ヨブ 記 21 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

ヨブ 記 21:1-34

21

ヨブのことば

1ヨブの返答。

2-3「私の言い分をよく聞け。

とにかく、話させてほしい。

そのあとで、好きなだけあざければよい。

4人に対してではない。

神に言いたいことがあるのだ。

こんな状態なら、悩むのが当然だろう。

5まともに私を見てみるがよい。

あまりの恐怖に、あなたがたは手を口に当てるだろう。

6私さえ、自分の姿を見ると恐ろしくなって身震いする。

7罪深い悪者が天寿を全うし、名を上げ、

羽振りをきかせているのが現実だ。

8彼らは子どもが成長するまで長生きし、

孫の顔まで見ることができる。

9家庭の心配事など一つもなく、平和そのものだ。

しかも、神は彼らを罰しない。

10家畜もどんどん増えるし、

11快活な子どもたちにも恵まれる。

12-13彼らは毎日、歌と踊りで明け暮れる。

資産家となり、倹約などする必要もなく、

死ぬまで栄える。

14神を追い出し、神になどかかわりたくないと

思っているのに、このようになるのだ。

15彼らは大きな口をたたく。

『全能の神だって? いったい、だれのことだ。

なぜ神などに従わなきゃならないのだ。

大したご利益もないのに。』

16悪者がさわった物は、何もかも金になる。

だが私は、そんな人々とはかかわりたくない。

17悪者はいつでも罰を免れる。

災いに会わず、

神が悲しんだり、怒ったりするときも、

彼らだけが見逃される。

18風が彼らをわらのように吹き飛ばし、

嵐が運び去るというのか。とんでもない。

19『だが神は、少なくとも彼らの子どもを罰する』

と言っても、私は納得できない。

罪を犯した当人が罰されるべきで、

子どもは罰されるべきではない。

当人が身をもって、

刑罰の痛みを思い知るべきではないか。

20自分が悪くて滅びを招いたのだから、

全能者の怒りを自分でのみ尽くすべきだ。

21そして死んで、

二度と家族と楽しむこともできなくなるのだ。

22とはいえ、だれが、さばき主である神に異議を申し立てることができようか。

23-24神は健康な者、富んでいる者、

肥えている者、栄えている者を滅ぼす。

25一方では、生まれて一度も幸せだったことのない

貧しい人をも滅ぼす。

26どちらも、同じちりの中に埋められ、

同じようにうじ虫の餌食になる。

27あなたたちの言おうとすることはわかっている。

28きっと、罪のために災いを招いた、

金持ちの悪者を引き合いに出すことだろう。

29だが、手近な人に尋ねてみるがよい。

30-32悪者はたいてい災いの日に命拾いし、逃げのびる、

と答えるに決まっているから。

だれも面と向かって彼を責めず、報復もしない。

そればかりか、兵士が彼の墓を見張ってくれる。

33盛大な葬儀の行列が続き、

やわらかい土が彼を覆う。

34あなたがたは前提から間違っている。

なぜ私を慰められると思っているのか。」

Hindi Contemporary Version

अय्योब 21:1-34

अय्योब की चेतावनी

1तब अय्योब ने उत्तर दिया:

2“अब ध्यान से मेरी बात सुन लो

और इससे तुम्हें सांत्वना प्राप्‍त हो.

3मेरे उद्गार पूर्ण होने तक धैर्य रखना,

बाद में तुम मेरा उपहास कर सकते हो.

4“मेरी स्थिति यह है कि मेरी शिकायत किसी मनुष्य से नहीं है,

तब क्या मेरी अधीरता असंगत है?

5मेरी स्थिति पर ध्यान दो तथा इस पर चकित भी हो जाओ;

आश्चर्यचकित होकर अपने मुख पर हाथ रख लो.

6उसकी स्मृति मुझे डरा देती है;

तथा मेरी देह आतंक में समा जाती है.

7क्यों दुर्वृत्त दीर्घायु प्राप्‍त करते जाते हैं?

वे उन्‍नति करते जाते एवं सशक्त हो जाते हैं.

8इतना ही नहीं उनके तो वंश भी,

उनके जीवनकाल में समृद्ध होते जाते हैं.

9उनके घरों पर आतंक नहीं होता;

उन पर परमेश्वर का दंड भी नहीं होता.

