መሳፍንት 20 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

መሳፍንት 20:1-48

እስራኤላውያን ከብንያማውያን ጋር ተዋጉ

1ከዚያም ከዳን እስከ ቤርሳቤህ ያሉ እንዲሁም በገለዓድ ምድር የሚገኙ እስራኤላውያን ሁሉ እንደ አንድ ሰው ሆነው ወጡ፤ በምጽጳም በእግዚአብሔር ፊት ተሰበሰቡ። 2የእስራኤል ሕዝብ ነገዶች ሁሉ ቍጥራቸው አራት መቶ ሺሕ በሚሆን፣ ሰይፍ በሚመዙ እግረኞች ወታደሮች በሆኑ በእግዚአብሔር ሕዝብ ጉባኤ መካከል ተገኙ። 3በዚህ ጊዜ ብንያማውያን፣ እስራኤላውያን ወደ ምጽጳ መውጣታቸውን ሰሙ፤ ከዚያም እስራኤላውያን፣ “ይህ ክፉ ድርጊት እንዴት እንደ ተፈጸመ እስቲ ንገሩን?” ተባባሉ።

4ስለዚህ የተገደለችው ሴት ባል ሌዋዊ እንዲህ ሲል መለሰ፤ “እኔና ቁባቴ በዚያ ለማደር በብንያም ወደምትገኘው ወደ ጊብዓ መጣን። 5የጊብዓም ሰዎች በሌሊት ሊገድሉኝ ያደርኩበትን ቤት ከበቡት፤ ከዚያም በቁባቴ ላይ ስለ አመነዘሩባት ሞተች። 6የቁባቴንም ሬሳ ከቈራረጥሁ በኋላ እያንዳንዱን ቍራጭ፣ እያንዳንዱ የእስራኤል ርስት ወዳለበት አገር ሰደድሁ፤ ይህን ያደረግሁትም ሰዎቹ በእስራኤል ዘንድ አሠቃቂና አስነዋሪ ድርጊት ስለ ፈጸሙ ነው። 7አሁንም እናንተ እስራኤላውያን ሁሉ በጕዳዩ ላይ ተወያዩበት፤ ፍርዳችሁንም ስጡ።”

8ከዚያም ሕዝቡ እንደ አንድ ሰው ሆነው በመነሣት እንዲህ አሉ፤ “ከእኛ ማንም ሰው ወደ ድንኳኑ አይሄድም፤ ማንኛችንም ወደ ቤታችን አንመለስም። 9ነገር ግን በጊብዓ ላይ የምናደርገው ይህ ነው፤ በዕጣው መሠረት እንዘምትበታለን። 10ከመላው የእስራኤል ነገዶችም ለሰራዊቱ ስንቅ እንዲይዙ፣ ከመቶው ዐሥር፣ ከሺው አንድ መቶ፣ ከዐሥር ሺው ደግሞ አንድ ሺሕ ሰው እንወስዳለን። ከዚያም ሰራዊቱ በብንያም ወደምትገኘው ጊብዓ በሚደርስበት ጊዜ፣ ነዋሪዎቿ በእስራኤል ላይ ለፈጸሙት አስነዋሪ ድርጊት ተገቢውን ቅጣት ይሰጣቸዋል።” 11ስለዚህ የእስራኤል ሰዎች ሁሉ እንደ አንድ ሰው ሆነው በመተባበር በከተማዪቱ ላይ ዘመቱባት።

12የእስራኤል ነገዶች ለመላው የብንያም ነገድ እንዲህ በማለት መልእክተኞች ላኩ፣ “በመካከላችሁ የተፈጸመው ይህ ክፉ ድርጊት ምንድን ነው? 13አሁንም እነርሱን ገድለን ይህን ክፉ ድርጊት ከእስራኤል እንድናስወግድ፣ እነዚያን የጊብዓን ወስላቶች አሳልፋችሁ ስጡን።”

