出エジプト記 26 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

出エジプト記 26:1-37

26

幕屋

1-2上等の撚り糸で織った亜麻布十枚をつなぎ合わせ、神の天幕(幕屋)を作りなさい。布はそれぞれ長さ二十八キュビト(十二・三メートル)、幅四キュビト(一・七六メートル)でそろえる。青と紫と緋色の撚り糸を使い、全体にケルビム(天使の像)を織り出す。 3五枚ずつへりとへりをつなぎ合わせて、大きな布を二枚作り、幕屋の両側面とする。 4-5この二枚の端と端をつなぎ合わせるために、へりに青いループをつける。それぞれのへりに対になるよう五十ずつのループを作る。 6ほかにループをつなぐ五十個の留め金を金で作る。こうしてわたしの住まいである幕屋を一つに組み立てる。

7-8屋根の部分にはやぎの毛皮の防水布をかぶせる。それぞれ長さ三十キュビト(十三・二メートル)、幅四キュビトのものを十一枚用意する。 9このうち五枚をつなぎ合わせて幅広の幕にし、残りの六枚も、つないで一枚の幕にする。長いほうの六枚目に当たる部分は、上から垂らして、聖なる天幕の正面で折り重ねる。 10-11この二枚の幕をつなぎ合わせるために、それぞれのへりに五十個のループを作り、五十個の青銅の留め金を使って一枚にする。 12天幕のうしろは、屋根を覆う幕が一キュビト垂れ下がり、 13また、正面にも一キュビト垂れ下がる。 14この防水布の上に、赤く染めた雄羊のなめし皮を敷き、その上にじゅごんの皮をかける。これで屋根が完成する。

15-16幕屋のわく組みをアカシヤ材で作りなさい。それぞれ長さ十キュビト(四・四メートル)、幅一キュビト半の板を、まっすぐ立てて組み合わせる。 17側面にほぞ(はめ込み用の突起)を二つ作り、隣の板をはめ込む。 18-19こうして二十枚つなぎ合わせたものが、幕屋の南側になる。それぞれの板は銀の土台二個にはめ込む。板一枚につき二個ずつ、計四十個の銀の土台が必要となる。 20北側にも同じような板が二十枚、 21それぞれに二個ずつ、計四十個の銀の土台を使う。 22西側には六枚の板、 23そして両隅に二枚の板を使う。 24隅の板は下を重ね、上を環でつなぎ合わせる。 25最終的に、西側には板が八枚、銀の土台がそれぞれに二個ずつで、計十六個あることになる。

26-27アカシヤ材で横木を作り、わく組み全体に張り渡しなさい。両側面に五本ずつ、さらに西に面するうしろ側に五本、 28わくの真ん中になる中央の横木は、端から端まで通す。 29板に金をかぶせ、横木を通すために金の環を作る。横木にも金をかぶせる。 30この幕屋を、わたしが山で指示したとおりに建てなさい。

31〔幕屋の内側には〕青と紫と緋色の上等の撚り糸で織った亜麻布で垂れ幕を作り、それにケルビムを織り出しなさい。 32これをアカシヤ材の四本の柱の上から、金のかぎ四つを使って垂らす。柱には金をかぶせ、それぞれ銀の土台に立てる。 33幕はかぎから垂らし、その奥に、契約の箱を置きなさい。この幕が聖所と最も神聖な至聖所とを分ける。

34至聖所の箱には金のふたをし、『恵みの座』をしつらえなさい。 35幕の外の聖所に、テーブルと燭台を向かい合わせに置く。燭台は南側、テーブルは北側である。

36幕屋の入口にかける垂れ幕を、もう一枚作りなさい。青と紫と緋色の上等の撚り糸と、撚り糸で織った亜麻布で作り、精巧な刺しゅうを施す。 37その幕を五本のアカシヤ材の柱から、金のかぎを使って垂らす。柱には金をかぶせ、青銅の土台に立てる。

Hindi Contemporary Version

निर्गमन 26:1-37

मलमल के पर्दे

1“फिर पवित्र स्थान के लिए कुशल कारीगरों द्वारा दस पर्दे बनाना, जो बंटी हुई मलमल और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़ों से बने हों और उस पर कढ़ाई के काम किए हुए करूबों के चित्र हों. 2हर पर्दे की लंबाई बारह मीटर साठ सेंटीमीटर और चौड़ाई एक मीटर अस्सी सेंटीमीटर हो. हर पर्दा एक ही नाप का हो. 3पांच पर्दों को एक साथ जोड़ना और इसी प्रकार दूसरे पांच पर्दे भी एक साथ जुड़े. 4फिर पहले पांच पर्दे के किनारी पर तथा इसी तरह दूसरी पांच पर्दे के किनारी पर भी नीले रंग का फंदा बनाना. 5एक पर्दे में पचास फंदे और दूसरे में भी पचास फंदे. वे फंदे एक दूसरे के सामने बनाना. 6फिर, सोने के पचास अंकुड़े बनवाना. और उन अंकुड़ों से दोनों पर्दों को मिलाना, जिससे पवित्र स्थान मिलकर एक हो जाए.