10उसका सांड़ बिना किसी बाधा के गाभिन करता है;

उसकी गाय बच्‍चे को जन्म देती है, तथा कभी उसका गर्भपात नहीं होता.

11उनके बालक संख्या में झुंड समान होते हैं;

तथा खेलते रहते हैं.

12वे खंजरी एवं किन्‍नोर की संगत पर गायन करते हैं;

बांसुरी का स्वर उन्हें आनंदित कर देता है.

13उनके जीवन के दिन तो समृद्धि में ही पूर्ण होते हैं,

तब वे एकाएक अधोलोक में प्रवेश कर जाते हैं.

14वे तो परमेश्वर को आदेश दे बैठते हैं, ‘दूर हो जाइए मुझसे!’

कोई रुचि नहीं है हमें आपकी नीतियों में.

15कौन है यह सर्वशक्तिमान, कि हम उनकी सेवा करें?

क्या मिलेगा, हमें यदि हम उनसे आग्रह करेंगे?

16तुम्हीं देख लो, उनकी समृद्धि उनके हाथ में नहीं है,

दुर्वृत्तों की परामर्श मुझे स्वीकार्य नहीं है.

17“क्या कभी ऐसा हुआ है कि दुष्टों का दीपक बुझा हो?

अथवा उन पर विपत्ति का पर्वत टूट पड़ा हो,

क्या कभी परमेश्वर ने अपने कोप में उन पर नाश प्रभावी किया है?

18क्या दुर्वृत्त वायु प्रवाह में भूसी-समान हैं,

उस भूसी-समान जो तूफान में विलीन हो जाता है?

19तुम दावा करते हो, ‘परमेश्वर किसी भी व्यक्ति के पाप को उसकी संतान के लिए जमा कर रखते हैं.’

तो उपयुक्त हैं कि वह इसका दंड प्रभावी कर दें, कि उसे स्थिति बोध हो जाए.

20उत्तम होगा कि वह स्वयं अपने नाश को देख ले;

वह स्वयं सर्वशक्तिमान के कोप का पान कर ले.

21क्योंकि जब उसकी आयु के वर्ष समाप्‍त कर दिए गए हैं

तो वह अपनी गृहस्थी की चिंता कैसे कर सकता है?

22“क्या यह संभव है कि कोई परमेश्वर को ज्ञान दे,

वह, जो परलोक के प्राणियों का न्याय करते हैं?

23पूर्णतः सशक्त व्यक्ति का भी देहावसान हो जाता है,

उसका, जो निश्चिंत एवं संतुष्ट था.

24जिसकी देह पर चर्बी थी

तथा हड्डियों में मज्जा भी था.

25जबकि अन्य व्यक्ति की मृत्यु कड़वाहट में होती है,

जिसने जीवन में कुछ भी सुख प्राप्‍त नहीं किया.

26दोनों धूल में जा मिलते हैं,

और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं.

27“यह समझ लो, मैं तुम्हारे विचारों से अवगत हूं,

उन योजनाओं से भी, जिनके द्वारा तुम मुझे छलते रहते हो.

28तुम्हारे मन में प्रश्न उठ रहा है, ‘कहां है उस कुलीन व्यक्ति का घर,

कहां है वह तंबू, जहां दुर्वृत्त निवास करते हैं?’

29क्या तुमने कभी अनुभवी यात्रियों से प्रश्न किया है?

क्या उनके साक्ष्य से तुम परिचित हो?

30क्योंकि दुर्वृत्त तो प्रलय के लिए हैं,

वे कोप-दिवस पर बंदी बना लिए जाएंगे.

31कौन उसे उसके कृत्यों का स्मरण दिलाएगा?

कौन उसे उसके कृत्यों का प्रतिफल देगा?

32जब उसकी मृत्यु पर उसे दफन किया जाएगा,

लोग उसकी कब्र पर पहरेदार रखेंगे.

33घाटी की मिट्टी उसे मीठी लगती है;

सभी उसका अनुगमन करेंगे,

जबकि असंख्य तो वे हैं, जो उसकी यात्रा में होंगे.

34“तुम्हारे निरर्थक वचन मुझे सांत्वना कैसे देंगे?

क्योंकि तुम्हारे प्रत्युत्तर झूठी बातों से भरे हैं!”