ማርቆስ 11 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ማርቆስ 11:1-33

ኢየሱስ በታላቅ ክብር ወደ ኢየሩሳሌም ገባ

11፥1-10 ተጓ ምብ – ማቴ 21፥1-9ሉቃ 19፥29-38

11፥7-10 ተጓ ምብ – ዮሐ 12፥12-15

1ወደ ኢየሩሳሌም በደብረ ዘይት ተራራ አጠገብ ወዳሉት ወደ ቤተ ፋጌና ወደ ቢታንያ በቀረቡ ጊዜ፣ ኢየሱስ ከደቀ መዛሙርቱ ሁለቱን እንዲህ በማለት ላካቸው፤ 2“በፊታችሁ ወዳለው መንደር ሂዱ፣ ሰው ተቀምጦበት የማያውቅ የአህያ ውርንጫ እዚያ ታስሮ ታገኛላችሁ፤ ፈታችሁ አምጡት፤ 3ማንም፣ ‘ምን ማድረጋችሁ ነው?’ ቢላችሁ፣ ‘ለጌታ ያስፈልገዋል፤ በቶሎም መልሶ ይልከዋል’ ብላችሁ ንገሩት።”

4እነርሱም ሄዱ፤ በአንድ ቤት በራፍ መንገድ ላይ የአህያ ውርንጫ ታስሮ አገኙ፤ ፈቱትም። 5በዚያ ከቆሙት አንዳንድ ሰዎች፣ “ውርንጫውን የምትፈቱት ለምንድን ነው?” አሏቸው። 6ደቀ መዛሙርቱም ኢየሱስ ያላቸውን ለሰዎቹ በነገሯቸው ጊዜ ፈቀዱላቸው። 7ውርንጫውንም ወደ ኢየሱስ አምጥተው ልብሳቸውን በጀርባው ላይ አደረጉ፤ እርሱም ተቀመጠበት። 8ብዙ ሰዎች ልብሳቸውን በመንገድ ላይ አነጠፉ፤ ሌሎች ደግሞ ለምለም የዛፍ ቅርንጫፍ እየቈረጡ ያነጥፉ ነበር። 9ከፊቱ የቀደሙትና ከኋላው የተከተሉትም በታላቅ ድምፅ እንዲህ ይሉ ነበር፤

“ሆሣዕና!”11፥9 በዕብራይስጡ አድን! ማለት ሲሆን፣ ምስጋናን የሚገልጽ አባባል ነው፤ እንዲሁም 10 ይመ።

“በጌታ ስም የሚመጣ የተባረከ ነው!”

10“የምትመጣው የአባታችን የዳዊት መንግሥት የተባረከች ናት!”

“ሆሣዕና በአርያም!”

11ኢየሱስም ኢየሩሳሌም ደረሰ፤ ከዚያም ወደ ቤተ መቅደስ ገባ፤ በዙሪያው ያለውንም ሁሉ ተመለከተ፤ ቀኑም ስለ መሸ ከዐሥራ ሁለቱ ጋር ወደ ቢታንያ ወጣ።

ኢየሱስ ቤተ መቅደስን አጸዳ

11፥12-14 ተጓ ምብ – ማቴ 21፥18-22

11፥15-18 ተጓ ምብ – ማቴ 21፥12-16ሉቃ 19፥45-47ዮሐ 2፥13-16

12በማግስቱም ከቢታንያ ሲወጡ ኢየሱስ ተራበ።

13እርሱም ቅጠል ያላት የበለስ ዛፍ ከሩቅ አየ፤ ምናልባት ፍሬ ይገኝባት እንደ ሆነ ብሎ ወደ እርሷ መጣ፤ ነገር ግን የበለስ ወራት አልነበረምና ከቅጠል በቀር ምንም አላገኘባትም። 14ከዚያም ዛፏን፣ “ከአሁን ጀምሮ ለዘላለም ማንም ፍሬ ከአንቺ አይብላ” አላት። ደቀ መዛሙርቱም ይህን ሲናገር ሰሙ።

