詩篇 103 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

詩篇 103:1-22

103

1私は心から、主のきよい御名をたたえます。

2私は主をほめたたえます。

あなたがなしてくださった数々のすばらしいことを

私は決して忘れません。

3主は私の罪をみな赦し、病気を治してくださいます。

4地獄に行くはずのこの身を贖い、

恵みとあわれみで包んでくださいます。

5私の一生は祝福で覆われ、鷲のように若返ります。

6主は、不当に扱われている者を公平にさばかれます。

7主はご自分の意思とご性質を、

モーセおよびイスラエルの民に知らされました。

8主は、虫けら同然の者をあわれみ、

優しくいたわってくださいます。

すぐにお怒りにならず、恵みと愛に満ち、

9いつまでも怒りの心を持ち続けたりはしません。

10罪の深さに応じて私たちが当然受けるべき罰を

そのまま下すこともありません。

11神を恐れ、あがめる者には、

無尽蔵のあわれみをかけてくださいます。

12神は私たちの罪を取り除き、

はるか地平線のかなたに投げ捨ててくださいました。

13主は、恐れかしこむ者に対しては、

父親のように優しい思いやりを示してくださいます。

14私たちが土くれにすぎず、

15また草花のようにはかなく、

16風に吹き飛ばされて消えるような

ちっぽけなものであることを知っておられるからです。

17-18しかし主は、ご自分を信じる者をいつまでも恵み、

神との契約を忠実に守り従う人を、

子々孫々に至るまでお救いになります。

19主は天に御座をすえ、

すべてのものを支配なさいます。

20神の命令を一つとして聞きもらさず、

すぐ実行に移す御使いたちよ、

主をほめたたえなさい。

21神に仕える天使の軍団よ、

絶え間なく主をほめたたえなさい。

22万物が声を合わせて、賛美しますように。

私も力いっぱいにほめ歌います。

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 103:1-22

स्तोत्र 103

दावीद की रचना

1मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो;

मेरी संपूर्ण आत्मा उनके पवित्र नाम का स्तवन करे.

2मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो,

उनके किसी भी उपकार को न भूलो.

3वह तेरे सब अपराध क्षमा करते

तथा तेरे सब रोग को चंगा करते हैं.

4वही तेरे जीवन को गड्ढे से छुड़ा लेते हैं

तथा तुझे करुणा-प्रेम एवं मनोहरता से सुशोभित करते हैं.

5वह तेरी अभिलाषाओं को मात्र उत्कृष्ट वस्तुओं से ही तृप्‍त करते हैं,

जिसके परिणामस्वरूप तेरी जवानी गरुड़-समान नई हो जाती है.

6याहवेह सभी दुःखितों के निमित्त धर्म

एवं न्यायसंगतता के कार्य करते हैं.

7उन्होंने मोशेह को अपनी नीति स्पष्ट की,

तथा इस्राएल राष्ट्र के सामने अपना अद्भुत कृत्य:

8याहवेह करुणामय, कृपानिधान,

क्रोध में विलंबी तथा करुणा-प्रेम में समृद्ध हैं.

9वह हम पर निरंतर आरोप नहीं लगाते रहेंगे,

और न ही हम पर उनकी अप्रसन्‍नता स्थायी बनी रहेगी;

10उन्होंने हमें न तो हमारे अपराधों के लिए निर्धारित दंड दिया

और न ही उन्होंने हमारे अधर्मों का प्रतिफल हमें दिया है.

11क्योंकि आकाश पृथ्वी से जितना ऊपर है,

उतना ही महान है उनका करुणा-प्रेम उनके श्रद्धालुओं के लिए.

12पूर्व और पश्चिम के मध्य जितनी दूरी है,

उन्होंने हमारे अपराध हमसे उतने ही दूर कर दिए हैं.

13जैसे पिता की मनोहरता उसकी संतान पर होती है,

वैसे ही याहवेह की मनोहरता उनके श्रद्धालुओं पर स्थिर रहती है;

14क्योंकि उन्हें हमारी सृष्टि ज्ञात है,

उन्हें स्मरण रहता है कि हम मात्र धूल ही हैं.

15मनुष्य से संबंधित बातें यह है, कि उसका जीवन घास समान है,

वह मैदान के पुष्प समान खिलता है,

16उस पर उष्ण हवा का प्रवाह होता है और वह नष्ट हो जाता है,

किसी को यह स्मरण तक नहीं रह जाता, कि पुष्प किस स्थान पर खिला था,

17किंतु याहवेह का करुणा-प्रेम उनके श्रद्धालुओं

पर अनादि से अनंत तक,

तथा परमेश्वर की धार्मिकता उनकी संतान की संतान पर स्थिर बनी रहती है.

18जो उनकी वाचा का पालन करते

तथा उनके आदेशों का पालन करना याद रखते हैं.

19याहवेह ने अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थापित किया है,

समस्त बनाई वस्तुओं पर उनका शासन है.

20तुम, जो उनके स्वर्गदूत हो, याहवेह का स्तवन करो,

तुम जो शक्तिशाली हो, तुम उनके आदेशों का पालन करते हो,

उनके मुख से निकले वचन को पूर्ण करते हो.

21स्वर्ग की संपूर्ण सेना और तुम, जो उनके सेवक हो,

और जो उनकी इच्छा की पूर्ति करते हो, याहवेह का स्तवन करो.

22उनकी समस्त सृष्टि, जो समस्त रचना में व्याप्‍त हैं,

याहवेह का स्तवन करें.

मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो.