसके साथ शर्मनाक व्यवहार किया. 5उस व्यक्ति ने फिर एक और दास को उनके पास भेजा, जिसकी तो उन्होंने हत्या ही कर दी. उसने अन्य बहुत दासों को भेजे, उन्होंने कुछ को मारा-पीटा तथा बाकियों की हत्या कर दी.

6“अब उसके पास भेजने के लिए एक ही व्यक्ति शेष था—उसका प्रिय पुत्र. अंततः उसने उसे ही उनके पास भेज दिया. उसका विचार था, ‘वे मेरे पुत्र का तो सम्मान करेंगे.’

7“उन किसानों ने आपस में विचार किया, ‘सुनो, यह वारिस है. यदि इसकी हत्या कर दें तो यह संपत्ति ही हमारी हो जाएगी!’ 8उन्होंने उसकी हत्या कर दी और उसे बारी के बाहर निकालकर फेंक दिया.

9“अब बगीचे के स्वामी के सामने कौन सा विकल्प शेष रह गया है? वह आकर उन किसानों का नाश करेगा और उद्यान का पट्टा अन्य किसानों को दे देगा. 10क्या तुमने पवित्र शास्त्र का यह लेख नहीं पढ़ा:

“ ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा घोषित कर दिया था,

वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया;

11यह प्रभु की ओर से हुआ,

और यह हमारी दृष्टि में अद्भुत है’12:11 स्तोत्र 118:22, 23?”

12फलस्वरूप प्रधान पुरोहित तथा शास्त्री प्रभु येशु को पकड़ने की योजना में जुट गए, क्योंकि वे यह समझ गए थे कि प्रभु येशु ने उन पर ही यह दृष्टांत कहा है. किंतु उन्हें भीड़ का भय था. इसलिए इस अवसर पर वे मसीह येशु को छोड़ वहां से चले गए.

कर का प्रश्न

13यहूदियों ने मसीह येशु के पास कुछ फ़रीसियों तथा हेरोदेस समर्थकों को भेजा कि मसीह येशु को उनकी ही किसी बात में फंसाया जा सके. 14उन्होंने आकर मसीह येशु से यह प्रश्न किया, “गुरुवर, यह तो हमें मालूम है कि आप एक सच्चे व्यक्ति हैं. आपको किसी के समर्थन की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आप में पक्षपात है ही नहीं. आप पूरी सच्चाई में परमेश्वर संबंधी शिक्षा देते हैं. हमें यह बताइए: कयसर12:14 कयसर अर्थात् रोमी सम्राट को कर देना व्यवस्था के अनुसार है या नहीं? 15हम कर दें या नहीं?”

उनका पाखंड भांप कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “क्यों मुझे फंसाने की युक्ति कर रहे हो? दीनार की मुद्रा लाकर मुझे दिखाओ.” 16वे मसीह येशु के पास एक मुद्रा ले आए. मसीह येशु ने वह मुद्रा उन्हें दिखाते हुए उनसे प्रश्न किया, “यह छाप तथा नाम किसका है?”

“कयसर का,” उन्होंने उत्तर दिया.

17मसीह येशु ने उनसे कहा, “जो कयसर का है, वह कयसर को दो और जो परमेश्वर का, वह परमेश्वर को.”

यह सुन वे दंग रह गए.

मरे हुओं के जी उठने का प्रश्न

18फिर सदूकी लोग, जो पुनरुत्थान में विश्वास नहीं करते, प्रभु येशु के पास आए. उन्होंने उनसे प्रश्न किया, 19“गुरुवर, हमारे लिए मोशेह के निर्देश हैं यदि किसी निःसंतान पुरुष का पत्नी के रहते हुए निधन हो जाए तो उसका भाई उस स्त्री से विवाह कर अपने भाई के लिए संतान पैदा करे. 20इसी संदर्भ में एक घटना इस प्रकार है: सात भाई थे. पहले ने विवाह किया और बिना संतान ही चल बसा. 21दूसरे भाई ने उसकी पत्नी से विवाह कर लिया, वह भी बिना संतान ही चल बसा. तीसरे भाई की भी यही स्थिति रही. 22इस प्रकार सातों भाइयों की मृत्यु बिना संतान ही हो गई. इसके बाद उस स्त्री की भी मृत्यु हो गई. 23अब यह बताइए कि पुनरुत्थान पर वह किसकी पत्नी कहलाएगी? क्योंकि उसका विवाह तो सातों भाइयों से हुआ था.”

24मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम्हारी इस भूल का कारण यह है कि तुमने न तो पवित्र शास्त्र के लेखों को समझा है और न ही परमेश्वर के सामर्थ्य को. 25पुनरुत्थान में लोग न तो विवाहित होते हैं और न ही वहां विवाह कराये जाते हैं—वहां वे स्वर्गदूतों के समान होंगे. 26जहां तक मरे हुओं के दुबारा जी उठने का प्रश्न है, क्या तुमने मोशेह के ग्रंथ में नहीं पढ़ा, जहां जलती हुई झाड़ी का वर्णन है? परमेश्वर ने मोशेह से कहा था, ‘मैं ही अब्राहाम का परमेश्वर, यित्सहाक का परमेश्वर तथा याकोब का परमेश्वर हूं’?12:26 निर्ग 3:6 27आप लोग बड़ी गंभीर भूल में पड़े हैं! वह मरे हुओं के नहीं परंतु जीवितों के परमेश्वर हैं.”

सबसे बड़ी आज्ञा

28उसी समय एक शास्त्री वहां से जा रहा था. उसने उनका वार्तालाप सुन लिया. यह देख कि मसीह येशु ने उन्हें सटीक उत्तर दिया है, उसने मसीह येशु से पूछा, “सबसे बड़ी आज्ञा कौन सी है?”

29मसीह येशु ने उत्तर दिया, “सबसे बड़ी आज्ञा है: ‘सुनो, इस्राएलियो! प्रभु हमारे परमेश्वर अद्वितीय प्रभु हैं. 30तुम प्रभु तुम्हारे परमेश्वर से अपने सारे हृदय, सारे प्राण, सारे समझ तथा सारी शक्ति से प्रेम करो.’ 31दूसरी आज्ञा है, ‘तुम अपने पड़ोसी से अपने ही समान प्रेम करो.’ इनसे बढ़कर कोई और आज्ञा है ही नहीं.”

32उस शास्त्री ने मसीह येशु से कहा, “अति सुंदर, गुरुवर! आपका कहना हमेशा ही सत्य है. वही एकमात्र हैं—उनके अतिरिक्त और कोई नहीं है 33तथा उनसे ही सारे हृदय, सारी समझ तथा सारी शक्ति से प्रेम करना, तथा अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना सभी होमबलियों तथा बलिदानों से बढ़कर है.”

34जब मसीह येशु ने यह देखा कि उसने बुद्धिमानी से उत्तर दिया है, उन्होंने उससे कहा, “तुम परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं हो.”

इसके बाद किसी में भी उनसे और प्रश्न करने का साहस न रहा.

मसीह किसका पुत्र?

35मंदिर के आंगन, में शिक्षा देते हुए मसीह येशु ने उनके सामने यह प्रश्न रखा, “शास्त्री यह क्यों कहते हैं कि मसीह दावीद के वंशज हैं? 36दावीद ने, पवित्र आत्मा, में आत्मलीन हो कहा था:

“ ‘प्रभु परमेश्वर ने मेरे प्रभु से कहा:

“मेरी दायीं ओर बैठे रहो

जब तक मैं तुम्हारे शत्रुओं को

तुम्हारे अधीन न कर दूं.” ’12:36 स्तोत्र 110:1

37स्वयं दावीद उन्हें प्रभु कहकर संबोधित कर रहे हैं इसलिये किस भाव में प्रभु दावीद के पुत्र हुए?”

भीड़ उनके इस वाद-विवाद का आनंद ले रही थी.

शास्त्रियों और फ़रीसियों का पाखंड

38आगे शिक्षा देते हुए मसीह येशु ने कहा, “उन शास्त्रियों से सावधान रहना, जो लंबे ढीले लहराते वस्त्र पहने हुए घूमा करते हैं, सार्वजनिक स्थलों पर सम्मानपूर्ण नमस्कार की आशा करते है. 39वे यहूदी सभागृहों में मुख्य आसन और दावतों में मुख्य स्थान पसंद करते है. 40वे विधवाओं के घर हड़प जाते हैं तथा मात्र दिखावे के उद्देश्य से लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएं करते हैं. कठोर होगा इनका दंड!”

कंगाल विधवा का दान

41मसीह येशु मंदिर के कोष के सामने बैठे हुए थे. वह देख रहे थे कि लोग मंदिर कोष में किस प्रकार दान दे रहे हैं. अनेक धनी लोग बड़ी-बड़ी राशि डाल रहे थे. 42एक निर्धन विधवा भी वहां आई, और उसने तांबे की दो छोटे सिक्‍के डाले हैं.

43मसीह येशु ने अपने शिष्यों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, “सच यह है कि इस निर्धन विधवा ने कोष में उन सभी से बढ़कर दिया है. 44क्योंकि शेष सभी ने तो अपने धन की बढ़ती में से दिया है, किंतु इस विधवा ने अपनी निर्धनता में से अपनी सारी संपत्ति ही दे दी—यह उसकी सारी जीविका थी.”