エゼキエル書 41 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

エゼキエル書 41:1-26

41

1その後、その人は私を、神殿の中央の大広間である本堂へ連れて行きました。その入口の壁柱を測りましたが、幅は縦横とも六キュビトでした。 2玄関の間口は十キュビト、奥行きは五キュビトでした。本堂は長さ四十キュビト、幅二十キュビトでした。 3その人は本堂の奥の部屋に入り、入口の柱を測ると、二十キュビトの厚さがありました。入口の幅は六十キュビト、それに続く廊下の長さは七キュビトでした。 4奥の間は二十キュビト平方あり、「これが至聖所だ」と私に教えてくれました。

5その人が神殿の壁を測ると、六キュビトあり、その外側に小部屋が並んでいました。各部屋の間口は四キュビトでした。 6これらの部屋は階段式に三段に重なっており、各階に三十の小部屋がありました。部屋はみな、神殿の壁に固定してあり、大梁で支えられていませんでした。 7階段式の小部屋は上に行くほど広くなり、神殿の壁が上に行くほど狭くなっているのと対応していました。神殿のわきには階段があり、上の階に上がれるようになっていました。 8私は、神殿が高台の上に建てられていて、一番下の小部屋の土台も、その高台にあるのを見ました。その高さは六キュビトでした。 9これらの小部屋の外壁の厚さは五キュビトあり、高台の端まで五キュビトの空地が両側に残っていました。 10その高台から二十キュビト離れた内庭には、神殿をはさんで両側に部屋が並んでいました。 11階段式の小部屋には戸が二つあり、五キュビトの空地に向かって開くようになっていました。一つの戸は北に向き、もう一つの戸は南に向いていました。

12西側には、神殿の庭に面して大きな建物が建っていました。その間口は七十キュビト、奥行きは九十キュビトありました。壁の厚さは五キュビトでした。 13それから、その人が神殿とその回りとを測ると百キュビト平方でした。 14神殿の東側の内庭も幅が百キュビトあり、 15-16神殿の西側の建物も、二つの壁を含めると同じ百キュビトの幅になりました。

神殿の本堂にも、至聖所にも、玄関にも羽目板が張り巡らされ、それぞれ格子窓が取りつけてありました。神殿の内側の壁にも、窓の上と下の部分に羽目板が張られていました。 17-18至聖所に通じる戸の上も羽目板が張られていました。壁には、それぞれ二つの顔を持つケルビムとなつめやしの木とが交互に彫刻してありました。 19-20その顔の一つ、人間の顔は一方のなつめやしの木の方を向き、もう一つの顔、若いライオンの顔は反対側のなつめやしの木の方を向いていました。このような彫刻が、神殿の内壁全体を覆っていました。

21本堂の入口の柱は四角で、至聖所の前には祭壇のようなものがありました。しかも、それは木製でした。 22この祭壇は二キュビト四方で、高さが三キュビトありました。その四隅も、台も、側面も、全部木でできていました。その人は私に、「これは神の壇だ」と説明してくれました。 23本堂と至聖所には二重の扉がついていて、 24それぞれの扉は折りたたみ式の二枚戸になっていました。 25本堂に通じる扉には、神殿の内側の壁と同じように、ケルビムとなつめやしの木が彫刻してありました。玄関の上には木製のひさしがついていました。 26そのひさしの上と、玄関の両側と、神殿のわきの小部屋にも、それぞれなつめやしの木の彫刻がしてあり、格子窓がついていました。

Hindi Contemporary Version

यहेजकेल 41:1-26

1तब वह मुझे मुख्य सभागृह में ले आया और चौखटों को नापा; दोनों तरफ के चौखटों की चौड़ाई लगभग तीन-तीन मीटर थी. 2प्रवेश की चौड़ाई लगभग पांच मीटर, और इससे लगी दोनों तरफ के दीवारों की चौड़ाई लगभग ढाई-ढाई मीटर थी. उसने मुख्य सभागृह को भी नापा; यह लगभग इक्कीस मीटर लंबा और लगभग ग्यारह मीटर चौड़ा था.

3तब वह भीतरी पवित्र स्थान पर गया और प्रवेश के चौखटों को नापा; प्रत्येक एक-एक मीटर चौड़ा था. प्रवेश लगभग तीन मीटर चौड़ा था, और इससे लगी दोनों तरफ की दीवार लगभग चार-चार मीटर चौड़ी थी. 4और उसने भीतरी परम पवित्र स्थान की लंबाई को नापा; यह लगभग दस मीटर थी, और इसकी चौड़ाई मुख्य सभागृह के आखिरी तक लगभग दस मीटर थी. उसने मुझसे कहा, “यह परम पवित्र स्थान है.”