15ወደ ኢየሩሳሌምም መጡ፤ ከዚያም ወደ ቤተ መቅደስ ገብቶ፣ የሚሸጡትንና የሚገዙትን ያስወጣ ጀመር። የገንዘብ መንዛሪዎችን ጠረጴዛና የርግብ ሻጮችን መቀመጫ ገለባበጠ፤ 16ማንም ዕቃ ተሸክሞ በቤተ መቅደሱ ቅጥር ግቢ ውስጥ እንዳያልፍ ከለከለ። 17ሲያስተምራቸውም፣

“ ‘ቤቴ ለሕዝቦች ሁሉ የጸሎት ቤት ይባላል’

ተብሎ አልተጻፈምን? እናንተ ግን የሌቦች ዋሻ አደረጋችሁት!” አላቸው።

18የካህናት አለቆችና ጸሐፍትም፣ ይህን ሲሰሙ እንዴት እንደሚያጠፉት መንገድ ይፈልጉ ጀመር፤ ሕዝቡ ሁሉ በትምህርቱ በመገረማቸው ፈርተውታልና።

19በመሸም ጊዜ ከከተማዪቱ ወጥተው ሄዱ11፥19 አንዳንድ ቅጆች ወጥቶ ሄደ ይላሉ።

የበለሷ ዛፍ ደረቀች

11፥20-24 ተጓ ምብ – ማቴ 21፥19-22

20በማግስቱም ጧት በመንገድ ሲያልፉ፣ በለሲቱ ከነሥሯ ደርቃ አዩ። 21ጴጥሮስ ነገሩ ትዝ አለውና ኢየሱስን፣ “መምህር ሆይ፤ እነሆ፤ የረገምሃት በለስ ደርቃለች” አለው።

22ኢየሱስም መልሶ እንዲህ አላቸው፤ “በእግዚአብሔር እመኑ11፥22 አንዳንድ የጥንት ቅጆች በእግዚአብሔር ላይ እምነት ካላችሁ ይላሉ።23እውነት እላችኋለሁ፤ ማንም ይህን ተራራ፣ ‘ተነቅለህ ወደ ባሕር ተወርወር’ ቢለውና ይህንም በልቡ ሳይጠራጠር ቢያምን ይሆንለታል። 24ስለዚህ በጸሎት የምትለምኑትን ሁሉ እንደ ተቀበላችሁት አድርጋችሁ ብታምኑ ይሆንላችኋል። 25እንዲሁም ለጸሎት በምትቆሙበት ጊዜ፣ የሰማዩ አባታችሁ ኀጢአታችሁን ይቅር እንዲልላችሁ፣ እናንተም በሰው ላይ ያላችሁን ሁሉ ይቅር በሉ። 26ይቅር ባትሉ ግን የሰማዩ አባታችሁ ኀጢአታችሁን ይቅር አይላችሁም።11፥26 አንዳንድ ቅጆች 26 የላቸውም።

በኢየሱስ ሥልጣን ላይ ጥያቄ ተነሣ

11፥27-33 ተጓ ምብ – ማቴ 21፥23-27ሉቃ 20፥1-8

27እንደ ገና ወደ ኢየሩሳሌም መጡ፤ ኢየሱስ በቤተ መቅደሱ ቅጥር ግቢ ውስጥ በሚዘዋወርበት ጊዜ፣ የካህናት አለቆች፣ ጸሐፍትና የሕዝብ ሽማግሌዎች ወደ እርሱ ቀርበው፣ 28“እነዚህን ነገሮች የምታደርገው በምን ሥልጣን ነው? እነዚህን እንድታደርግስ ይህን ሥልጣን የሰጠህ ማን ነው?” አሉት።

29ኢየሱስም መልሶ እንዲህ አላቸው፤ “እስቲ እኔም አንድ ጥያቄ ልጠይቃችሁ፤ መልሱልኝ፤ እኔም እነዚህን ነገሮች በምን ሥልጣን እንደማደርግ እነግራችኋለሁ። 30የዮሐንስ ጥምቀት ከሰማይ ነበረችን ወይስ ከሰው? መልሱልኝ።”

