요한복음 9 – KLB & HCV

Korean Living Bible

요한복음 9:1-41

나면서 소경 된 사람을 고치심

1예수님은 길을 가시다가 날 때부터 소경 된 사람을 보셨다.

2제자들이 예수님께 “선생님, 누구의 죄로 이 사람이 소경으로 태어났습니까? 자기 죄입니까, 아니면 부모의 죄입니까?” 하고 묻자

3예수님이 이렇게 말씀하셨다. “이 사람의 죄도 부모의 죄도 아니다. 이런 일이 일어나게 된 것은 이 사람에게서 하나님의 일이 나타나기 위해서이다.

4우리는 낮 동안에 나를 보내신 분의 일을 해야 한다. 밤이 오면 그 때는 아무도 일할 수 없다.

5내가 세상에 있는 동안 나는 세상의 빛이다.”

6이 말씀을 하시고 예수님은 땅에 침을 뱉어 진흙을 이겨 소경의 눈에 바르시고

7그에게 “실로암 (번역하면 보냄을 받았다는 뜻) 못에 가서 씻어라” 하셨다. 그래서 소경은 가서 씻고 눈을 뜨고 돌아왔다.

8그때 이웃 사람들과 전에 그가 구걸하던 것을 본 사람들이 “이 사람은 앉아서 구걸하던 거지가 아니냐?” 하자

9어떤 사람은 “그래, 바로 그 거지야” 하였고 또 어떤 사람은 “아니야, 그 거지와 닮은 사람이야” 하였다. 그러나 본인은 “내가 바로 그 사람이오” 하고 대답하였다.

10그러자 사람들이 그에게 물었다. “그러면 네가 어떻게 눈을 떴느냐?”

11“예수라는 사람이 진흙을 이겨 내 눈에 바르고 실로암 못에 가서 씻으라고 하시기에 가서 씻었더니 보게 되었습니다.”

12“그 사람이 어디 있느냐?” “모르겠습니다.”

13사람들은 그를 바리새파 사람들에게 데리고 갔다.

14예수님이 진흙을 이겨 소경의 눈을 뜨게 하신 날은 바로 안식일이었다.

15그러므로 바리새파 사람들도 그에게 어떻게 눈을 뜨게 되었는지 묻자 “그분이 내 눈에 진흙을 발라 주시기에 씻었더니 이렇게 보게 되었습니다” 하고 대답하였다.

16바리새파 사람 중에 어떤 사람은 “이 사람이 안식일을 지키지 않는 것으로 보아 하나님이 보내서 온 사람은 아니오” 하였고 또 어떤 사람은 “죄인이 어떻게 이런 기적을 행할 수 있겠는가?” 하였다. 이렇게 서로 의견이 엇갈리자

17그들은 소경 되었던 사람에게 다시 물었다. “그 사람이 네 눈을 뜨게 했으니 너는 그가 누구라고 생각하느냐?” 그때 그는 “예언자라고 생각합니다” 하고 대답하였다.

18유대인들은 그가 소경으로 있다가 눈을 뜨게 된 것을 믿지 않고 그의 부모를 불러

19“이 사람이 날 때부터 소경이었다는 당신 아들이오? 그러면 어떻게 지금 보게 되었소?” 하고 물었다.

20그래서 그의 부모는 이렇게 대답하였다. “이 아이가 우리 아들이라는 것과 날 때부터 소경이었다는 것은 알고 있습니다만

21어떻게 해서 지금 눈을 뜨게 되었는지 또 누가 눈을 뜨게 해 주었는지는 모릅니다. 이 아이도 다 컸으니 직접 물어 보십시오. 대답할 수 있을 것입니다.”

22그 때는 이미 9:22 원문에는 ‘유대인들이’유대인 지도자들이 예수님을 그리스도라고 인정하는 사람은 누구든지 회당에서 쫓아내기로 결정했기 때문에 그의 부모는 그들을 두려워하여

23“이 아이도 다 컸으니 직접 물어 보십시오” 하고 말한 것이다.

24그들은 소경 되었던 사람을 두 번째 불러 말하였다. “너는 하나님께 영광을 돌려라. 우리는 이 사람을 죄인으로 알고 있다.”

25“그분이 죄인인지 아닌지 나는 모릅니다. 그러나 내가 한 가지 알고 있는 것은 소경이었던 내가 지금 보게 되었다는 이것입니다.”

26“그 사람이 너에게 무슨 짓을 했으며 어떻게 네 눈을 뜨게 했느냐?”

27“내가 이미 말했는데도 듣지 않고 왜 다시 묻습니까? 당신들도 그분의 제자가 되고 싶습니까?”

28그러자 그들은 그에게 욕을 하며 말하였다. “너는 그 사람의 제자이지만 우리는 모세의 제자이다.

29하나님이 모세에게 말씀하셨다는 것은 알지만 우리는 이 사람이 어디서 왔는지조차 모른다.”