5तब उसने मंदिर की दीवार को नापा; यह लगभग तीन मीटर मोटी थी, और हर तरफ मंदिर के चारों ओर कमरों की चौड़ाई लगभग दो-दो मीटर थी. 6बाजू के कमरे तीन मंजिला थे, एक के ऊपर दूसरा, और हर एक मंजिल पर तीस-तीस कमरे थे. बाजू के कमरों को सहारा देने के लिये मंदिर की दीवार के चारों ओर निकले हुए भाग थे, जिसके कारण सहारा देनेवाले भाग मंदिर की दीवार के अंदर डाले नहीं गये थे. 7मंदिर के चारों ओर बाजू के कमरे हर मंजिल पर चौड़े होते गये थे. मंदिर के चारों ओर की संरचना हर मंजिल बड़ी होती गई थी. जिसके कारण ऊपर जाने पर कमरे चौड़े होते गये थे. निचली मंजिल से एक सीढ़ी बीच की मंजिल से होते हुए ऊपर की मंजिल तक गई थी.

8मैंने देखा कि मंदिर के चारों ओर एक उठा हुआ आधार था, जो बाजू के कमरों की नीव बना हुआ था. यह लाठी के लंबाई का था, लगभग तीन मीटर लंबा. 9बाजू के कमरों की बाहरी दीवार लगभग ढाई मीटर मोटी थी. मंदिर के बाजू के कमरों 10और पुरोहितों के कमरों के बीच का खुला भाग मंदिर के चारों ओर लगभग दस मीटर चौड़ा था. 11खुले बाग से बाजू के कमरों में जाने के लिये प्रवेश द्वार थे, एक उत्तर में और दूसरा दक्षिण में था; और चारों ओर खुले हुए स्थान से जुड़े आधार की चौड़ाई लगभग तीन मीटर थी.

12वह भवन जो मंदिर के आंगन के सामने पश्चिम की ओर था, उसकी चौड़ाई लगभग सैंतीस मीटर थी. चारों ओर इस भवन के दीवार की मोटाई लगभग तीन मीटर थी, और इसकी लंबाई लगभग सैंतालीस मीटर थी.

13तब उसने मंदिर को नापा; यह लगभग बावन मीटर लंबा था, और मंदिर का आंगन तथा अपने दीवारों के साथ भवन भी लगभग बावन मीटर लंबा था. 14मंदिर के सामने के भाग को मिलाकर मंदिर के आंगन की चौड़ाई पूर्व की ओर लगभग बावन मीटर थी.

15तब उसने मंदिर के पीछे तरफ आंगन के सामने के भवन को नापा; इसके दोनों तरफ के गैलरियों को मिलाकर इसकी लंबाई लगभग बावन मीटर थी.

मुख्य सभागृह, भीतरी पवित्र स्थान और आंगन के सामने का मंडप, 16साथ ही साथ डेवढ़ियां और संकरी खिड़कियां और उन तीनों के चारों ओर की गैलरियां—हर एक चीज़ बाहर और डेवढ़ी को मिलाकर सब लकड़ी से मढ़ी हुई थी. फर्श, खिड़की तक की दीवार और खिड़कियां भी मढ़ी हुई थी. 17भीतरी पवित्र स्थान के प्रवेश के ऊपर का स्थान और भीतरी और बाहरी पवित्र स्थान के चारों तरफ दीवारों पर बराबर जगह छोड़-छोड़कर 18करूब और खजूर पेड़ों की नक्काशी की गई थी. खजूर के पेड़ों और करूबों को एक के बाद एक बनाया गया था. हर एक करूब के दो-दो मुंह थे. 19करूब का एक मुंह एक तरफ के खजूर के पेड़ की ओर मनुष्य जैसा और करूब का दूसरा मुंह दूसरी तरफ के खजूर के दूसरे पेड़ की ओर जवान सिंह जैसा था. यह नक्काशी पूरे मंदिर के चारों तरफ की गई थी. 20मुख्य सभागृह की दीवार पर फर्श (भूतल) से लेकर प्रवेश के ऊपरी भाग तक करूब और खजूर के पेड़ों की नक्काशी की गई थी.

21मुख्य सभागृह की एक आयताकार चौखट थी, और परम पवित्र स्थान के सामने भी ऐसी ही एक चौखट थी. 22वहां लकड़ी की एक वेदी थी, जो लगभग डेढ़ मीटर ऊंची थी, और इसकी लंबाई और चौड़ाई लगभग एक-एक मीटर थी; इसके कोने, इसका आधार और इसके किनारे लकड़ी के बने थे. उस मनुष्य ने मुझसे कहा, “यह वह मेज़ है, जो याहवेह के सामने है.” 23मुख्य सभागृह और परम पवित्र स्थान दोनों के दोहरे किवाड़ वाले दरवाजे थे. 24हर एक दरवाजे के दो-दो पल्ले थे—दो-दो कब्जा लगे पल्ले हर दरवाजे में थे. 25और मुख्य सभागृह के दरवाजों पर दीवारों के समान ही करूबों और खजूर के पेड़ों की नक्काशी की गई थी, और मंडप के सामने लकड़ी की एक डेवढ़ी थी. 26मंडप के बाजू की दीवारों पर संकरी खिड़कियां थी और खिड़कियों में दोनों तरफ खजूर के पेड़ों की नक्काशी की गई थी. मंदिर के बाजू के कमरों में भी डेवढ़ियां थी.