መክብብ 2 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

መክብብ 2:1-26

ምድራዊ ደስታ ከንቱ ነው

1እኔም በልቤ፣ “መልካም የሆነውን ለማወቅ፣ በተድላ እፈትንሃለሁ” አልሁ፤ ነገር ግን ያም ከንቱ ነበረ። 2ደግሞም፣ “ሣቅ ሞኝነት ነው፤ ተድላስ ምን ይጠቅማል?” አልሁ። 3አሁንም አእምሮዬ በጥበብ እየመራኝ ራሴን በወይን ጠጅ ደስ ለማሰኘት፣ ሞኝነትንም ለመያዝ ሞከርሁ፤ ሰዎች በዐጭር የሕይወት ዘመናቸው ከሰማይ በታች ባለው ላይ ቢሠሩት ሊጠቅማቸው የሚችል ምን እንደ ሆነ ለማየት ፈለግሁ።

4ታላላቅ ነገሮችን አከናወንሁ፤ ለራሴ ቤቶችን ሠራሁ፤ ወይንንም ተከልሁ፤ 5አትክልትን ተከልሁ፤ የመዝናኛ ስፍራዎችን አዘጋጀሁ፤ በእነዚህም ላይ ፍሬ የሚያፈሩ የዛፍ ዐይነቶችን ሁሉ ተከልሁባቸው፤ 6የሚለመልሙ ዛፎችን፣ ለቦይ የሚሆኑ የውሃ ማጠራቀሚያዎችን ሠራሁ። 7ወንድና ሴት ባሪያዎችን ገዛሁ፤ በቤቴም የተወለዱ ሌሎች ባሪያዎች ነበሩኝ። ከእኔ በፊት በኢየሩሳሌም ከነበሩት ይልቅ ብዙ የከብት፣ የበግና የፍየል መንጋዎች ነበሩኝ። 8ለራሴም ብርንና ወርቅን፣ የነገሥታትና የአውራጃዎችን ሀብት አካበትሁ፤ ወንድና ሴት አዝማሪዎች፣ የሰው መደሰቻ የሆኑ ቅምጦች2፥8 በዕብራይስጥ የዚህ ሐረግ ትርጕም አይታወቅም ነበሩኝ። 9ከእኔ በፊት በኢየሩሳሌም ከነበሩት ሁሉ ይልቅ እጅግ ታላቅ ሆንሁ፤ በዚህ ሁሉ ጥበቤ ከእኔ ጋር ነበረች።

10ዐይኔ የፈለገውን ሁሉ አልከለከልሁትም፤

ለልቤም ምድራዊ ደስታን አልነፈግሁትም፤

ልቤ በሠራሁት ሁሉ ደስ አለው፤

ይህም የድካሜ ሁሉ ዋጋ ነበረ።

11ሆኖም እጆቼ የሠሩትን ሁሉ፣

ለማግኘትም የደከምሁትን ድካም ሁሉ ሳስብ፣

ሁሉም ከንቱ፣ ነፋስንም እንደ መከተል ነበር፤

ከፀሓይ በታች ምንም ትርፍ አልነበረም።

ጥበብና ሞኝነት ከንቱ ናቸው

12ከዚያም ጥበብን፣

እብደትንና ሞኝነትን ለመመርመር ሐሳቤን መለስሁ፤

አስቀድሞ ከተደረገው በቀር፣

ከንጉሥ በኋላ የሚመጣው ሰው ምን ሊያደርግ ይችላል?

13ብርሃን ከጨለማ እንደሚበልጥ ሁሉ፣

ጥበብም ከሞኝነት እንደሚበልጥ ተመለከትሁ።

14የጠቢብ ሰው ዐይኖች ያሉት በራሱ ውስጥ ነው፤

ሞኝ ግን በጨለማ ውስጥ ይራመዳል፤

ሆኖም የሁለቱም ዕድል ፈንታ፣

አንድ መሆኑን ተገነዘብሁ።

15ከዚያም በልቤ፣

“የሞኙ ዕድል ፈንታ በእኔም ላይ ይደርሳል፤

ታዲያ ጠቢብ በመሆኔ ትርፌ ምንድን ነው?” አልሁ።

በልቤም፣

“ይህም ደግሞ ከንቱ ነው” አልሁ።

16ጠቢቡም ሰው እንደ ሞኙ ለዘላለም አይታወስምና፤

በሚመጡት ዘመናት ሁለቱም ይረሳሉ።

ለካ፣ ጠቢቡም እንደ ሞኙ መሞቱ አይቀርም!