7“फिर बकरे के रोमों से ग्यारह पर्दे बनवाना जो पवित्र स्थान के ऊपर का हिस्सा है. 8हर पर्दे की लंबाई साढ़े तेरह मीटर और चौड़ाई एक मीटर अस्सी सेंटीमीटर हो. ग्यारहों पर्दे एक ही नाप के हों. 9उन पर्दों में पांच को जोड़कर एक पर्दा बनवाना. और बाकी छः पर्दों को जोड़कर एक और पर्दा बनवाना. छठे पर्दे को तंबू के सामने मोड़ देना. 10और दोनों अलग-अलग पर्दों की एक-एक किनारी पर पचास-पचास फंदे लगाना. 11फिर कांसे के पचास अंकुड़े बनवाना. उन अंकुड़ों में फंदे लगवाना और तंबू के दोनों तरफ इस प्रकार जोड़ना कि वे एक बन जाए. 12पर्दों का जो भाग बचा है, उसका आधा भाग पवित्र स्थान के पीछे लटका देना 13और पर्दों की लंबाई में बचा हुआ भाग पवित्र स्थान के दोनों तरफ ढकने के लिए पैंतालीस-पैंतालीस सेंटीमीटर दोनों ओर लटका हुआ छोड़ देना. 14तंबू के लिए लाल रंग से रंगी हुई भेडों की खाल का एक ओढ़ना बनवाना और फिर उसके ऊपर लगाने के लिए सूस के चमड़े का एक और ओढ़ना बनवाना.

15“फिर पवित्र स्थान को खड़ा करने के लिए बबूल की लकड़ी के तख्ते बनवाना. 16हर तख्ते की लंबाई साढ़े चार मीटर और चौड़ाई साढ़े सड़सठ सेंटीमीटर की हो. 17तख्ते को जोड़ने के लिए दो समानांतर चूल्हे हों. पवित्र स्थान के सब तख्ते इसी तरह बनवाना. 18पवित्र स्थान के लिए बीस तख्ते दक्षिण की ओर बनवाना. 19उनके नीचे चांदी की चालीस कुर्सियां बनवाना जो तख्तों के नीचे रखी जायेंगी. हर तख्ते के नीचे उसकी दो चूलों के लिए दो कुर्सियां बनवाना. 20और इसी प्रकार उत्तर की ओर भी बीस तख्ते बनवाना. 21और चांदी की चालीस कुर्सियां, हर एक तख्ते के नीचे दो कुर्सियां बनवाना. 22पवित्र स्थान के पीछे पश्चिम की ओर छः तख्ते बनवाना. 23और पीछे के भाग के कोनों के लिए दो तख्ते बनवाना. 24कोने के दोनों तख्ते एक साथ जोड़ देना चाहिए. तले में दोनों तख्तों की खूंटियां चांदी के एक ही आधार में लगेंगी और दोनों भाग ऊपर से जुड़े हों, और नीचे का भाग अलग हो. 25इस प्रकार आठ तख्ते बनवाना, जिनके नीचे चांदी की सोलह कुर्सियां हों, हर तख्ते के नीचे दो कुर्सियां हों.

26“फिर बबूल की लकड़ी की छड़ें बनवाना. अर्थात् पवित्र स्थान की एक तरफ के तख्तों के लिए पांच छड़ें हों, 27और तथा पवित्र स्थान की दूसरी तरफ के तख्तों के लिए पांच कड़े तथा पवित्र स्थान के पश्चिमी दिशा के तख्ते के लिए पांच कड़े बनवाना. 28तख्ते के एक तरफ से दूसरी तरफ जाने के लिए तख्ते के बीच में कड़े बनवाना. 29तख्तों के ऊपर सोना लगवाना और कड़े में भी सोना लगवाना. लकड़े की डंड़ियों को भी सोना लगवाना.

30“इसी प्रकार पवित्र स्थान को बनाना, जैसे तुमको पर्वत पर दिखाया गया था.

31“फिर नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़ों से और बंटी हुई मलमल से एक बीच वाला पर्दा बनवाना, जिस पर कढ़ाई के काम द्वारा करूबों के रूप बने हुए हों. 32बबूल की लकड़ी के चार खंभे बनवाना और उनके ऊपर सोना लगाना. इन खंभों पर पर्दों के लिए सोने की कड़ियां और चांदी की चार कुर्सियां बनवाना. 33बीचवाले पर्दे को अंकुड़ियों के नीचे लटकाकर उसकी आड़ में साक्षी पत्र का संदूक अंदर रखना. बीचवाले पर्दे के एक तरफ पवित्र स्थान तथा दूसरी तरफ परम पवित्र स्थान होगा. 34परम पवित्र स्थान में साक्षी पत्र के संदूक के ऊपर करुणासन को रखना. 35पर्दे के बाहर पवित्र स्थान के उत्तरी भाग में मेज़ रखना और उसके दक्षिण की ओर मेज़ के सामने दीया रखना.

36“तंबू के द्वार के लिए नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़ों का तथा बंटी हुई बारीक़ सनी वाले कपड़ो की कढ़ाई का काम किया हुआ एक पर्दा बनवाना. 37इस पर्दे को लटकाने के लिए बबूल की लकड़ी के सोने से मढ़े हुए पांच खंभे बनवाना. उनकी कुण्डियां सोने की हों और उनके लिए कांसे की पांच कुर्सियां बनवाना.