ሉቃስ 21 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

ሉቃስ 21:1-38

መበለቷ የሰጠችው መባ

21፥1-4 ተጓ ምብ – ማር 12፥41-44

1ኢየሱስ ቀና ብሎ ሲመለከት ሀብታሞች በቤተ መቅደሱ መባ መሰብሰቢያ ውስጥ መባቸውን ሲጨምሩ አየ። 2ደግሞም አንዲት ድኻ መበለት ሁለት ትንንሽ የናስ ሳንቲሞች በዚያ ስትጨምር ተመለከተ። 3እንዲህም አለ፤ “እውነት እላችኋለሁ፤ ከሁሉም ይልቅ ይህች ድኻ መበለት የበለጠ ሰጥታለች። 4እነዚህ ሰዎች የሰጡት ከትርፋቸው ላይ ሲሆን፣ እርሷ ግን የሰጠችው በድኻ ዐቅሟ ያላትን መተዳደሪያ በሙሉ ነው።”

የዘመኑ መጨረሻ ምልክቶች

21፥5-36 ተጓ ምብ – ማቴ 24ማር 13

21፥12-17 ተጓ ምብ – ማቴ 10፥17-22

5ከደቀ መዛሙርት አንዳንዶች ቤተ መቅደሱ በውብ ድንጋዮችና በስእለት ስጦታዎች እንዳማረ ሲነጋገሩ፣ ኢየሱስ እንዲህ አለ፤ 6“ይህ የምታዩት ሁሉ ሳይፈርስ ድንጋይ በድንጋይ ላይ እንደ ተካበ የማይቀርበት ጊዜ ይመጣል።”

7እነርሱም፣ “መምህር ሆይ፤ እንግዲህ ይህ ሁሉ የሚሆነው መቼ ነው? ደግሞም ይህ እንደሚሆን ምልክቱ ምንድን ነው?” ብለው ጠየቁት።

8እርሱም እንዲህ ሲል መለሰላቸው፤ “እንዳትስቱ ተጠንቀቁ፤ ብዙዎች፣ ‘እኔ እርሱ ነኝ’ በማለት፣ ደግሞም፣ ‘ጊዜው ቀርቧል’ እያሉ በስሜ ይመጣሉና፤ እናንተ ግን እነርሱን አትከተሏቸው። 9ስለ ጦርነትና ስለ ሕዝብ ዐመፅ ስትሰሙ አትደንግጡ፤ ይህ አስቀድሞ መሆን የሚገባው ነውና፤ መጨረሻው ግን ወዲያውኑ አይሆንም።”

10ቀጥሎም እንዲህ አላቸው፤ “ሕዝብ በሕዝብ ላይ፣ መንግሥትም በመንግሥት ላይ ይነሣል፤ 11ታላቅ የመሬት መናወጥ ይሆናል፤ ራብና ቸነፈር በተለያየ ስፍራ ይከሠታል፤ አስፈሪ ነገር እንዲሁም ከሰማይ ታላቅ ምልክት ይሆናል።

12“ይህ ሁሉ ከመሆኑ በፊት ግን ሰዎች ይይዟችኋል፤ ያሳድዷችኋል፤ ወደ ምኵራብና ወደ ወህኒ ቤት ያስገቧችኋል፤ በነገሥታትና በገዥዎች ፊት ያቀርቧችኋል፤ ይህም ሁሉ በስሜ ምክንያት ይደርስባችኋል። 13ይህም ለመመስከር ጥሩ ዕድል ይሆንላችኋል። 14ስለዚህ ምን መልስ እንሰጣለን በማለት አስቀድማችሁ እንዳትጨነቁ ይህን ልብ በሉ፤ 15ተቃዋሚዎቻችሁ ሁሉ ሊቋቋሙትና ሊያስተባብሉት የማይችሉትን ቃልና ጥበብ እሰጣችኋለሁና። 16ወላጆቻችሁ፣ ወንድሞቻችሁ፣ ዘመዶቻችሁና ጓደኞቻችሁ እንኳ ሳይቀሩ አሳልፈው ይሰጧችኋል፤ ከእናንተም አንዳንዶቹን ይገድላሉ፤ 17ስለ ስሜም በሰዎች ሁሉ ዘንድ የተጠላችሁ ትሆናላችሁ። 18ነገር ግን ከራሳችሁ ጠጕር አንዷ እንኳ አትጠፋም፤ 19ጸንታችሁም በመቆም ነፍሳችሁን ታተርፋላችሁ።

