イザヤ書 58 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

イザヤ書 58:1-14

58

ほんとうの断食

1「ラッパのような大声で叫べ。

わたしの民に、彼らの罪が何であるかを知らせよ。

2彼らはいかにも神を敬うかのように振る舞っている。

毎日神殿へ来て、律法の朗読を聞いて喜ぶ。

彼らはそれに従うことを望み、

神の戒めを軽んじることなど考えられない、

といったふうに見える。

見た目には、正しく礼拝することを心から願い、

神殿での奉仕をことのほか愛しているようだ。

3彼らは不満げに言う。

『あなたの前で断食したのに、

なぜ心に留めてくださらないのですか。

なぜ、私たちのいけにえをごらんにならないのですか。

どうして、私たちの祈りを

聞いてくださらないのですか。

たくさんの罪滅ぼしをしたのに、

目も向けてくださいませんでした。』

その理由を説明しよう。

おまえたちは断食の最中にも悪い楽しみにふけり、

雇った労働者を虐げている。

4考えてもみなさい。仲間割れしながら断食して、

いったいどんな益があるというのか。

そんな断食をしても、

わたしとの関係は少しも良くなるはずがない。

5そんな罪滅ぼしが何だ。

風に揺られる葦のように頭を下げたり、

荒布をまとって灰をかぶったりすることを、

はたしてわたしが望んでいるだろうか。

6わたしの喜ぶ断食とは、労働者を虐げるのをやめ、

公平な扱いをし、

彼らに正当な支払いをすることではないか。

7空腹の者には食べ物を分け与え、

身寄りのない者、暮らしに困っている者を

家に迎えること、それがおまえに望むことだ。

寒さに震えている者には着物を着せ、

親族が助けを求めるなら助けを惜しまないことだ。」

8このようにすれば、

神はあなたに輝かしい光を注ぎ、

あなたはいやされ、

神への思いが、あなたを導きます。

あなたの善良さがあなたの前を守る盾となり、

主の栄光があなたをうしろから支えます。

9あなたが呼べば、「わたしはここにいる」と、

主はすぐに答えます。

あなたのすべきことは、

弱い者を虐げることをやめ、

偽りの告発をしたり悪質なうわさを流したりするのを

やめることです。

10飢えた者に食べさせ、困っている者を助けなさい。

そうすれば、あなたの光は暗闇の中から輝き渡り、

あなたを取り囲む暗闇は真昼のように明るくなります。

11主は片時も休むことなくあなたを導き、

ありとあらゆるすばらしいもので満足させ、

いつも元気で満たしてくださいます。

あなたは、よくうるおった庭園のようになり、

豊かに水がわく泉のようになります。

12息子たちは、長い間人の住んでいなかった

町々の廃墟を建て直し、

「城壁と町を造り直す恩人」と呼ばれます。

13「安息日をきよい心で守り、その日には

仕事や趣味に熱中したりせず、喜んで一日を過ごし、

主の聖なる日だと喜びをこめて言い、

自分のしたいことをせずに無駄口を慎み、

わたしをあがめるなら、

14わたしはあなたの喜びとなる。

わたしは、あなたに高い所を駆け巡らせ、

あなたの父ヤコブに約束しておいた祝福を

あますところなく受け継がせる。」

主は、このように語りました。

Hindi Contemporary Version

यशायाह 58:1-14

सच्चा उपवास

1“ऊंचे स्वर में नारा

लगाओ बिना किसी रोक के.

नरसिंगों का शब्द ऊंचा करो, मेरी प्रजा को उनकी गलती,

तथा याकोब वंश पर उसके पाप की घोषणा करो.

2यह सब होने पर भी वे दिन-प्रतिदिन मेरे पास आते;

तथा प्रसन्‍नतापूर्वक मेरी आज्ञाओं को मानते हैं.

मानो वे धर्मी हैं,

जिसने अपने परमेश्वर के नियम को नहीं टाला.

