申命記 11 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

申命記 11:1-32

11

主を愛し、従え

1あなたの神、主を愛し、すべての命令に従いなさい。 2いいですか、私はあなたがたの子どもたちにではなく、あなたがた自身に話しているのです。子どもたちはまだ、主に罰せられたこともなく、その偉大さや恐ろしいまでの御力を見たこともありません。 3もちろん、主がエジプトの国や王に行った数々の奇跡も見ていません。 4エジプト軍がイスラエル人を追って来た時、主が彼らを馬や戦車もろとも紅海の底に沈め、それ以来エジプト人があなたがたに手出しできないようにされたことも見ていません。 5その後も、ここに来るまでの長い道中、荒野をさまようあなたがたを主が守り続けてこられたことも知りません。 6また、エリアブの子で、ルベンの孫に当たるダタンとアビラムが反逆したこと、そのためにイスラエル人全員の目の前で、彼らも家族も一人残らず、天幕(テント)もろとも地にのみ込まれてしまったことも、子どもたちは見ていません。

7しかし、あなたがたは違います。あの目をみはるような奇跡を確かに見たのです。 8だから、今日私が与える戒めをどんなに注意深く守らなければならないか、よくわかるはずです。そうして初めて、今、目前にしている地を占領できるのです。 9それを守れば、先祖以来約束されてきた地で、いつまでも幸せに暮らせます。そこは、乳とみつの流れる地なのです。 10エジプトのように灌漑する必要もありません。 11雨に恵まれ、丘や渓谷もある地だからです。 12あなたの神、主はあなたがたのことをいつも心にかけ、絶えずその地を見守ってくださいます。

13今日私が与えるすべての戒めを注意深く守り、心を尽くし、たましいを尽くして主を愛するなら、 14主は春と秋に必ず雨を降らせ、穀物も、ぶどう酒用のぶどうも、油を採るオリーブも豊かに実らせてくださいます。 15家畜には青々とした牧草地を、あなたがたには十分な食糧を与えてくださるのです。

16しかし、気持ちがゆるんで神様から離れ、外国の神々を拝んだりしないようにくれぐれも気をつけなさい。 17万一そんなことをしたら、主は激しくお怒りになり、雨を一滴も降らせないでしょう。収穫がなくなり、主が下さった良い地にいながら、みすみす飢え死にすることになります。 18そうなりたくなかったら、主のことばと戒めをしっかり心に刻みつけなさい。それをしるしとして手に結び、額に張りつけて絶えず覚えなさい。 19子どもたちにも教えなさい。家に座っているときも、外を歩いているときも、寝るときも、朝食の前にも話して聞かせなさい。 20家の門と戸に書き記しなさい。 21そうすれば、天地の続く限り、約束の地で子々孫々まで幸せに暮らせます。

22私が与える戒めをみな注意深く守り、主を愛し、主に頼って歩めば、 23どんなに強大な民であっても、主が必ず追い払ってくださいます。 24行く所はどこもあなたがたの土地になるのです。南はネゲブから北はレバノンまで、東と西はそれぞれユーフラテス川と地中海までも。 25だれ一人、あなたがたに太刀打ちできる者はいません。主はお約束どおり、行く先々で敵に恐れと不安を抱かせるからです。

26主の祝福を選ぶかのろいを選ぶか、今はっきり決めなさい。 27私が与える主の戒めに従うなら祝福されます。 28しかし、それを拒否し、外国の神々を拝んだりするならのろわれます。

29あなたの神、主が約束の地に導き入れてくださったら、ゲリジム山から祝福を、エバル山からのろいを宣言しなさい。 30どちらもカナン人が住むヨルダン川の西側の地域にある山で、ギルガルに近く、モレの樫の木のある荒野にそびえています。 31あなたがたは、これからヨルダン川を渡り、主が与えてくださる地に入るのです。 32だから、今日、私が与えるすべての律法を守りなさい。

