民数記 23 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

民数記 23:1-30

23

神のことばを伝えるバラム

1バラムはバラク王に言いました。「ここに祭壇を七つ築き、若い雄牛と若い雄羊を七頭ずつ用意してください。」

2王は指示どおり、雄牛と雄羊を一頭ずつ、それぞれの祭壇の上でいけにえとしてささげました。

3-4「ここでお待ちください。主が何と言われるか聞いてまいりましょう。」こう言うと、バラムは木も生えていない山の頂上に登って行きました。そこに神が現れたので、バラムは言いました。「七つの祭壇を用意し、それぞれに若い雄牛と雄羊を一頭ずつ、いけにえとしておささげしました。」 5主は王に伝えることを教えました。

6戻ってみると、王はモアブの指導者全員とともに、焼き尽くすいけにえのそばに立っていました。 7-10バラムは言いました。

「王よ、あなたは私を東のアラムの国から呼び寄せ、

『イスラエル人どもをのろい、滅ぼしてくれ』と

お頼みになりました。

ああ、しかし、神がのろわないのに、

どうして私がのろえましょう。

神が滅ぼすと言われないのに、

どうして私が滅びると言えましょう。

山の頂から眺め、丘の上からよく見ると、

イスラエル人はどの国民とも違います。

あんな国民は見たこともありません。

まるで海辺の砂のように多く、とても数えきれません。

死ぬ時は、私もイスラエル人のように

幸せに死にたいものです。」

11王はバラムに言いました。「なんだと! 敵をのろってくれとは頼んだが、祝福しろと言った覚えはない。」

12「何と言われましても、神様が言えとおっしゃること以外は申し上げられません。」

13「では、やつらがほんの一部しか見えないこちらに来い。そのくらいの数なら、のろってもかまわないだろう。」

14王はバラムをピスガ山の頂上のセデ・ツォフィムの原に連れて行き、そこに祭壇を七つ築き、それぞれに若い雄牛と雄羊を一頭ずついけにえとしてささげました。

15バラムは王に言いました。「主にお会いして来る間、祭壇のそばに立っていてください。」 16主はバラムに現れ、何を言ったらよいかを教えました。 17バラムはさっそく王や指導者たちのもとに戻りました。そばには、焼き尽くすいけにえがありました。

王はまどろっこしくなり、じりじりしながら尋ねました。「それで、主は何と言われたのだ?」

18-24バラムは、答えました。

「よろしいですか、ツィポル殿のご子息である王よ。

お聞きもらさないように、よくお聞きください。

神は人間と違って、うそなどおつきになりません。

神が約束を実行なさらなかったことがあるでしょうか。

その神が、『祝福しなさい』とお命じになったのです。

神の祝福を変えることはできません。

イスラエル人に悪いところはないのだから、

災いに会うこともありません。

神が彼らとともにおられ、

イスラエル人は彼らの王をたたえています。

神は彼らをエジプトから連れ出しました。

神はイスラエルのために野牛のように戦います。

イスラエルには、のろいも魔術も通じません。

『イスラエルの神は、なんと不思議なことをなさるのだ』と、だれもが言うでしょう。

彼らはライオンのように立ち上がり、

獲物を食い尽くし、

その血を吸い尽くすまで休もうとはしません。」

25「ええい、もうやめないか! のろわないなら、せめて祝福するのだけはやめてくれ!」王はこらえきれずに叫びました。

26「王様、私は主がお告げになったことだけをお伝えすると、最初に申し上げたではありませんか。」

27「それなら、また別の場所へ連れて行ってやろう。そこからなら、やつらをのろってもいいと、神は言われるかもしれない。」

28王はバラムを、荒野を見下ろすペオル山の頂上に連れて行きました。 29バラムが、「祭壇を七つ築き、若い雄牛と雄羊を七頭ずついけにえにしてください」と頼むと、 30王は言われたとおり、それぞれの祭壇に一頭ずつ、雄牛と雄羊をささげました。

Hindi Contemporary Version

गणना 23:1-30

बिलआम की पहली नबूवत

1तब बिलआम ने बालाक से विनती की, “मेरे लिए यहां सात वेदियां बनवाइए, और वहां मेरे लिए सात बछड़े एवं सात मेढ़े तैयार रखिए.” 2बालाक ने यही किया. फिर बालाक एवं बिलआम ने मिलकर हर एक वेदी पर एक-एक बछड़ा एवं मेढ़ा भेंट किया.