ብንያማውያን ግን ወገኖቻቸውን እስራኤላውያንን አልሰሟቸውም ነበር፤ 14ስለዚህ እስራኤላውያንን ለመውጋት ከየከተሞቻቸው በአንድነት ወደ ጊብዓ መጡ። 15ብንያማውያንም ከመላው የጊብዓ ነዋሪዎች መካከል ከተመረጡት ሰባት መቶ ሰዎች ሌላ፣ ሰይፍ የታጠቁ ሃያ ስድስት ሺሕ ሰዎች በአንድ አፍታ ከየከተሞቻቸው በተጨማሪ አሰባሰቡ። 16በእነዚህም ሁሉ መካከል እያንዳንዳቸው ድንጋይ ወንጭፈው ጠጕር እንኳ የማይስቱ ሰባት መቶ ምርጥ ግራኞች ነበሩ።

17እስራኤላውያን፣ ብንያማውያንን ሳይጨምር፣ ሰይፍ የታጠቁ አራት መቶ ሺሕ ተዋጊዎች አሰባሰቡ።

18እስራኤላውያን ወደ ቤቴል20፥18 ወይም ወደ እግዚአብሔር ቤት፤ በቁ 26 ላይም እንደዚሁ ወጡ፤ እግዚአብሔርንም፣ “ብንያማውያንን ለመውጋት ከመካከላችን ማን ቀድሞ ይውጣ?” ሲሉ ጠየቁ።

እግዚአብሔርም፣ “ይሁዳ ቀድሞ ይውጣ” ብሎ መለሰ።

19በማግስቱም ጧት እስራኤላውያን ተነሥተው በጊብዓ አጠገብ ሰፈሩ፤ 20የእስራኤል ሰዎች ብንያማውያንን ለመውጋት ሄዱ፤ በጊብዓ ለሚያደርጉትም ውጊያ ቦታ ቦታቸውን ያዙ። 21ብንያማውያን ከጊብዓ ወጡ፤ በዚያችም ዕለት ከእስራኤላውያን ሃያ ሁለት ሺሕ ሰዎች ገደሉ። 22ይሁን እንጂ እስራኤላውያን እርስ በርሳቸው ተበረታትተው በመጀመሪያው ቀን ተሰልፈው በነበረበት ስፍራ ላይ እንደ ገና ቦታ ቦታቸውን ያዙ። 23እስራኤላውያን ወጥተው እስኪመሽ ድረስ በእግዚአብሔር ፊት አለቀሱ፤ “ወንድሞቻችንን ብንያማውያንን ለመግጠም እንደ ገና እንውጣን?” ብለው እግዚአብሔርን ጠየቁ።

እግዚአብሔርም፣ “አዎን፤ ውጡና ግጠሟቸው” ብሎ መለሰላቸው።

24በሁለተኛው ቀን እስራኤላውያን ወደ ብንያማውያን ተጠጉ። 25በዚሁ ጊዜም ብንያማውያን፣ እስራኤላውያንን ሊወጉ ከጊብዓ ወጡ፤ እንደ ገናም በሙሉ ሰይፍ የታጠቁ ዐሥራ ስምንት ሺሕ ሰዎች ገደሉ።

26የእስራኤልም ሕዝብ ሁሉ ወደ ቤቴል ወጡ፤ እዚያም እያለቀሱ በእግዚአብሔር ፊት ተቀመጡ፤ በዚያን ቀን እስኪመሽ ድረስ ጾሙ፤ በእግዚአብሔር ፊት የሚቃጠል መሥዋዕትና የኅብረት መሥዋዕት20፥26 በትውፊት የሰላም መሥዋዕት ይባላል። አቀረቡ። 27እስራኤላውያንም የእግዚአብሔርን ፈቃድ ጠየቁ፤ በዚያን ጊዜ የእግዚአብሔር የኪዳኑ ታቦት እዚያው ነበር፤ 28የአሮን ልጅ፣ የአልዓዛር ልጅ ፊንሐስም በፊቱ ይቆም ነበር። እስራኤላውያንም፣ “ወንድሞቻችንን ብንያማውያንን እንደ ገና ሄደን ጦርነት እንግጠማቸው ወይስ ይቅር?” ሲሉ ጠየቁ።

