ダニエル書 10 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

ダニエル書 10:1-21

10

ダニエルの見た幻

1ペルシヤの王クロスの治世の第三年に、ベルテシャツァルとも呼ばれたダニエルは、もう一つの幻を見ました。それは、いつか必ず起こる出来事について、すなわち、打ち続く戦争や悲惨による激しい苦難の時代のことでした。この時ダニエルは、その幻の意味を悟ることができました。

2(ダニエルはのちに、次のように言ったのです。)この幻を見た時、私はまる三週間、喪に服していました。 3その間ずっと、ぶどう酒も肉も、甘いものさえも口にすることはありませんでした。体を洗ったり、ひげを剃ったり、髪を梳いたりもしませんでした。 4第一の月の二十四日、私はティグリス川のほとりに立っていました。 5-6突然、目の前に、亜麻布の衣服をまとい、腰に純金の帯を締め、光り輝く肌をした人が立っているのが見えたのです。その顔からは、いなずまのような、目もくらむばかりの閃光がきらめいています。目は燃える火の池のようであり、腕と足は磨き上げた真鍮のように輝き、その声は大群衆の叫びのようです。 7この圧倒されるような幻を見たのは、私だけでした。いっしょにいた者たちは何も見なかったのに、突然、異常な恐怖に取りつかれ、逃げて身を隠してしまい、 8私だけが残ったのです。この恐ろしい幻を見て、私はすっかり力が抜け、恐怖のあまり顔色も青ざめてしまいました。 9それからその人が語りかけましたが、私は意識を失い、うつぶせに地面に倒れてしまいました。

10すると、一つの手が、手もひざも震えている私を起こしてくれました。 11その時、その人の声が聞こえました。「さあ、神に大いに愛されているダニエルよ、立ちなさい。これから語ることを、よく聞くがいい。神が私をあなたのところへお遣わしになったのだ。」そこで私は、まだ恐怖で震えながらも立ち上がりました。 12その人は続けました。「ダニエル、恐れることはない。あなたが神の前で断食し、幻の意味を悟ることができるように祈り求めた最初の日に、あなたの願いは天において聞かれ、すでに答えられているからだ。その日に、私はあなたに会うため、ここに遣わされていた。 13ところが二十一日間、ペルシヤを支配する強力な悪の霊が行く手に立ちふさがっていた。その時、天の軍勢の最高指揮官の一人ミカエルが助けに来てくれたので、私はペルシヤのこの悪の霊たちを突破することができたのだ。 14今、私は、終わりの時にあなたの同胞であるユダヤ人に起こることを知らせるために、ここに来ている。この預言の実現はまだ何年も先のことだ。」

15このことばを聞いている間、私はずっとうつむいて、ひと言も話すことができませんでした。 16その時、人のように見える者がくちびるに触れてくれました。すると再び話せるようになり、私は天からの使者に言いました。「あなたの出現に恐れおののき、力も抜けてしまいました。 17私のような者が、どうしてあなたとお話しできましょう。力が抜けて、息をするのがやっとです。」

18その時、もう一度その人が私に触れてくれました。すると、元気を取り戻したような気がしたのです。 19その方は言いました。「神はあなたを非常に愛しておられる。だから、恐れるな。気を落ちつけて、しっかりするのだ。」

このことばを聞くと、急に力がわいてきました。「どうぞ、先を続けてください。あなたが力づけてくださったので、もう大丈夫です。」 20-21「なぜ私が来たか知っているか。『未来の書』に書かれていることを知らせるために、ここにいるのだ。それから私はここを去り、再びペルシヤの君主と戦うために帰って行く。そのあとで、ギリシヤの君主とも戦う。あなたの同胞イスラエルを守る天使ミカエルしか、私を助けてくれる者はいない。

Hindi Contemporary Version

दानिएल 10:1-21

दानिएल का एक मनुष्य का दर्शन

1फारस के राजा कोरेश के शासनकाल के तीसरे साल में दानिएल (जिसे बैलशत्सर कहा जाता था) पर एक संदेश प्रकाशित किया गया. यह संदेश सत्य था और इसका संबंध एक बड़े युद्ध10:1 बड़े युद्ध यानी सत्य और कष्टकारक से था. संदेश की समझ उसके पास एक दर्शन में आई.

2उस समय, मैं, दानिएल, तीन सप्‍ताह तक शोक मनाता रहा. 3जब तक तीन सप्‍ताह पूरे न हो गए, तब तक मैंने कोई स्वादिष्ट भोजन न किया; न मांस खाया, न दाखमधु को मुंह से लगाया, और न ही किसी प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री का उपयोग किया.