20“ኢየሩሳሌም በጦር ሰራዊት ተከብባ በምታዩበት ጊዜ፣ ጥፋቷ መቃረቡን ዕወቁ። 21በዚያን ጊዜ በይሁዳ ያሉ ወደ ተራሮች ይሽሹ፤ በከተማ ያሉትም ከዚያ ይውጡ፤ በገጠር ያሉትም ወደ ከተማዪቱ አይግቡ፤ 22የተጻፈው ሁሉ ይፈጸም ዘንድ ይህ የበቀል ጊዜ ነውና። 23በምድሪቱ ላይ ታላቅ መከራ ይሆናል፤ በዚህም ሕዝብ ላይ ቍጣ ይመጣል፤ ስለዚህ በዚያን ወቅት ለነፍሰ ጡሮችና ለሚያጠቡ እናቶች ወዮላቸው! 24በሰይፍ ይወድቃሉ፤ ወደ አሕዛብም ሁሉ በምርኮ ይወሰዳሉ፤ ኢየሩሳሌምም የአሕዛብ ዘመን እስኪፈጸም ድረስ በአሕዛብ የተረገጠች ትሆናለች።

25“በፀሓይ፣ በጨረቃና በከዋክብት ላይ ምልክት ይሆናል፤ ከባሕሩና ከሞገድ ድምፅ የተነሣ፣ በምድር ላይ ያሉ ሕዝቦች ይጨነቃሉ፤ ይታወካሉም። 26የሰማያት ኀይላት ስለሚናወጡ፣ ሰዎች በፍርሀትና በዓለም ላይ ምን ይመጣ ይሆን እያሉ በመጠባበቅ ይዝላሉ። 27በዚያን ጊዜ የሰው ልጅ በኀይልና በታላቅ ክብር በደመና ሲመጣ ያዩታል። 28እናንተም እነዚህ ነገሮች መፈጸም ሲጀምሩ፣ መዳናችሁ ስለ ተቃረበ ቀጥ ብላችሁ ቁሙ፤ ራሳችሁንም ወደ ላይ ቀና አድርጉ።”

29ቀጥሎም እንዲህ ሲል ይህን ምሳሌ ነገራቸው፤ “በለስንና ዛፎችን ሁሉ ተመልከቱ፤ 30ቅጠሎቻቸው አቈጥቍጠው ስታዩ፣ በዚያን ጊዜ በጋ መቃረቡን ራሳችሁ ታውቃላችሁ። 31እንዲሁ ደግሞ እነዚህ ነገሮች መፈጸማቸውን ስታዩ፣ የእግዚአብሔር መንግሥት እንደ ቀረበች ዕወቁ።

32“እውነት እላችኋለሁ፤ ይህ ሁሉ እስኪፈጸም ድረስ ይህ ትውልድ አያልፍም።21፥32 ወይም ዘር 33ሰማይና ምድር ያልፋሉ፤ ቃሌ ግን አያልፍም።

34“እንግዲህ በገደብ የለሽ ሕይወት፣ በመጠጥ ብዛትና ስለ ኑሮ በመጨነቅ ልባችሁ እንዳይዝልና ያ ቀን እንደ ወጥመድ ድንገት እንዳይደርስባችሁ ተጠንቀቁ፤ 35ይህ በመላው ምድር በሚኖሩት ሁሉ ላይ ይደርሳልና። 36ስለዚህ ከሚመጣው ሁሉ እንድታመልጡና በሰው ልጅ ፊት መቆም እንድትችሉ ሁልጊዜ ተግታችሁ ጸልዩ።”