እግዚአብሔርም፣ “ሂዱ፤ በነገው ዕለት በእጃችሁ እሳልፌ እሰጣችኋለሁ” አላቸው።

29ከዚያም እስራኤላውያን በጊብዓ ዙሪያ ድብቅ ጦር አኖሩ። 30በሦስተኛውም ቀን ብንያማውያንን ለመውጋት ወጡ፤ ከዚህ በፊት እንዳደረጉት ሁሉ ጊብዓን ለመውጋት ቦታ ቦታቸውን ያዙ። 31ብንያማውያንም ሊገጥሟቸው ወጡ፤ ከከተማዪቱም ርቀው እንዲሄዱ ተደረጉ፤ እንደ በፊቱም እስራኤላውያንን ይገድሉ ጀመር። ከዚህ የተነሣም በሜዳው እንዲሁም ወደ ቤቴልና ወደ ጊብዓ በሚወስደው መንገዶች ላይ ሠላሳ ያህል ሰዎች ወድቀው ነበር።

32ብንያማውያኑ፣ “እንደ በፊቱ ይኸው ድል እያደረግናቸው ነው” አሉ፣ እስራኤላውያንም በበኩላቸው፣ “ወደ ኋላ እያፈገፈግን ከከተማዪቱ ወደ መንገዶቹ እንዲርቁ እናድርጋቸው” ይሉ ነበር።

33የእስራኤል ሰዎች በሙሉ ከነበሩበት ቦታ አፈግፍገው በበኣልታማር ስፍራ ስፍራቸውን ያዙ። ሸምቆ ይጠባበቅ የነበረው የእስራኤል ጦር ደግሞ ካደፈጠበት ከጊብዓ በስተ ምዕራብ20፥33 አንዳንድ የሰብዓ ሊቃናት ትርጕሞች ቩልጌት ከዚህ ጋር ይስማማሉ ነገር ግን የዕብራይስጡ ቃል ትርጕም በትክክል አይታወቅም። ካለው ቦታ ወጣ። 34ከዚያም ከመላው እስራኤል የተውጣጣው ዐሥር ሺሕ ጦር በጊብዓ ላይ ፊት ለፊት አደጋ ጣለ። ውጊያው ከመበርታቱ የተነሣም፣ ብንያማውያን መጥፊያቸው እየቀረበ መምጣቱን ገና አላወቁም ነበር። 35እግዚአብሔር ብንያምን በእስራኤል ፊት መታው፤ በዚያችም ዕለት እስራኤላውያን በሙሉ ሰይፍ የታጠቁ ሃያ አምስት ሺሕ አንድ መቶ ብንያማውያንን ገደሉ። 36ከዚህ የተነሣ ብንያማውያን ድል መሆናቸውን ተረዱ።

በዚህ ጊዜ እስራኤላውያን ጊብዓ ላይ ባኖሩት ድብቅ ጦር ስለ ተማመኑ የተሸነፉ በመምሰል ለብንያማውያን ቦታ ለቀቁ። 37ከዚያም ሸምቀው የነበሩት ሰዎች በድንገት እየተወረወሩ ወደ ጊብዓ ገቡ፤ በየቦታው ተሠራጭተውም መላዪቱን ከተማ በሰይፍ መቱ። 38የእስራኤል ሰዎች ያሸመቀው ጦር በከተማዪቱ ውስጥ ከባድ የጢስ ደመና ምልክት እንዲያሳይ፣ 39እስራኤላውያንም ይህን ሲያዩ ወዲያውኑ እንዲያፈገፍጉ ተስማሙ።