31እነርሱም እርስ በርሳቸው እንዲህ ተባባሉ፤ “ ‘ከሰማይ ነው’ ብንል፣ ‘ታዲያ ለምን አላመናችሁትም?’ ይለናል፤ 32‘ታዲያ፣ ከሰው ነው’ እንበልን?” ሕዝቡ ሁሉ ዮሐንስ እውነተኛ ነቢይ መሆኑን ያምኑ ስለ ነበር ፈሩ።

33ስለዚህ ለኢየሱስ “አናውቅም” ብለው መለሱለት።

ኢየሱስም፣ “እንግዲያው እኔም እነዚህን ነገሮች በምን ሥልጣን እንደማደርግ አልነግራችሁም” አላቸው።

Hindi Contemporary Version

मार्कास 11:1-33

विजय उल्लास में येरूशलेम प्रवेश

1जब वे येरूशलेम के पास ज़ैतून पर्वत के समीप बैथनियाह तथा बैथफ़गे गांव के पास पहुंचे, मसीह येशु ने अपने दो शिष्यों को यह आज्ञा देकर भेजा, 2“इस गांव में जाओ. वहां प्रवेश करने पर तुम्हें एक गधी का बच्चा बंधा हुआ दिखाई देगा, जिस पर अब तक कोई नहीं बैठा है. उसे खोलकर मेरे पास ले आओ. 3यदि कोई तुमसे यह पूछे, ‘यह क्या कर रहे हो?’ तो तुम यह उत्तर देना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है, वह शीघ्र ही इसे लौटा देंगे.’ ”

4वे चले गए. उन्होंने गली में द्वार के पास गधी का एक बच्‍चे को बंधे देखा. उन्होंने उसे खोल लिया. 5वहां खड़े हुए कुछ व्यक्तियों ने यह देख उनसे पूछा, “क्यों खोल रहे हो इसे?” 6उन्होंने उन्हें वही उत्तर दिया जैसा मसीह येशु ने उन्हें आदेश दिया था और उन लोगों ने उन्हें जाने दिया. 7वे गधी के उस बच्‍चे को मसीह येशु के पास ले आए. उन्होंने अपने वस्त्र उस पर बिछा दिए और मसीह येशु उस पर बैठ गए. 8अनेकों ने मार्ग पर अपने वस्त्र बिछा दिए और कुछ ने नए पत्तों से लदी हुई डालियां, जो वे मैदान से काटकर लाए थे. 9वे सब लोग, जो मसीह येशु के आगे-आगे तथा पीछे-पीछे चल रहे थे, नारे लगा रहे थे,

“होशान्‍ना!”11:9 होशान्‍ना इब्री भाषा के इस शब्द का अर्थ होता है बचाइए जो यहां जयघोष के रूप में प्रयुक्त किया गया है

“धन्य हैं वह जो प्रभु के नाम में आ रहे हैं.”11:9 स्तोत्र 118:25, 26

10“धन्य है हमारे कुलपिता दावीद का आगामी राज्य.”

“सबसे ऊंचे स्वर्ग में होशान्‍ना!”

11येरूशलेम नगर में प्रवेश करने पर मसीह येशु मंदिर में आए और वहां का सावधानीपूर्वक निरीक्षण करने के बाद उन्होंने बारहों के साथ बैथनियाह नगर की ओर चलना शुरू किया क्योंकि शाम हो गयी थी.

फलहीन अंजीर का पेड़

12दूसरे दिन जब वे बैथनियाह से चले तो मसीह येशु को भूख लगी. 13दूर ही से उन्हें अंजीर का एक हरा-भरा पेड़ दिखाई दिया. वह उस पेड़ के पास आए कि कदाचित उन्हें उसमें कुछ मिल जाए किंतु वहां उन्हें पत्तियों के अतिरिक्त कुछ भी न मिला क्योंकि उसमें फल लगने का समय अभी नहीं आया था. 14उस पेड़ से मसीह येशु ने कहा, “अब तुझसे कभी भी कोई फल न खाए!” शिष्य यह सुन रहे थे.