ጥረት ከንቱ ነው

17ስለዚህ ከፀሓይ በታች የሚሠራው ሥራ አሳዛኝ ስለ ሆነብኝ ሕይወትን ጠላሁ፤ ይህም ሁሉ ከንቱ፣ ነፋስንም እንደ መከተል ነው። 18ከፀሓይ በታች የደከምሁበትን ነገር ሁሉ ጠላሁት፣ ከኋላዬ ለሚመጣው የግድ እተውለታለሁና። 19እርሱ ጠቢብ ወይም ሞኝ ይሆን እንደ ሆነ ማን ያውቃል? ሆኖም ከፀሓይ በታች ድካሜንና ችሎታዬን ባፈሰስሁበት ሥራ ሁሉ ላይ ባለቤት ይሆንበታል፤ ይህም ደግሞ ከንቱ ነው። 20ስለዚህ ከፀሓይ በታች በደከምሁበት ነገር ሁሉ ላይ ልቤ ተስፋ መቍረጥ ጀመረ፤ 21ምክንያቱም ሰው ሥራውን በጥበብ፣ በዕውቀትና በብልኀት ሠርቶ፣ ከዚያ ያለውን ሁሉ ለሌላ ላልለፋበት ሰው ይተውለታል። ይህም ደግሞ ከንቱና ትልቅ ጕዳት ነው። 22ሰው ከፀሓይ በታች በሚደክምበት ጥረትና ልፋት ሁሉ ትርፉ ምንድን ነው? 23በዘመኑ ሁሉ ሥራው ሥቃይና ሐዘን ነው፤ በሌሊትም እንኳ ቢሆን አእምሮው አያርፍም። ይህም ደግሞ ከንቱ ነው።

24ለሰው ከመብላትና ከመጠጣት፣ በሥራውም ከመርካት ሌላ የሚሻለው ነገር የለውም፤ ይህም ደግሞ ከእግዚአብሔር እጅ እንደሚሰጥ አየሁ፤ 25ከእርሱ ዘንድ ካልሆነ ማን መብላትና መደሰት ይችላል? 26እግዚአብሔር፣ ደስ ለሚያሰኘው ሰው ጥበብን፣ ዕውቀትንና ደስታን ይሰጠዋል። ለኀጢአተኛ ግን፣ እግዚአብሔርን ደስ ለሚያሰኘው ይተውለት ዘንድ፣ ሀብትን የመሰብሰብና የማከናወን ተግባር ይሰጠዋል። ይህም ከንቱ፣ ነፋስንም እንደ መከተል ነው።

Hindi Contemporary Version

उद्बोधक 2:1-26

समृद्धि और सुख-विलास भी बेकार

1मैंने अपने आपसे कहा, “चलो, मैं आनंद के द्वारा तुम्हें परखूंगा.” इसलिये आनंदित और मगन हो जाओ. मगर मैंने यही पाया कि यह भी बेकार ही है. 2मैंने हंसी के बारे में कहा, “यह बावलापन है” और आनंद के बारे में, “इससे क्या मिला?” 3जब मेरा मन यह सोच रहा था कि किस प्रकार मेरी बुद्धि बनी रहे, मैंने अपने पूरे मन से इसके बारे में खोज कर डाली कि किस प्रकार दाखमधु से शरीर को बहलाया जा सकता है और किस प्रकार मूर्खता को काबू में किया जा सकता है, कि मैं यह समझ सकूं कि पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए उनके छोटे से जीवन में क्या करना अच्छा है.

4मैंने अपने कामों को बढ़ाया: मैंने अपने लिए घरों को बनाया, मैंने अपने लिए अंगूर के बगीचे लगाए. 5मैंने बगीचे और फलों के बागों को बनाया और उनमें सब प्रकार के फलों के पेड़ लगाए. 6वनों में सिंचाई के लिए मैंने तालाब बनवाए ताकि उससे पेड़ बढ़ सकें. 7मैंने दास-दासी खरीदें जिनकी मेरे यहां ही संतानें भी पैदा हुईं. मैं बहुत से गाय-बैलों का स्वामी हो गया. जो मुझसे पहले थे उनसे कहीं अधिक मेरे गाय-बैल थे. 8मैंने अपने आपके लिए सोने, चांदी तथा राज्यों व राजाओं से धन इकट्ठा किया, गायक-गायिकाएं चुन लिए और उपपत्नियां भी रखीं जिससे पुरुषों को सुख मिलता है. 9मैं येरूशलेम में अपने से पहले वालों से बहुत अधिक महान हो गया. मेरी बुद्धि ने हमेशा ही मेरा साथ दिया.