4पहले माह के चौबीसवें दिन, जब मैं महा नदी, हिद्देकेल10:4 हिद्देकेल यानी तिगरिस के किनारे खड़ा था, 5तब मैंने देखा कि वहां एक व्यक्ति सन का वस्त्र पहने, कमर पर उपहाज़ देश का शुद्ध सोने का पट्टा बांधे खड़ा था. 6उसका शरीर ही फ़िरोजा के समान, उसका चेहरा बिजली के समान, उसकी आंखें जलती मशालो के समान, उसकी भुजा और पैर चमकते कांसे के किरण के समान, और उसकी आवाज एक जनसमूह की समान थी.

7सिर्फ मुझे, दानिएल को, ही वह दर्शन दिखाई दे रहा था; जो लोग मेरे साथ थे, उन्हें वह नहीं दिखा, परंतु उन पर ऐसा आतंक छा गया कि वे वहां से भागकर छिप गए. 8इसलिये मैं अकेला रह गया, और इस बड़े दर्शन को टकटकी लगाकर देखता रहा; मुझमें कुछ बल न रहा, मेरा चेहरा पूरी तरह पीला पड़ गया और मैं निस्सहाय हो गया. 9तब मैंने उसे कहते हुए सुना, और जैसे ही मैंने उसकी बातों को सुनी, मैं भूमि पर औंधे मुंह पड़ा गहरी नींद में चला गया.

10तब किसी के एक हाथ ने मुझे छुआ और मेरे थरथराते शरीर को मेरे हाथों और घुटनों के बल खड़ा कर दिया. 11उसने कहा, “हे दानिएल, तुम जो बहुत सम्मानीय व्यक्ति हो, जो बातें मैं तुम्हें बताने जा रहा हूं, उन बातों पर ध्यानपूर्वक विचार करो, और अब खड़े हो जाओ, क्योंकि मुझे तुम्हारे पास भेजा गया है.” जब उसने मुझसे यह कहा, मैं कांपता हुआ खड़ा हो गया.

12तब उसने मुझसे आगे कहा, “हे दानिएल, डरो मत. पहले ही दिन से, जब तुमने अपना मन, समझ प्राप्‍त करने और अपने परमेश्वर के सामने अपने आपको नम्र करने के लिये लगाया, तब से तुम्हारी बातें सुनी गईं, और इसी के प्रत्युत्तर में, मैं यहां आया हूं. 13परंतु फारस राज्य का राजकुमार इक्कीस दिन तक मेरा प्रतिरोध करता रहा. तब मुख्य राजकुमारों में से एक, मिखाएल, मेरी सहायता करने आया, क्योंकि मैं वहां फारस के राजा के पास रोका गया था. 14अब मैं तुम्हें वह बातें बताने आया हूं, जो भविष्य में तुम्हारे लोगों के साथ होनेवाली है, क्योंकि इस दर्शन का संबंध आनेवाले एक समय से है.”

15जब वह मुझसे यह कह रहा था, तो मैं ज़मीन की ओर चेहरा झुकाकर खड़ा रहा और कुछ बोल न सका. 16तब कोई जो एक मनुष्य की तरह दिख रहा था, मेरे होंठों को छुआ, और मेरा मुंह खुल गया और मैं बातें करने लगा. मैंने उससे कहा जो मेरे सामने खड़ा था, “हे मेरे प्रभु, उस दर्शन के कारण, मैं पीड़ा से भर गया हूं, और मैं बहुत कमजोर महसूस कर रहा हूं. 17हे मेरे प्रभु, मैं, आपका सेवक, मैं आपसे कैसे बात कर सकता हूं? मुझमें बल नहीं रहा और मैं बड़ी कठिनाई से सांस ले पा रहा हूं.”

18तब वह जो एक मनुष्य की तरह दिख रहा था, फिर से मुझे छुआ और मुझे बल दिया. 19उसने कहा, “मत डरो, तुम बहुत सम्मानीय व्यक्ति हो, तुम्हें शांति मिले! अब मजबूत रहो; दृढ़ रहो.”

जब उसने मुझसे बात की, तब मुझे बल मिला और मैंने उससे कहा, “हे मेरे प्रभु, मुझसे बातें करिये, क्योंकि आपने मुझे बल दिया है.”

20इसलिये उसने कहा, “क्या तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे पास क्यों आया हूं? बहुत जल्दी, मैं लौटकर फारस के राजकुमार से लड़ाई करनेवाला हूं, और जब मैं जाऊंगा, तब यावन का राजकुमार आयेगा; 21पर पहले मैं तुम्हें यह बताऊंगा कि सत्य के किताब में क्या लिखा है. (तुम्हारे राजकुमार, मिखाएल को छोड़ और कोई भी इनसे लड़ने के लिये मेरी मदद नहीं करता.