3फिर बिलआम ने बालाक से विनती की, “आप अपनी होमबलि के निकट ठहरे रहिए, मैं याहवेह के सामने जाऊंगा, हो सकता है कि याहवेह मुझसे भेंट करने आएं. वह मुझ पर, जो कुछ स्पष्ट करेंगे, मैं आप पर प्रकट कर दूंगा.” यह कहकर बिलआम एक सुनसान पहाड़ी पर चला गया.

4यहां बिलआम ने परमेश्वर से बातें करनी शुरू की, “मैंने सात वेदियां बनवाई हैं, और मैंने हर एक पर एक-एक बछड़ा तथा मेढ़ा भेंट चढ़ाया है.”

5याहवेह ने बिलआम को वह वचन सौंप दिया और उसे आज्ञा दी, “बालाक के पास जाओ तथा उससे यही कह देना.”

6फिर बिलआम बालाक के पास लौट गया. बालाक अपनी होमबलि के पास खड़ा हुआ था, उसके साथ मोआब के सारे प्रधान भी थे. 7बिलआम ने अपना वचन शुरू किया,

“अराम देश से बालाक मुझे यहां ले आया है,

बालाक, जो पूर्वी पर्वतों में से मोआब का राजा है,

उसका आदेश है, ‘मेरी ओर से याकोब को शाप दो;

यहां आकर इस्राएल की बुराई करो.’

8मैं उन्हें शाप कैसे दे दूं,

जिन्हें परमेश्वर ने शापित नहीं किया?

मैं उनकी बुराई कैसे करूं,

जिनकी बुराई याहवेह ने नहीं की है?

9मैं यहां चट्टानों के शिखर से उन्हें देख रहा हूं,

मैं यहां पहाड़ियों से उन्हें देख रहा हूं;

ये वे लोग हैं, जो सबसे अलग हैं,

ये अन्य देशों में मिलाए नहीं जा सकते.

10किसमें क्षमता है, याकोब के धूलि के कणों की गिनती करने की,

या इस्राएल के एक चौथाई भाग की गिनती करने की भी?

मेरी कामना यही है कि मैं धर्मी की मृत्यु को प्राप्‍त हो जाऊं.

हां, ऐसा ही हो मेरा अंत!”

11यह सुन बालाक ने बिलआम से कहा, “आपने मेरे साथ यह क्या कर डाला है? मैंने तो आपको यहां इसलिये आमंत्रित किया था, कि आप मेरे शत्रुओं को शाप दें, किंतु आपने तो वस्तुतः उन्हें आशीर्वाद दे दिया है!”

12बिलआम ने उत्तर दिया, “क्या, ज़रूरी नहीं कि मैं वही कहूं, जो याहवेह ने मुझे बोलने के लिए सौंपा है?”

बिलआम की दूसरी नबूवत

13फिर बालाक ने बिलआम से आग्रह किया, “कृपा कर आप इस दूसरी जगह पर आ जाइए, जहां से ये लोग आपको दिखाई दे सकें, हालांकि यहां से आप उनका पास वाला छोर ही देख सकेंगे, पूरे समूह को नहीं. आप उन्हें वहीं से शाप दे दीजिए.” 14तब बालाक बिलआम को ज़ोफिम के मैदान में, पिसगाह की चोटी पर ले गया. वहां उसने सात वेदियां बनवाई और हर एक पर एक-एक बछड़ा तथा एक-एक मेढ़ा भेंट चढ़ाया.