वे मुझसे धर्म के बारे में पूछते

और परमेश्वर के पास आने की इच्छा रखते हैं.

3‘ऐसा क्यों हुआ कि हमने उपवास किया,

किंतु हमारी ओर आपका ध्यान ही नहीं गया?

हमने दुःख उठाया,

किंतु आपको दिखाई ही नहीं दिया?’

“इसका कारण यह है कि जब तुम उपवास करते हो, तब तुम अपनी अभिलाषाओं पर नियंत्रण नहीं रखते,

तुम उस समय अपने सेवकों को कष्ट देते हो.

4तुम यह समझ लो कि तुम उपवास भी करते हो तथा इसके साथ साथ वाद-विवाद,

तथा कलह भी करते हो और लड़ते झगड़ते हो.

उस प्रकार के उपवास से यह संभव ही नहीं

कि तुम्हारी पुकार सुनी जाएगी.

5क्या ऐसा होता है उपवास,

जो कोई स्वयं को दीन बनाए?

या कोई सिर झुकाए या

टाट एवं राख फैलाकर बैठे?

क्या इसे ही तुम उपवास कहोगे,

क्या ऐसा उपवास याहवेह ग्रहण करेंगे?

6“क्या यही वह उपवास नहीं, जो मुझे खुशी देता है:

वह अंधेर सहने के बंधन को तोड़ दे,

जूए उतार फेंके और उनको छुड़ा लिया जाए?

7क्या इसका मतलब यह नहीं कि तुम भूखों को अपना भोजन बांटा करो

तथा अनाथों को अपने घर में लाओ—

जब किसी को वस्त्रों के बिना देखो, तो उन्हें वस्त्र दो,

स्वयं को अपने सगे संबंधियों से दूर न रखो?

8जब तुम यह सब करने लगोगे तब तुम्हारा प्रकाश चमकेगा,

और तू जल्दी ठीक हो जायेगा;

और तेरा धर्म तेरे आगे-आगे चलेगा,

तथा याहवेह का तेज तेरे पीछे तुम्हारी रक्षा करेगा.

9उस समय जब तुम याहवेह की दोहाई दोगे, तो वह उसका उत्तर देंगे;

तुम पुकारोगे, तब वह कहेंगे: मैं यहां हूं.

“यदि तुम अपने बीच से दुःख का जूआ हटा दोगे,

जब उंगली से इशारा करेंगे तब दुष्ट बातें करना छोड़ देंगे,

10जब तुम भूखे की सहायता करोगे

तथा दुखियों की मदद करोगे,

तब अंधकार में तेरा प्रकाश चमकेगा,

तथा घोर अंधकार दोपहर समान उजियाला देगा.

11याहवेह तुझे लगातार लिये चलेगा;

और सूखे में तुझे तृप्‍त करेगा

वह तुम्हारी हड्डियों में बल देगा.

तुम सींची हुई बारी के समान हो जाओगे,

तथा उस सोते का जल कभी न सूखेगा.

12खंडहर को तेरे वंश के लिये फिर से बसायेंगे

और पीढ़ियों से पड़ी हुई नींव पर घर बनाएगा;

टूटे हुए बाड़े और सड़क को,

ठीक करनेवाला कहलायेगा.

13“यदि तुम शब्बाथ दिन को अशुद्ध न करोगे,

अर्थात् मेरे पवित्र दिन के हित में अपनी इच्छा को छोड़ देते हो,

शब्बाथ दिन को आनंद का दिन मानकर

और याहवेह के पवित्र दिन का सम्मान करते हो,

अपनी इच्छाओं को छोड़कर

अपनी बातें न बोले,

14तू याहवेह के कारण आनंदित होगा,

मैं तुम्हें पृथ्वी की ऊंचाइयों तक ले जाऊंगा

और तुम्हारे पिता याकोब के भाग की उपज से खायेगा.”

क्योंकि यह याहवेह के मुंह से निकला वचन है.