ብንያማውያንን ማጥቃት እንደ ጀመሩ፣ ሠላሳ እስራኤላውያንን ስለ ገደሉ፣ “እንደ መጀመሪያው የጦርነት ጊዜ እያሸነፍናቸው ነው” አሉ። 40ነገር ግን የጢሱ ዐምድ ከከተማዪቱ መነሣት በጀመረ ጊዜ፣ ብንያማውያን ወደ ኋላቸው ዞረው የመላዪቱ ከተማ ጢስ ወደ ሰማይ ሲወጣ አዩ። 41ከዚያም እስራኤላውያን ዞረው አጠቋቸው፤ በዚህ ጊዜ ብንያማውያን ጥፋት እንደ ደረሰባቸው ስላወቁ እጅግ ደነገጡ። 42ስለዚህም ጀርባቸውን አዙረው ከእስራኤላውያን ፊት ወደ ምድረ በዳው ሸሹ፤ ሆኖም ከጦርነት ማምለጥ አልቻሉም፤ ከየከተሞቹ የወጡ እስራኤላውያንም በዚያው ገደሏቸው። 43ብንያማውያንንም ከበቧቸው፤ አሳደዷቸው፤ ከጊብዓ በስተ ምሥራቅ ትይዩ ባለውም ስፍራ በቀላሉ20፥43 የዕብራይስጡ ቃል ትርጕም በትክክል አይታወቅም። አሸነፏቸው፤ 44በጦርነቱም ላይ ዐሥራ ስምንት ሺሕ ብንያማውያን ወደቁ፤ ሁሉም ምርጥ ተዋጊዎች ነበሩ። 45ብንያማውያን ጀርባቸውን አዙረው በምድረ በዳው በኩል ወደ ሬሞን ዐለት በሚሸሹበት ጊዜ፣ እስራኤላውያን በመንገድ ላይ አምስት ሺሕ ሰው ገደሉባቸው፤ እስከ ጊድአምም ድረስ ተከታትለው ሁለት ሺሕ ሰዎች በተጨማሪ ገደሉ።

46በዚያች ዕለት ሰይፍ የታጠቁ ሃያ አምስት ሺሕ ብንያማውያን በጦር ሜዳ ወደቁ፤ ሁሉም ምርጥ ተዋጊዎች ነበሩ። 47ነገር ግን ስድስት መቶ ሰዎች ጀርባቸውን አዙረው በምድረ በዳው ውስጥ ወዳለው ወደ ሬሞን ዐለት ሸሹ፤ በዚያም አራት ወር ተቀመጡ። 48ከዚያም እስራኤላውያን ወደ ብንያም ምድር ተመልሰው ከተሞቻቸውን በሙሉ እንዲሁም እንስሳቱንና በዚያ ያገኙትን ሁሉ በሰይፍ መቱ፤ በመንገዳቸው ያገኙትን ከተማ ሁሉ በእሳት አቃጠሉ።

Hindi Contemporary Version

प्रशासक 20:1-48

दोषी को दंड देने का निर्णय

1फलस्वरूप दान से बेअरशेबा तक सारे इस्राएली, जिनमें गिलआदवासी भी शामिल थे, बाहर निकल आए. उन्होंने एकजुट होकर मिज़पाह में याहवेह के सामने सभा रखी. 2लोगों के सभी प्रमुखों और यहां तक के सभी गोत्रों के प्रमुखों ने, जो तलवार चलाने में निपुण चार लाख पैदल सैनिक थे, परमेश्वर के लोगों की इस सभा में एक प्रण लिया. 3यहां बिन्यामिन वंशजों ने यह सुन लिया था कि इस्राएल वंशज मिज़पाह में इकट्ठा हुए हैं. इस्राएलियों ने उस लेवी से पूछा, “हमें बताओ, यह कुकर्म हुआ कैसे?”

4जिस स्त्री की हत्या कर दी गई थी, उसका पति, जो लेवी था, कहने लगा, “यात्रा करते हुए में अपनी उप-पत्नी के साथ गिबियाह पहुंचा, जो बिन्यामिन प्रदेश में है, जहां हमें रात बितानी ज़रूरी हो गई थी. 5मगर गिबियाह के पुरुष मेरे विरुद्ध चढ़ आए और उन्होंने रात में मेरे कारण उस घर को घेर लिया. वे तो मेरी हत्या करना चाह रहे थे, किंतु उन्होंने मेरी उप-पत्नी के साथ बलात्कार किया, फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई. 6मैंने अपनी उप-पत्नी के शव को लिया, उसके टुकड़े किए और उसके इन टुकड़ों को इस्राएल के सभी प्रदेशों में भेज दिया, क्योंकि उन्होंने इस्राएल में यह कामुक, शर्मनाक काम किया है. 7इस्राएल के सभी वंशजों, इस विषय में अपनी राय और सलाह दीजिए.”

8सारी प्रजा एकजुट हो गई. उन्होंने निश्चय किया, “हममें से कोई भी न तो अपने तंबू को और न ही अपने घर को लौटेगा. 9गिबियाह के संबंध में हमारा निर्णय है कि पासा फेंकने के द्वारा हम मालूम करेंगे कि गिबियाह पर आक्रमण के लिए कौन जाएगा. 10हम इस्राएल के हर एक गोत्र से सौ में से दस व्यक्ति अपने साथ ले लेंगे, अर्थात् एक हज़ार में से एक सौ, अर्थात् दस हज़ार में से एक हज़ार, कि वे सेना के खाने-पीने की व्यवस्था करें. जब वे सेना बिन्यामिन प्रदेश के गेबा में पहुंचे, वे उन्हें इस्राएल देश में किए गए सभी शर्मनाक कामों के लिए दंड दें.” 11इस प्रकार इस्राएल के सारे योद्धाओं ने एकजुट होकर इस नगर को घेर लिया.

12तब इस्राएल के गोत्रों ने सारे बिन्यामिन गोत्र के लिए अपने प्रतिनिधियों द्वारा यह संदेश भेजा, “तुम्हारे बीच यह कैसा दुष्टता भरा काम किया गया है? 13गिबियाह में रह रहे उन निकम्मे व्यक्तियों को हमें सौंप दो, कि हम उन्हें मृत्यु दंड दें, और इस्राएल में हुई इस दुष्टता को मिटा डाले.”

मगर बिन्यामिन वंशजों ने अपने इस्राएली भाइयों की एक न सुनी. 14बिन्यामिन वंशज अपने-अपने नगरों से आकर गिबियाह में इकट्‍ठे हुए कि वे इस्राएल वंशजों से युद्ध करें. 15उस दिन विभिन्‍न नगरों से बिन्यामिन के तलवार चलाने में निपुण जो योद्धा इकट्‍ठे हुए, उनकी गिनती छब्बीस हज़ार थी. इनके अलावा गिबियाह नगर के ही सात सौ योद्धा इनमें शामिल हो गए. 16इनमें सात सौ शूर योद्धा ऐसे थे, जो अपने बाएं हाथ के इस्तेमाल के प्रवीण थे. इनमें से हर व्यक्ति एक बाल तक पर भी अचूक निशाना साध सकता था.

17दूसरी ओर बिन्यामिन वंशजों के अलावा इस्राएली सेना में चार लाख कुशल शूर योद्धा थे.

18सारी इस्राएली सेना बेथेल गई कि परमेश्वर की इच्छा जान सके. उन्होंने परमेश्वर से पूछा, “बिन्यामिन वंशजों से युद्ध करने सबसे पहले हमारी ओर से कौन जाएगा?”

