ヨハネの手紙Ⅱ 1 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

ヨハネの手紙Ⅱ 1:1-13

1

1教会の長老ヨハネから、選ばれた夫人とその子どもたちへ。私は、あなたがたを心から愛しています。そして、あなたがたは、私だけでなく、教会員にも心から慕われています。 2私たちの心のうちにはいつも真理が宿っているので、 3父なる神とそのひとり子イエス・キリストが、恵みとあわれみと平安とを注いで、私たちを祝福してくださるのです。

偽教師に注意しなさい

4あなたの子どもたちの中に、真理に従って歩み、神の命令どおりに正しく生活している者がいるのを知って、非常にうれしく思っています。

5そこで夫人よ。もう一度、思い起こしてほしいことがあります。それは、初めから与えられていた、「互いに愛し合いなさい」という神の戒めです。 6もし私たちがほんとうに神を愛しているなら、その命令に喜んで従うはずです。神は最初から、互いに愛し合うようにと命じておられるのです。

7偽教師があちこちに出現していますから、くれぐれも注意してください。彼らは、イエス・キリストが私たちと同じ肉体を持った人間として世に来られたことを信じないのです。彼らは真理にそむく者であり、キリストに敵対する者です。

8彼らと同じ道をたどって、これまでの労苦が水のあわとならないようお願いします。あなたがたには、ぜひとも、主から十分な報いを受けてもらいたいのです。 9キリストの教えからはずれて、それを守ろうとしない者は、神のものではありません。しかしキリストの教えにとどまっている者は、父なる神と御子を自分のうちに持っているのです。

10あなたがたを訪問する人の中で、まちがった教えを説こうとたくらんでいる者たちを、絶対に迎え入れてはいけません。まして、彼らを励ますようなまねは、いっさいやめなさい。 11そんなことをすれば、自分から悪の仲間入りをするはめになるのです。

12あなたがたに忠告したいことはまだまだありますが、こうして手紙に書くだけにはしたくありません。一日も早くそちらへ行って、直接これらのことについて語り合い、共に楽しい時を過ごしたいからです。 13神に選ばれているあなたの姉妹の子どもたちから、よろしくとのことです。               

ヨハネ

Hindi Contemporary Version

2 योहन 1:1-13

1प्राचीन की ओर से,

चुनी हुई महिला और उसकी संतान को, जिनसे मुझे वास्तव में प्रेम है—न केवल मुझे परंतु उन सबको भी जिन्होंने सच को जान लिया है. 2यह उस सच के लिए है, जिसका हमारे भीतर वास है तथा जो हमेशा हमारे साथ रहेगा.

3परमेश्वर पिता और मसीह येशु की ओर से, जो पिता के पुत्र हैं, अनुग्रह, कृपा और शांति हमारे साथ सच तथा प्रेम में बनी रहेगी.

4इसे देखना मेरे लिए बहुत ही खुशी का विषय है कि सच्चाई में तुम्हारी संतानों में अनेक चलते हैं. यह ठीक वैसा ही है जैसा हमारे लिए पिता की आज्ञा है. 5हे स्त्री, मेरी तुमसे विनती है: हममें आपस में प्रेम हो. यह मैं तुम्हें किसी नई आज्ञा के रूप में नहीं लिख रहा हूं परंतु यह वही आज्ञा है, जो हमें प्रारंभ ही से दी गई है. 6प्रेम यही है कि हम उनकी आज्ञा के अनुसार स्वभाव करें. यह वही आज्ञा है, जो तुमने प्रारंभ से सुनी है, ज़रूरी है कि तुम उसका पालन करो.

7संसार में अनेक धूर्त निकल पड़े हैं, जो मसीह येशु के शरीर धारण करने को नकारते हैं. ऐसा व्यक्ति धूर्त है और मसीह विरोधी भी. 8अपने प्रति सावधान रहो, कहीं तुम हमारी उपलब्धियों को खो न बैठो, परंतु तुम्हें सारे पुरस्कार प्राप्‍त हों. 9हर एक, जो भटक कर दूर निकल जाता है और मसीह की शिक्षा में स्थिर नहीं रहता, उसमें परमेश्वर नहीं; तथा जो शिक्षा में स्थिर रहता है, उसने पिता तथा पुत्र दोनों ही को प्राप्‍त कर लिया है. 10यदि कोई तुम्हारे पास आकर यह शिक्षा नहीं देता, तुम न तो उसका अतिथि-सत्कार करो, न ही उसको नमस्कार करो; 11क्योंकि जो उसको नमस्कार करता है, वह उसकी बुराई में भागीदार हो जाता है.

12हालांकि लिखने योग्य अनेक विषय हैं किंतु मैं स्याही व लेखन-पत्रक इस्तेमाल नहीं करना चाहता; परंतु मेरी आशा है कि मैं तुम्हारे पास आऊंगा तथा आमने-सामने तुमसे बातचीत करूंगा कि हमारा आनंद पूरा हो जाए.

13तुम्हारी चुनी हुई बहन की संतान तुम्हें नमस्कार करती है.