37ኢየሱስም ቀን ቀን በቤተ መቅደስ እያስተማረ፣ ሌሊት ግን ደብረ ዘይት ወደ ተባለ ተራራ ወጥቶ ያድር ነበር። 38ሕዝቡም ሁሉ ሊሰሙት ማልደው ወደ ቤተ መቅደስ ወደ እርሱ ይመጡ ነበር።

Hindi Contemporary Version

लूकॉस 21:1-38

कंगाल विधवा का दान

1प्रभु येशु ने देखा कि धनी व्यक्ति दानकोष में अपना अपना दान डाल रहे हैं. 2उन्होंने यह भी देखा कि एक निर्धन विधवा ने दो छोटे सिक्‍के डाले हैं. 3इस पर प्रभु येशु ने कहा, “सच यह है कि इस निर्धन विधवा ने उन सभी से बढ़कर दिया है. 4इन सबने तो अपने धन की बढ़ती में से दिया है किंतु इस विधवा ने अपनी कंगाली में से अपनी सारी जीविका ही दे दी है.”

अंत काल की घटनाओं का प्रकाशन

5जब कुछ शिष्य मंदिर के विषय में चर्चा कर रहे थे कि यह भवन कितने सुंदर पत्थरों तथा मन्नत की भेंटों से सजाया है; 6प्रभु येशु ने उनसे कहा, “जिन वस्तुओं को तुम इस समय सराह रहे हो, एक दिन आएगा कि इन भवनों का एक भी पत्थर दूसरे पर स्थापित न दिखेगा—हर एक पत्थर भूमि पर पड़ा होगा.”

7उन्होंने प्रभु येशु से प्रश्न किया, “गुरुवर, यह कब घटित होगा तथा इनके पूरा होने के समय का चिन्ह क्या होगा?”

8प्रभु येशु ने उत्तर दिया, “सावधान रहना कि तुम भटका न दिए जाओ, क्योंकि मेरे नाम में अनेक आएंगे और दावा करेंगे, ‘मैं हूं मसीह’ तथा ‘वह समय पास आ गया है,’ किंतु उनकी न सुनना. 9जब तुम युद्धों तथा बलवों के समाचार सुनो तो भयभीत न होना. इनका पहले घटना ज़रूरी है फिर भी इनके तुरंत बाद अंत नहीं होगा.”

10तब प्रभु येशु ने उनसे कहा, “राष्ट्र-राष्ट्र के तथा राज्य-राज्य के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. 11भीषण भूकंप आएंगे. विभिन्‍न स्थानों पर महामारियां होंगी तथा अकाल पड़ेंगे. भयावह घटनाएं होंगी तथा आकाश में अचंभित दृश्य दिखाई देंगे.

12“इन सबके पहले वे तुम्हें पकड़ लेंगे और तुम्हें यातनाएं देंगे. मेरे नाम के कारण वे तुम्हें सभागृहों में ले जाएंगे, बंदीगृह में डाल देंगे तथा तुम्हें राजाओं और राज्यपालों के हाथों में सौंप देंगे. 13तुम्हें गवाही देने का सुअवसर प्राप्‍त हो जाएगा. 14इसलिये यह सुनिश्चित करो कि तुम पहले ही अपने बचाव की तैयारी नहीं करोगे, 15क्योंकि तुम्हें अपने बचाव में कहने के विचार तथा बुद्धि मैं दूंगा, जिसका तुम्हारे विरोधी न तो सामना कर सकेंगे और न ही खंडन. 16तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन तथा परिजन और मित्र ही तुम्हारे साथ धोखा करेंगे—वे तुममें से कुछ की तो हत्या भी कर देंगे. 17मेरे नाम के कारण सभी तुमसे घृणा करेंगे. 18फिर भी तुम्हारे एक बाल तक की हानि न होगी. 19तुम्हारे धीरज में छिपी होगी तुम्हारे जीवन की सुरक्षा.