15फिर वहां बिलआम ने बालाक से कहा, “आप यहीं होमबलि के निकट ठहरिए और मैं वहां आगे जाकर याहवेह से भेंट करूंगा.”

16वहां याहवेह ने बिलआम से भेंट की तथा उसके मुख में अपने शब्द भर दिए और याहवेह ने बिलआम को यह आज्ञा दी, “बालाक के पास लौटकर तुम यह कहोगे.”

17बिलआम बालाक के पास लौट आया, जो इस समय होमबलि के निकट खड़ा हुआ था, तथा मोआब के प्रधान भी उसके पास खड़े हुए थे. बालाक ने उससे पूछा, “क्या कहा है याहवेह ने तुमसे?”

18तब बिलआम ने उसे सौंपा गया वचन दोहरा दिया:

“उठो, बालाक, सुन लो;

ज़ीप्पोर के पुत्र, मेरी ओर ध्यान दो!

19परमेश्वर मनुष्य तो हैं नहीं, कि झूठी बात करें,

न ही वह मानव की संतान हैं, कि उन्हें अपना मन बदलना पड़े.

क्या, यह संभव है कि उन्होंने कुछ कहा है?

और उन्हें वह पूरा करना असंभव हो गया?

20सुन लीजिए, मुझे तो आदेश मिला है इन्हें आशीर्वाद देने का;

जब याहवेह ने आशीर्वाद दे दिया है, तो उसे पलटा नहीं जा सकता.

21“याहवेह ने याकोब में अनर्थ नहीं पाया,

न उन्हें इस्राएल में विपत्ति दिखी है;

याहवेह, जो उनके परमेश्वर हैं, उनके साथ हैं;

उनके साथ राजा की ललकार रहती है.

22परमेश्वर ही हैं, मिस्र से उन्हें निकालने वाले;

उनमें जंगली सांड़ के समान ताकत है.

23कोई अपशकुन नहीं है याकोब के विरुद्ध,

न ही इस्राएल के विरुद्ध कोई भावी घोषणा.

सही अवसर पर याकोब के विषय में कहा जाएगा,

इस्राएल के विषय में कहा जाएगा, ‘याहवेह ने कैसा महान कार्य किया है!’

24देखो, सिंहनी के समान यह दल उभर रहा है,

एक शेर के समान यह स्वयं को खड़ा कर रहा है;

जब तक वह आहार को खा न ले, वह विश्राम न करेगा,

हां, तब तक, जब तक वह मारे हुओं का लहू न पी ले.”

25यह सुन बालाक ने बिलआम से कहा, “ऐसा करो, अब न तो शाप दो और न ही आशीर्वाद!”

26किंतु बिलआम ने बालाक को उत्तर दिया, “क्या मैंने आपको बताया न था, जो कुछ याहवेह मुझसे कहेंगे, वही करना मेरे लिए ज़रूरी है?”

बिलआम की तीसरी नबूवत

27तब बालाक ने बिलआम से विनती की, “कृपा कर आइए, मैं आपको एक दूसरी जगह पर ले चलूंगा. हो सकता है यह परमेश्वर को ठीक लगे और आप मेरी ओर से उन्हें शाप दे दें.” 28फिर बालाक बिलआम को पेओर की चोटी पर ले गया, जहां से उजाड़ क्षेत्र दिखाई देता है.

29बिलआम ने बालाक को उत्तर दिया, “अब आप यहां मेरे लिए सात वेदियां बना दीजिए तथा मेरे लिए यहां सात बछड़े एवं सात मेढ़े तैयार कीजिए.” 30बालाक ने ठीक वैसा ही किया, जैसा बिलआम ने विनती की थी. उसने हर एक वेदी पर एक-एक मेढ़ा चढ़ाया.