Hindi Contemporary Version

व्यवस्था 11:1-32

आज्ञाकारिता का प्रतिफल

1इसलिये ज़रूरी है कि तुम याहवेह, अपने परमेश्वर से प्रेम करो और हमेशा उनके निर्देशों, नियमों, अध्यादेशों का और आदेशों का पालन करो. 2आज यह भी समझ लो: मैं तुम्हारी संतानों से बातें नहीं करता हूं, जिन्होंने न तो याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के अनुशासन-शिक्षण को समझा है, न उन्होंने इसे देखा है न उन्होंने याहवेह की महानता को: उनके शक्तिशाली हाथ को, न उनकी बढ़ाई हुई भुजा को; 3उनके द्वारा दिखाए गए चिन्ह, उनके द्वारा किए अद्धुत काम, जो उन्होंने मिस्र देश में मिस्र के राजा फ़रोह के और मिस्र की सारी प्रजा के सामने किए; 4मिस्र की सेना के साथ, उसके घोड़ों और रथों के साथ, जब वे तुम्हारा पीछा करते चले जा रहे थे, कैसे याहवेह ने उन्हें लाल सागर के जल में डुबोकर पूरी तरह से नाश कर डाला था. 5और उन्होंने निर्जन प्रदेश में तुम्हारे साथ क्या-क्या किया था, जब तक तुम यहां न पहुंच गए, 6और याहवेह ने दाथान और अबीराम के साथ, जो एलियाब के पुत्र और रियूबेन के पोते थे, क्या किया था, जब धरती ने अपना मुख खोल उन्हें, सारे इस्राएल के बीच से, उनके घर-परिवारों को, उनके शिविरों को और उनके साथ आ रहे हर एक जीवधारी को कौर बना लिया. 7मगर तुम तो याहवेह द्वारा किए हर एक महान काम के गवाह हो.

8फिर तुम आज मेरे द्वारा भेजे हर एक आदेश का पालन करोगे, कि तुम मजबूत हो जाओ और आगे बढ़कर उस देश पर अधिकार कर सको, जिसे पार करने के बाद तुम उस पर अधिकार करने पर हो, 9कि तुम उस देश में, जिसमें दूध और शहद की बहुतायत है, जिसे उन्हें और उनके वंशजों को देने की शपथ याहवेह ने तुम्हारे पूर्वजों से की थी, तुम लंबी उम्र के हो सको. 10क्योंकि जिस देश के अधिकार के लक्ष्य से तुम वहां प्रवेश करने पर हो, वह मिस्र देश समान नहीं है, तुम जहां से निकलकर यहां आ पहुंचे हो, जहां तुम बीज बोते और सब्जी के बगीचे के समान अपने पैरों का प्रयोग सिंचाई के लिए किया करते थे. 11वस्तुतः जिस देश पर अधिकार करने के उद्देश्य से तुम उसमें प्रवेश करने ही पर हो, वह पहाड़ियों और घाटियों का देश है, जो आकाश से हुई बारिश का जल जमा करता रहता है. 12यह एक ऐसा देश है, जिसकी देखभाल याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर करते हैं; इस देश पर याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर की दृष्टि सदैव लगी रहती है, साल के शुरू से लेकर साल के अंत होने तक.

13यह तय है कि यदि तुम मेरे द्वारा आज दिए जा रहे इन आदेशों का पालन करोगे, अर्थात् याहवेह अपने परमेश्वर से प्रेम करोगे, और उन्हीं की सेवा अपने पूरा हृदय और अपने पूरा प्राणों से करोगे, 14तो वह उपयुक्त मौसम में तुम्हारी भूमि के लिए बारिश भेजेंगे, शुरुआती और अंतिम बारिश, ताकि तुम अपने अन्‍न, नई दाखमधु और अपना तेल इकट्ठा कर सको. 15वह तुम्हारे पशुओं के लिए मैदानों में घास उत्पन्‍न करते रहेंगे. तुम भरपूर खाकर तृप्‍त हो जाओगे.