15वे येरूशलेम पहुंचे और मसीह येशु ने मंदिर में जाकर उन सभी को मंदिर से बाहर निकाल दिया, जो वहां लेनदेन कर रहे थे. साथ ही येशु ने साहूकारों की चौकियां उलट दीं और कबूतर बेचने वालों के आसनों को पलट दिया. 16मसीह येशु ने किसी को भी मंदिर में बेचने का सामान लेकर आने जाने की अनुमति न दी. 17वहां शिक्षा देते हुए मसीह येशु ने कहा, “क्या पवित्र शास्त्र में तुमने यह नहीं पढ़ा: ‘सारे राष्ट्रों के लिए मेरा भवन प्रार्थना का भवन होगा’?11:17 यशा 56:7 और यहां तुमने इसे डाकुओं की ‘गुफ़ा बना रखा है.’11:17 येरे 7:11

18इस घटना के विषय में मालूम होने पर प्रधान पुरोहित तथा शास्त्री मसीह येशु की हत्या की युक्ति खोजने लगे. उन्हें भीड़ का भय था क्योंकि मसीह येशु की शिक्षा से भीड़ प्रभावित थी.

19संध्या होने पर मसीह येशु तथा उनके शिष्य नगर के बाहर चले जाते थे.

20प्रातःकाल, जब वे वहां से आ रहे थे, उन्होंने उस अंजीर के पेड़ को जड़ से सूखा हुआ पाया. 21पेतरॉस ने याद करते हुए कहा, “रब्बी देखिए! जिस पेड़ को आपने शाप दिया था, वह सूख गया है.”

22इसके उत्तर में मसीह येशु ने कहा, “परमेश्वर में विश्वास रखो, 23मैं तुम पर एक अटल सत्य प्रकट कर रहा हूं: यदि तुम्हें विश्वास हो—संदेह तनिक भर भी न हो—तो तुम न केवल वह करोगे, जो इस अंजीर के पेड़ के साथ किया गया परंतु तुम यदि इस पर्वत को भी आज्ञा दोगे, ‘उखड़ जा और समुद्र में जा गिर!’ तो यह भी हो जाएगा. 24इसलिये तुमसे मुझे यह कहना है: प्रार्थना में विश्वास से तुम जो भी विनती करोगे, उनके लिए यह विश्वास कर लो कि वे तुम्हें प्राप्‍त हो गई हैं, तो वे तुम्हें प्रदान की जाएंगी. 25इसी प्रकार, जब तुम प्रार्थना करो और तुम्हारे हृदय में किसी के विरुद्ध कुछ हो, उसे क्षमा कर दो, जिससे तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे पाप क्षमा कर दें. [26किंतु यदि तुम क्षमा नहीं करते हो तो तुम्हारे स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे पाप क्षमा न करेंगे.]”11:26 कुछ हस्तलेखों में पद 26 नहीं पाया जाता.

मसीह येशु के अधिकार को चुनौती

27इसके बाद वे दोबारा येरूशलेम नगर आए. जब मसीह येशु मंदिर परिसर में टहल रहे थे, प्रधान पुरोहित, शास्त्री तथा प्रवर (नेतागण) उनके पास आए 28और उनसे प्रश्न करने लगे, “किस अधिकार से तुम यह सब कर रहे हो? कौन है वह, जिसने तुम्हें यह सब करने का अधिकार दिया है?”

29मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “आप लोगों से मैं भी एक प्रश्न करूंगा. जब आप मुझे उसका उत्तर देंगे तब मैं भी आपके इस प्रश्न का उत्तर दूंगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूं. 30यह बताइए कि योहन का बपतिस्मा परमेश्वर की ओर से था या मनुष्यों की ओर से?”

31वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “यदि हम यह कहते हैं कि वह परमेश्वर की ओर से था तो यह कहेगा, ‘तब आप लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’ 32और यदि हम यह कहें, ‘मनुष्यों की ओर से’ ” वस्तुतः यह कहने में उन्हें जनसाधारण का भय था क्योंकि जनसाधारण योहन को भविष्यवक्ता मानता था.

33उन्होंने मसीह येशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते.”

मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “ठीक है, मैं भी तुम्हें यह नहीं बताता कि मैं ये सब किस अधिकार से कर रहा हूं.”