詩篇 74 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

詩篇 74:1-23

74

1ああ神よ、

なぜいつまでも私たちをお見捨てになるのですか。

なぜ、あなたを信じて従う私たちに、

こんなにも激しい怒りを向けられるのですか。

2その昔、奴隷の身であった私たちを救い出し、

かけがえのない宝のように大切になさったことを、

思い出してください。

自ら地上の住まいとお定めになったエルサレムを、

思い起こしてください。

3どうか、敵の手で、見るも無残な廃墟と化した都を、

あなたの聖所を、ごらんください。

4そこで、敵は勝ちどきをあげ、

勝利の碑を建てたのです。

5-6あらゆるものが荒廃し、

木を切り倒したあとの森のようです。

彼らはハンマーや斧で、聖所の彫り物を打ち砕き、

切り刻み、

7-8こともあろうに、あなたの聖所に火を放ちました。

彼らは、

「さあ、神の名残をとどめるものを一掃しろ」

と叫びながら、国中を駆け巡り、

礼拝するための集会場を焼き払いました。

9-10私たちが神の民であることを証明するものは、

もう何もなくなりました。預言者もいないのです。

こんな状態がいつまで続くのか、だれも知りません。

ああ神よ、いつまで敵が

あなたのお名前を踏みつけるのを、

お許しになるのですか。

彼らをそのままにしておかれるのですか。

11なぜ、みわざを行うことを

差し控えておられるのですか。

こぶしを振り上げて、

彼らの息の根を止めてください。

12神は、はるか昔から私の王であられました。

私がどこにいても、いつもあなたのほうから、

救いの手を差し伸べてくださいました。

13-14あなたは紅海を二つに分け、海神の頭を打ち砕き、

荒野に住む人々のえじきとされました。

15あなたが命じると泉がわき出て、

イスラエル人はその水を飲みました。

常に水の流れるヨルダン川をせき止め、

そこを乾いた道となさいました。

16昼も夜も、すべてはあなたの支配下にあります。

あなたは星と太陽をお造りになったお方です。

17自然界を治め、夏と冬の区別を設けられました。

18主よ、敵があなたをあざけっていることに

目を留めてください。

ああ神よ。

思い上がった民が、主の名を冒瀆しているのです。

19主よ、お救いください。

あなたの山鳩を、獰猛な鷹からお守りください。

あなたが愛しておられる民を、

獣からお救いください。

20約束を思い出してください。

この地は暗闇に閉ざされ、

残忍な者たちが幅をきかせています。

21主よ、あなたの民が踏みにじられ、

いつまでもさげすまれることが

ないようにしてください。

貧しい者たちが、あなたの御名を

ほめたたえることができるようにしてください。

22ああ神よ、立ち上がって、敵に申し渡してください。

反逆者が一日中あびせかけてくる

侮辱のことばを聞いてください。

23敵ののろいのことばを、聞き逃さないでください。

彼らの声は、ますます大きくなっているのです。

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 74:1-23

स्तोत्र 74

आसफ का मसकील.74:0 शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द

1परमेश्वर! आपने क्यों हमें सदा के लिए शोकित छोड़ दिया है?

आपकी चराई की भेड़ों के प्रति आपके क्रोध की अग्नि का धुआं क्यों उठ रहा है?

2स्मरण कीजिए उन लोगों को, जिन्हें आपने मोल लिया था,

उस कुल को, आपने अपना भागी बनाने के लिए जिसका उद्धार किया था;

स्मरण कीजिए ज़ियोन पर्वत को, जो आपका आवास है.

3इन चिरस्थाई विध्वंस अवशेषों के मध्य चलते फिरते रहिए,

पवित्र स्थान में शत्रु ने सभी कुछ नष्ट कर दिया है.

4एक समय जहां आप हमसे भेंटकरते थे, वहां शत्रु के जयघोष के नारे गूंज रहे हैं;

उन्होंने वहां प्रमाण स्वरूप अपने ध्वज गाड़ दिए हैं.

5उनका व्यवहार वृक्षों और झाड़ियों पर

कुल्हाड़ी चलाते हुए आगे बढ़ते पुरुषों के समान होता है.

6उन्होंने कुल्हाड़ियों और हथौड़ों से

द्वारों के उकेरे गए नक़्कशीदार कामों को चूर-चूर कर डाला है.

7उन्होंने आपके मंदिर को भस्म कर धूल में मिला दिया है;

उस स्थान को, जहां आपकी महिमा का वास था, उन्होंने भ्रष्‍ट कर दिया है.

8उन्होंने यह कहते हुए संकल्प किया, “इन्हें हम पूर्णतः कुचल देंगे!”

संपूर्ण देश में ऐसे स्थान, जहां-जहां परमेश्वर की वंदना की जाती थी, भस्म कर दिए गए.

9अब कहीं भी आश्चर्य कार्य नहीं देखे जा रहे;

कहीं भी भविष्यद्वक्ता शेष न रहे,

हममें से कोई भी यह नहीं बता सकता, कि यह सब कब तक होता रहेगा.

10परमेश्वर, शत्रु कब तक आपका उपहास करता रहेगा?

क्या शत्रु आपकी महिमा पर सदैव ही कीचड़ उछालता रहेगा?

11आपने क्यों अपना हाथ रोके रखा है, आपका दायां हाथ?

अपने वस्त्रों में छिपे हाथ को बाहर निकालिए और कर दीजिए अपने शत्रुओं का अंत!

12परमेश्वर, आप युग-युग से मेरे राजा रहे हैं;

पृथ्वी पर उद्धार के काम करनेवाले आप ही हैं.

13आप ही ने अपनी सामर्थ्य से समुद्र को दो भागों में विभक्त किया था;

आप ही ने विकराल जल जंतु के सिर कुचल डाले.

14लिवयाथान74:14 बड़ा मगरमच्छ हो सकता है के सिर भी आपने ही कुचले थे,

कि उसका मांस वन के पशुओं को खिला दिया जाए.

15आपने ही झरने और धाराएं प्रवाहित की;

और आपने ही सदा बहने वाली नदियों को सुखा दिया.

16दिन तो आपका है ही, साथ ही रात्रि भी आपकी ही है;

सूर्य, चंद्रमा की स्थापना भी आपके द्वारा की गई है.

17पृथ्वी की समस्त सीमाएं आपके द्वारा निर्धारित की गई हैं;

ग्रीष्मऋतु एवं शरद ऋतु दोनों ही आपकी कृति हैं.

18याहवेह, स्मरण कीजिए शत्रु ने कैसे आपका उपहास किया था,

कैसे मूर्खों ने आपकी निंदा की थी.

19अपने कबूतरी का जीवन हिंसक पशुओं के हाथ में न छोड़िए;

अपनी पीड़ित प्रजा के जीवन को सदा के लिए भूल न जाइए.

20अपनी वाचा की लाज रख लीजिए,

क्योंकि देश के अंधकारमय स्थान हिंसा के अड्डे बन गए हैं.

21दमित प्रजा को लज्जित होकर लौटना न पड़े;

कि दरिद्र और दुःखी आपका गुणगान करें.

22परमेश्वर, उठ जाइए और अपने पक्ष की रक्षा कीजिए;

स्मरण कीजिए कि मूर्ख कैसे निरंतर आपका उपहास करते रहे हैं.

23अपने विरोधियों के आक्रोश की अनदेखी न कीजिए,

आपके शत्रुओं का वह कोलाहल, जो निरंतर बढ़ता जा रहा है.