30“정말 이상한 일입니다. 그분이 내 눈을 뜨게 해 주셨는데도 당신들은 그분이 어디서 오셨는지 모르신단 말씀입니까?

31우리는 하나님이 죄인의 말은 듣지 않으시지만 그분의 뜻대로 사는 경건한 사람의 말은 들으시는 것으로 알고 있습니다.

32세상이 생긴 이후로 지금까지 소경으로 태어난 사람의 눈을 뜨게 했다는 말은 들어 보지 못했습니다.

33이분이 만일 하나님이 보내서 오신 분이 아니라면 도저히 이런 일을 하실 수가 없었을 것입니다.”

34그들은 이 말을 듣고 “네가 죄 가운데서 태어난 주제에 우리를 가르치려고 하느냐?” 하고 그를 쫓아내 버렸다.

35예수님은 바리새파 사람들이 그를 쫓아냈다는 말을 듣고 그 사람을 만나 물었다. “네가 9:35 어떤사본에는 ‘인자’ (사람의아들)하나님의 아들을 믿느냐?”

36“선생님, 누가 그분이십니까? 말씀해 주십시오. 제가 믿겠습니다.”

37“너는 이미 그를 보았다. 지금 너와 말하는 내가 바로 그 사람이다.”

38그러자 그는 “주님, 제가 믿습니다” 하며 예수님께 경배하였다.

39그때 예수님은 그에게 “내가 심판하러 이 세상에 왔으니 보지 못하는 사람은 보게 하고 보는 사람은 소경이 되게 할 것이다” 하고 말씀하셨다.

40예수님과 함께 있던 몇몇 바리새파 사람이 이 말씀을 듣고 “그러면 우리도 소경이란 말이오?” 하고 묻자

41예수님은 그들에게 “너희가 소경이었다면 죄가 없었을 것이나 지금 본다고 하니 너희 죄가 그대로 남아 있다” 하고 대답하셨다.

Hindi Contemporary Version

योहन 9:1-41

जन्म से अंधे को दृष्टिदान

1वहां से जाते हुए मार्ग में मसीह येशु को जन्म से अंधा एक व्यक्ति मिला, 2जिसे देख उनके शिष्यों ने उनसे पूछा, “रब्बी, किसके पाप के कारण यह व्यक्ति अंधा जन्मा—इसके या इसके माता-पिता के?”

3मसीह येशु ने उत्तर दिया, “न इसके और न ही इसके माता-पिता के पाप, के कारण परंतु इसलिये कि इसमें परमेश्वर का काम प्रकट हो. 4अवश्य है कि मेरे भेजनेवाले का काम हम दिन रहते ही कर लें. रात आ रही है, जब कोई व्यक्ति काम नहीं कर पाएगा. 5जब तक मैं संसार में हूं, मैं ही हूं संसार की ज्योति.”

6यह कहने के बाद उन्होंने भूमि पर थूका, थूक से मिट्टी का लेप बनाया और उससे अंधे व्यक्ति की आंखों पर लेप किया 7और उससे कहा, “जाओ, सीलोअम के कुंड में धो लो.” सीलोअम का अर्थ है भेजा हुआ. इसलिये उसने जाकर धोया और देखता हुआ लौटा.

8तब उसके पड़ोसी और वे, जिन्होंने उसे इसके पूर्व भिक्षा मांगते हुए देखा था, आपस में कहने लगे, “क्या यह वही नहीं, जो बैठा हुआ भीख मांगा करता था?” 9कुछ ने पुष्टि की कि यह वही है. कुछ ने कहा.

“नहीं, यह मात्र उसके समान दिखता है.”

जबकि वह कहता रहा, “मैं वही हूं.”

10इसलिये उन्होंने उससे पूछा, “तुम्हें दृष्टि प्राप्‍त कैसे हुई?”

11उसने उत्तर दिया, “येशु नामक एक व्यक्ति ने मिट्टी का लेप बनाया और उससे मेरी आंखों पर लेप कर मुझे आज्ञा दी, ‘जाओ, सीलोअम के कुंड में धो लो.’ मैंने जाकर धोया और मैं देखने लगा.”

12उन्होंने उससे पूछा, “अब कहां है वह व्यक्ति?”

उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता.”

फ़रीसियों द्वारा दृष्टिदान प्रक्रिया की जांच

13तब वे उस व्यक्ति को जो पहले अंधा था, फ़रीसियों के पास ले गए. 14जिस दिन मसीह येशु ने उसे आंख की रोशनी देने की प्रक्रिया में मिट्टी का लेप बनाया था, वह शब्बाथ था. 15फ़रीसियों ने उस व्यक्ति से पूछताछ की कि उसने दृष्टि प्राप्‍त कैसे की? उसने उन्हें उत्तर दिया, “उन्होंने मेरी आंखों पर मिट्टी का लेप लगाया, मैंने उन्हें धोया और अब मैं देख सकता हूं.”

16इस पर कुछ फ़रीसी कहने लगे, “वह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से नहीं है, क्योंकि वह शब्बाथ के विधान का पालन नहीं करता.”

