箴言 知恵の泉 18 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

箴言 知恵の泉 18:1-24

18

1自分のことしか考えない者は、

あらゆる規則に盾をつき、

自分のやり方を押し通します。

2神に背く者はただ大声で叫びたいだけで、

事実はどうでもよいのです。

3悪いことをすれば必ず恥をかきます。

4知恵のある人は、

深い流れのように味わいのあることを言います。

5裁判官が悪者をかばい、

無実の者を罰するのはよくありません。

6-7愚か者はすぐにけんかをします。

愚か者の口は破滅のもとで、

いつも危ない橋を渡ります。

8陰口はよだれの出そうなごちそうのように、

大いに食欲をそそります。

9怠け者は破壊する者の兄弟です。

10主は絶対安全なとりで、

正しい人はその中に逃げ込みます。

11金持ちは浅はかにも、

「富がすべて。富さえあれば絶対安全だ」と思っています。

12高慢になると身を滅ぼし、

謙遜になると人から称賛されます。

13よく聞かないで早合点すると、恥をかきます。

14心がしっかりしていれば病気にも負けません。

しかし、心が失せたら望みはありません。

15知識のある人はいつも、

新しいことを知ろうと努力します。

16贈り物には不思議な力があります。

地位ある人の前に彼を導きます。

17だれの話でも、他の人が裏を明かして、

全貌がわかるまではもっともらしく思えます。

18いくら言い争っても解決しないときは、

くじで決めなさい。

そうすれば丸く収まります。

19堅固な城を攻め落とすより、

けんかした友人と仲直りするほうが大変です。

怒った相手は、頑としてあなたを受けつけません。

20忠告するのが上手な人は、

ごちそうをたらふく食べたときのような

満足感をいつも味わいます。

21おしゃべり好きは、

おしゃべりの後始末をさせられます。

うっかり間違ったことを言って

死ぬ場合もあるのです。

22良い妻を見つける人は幸せ者です。

良い妻は神からのすばらしい贈り物です。

23貧しい人は拝むようにして頼み、

金持ちは相手を軽蔑しきって答えます。

24友人のふりをする「友人」もいれば、

実の兄弟より親しい友人もいます。

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 18:1-24

1जिसने स्वयं को समाज से अलग कर लिया है, वह अपनी ही अभिलाषाओं की पूर्ति में संलिप्‍त रहता है,

वह हर प्रकार की प्रामाणिक बुद्धिमत्ता को त्याग चुका है.

2विवेकशीलता में मूर्ख की कोई रुचि नहीं होती.

उसे तो मात्र अपने ही विचार व्यक्त करने की धुन रहती है.

3जैसे ही दृष्टि का प्रवेश होता है, घृणा भी साथ साथ चली आती है,

वैसे ही अपमान के साथ साथ निर्लज्जता भी.

4मनुष्य के मुख से बोले शब्द गहन जल समान होते हैं,

और ज्ञान का सोता नित प्रवाहित उमड़ती नदी समान.

5दुष्ट का पक्ष लेना उपयुक्त नहीं

और न धर्मी को न्याय से वंचित रखना.

6मूर्खों का वार्तालाप कलह का प्रवेश है,

उनके मुंह की बातें उनकी पिटाई की न्योता देती हैं.

7मूर्खों के मुख ही उनके विनाश का हेतु होता हैं,

उनके ओंठ उनके प्राणों के लिए फंदा सिद्ध होते हैं.

8फुसफुसाहट में उच्चारे गए शब्द स्वादिष्ट भोजन-समान होते हैं;

ये शब्द मनुष्य के पेट में समा जाते हैं.

9जो कोई अपने निर्धारित कार्य के प्रति आलसी है

वह विध्वंसक व्यक्ति का भाई होता है.

10याहवेह का नाम एक सुदृढ़ मीनार समान है;

धर्मी दौड़कर इसमें छिप जाता और सुरक्षित बना रहता है.

11धनी व्यक्ति के लिए उसका धन एक गढ़ के समान होता है;

उनको लगता हैं कि उस पर चढ़ना मुश्किल है!

12इसके पूर्व कि किसी मनुष्य पर विनाश का प्रहार हो, उसका हृदय घमंडी हो जाता है,

पर आदर मिलने के पहले मनुष्य नम्र होता है!

13यदि कोई ठीक से सुने बिना ही उत्तर देने लगे,

तो यह मूर्खता और लज्जा की स्थिति होती है.

14रुग्ण अवस्था में मनुष्य का मनोबल उसे संभाले रहता है,

किंतु टूटे हृदय को कौन सह सकता है?

15बुद्धिमान मस्तिष्क वह है, जो ज्ञान प्राप्‍त करता रहता है.

बुद्धिमान का कान ज्ञान की खोज करता रहता है.

16उपहार उसके देनेवाले के लिए मार्ग खोलता है,

जिससे उसका महान व्यक्तियों के पास प्रवेश संभव हो जाता है.

17यह संभव है कि न्यायालय में, जो व्यक्ति पहले होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करता है,

सच्चा ज्ञात हो; जब तक अन्य पक्ष आकर परीक्षण न करे.

18पासा फेंककर विवाद हल करना संभव है,

इससे प्रबल विरोधियों के मध्य सर्वमान्य निर्णय लिया जा सकता है.

19एक रुष्ट भाई को मनाना सुदृढ़-सुरक्षित नगर को ले लेने से अधिक कठिन कार्य है;

और विवाद राजमहल के बंद फाटक समान होते हैं.

20मनुष्य की बातों का परिणाम होता है उसके पेट का भरना;

उसके होंठों के उत्पाद में उसका संतोष होता है.

21जिह्वा की सामर्थ्य जीवन और मृत्यु तक व्याप्‍त है,

और जिन्हें यह बात ज्ञात है, उन्हें इसका प्रतिफल प्राप्‍त होगा.

22जिस किसी को पत्नी प्राप्‍त हो गई है, उसने भलाई प्राप्‍त की है,

उसे याहवेह की ओर से ही यह आनंद प्राप्‍त हुआ है.

23संसार में निर्धन व्यक्ति गिड़गिड़ाता रहता है,

और धनी उसे कठोरतापूर्व उत्तर देता है.

24मनुष्य के मित्र मैत्री का लाभ उठाते रहते हैं,

किंतु सच्चा मित्र वह होता है, जो भाई से भी अधिक उत्तम होता है.