20“जिस समय येरूशलेम नगर सेनाओं द्वारा घिरा हुआ दिखे, तब यह समझ लेना कि विनाश पास है. 21तो वे, जो यहूदिया प्रदेश में हों पर्वतों पर भागकर जाएं; वे, जो नगर में हैं, नगर छोड़कर चले जाएं; जो नगर के बाहर हैं, वे नगर में प्रवेश न करें 22क्योंकि यह बदला लेने का समय होगा कि वह सब, जो लेखों में पहले से लिखा है, पूरा हो जाए. 23दयनीय होगी गर्भवती और दूध पिलाती स्त्रियों की स्थिति! क्योंकि यह मनुष्यों पर क्रोध तथा पृथ्वी पर घोर संकट का समय होगा. 24वे तलवार से घात किए जाएंगे, अन्य राष्ट्र उन्हें बंदी बनाकर ले जाएंगे. येरूशलेम नगर गैर-यहूदियों द्वारा उस समय तक रौंदा जाएगा जब तक गैर-यहूदियों का समय पूरा न हो जाए.

25“सूर्य, चंद्रमा और तारों में अद्भुत चिह्न दिखाई देंगे. पृथ्वी पर राष्ट्रों में आतंक छा जाएगा. गरजते सागर की लहरों के कारण लोग घबरा जाएंगे. 26लोग भय और इस आशंका से मूर्च्छित हो जाएंगे कि अब संसार का क्या होगा क्योंकि आकाशमंडल की शक्तियां हिलायी जाएंगी. 27तब वे मनुष्य के पुत्र को बादल में सामर्थ्य और प्रताप में नीचे आता हुआ देखेंगे. 28जब ये घटनाएं घटित होने लगें, साहस के साथ स्थिर खड़े होकर आनेवाली घटना की प्रतीक्षा करो क्योंकि समीप होगा तुम्हारा छुटकारा.”

29तब प्रभु येशु ने उन्हें इस दृष्टांत के द्वारा शिक्षा दी: “अंजीर के पेड़ तथा अन्य वृक्षों पर ध्यान दो. 30जब उनमें कोंपलें निकलने लगती हैं तो तुम स्वयं जान जाते हो कि गर्मी का समय पास है. 31इसी प्रकार, जब तुम इन घटनाओं को घटित होते हुए देखो तो तुम यह जान जाओगे कि परमेश्वर का राज्य अब पास है.

32“सच्चाई तो यह है कि इन घटनाओं के हुए बिना इस युग का अंत नहीं होगा. 33आकाश तथा पृथ्वी खत्म हो जाएंगे किंतु मेरे कहे हुए शब्द कभी नहीं.

34“सावधान रहना कि तुम्हारा हृदय जीवन संबंधी चिंताओं, दुर्व्यसनों तथा मतवालेपन में पड़कर सुस्त न हो जाए और वह दिन तुम पर अचानक से फंदे जैसा आ पड़े. 35उस दिन का प्रभाव पृथ्वी के हर एक मनुष्य पर पड़ेगा. 36हमेशा सावधान रहना, प्रार्थना करते रहना कि तुम्हें इन आनेवाली घटनाओं से निकलने के लिए बल प्राप्‍त हो और तुम मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति में खड़े हो सको.”

37दिन के समय प्रभु येशु मंदिर में शिक्षा दिया करते तथा संध्याकाल में वह ज़ैतून पर्वत पर जाकर प्रार्थना करते हुए रात बिताया करते थे. 38लोग भोर में उनका प्रवचन सुनने मंदिर आ जाया करते थे.