10मेरी आंखों ने जिस किसी चीज़ की इच्छा की;

मैंने उन्हें उससे दूर न रखा और न अपने मन को किसी आनंद से;

क्योंकि मेरी उपलब्धियों में मेरी संतुष्टि थी,

और यही था मेरे परिश्रम का पुरुस्कार.

11इसलिये मैंने अपने द्वारा किए गए सभी कामों को,

और अपने द्वारा की गई मेहनत को नापा,

और यही पाया कि यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना था;

और धरती पर इसका कोई फायदा नहीं.

बुद्धि मूर्खता से बड़ी

12सो मैंने बुद्धि, बावलेपन

तथा मूर्खता के बारे में विचार किया.

राजा के बाद आनेवाला इसके अलावा और क्या कर सकता है?

केवल वह जो पहले से होता आया है.

13मैंने यह देख लिया कि बुद्धि मूर्खता से बेहतर है,

जैसे रोशनी अंधकार से.

14बुद्धिमान अपने मन की आंखों से व्यवहार करता है,

जबकि मूर्ख अंधकार में चलता है.

यह सब होने पर भी मैं जानता हूं

कि दोनों का अंतिम परिणाम एक ही है.

15मैंने मन में विचार किया,

जो दशा मूर्ख की है वही मेरी भी होगी.

तो मैं अधिक बुद्धिमान क्यों रहा?

“मैंने स्वयं को याद दिलाया,

यह भी बेकार ही है.”

16बुद्धिमान को हमेशा याद नहीं किया जाएगा जैसे मूर्ख को;

कुछ दिनों में ही वे भुला दिए जाएंगे.

बुद्धिमान की मृत्यु कैसे होती है? मूर्ख के समान ही न!

मेहनत की व्यर्थता

17इसलिये मुझे जीवन से घृणा हो गई क्योंकि धरती पर जो कुछ किया गया था वह मेरे लिए तकलीफ़ देनेवाला था; क्योंकि सब कुछ बेकार और हवा से झगड़ना था. 18इसलिये मैंने जो भी मेहनत इस धरती पर की थी उससे मुझे नफ़रत हो गई, क्योंकि इसे मुझे अपने बाद आनेवाले के लिए छोड़ना पड़ेगा. 19और यह किसे मालूम है कि वह बुद्धिमान होगा या मूर्ख. मगर वह उन सभी वस्तुओं का अधिकारी बन जाएगा जिनके लिए मैंने धरती पर बुद्धिमानी से मेहनत की. यह भी बेकार ही है. 20इसलिये धरती पर मेरे द्वारा की गई मेहनत के प्रतिफल से मुझे घोर निराशा हो गई. 21कभी एक व्यक्ति बुद्धि, ज्ञान और कुशलता के साथ मेहनत करता है और उसे हर एक वस्तु उस व्यक्ति के आनंद के लिए त्यागनी पड़ती है जिसने उसके लिए मेहनत ही नहीं की. यह भी बेकार और बहुत बुरा है. 22मनुष्य को अपनी सारी मेहनत और कामों से, जो वह धरती पर करता है, क्या मिलता है? 23वास्तव में सारे जीवन में उसकी पूरी मेहनत दुःखों और कष्टों से भरी होती है; यहां तक की रात में भी उसके मन को और दिमाग को आराम नहीं मिल पाता. यह भी बेकार ही है.

24मनुष्य के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं है कि वह खाए, पिए और खुद को विश्वास दिलाए कि उसकी मेहनत उपयोगी है. मैंने यह भी पाया है कि इसमें परमेश्वर का योगदान होता है, 25नहीं तो कौन परमेश्वर से अलग हो खा-पीकर सुखी रह सकता है? 26क्योंकि जो मनुष्य परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, उसे परमेश्वर ने बुद्धि, ज्ञान और आनंद दिया है, मगर पापी को परमेश्वर ने इकट्ठा करने और बटोरने का काम दिया है सिर्फ इसलिये कि वह उस व्यक्ति को दे दे जो परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है. यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना है.