परंतु अन्य कहने लगे, “कोई पापी व्यक्ति ऐसे अद्भुत चिह्न कैसे दिखा सकता है?” इस विषय को लेकर उनमें मतभेद हो गया.

17अतः उन्होंने जो पहले अंधा था उस व्यक्ति से दोबारा पूछा, “जिस व्यक्ति ने तुम्हें आंखों की रोशनी दी है, उसके विषय में तुम्हारा क्या मत है?”

उसने उत्तर दिया, “वह भविष्यवक्ता हैं.”

18यहूदी अगुएं यह विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि वह, जो पहले अंधा था, अब देख सकता है. इसलिये उन्होंने उसके माता-पिता को बुलवाया 19और उनसे पूछा, “क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसके विषय में तुम कहते हो कि वह जन्म से अंधा था? अब यह कैसे देखने लगा?”

20उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, “हां, यह तो हम जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है और यह भी कि यह अंधा ही जन्मा था; 21किंतु हम यह नहीं जानते कि यह कैसे देखने लगा या किसने उसे आंखों की रोशनी दी है. वह बालक नहीं है, आप उसी से पूछ लीजिए. वह अपने विषय में स्वयं ही बताएगा.” 22उसके माता-पिता ने यहूदी अगुओं के भय से ऐसा कहा था क्योंकि यहूदी अगुए पहले ही एक मत हो चुके थे कि यदि किसी भी व्यक्ति ने मसीह येशु को मसीह के रूप में मान्यता दी तो उसे यहूदी सभागृह से बाहर कर दिया जाएगा. 23इसलिये उसके माता-पिता ने कहा था, “वह बालक नहीं है, आप उसी से पूछ लीजिए.”

24इसलिये फ़रीसियों ने जो पहले अंधा था उसको दोबारा बुलाया और कहा, “परमेश्वर की महिमा करो. हम यह जानते हैं कि वह व्यक्ति पापी है.”

25उसने उत्तर दिया, “वह पापी है या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता; हां, इतना मैं अवश्य जानता हूं कि मैं अंधा था और अब देखता हूं.”

26इस पर उन्होंने उससे दोबारा प्रश्न किया, “उस व्यक्ति ने ऐसा क्या किया कि तुम्हें आंखों की रोशनी मिल गई?”

27उसने उत्तर दिया, “मैं पहले ही बता चुका हूं परंतु आप लोगों ने सुना नहीं. आप लोग बार-बार क्यों सुनना चाहते हैं? क्या आप लोग भी उनके चेले बनना चाहते हैं?”

28इस पर उन्होंने उसकी उल्लाहना करते हुए उससे कहा, “तू ही है उसका चेला! हम तो मोशेह के चेले हैं. 29हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मोशेह से बातें की थी. जहां तक इस व्यक्ति का प्रश्न है, हम नहीं जानते कि वह कहां से आया है.”

30उसने उनसे कहा, “तब तो यह बड़े आश्चर्य का विषय है! आपको यह भी मालूम नहीं कि वह कहां से हैं जबकि उन्होंने मुझे आंखों की रोशनी दी है! 31हम सभी जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनते—वह उसकी सुनते हैं, जो परमेश्वर के भक्त है तथा उनकी इच्छा पूरी करते है. 32आदिकाल से कभी ऐसा सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्म के अंधे को आंखों की रोशनी दी हो. 33यदि वह परमेश्वर की ओर से न होते तो वह कुछ भी नहीं कर सकते थे.”

34यह सुन उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तू! तू तो पूरी तरह से पाप में जन्मा है और हमें सिखाता है!” यह कहते हुए उन्होंने उसे यहूदी सभागृह से बाहर निकाल दिया.

आत्मिक अंधेपन के विषय पर शिक्षा

35जब मसीह येशु ने यह सुना कि यहूदियों ने उस व्यक्ति को सभागृह से बाहर निकाल दिया है तो उससे मिलने पर उन्होंने प्रश्न किया, “क्या तुम मनुष्य के पुत्र में विश्वास करते हो?”

36उसने पूछा, “प्रभु, वह कौन हैं कि मैं उनमें विश्वास करूं?”

37मसीह येशु ने उससे कहा, “उसे तुमने देखा है और जो तुमसे बातें कर रहा है, वह वही है.”

38उसने उत्तर दिया, “मैं विश्वास करता हूं, प्रभु!” और उसने दंडवत करते हुए उनकी वंदना की.

39तब मसीह येशु ने कहा, “मैं इस संसार में न्याय के लिए ही आया हूं कि जो नहीं देखते, वे देखें और जो देखते हैं, वे अंधे हो जाएं.”

40वहां खड़े कुछ फ़रीसियों ने इन शब्दों को सुनकर कहा, “तो क्या हम भी अंधे हैं?”

41मसीह येशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अंधे होते तो तुम दोषी न होते किंतु इसलिये कि तुम कहते हो, ‘हम देखते हैं,’ तुम्हारा दोष बना रहता है.