16यह ध्यान रहे कि तुम्हारे हृदय के साथ छल न कर दिया जाए, कि तुम पराए देवताओं की ओर होकर उनकी सेवा और उपासना न करने लगो. 17नहीं तो याहवेह का कोप तुम पर भड़क उठेगा. तब वह आकाश को इस प्रकार रोक देंगे, कि बारिश के अभाव में भूमि अपनी उपज न दे सकेगी; फलस्वरूप तुम याहवेह द्वारा उत्तम देश से शीघ्र ही नाश हो जाओगे. 18तुम मेरे ये आदेश हृदय में रखोगे, अपनी आत्मा में उतार लोगे; तुम इन्हें अपने हाथ पर चिन्ह के रूप में बांध लोगे, ये तुम्हारे माथे पर टीका होंगे. 19तुम ये आदेश अपनी संतान को सिखाया करना. जब तुम अपने घर में बैठे हुए हो, तब तुम इनका उल्लेख करोगे, जब तुम मार्ग में आगे बढ़ रहे हो और जब तुम विश्राम के लिए लेटोगे या जब तुम नींद से उठोगे. 20तुम उन्हें अपने घर की चौखटों पर और अपने द्वारों पर लिखोगे, 21कि उस देश में, जिसे देने की प्रतिज्ञा याहवेह ने शपथपूर्वक तुम्हारे पूर्वजों से की थी, आकाश और पृथ्वी के बने रहने तक तुम्हारी संतान गिनती में बढ़ती जाएं.

22क्योंकि यदि तुम बड़ी सच्चाई से आदेशों का पालन करते रहोगे, जो मैं तुम्हें पालन करने का आदेश दे रहा हूं—याहवेह, अपने परमेश्वर से प्रेम करने का, उनकी पूरी नीतियों का पालन करने का और उनसे पूरी तरह सच्चा बने रहने का. 23तब याहवेह इन सभी राष्ट्रों को तुम्हारे सामने से खदेड़ देंगे और तुम ऐसे राष्ट्रों को उनके देश से दूर कर दोगे, जो गिनती में तुमसे अधिक और तुमसे अधिक शक्तिशाली हैं. 24ऐसा हर एक भूभाग, जिससे तुम्हारे पांवों के तलवे छुएंगे, तुम्हारी संपत्ति हो जाएगा. तुम्हारी सीमा निर्जन प्रदेश से लेकर लबानोन तक और उस नदी, यानी फरात से पश्चिम सागर11:24 पश्चिम सागर अर्थात् भूमध्य सागर तक. 25कोई भी व्यक्ति तुम्हारे सामने ठहर न सकेगा. याहवेह तुम्हारे परमेश्वर, अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप, उस पूरे देश पर, जिसे तुम्हारे पैर छुएंगे, तुम्हारा भय, तुम्हारा आतंक भर देंगे.

26अब सुनो, आज मैं तुम्हारे सामने एक आशीर्वाद और एक शाप प्रस्तुत कर रहा हूं— 27आशीर्वाद उस स्थिति में, जब तुम याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के आदेशों का पालन करोगे, जिनका आदेश आज मैं तुम्हें दे रहा हूं; 28और शाप उस स्थिति में, जब तुम याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के आदेशों को ठुकराओगे, उस मार्ग से भटक जाओगे, जिसका आदेश मैं आज तुम्हें दे रहा हूं, और उन पराए देवताओं का अनुसरण शुरू कर दोगे, जिन्हें तुम जानते भी न थे. 29और तब उस समय, जब याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें उस देश में पहुंचा देंगे, जिस पर अधिकार करने के लिए तुम उसमें प्रवेश करने पर हो, तुम आशीर्वाद तो गेरिज़िम पर्वत पर से और शाप एबल पर्वत पर से घोषित करोगे. 30ये पर्वत यरदन नदी के पार हैं, पश्चिम दिशा में कुछ ही दूरी पर यह कनानियों का देश है, जो अराबाह में गिलगाल के सामने, मोरेह के बांज वृक्षों के निकट, निवास करते हैं. 31क्योंकि अब तुम इस यरदन नदी को पार कर उस देश पर अधिकार करने पर ही हो, जो याहवेह तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें प्रदान कर रहे हैं. तुम इस पर अधिकार करके इसमें निवास करने लगोगे. 32जो जो आदेश और विधान मैं आज तुम्हारे सामने स्पष्ट कर रहा हूं, तुम उनको पूरा करने में सावधान रहोगे.