याहवेह ने उत्तर दिया, “सबसे पहले यहूदाह का जाना सही होगा.”

19इसलिये इस्राएल वंशजों ने बड़े तड़के जाकर गिबियाह के विरुद्ध पड़ाव डाला. 20इस्राएल वंशज बिन्यामिन के विरुद्ध युद्ध के लिए निकले. उन्होंने गिबियाह के विरुद्ध युद्ध के लिए मोर्चा बांध दिया. 21बिन्यामिन के सैनिक गिबियाह नगर से बाहर आए और इस्राएल के बाईस हज़ार योद्धाओं को मार गिराया. 22किंतु इस्राएल के सैनिकों ने अपना मनोबल बनाए रखते हुए दूसरे दिन भी उसी स्थान पर मोर्चा लिया, जहां पहले दिन लिया था. 23इस्राएल वंशज जाकर शाम तक याहवेह के सामने रोते रहे. उन्होंने याहवेह से पूछा, “क्या हम अपने बंधु बिन्यामिन वंशजों पर दोबारा हमला करें?”

याहवेह ने उन्हें उत्तर दिया, “जाकर उन पर हमला करो.”

24दूसरे दिन इस्राएल वंशजों ने बिन्यामिन वंशजों पर हमला कर दिया. 25गिबियाह नगर से बिन्यामिन वंशजों ने बाहर जाकर इस्राएली सेना के अठारह हज़ार सैनिकों को मार गिराया. ये सभी तलवार चलाने में कुशल थे.

26इसलिये इस्राएल वंशज और सभी प्रजा के लोग बेथेल गए और वहां जाकर रोते रहे. वे सारे दिन शाम तक याहवेह के सामने भूखे रहे. वहां उन्होंने याहवेह को होमबलि और मेल बलि भेंट की. 27इस्राएल वंशजों ने याहवेह से प्रश्न किया. (उन दिनों परमेश्वर के वाचा का संदूक बेथेल में ही था.) 28अहरोन का पोता, एलिएज़र का पुत्र फिनिहास संदूक के सामने सेवा के लिए चुना गया था. इस्राएल वंशजों ने याहवेह से पूछा, “क्या हम अब भी अपने बंधु बिन्यामिन पर हमला करने जाएं या यह विचार त्याग दें?”

याहवेह ने उत्तर दिया, “जाओ, कल मैं उन्हें तुम्हारे हाथों में सौंप दूंगा.”

29फिर इस्राएल ने गिबियाह नगर के आस-पास सैनिकों को घात लगाने के लिए बैठा दिया. 30तीसरे दिन इस्राएल वंशजों ने बिन्यामिन वंशजों पर हमला करने के लिए गिबियाह के विरुद्ध मोर्चा बांधा, जैसा उन्होंने इसके पहले भी किये थे. 31जब बिन्यामिन वंशज उनकी सेना पर हमला करने बाहर आए, पीछे हटती इस्राएली सेना उन्हें नगर से दूर ले जाने लगी. बिन्यामिन वंशज इस्राएली सैनिकों पर पहले जैसे ही वार करने लगे. प्रमुख मार्गों पर, जो बेथेल तथा गिबियाह को जाते थे, तथा खेतों में लगभग तीस इस्राएली सैनिक मार डालें गए. 32बिन्यामिन वंशजों का विचार था, “पहले जैसे ही वे हमारे सामने मार गिराए जा रहे हैं.” मगर इस्राएली सैनिकों ने कहा, “आओ, हम भागना शुरू करें कि उन्हें नगर से दूर मुख्य मार्गों पर ले आएं.”

33तब सभी इस्राएली सैनिक अपने-अपने स्थानों से निकलकर बाल-तामार नामक स्थान पर युद्ध में शामिल हो गए. वे भी, जो घात लगाए बैठे थे, बाहर निकल आए, वे भी जो मआरोह-गीबा में थे. 34जब सारे इस्राएल से चुने गए दस हज़ार सैनिकों ने गिबियाह पर हमला किया, युद्ध बहुत ही प्रचंड हो गया; मगर बिन्यामिन वंशजों को यह तनिक भी अहसास न था कि महाविनाश उनके पास आ चुका था. 35याहवेह ने इस्राएल के सामने बिन्यामिन को मार गिराया. उस दिन इस्राएल ने पच्चीस हज़ार एक सौ बिन्यामिनी सैनिकों को मार गिराया. ये सभी तलवार चलाने में निपुण थे. 36बिन्यामिन वंशजों को अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी.

जब इस्राएली सैनिक बिन्यामिन वंशजों से पीछे हट गये, क्योंकि वे पूरी तरह उन सैनिकों पर निर्भर थे, जो गिबियाह के विरुद्ध घात लगाए बैठे हुए थे, 37तब घात लगाए सैनिक बड़ी ही तेजी से गिबियाह नगर पर टूट पड़े. वे सारे नगर में फैल गए और पूरे नगर को तलवार से मार डाला. 38इस्राएली सैनिकों और घात लगाए सैनिकों के बीच पहले से तय किया गया संकेत यह था कि वे नगर में आग लगाकर धुएं का बहुत बड़ा बादल उठाएंगे, 39तब यह देखते ही इस्राएली सेना का प्रमुख दल को युद्ध-भूमि में लौट आना है.

बिन्यामिन सैनिकों ने लगभग तीस इस्राएली सैनिकों को मार गिराया था. उनका विचार था, “निश्चित ही पहले के युद्ध के समान ये लोग हमसे हार चुके हैं.” 40मगर जैसे ही नगर के ऊपर धुएं का खंभा उठने लगा, बिन्यामिन वंशजों ने मुड़कर देखा कि पूरा नगर धुएं में आकाश की ओर उठ रहा है. 41इस्राएली सैनिक पलट कर वार करने लगे और बिन्यामिन वंशज भयभीत हो गए, क्योंकि उन्हें साफ़ दिख रहा था कि उन पर महाविनाश आ पड़ा है. 42अब वे इस्राएली सेना को पीठ दिखाकर निर्जन प्रदेश की ओर भागने लगे; किंतु वे विनाश से बच न सके. उन्होंने, जो नगरों से निकल आए थे, उन्हें अपने बीच में मारना शुरू कर दिया. 43उनका पीछा करते हुए उन्होंने बिन्यामिन वंशजों को घेर लिया, बिना रुके गिबियाह के पास पूर्व में, खदेड़ कर उन्हें रौंद डाला. 44इस युद्ध में बिन्यामिन के अट्ठारह हज़ार सैनिक गिरे. ये सभी वीर योद्धा थे. 45बाकी पीठ दिखाकर निर्जन प्रदेश में रिम्मोन की चट्टान की ओर भागे, मगर इनमें से पांच हज़ार मुख्य मार्गों पर पकड़ लिए गए, और उन्हें गीदोम नामक स्थान पर पकड़कर उनमें से दो हज़ार का वध कर दिया गया.

46इसलिये उस दिन वध किए सैनिकों की सारी गिनती पच्चीस हज़ार हो गई. से सभी कुशल हज़ार सैनिक थे-तलवार चलाने में निपुण. 47मगर छः सौ सैनिक मुड़कर निर्जन प्रदेश में रिम्मोन की चट्टान की दिशा में भागे. वे रिम्मोन की चट्टान के निकट चार महीने तक रहते रहे. 48तब इस्राएली सेना बिन्यामिन वंशजों के नगरों की ओर बढ़ें और सभी को तलवार से वध कर दिया. सारे नगर नाश कर दिए गए, उन्होंने जो भी मिला, नगरवासी और पशुओं सभी का वध कर दिया. उन्हें जितने नगर मिलते गए, वे उनमें आग लगाते चले गए.