Richter 21 – HOF & HCV

Hoffnung für Alle

Richter 21:1-25

Frauen für die Benjaminiter

1Als die Israeliten in Mizpa versammelt gewesen waren, hatten sie geschworen: »Keiner von uns wird jemals seine Tochter einem Benjaminiter zur Frau geben!« 2Nun gingen sie zu Gottes Heiligtum nach Bethel und blieben bis zum Abend dort. Sie weinten laut und beteten: 3»Herr, du Gott Israels, unser Volk hat einen ganzen Stamm verloren! Warum musste das geschehen?«

4Am nächsten Morgen standen sie früh auf, errichteten einen Altar und brachten darauf Brand- und Friedensopfer dar. 5Sie fragten einander: »Gibt es Leute aus unserem Volk, die nicht zu unserer Versammlung nach Mizpa gekommen sind?« Damals hatten sie nämlich geschworen: »Wer nicht erschienen ist, muss sterben!« 6Es tat den Israeliten leid um die Benjaminiter. »Ein ganzer Stamm ist ausgelöscht«, klagten sie, 7»wie können wir nur den wenigen Überlebenden zu Frauen verhelfen? Wir haben ja vor dem Herrn geschworen, ihnen keine von unseren Töchtern zu geben. 8Vielleicht ist ja wirklich irgendeine Sippe nicht zu unserer Versammlung in Mizpa gekommen. Wir wollen es nachprüfen!« Sie stellten fest, dass die Einwohner der Stadt Jabesch im Gebiet von Gilead nicht dabei gewesen waren, 9denn als sie ihre Truppen musterten, fehlten die Männer aus Jabesch.

10Da wählten sie 12.000 Soldaten aus und befahlen ihnen: »Geht nach Jabesch in Gilead und tötet alle Einwohner, auch die Frauen und Kinder. 11Vollstreckt an ihnen Gottes Strafe! Nur die unverheirateten Mädchen lasst leben.«

12Die Soldaten fanden unter den Einwohnern von Jabesch 400 Mädchen, die noch nicht verheiratet waren, und brachten sie in das israelitische Lager bei Silo im Land Kanaan. 13Von dort schickten die Israeliten Boten zu den Benjaminitern am Rimmonfelsen und schlossen Frieden mit ihnen. 14Da kehrten die 600 Männer aus der Wüste zurück und bekamen die Mädchen aus Jabesch, die man am Leben gelassen hatte. Aber es waren nicht genug für sie alle.

15Die Israeliten waren traurig, dass der Herr einen ihrer Stämme fast ausgelöscht hatte. Sie hatten großes Mitleid mit den Benjaminitern. 16Wieder fragten die Führer des Volkes: »Woher bekommen wir Frauen für die übrigen Männer von Benjamin? Sie haben ja alle Frauen ihres Stammes verloren! 17Wir müssen dafür sorgen, dass sie Nachkommen haben, an die sie ihren Besitz weitervererben können. Schließlich soll nicht ein ganzer Stamm aus Israel aussterben! 18Aber wir dürfen ihnen keine von unseren Töchtern zur Frau geben, denn wir haben geschworen: ›Wer seine Tochter mit einem Mann aus Benjamin verheiratet, den soll Gottes Strafe treffen.‹«

19Schließlich schlugen sie vor: »Bald findet doch das jährliche Fest für den Herrn hier in Silo statt. Dieser Ort liegt sehr günstig: nördlich von Bethel, südlich von Lebona und östlich der Straße, die von Bethel nach Sichem führt. 20Ihr Benjaminiter, legt euch in den Weinbergen auf die Lauer! 21Wenn die Mädchen aus Silo herauskommen, um zu tanzen, springt ihr hervor, und jeder von euch packt eine von ihnen. Dann nehmt sie mit in euer Stammesgebiet. 22Wenn ihre Väter und Brüder zu uns kommen und uns Vorwürfe machen, werden wir antworten: ›Habt doch Mitleid und lasst ihnen die Mädchen! Sie haben beim Krieg gegen Jabesch nicht genug Frauen bekommen. Ihr macht euch nicht schuldig, denn ihr habt sie ihnen ja nicht freiwillig gegeben.‹«

23Die Benjaminiter befolgten den Rat und raubten so viele Frauen, wie ihnen fehlten. Sie nahmen sie mit in ihr Stammesgebiet, bauten dort die zerstörten Städte wieder auf und wohnten darin. 24Auch die anderen Israeliten machten sich auf den Heimweg und kehrten in die Gebiete zurück, aus denen sie stammten.

25In jener Zeit gab es keinen König in Israel, und jeder tat, was er für richtig hielt.

Hindi Contemporary Version

प्रशासक 21:1-25

बिन्यामिन वंशजों के लिए पत्नी

1इस्राएल वंशजों ने मिज़पाह में यह संकल्प लिया था, “हममें से कोई भी अपनी पुत्री बिन्यामिन वंशज को विवाह में नहीं देगा.”

2इसलिये प्रजा के लोग बेथेल जाकर शाम तक परमेश्वर के सामने बैठे रहे, और ऊंची आवाज में रोते रहे. 3वे इसी विषय पर विचार करते रहे थे, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर, इस्राएल में क्यों ऐसी स्थिति आ गई, कि आज इस्राएल में से एक गोत्र मिट गया है?”

4दूसरे दिन लोगों ने तड़के उठकर एक वेदी बनाई तथा उस पर होमबलि तथा मेल बलि भेंट की.

5इस्राएल वंशजों ने यह पूछताछ की, “इस्राएल के सारे गोत्रों में से ऐसा कौन है, जो इस सभा में याहवेह के सामने नहीं आया है?” क्योंकि उन्होंने बड़ी गंभीरता पूर्वक यह शपथ ली थी, “जो कोई मिज़पाह में याहवेह के सामने उपस्थित न होगा, उसे निश्चित ही प्राण-दंड दिया जाएगा.”

6इस्राएल वंशज अपने बंधु बिन्यामिन वंशजों के लिए खेदित होकर यही विचार कर रहे थे, “आज इस्राएल में से एक गोत्र मिटा दिया गया है. 7अब वे, जो बाकी रह गए हैं, उनकी पत्नियों के लिए हम क्या करें, क्योंकि हमने याहवेह के सामने यह शपथ ले रखी है, कि हममें से कोई भी विवाह के लिए उन्हें अपनी पुत्रियां नहीं देगा?” 8जब वे पूछताछ कर रहे थे, “इस्राएल के गोत्रों में वह कौन है, जो मिज़पाह में याहवेह के सामने उपस्थित नहीं हुआ है?” यह पाया गया कि याबेश-गिलआद से इस सभा के लिए शिविर में कोई भी उपस्थित न हुआ था. 9क्योंकि जब गिनती की गई, यह मालूम हुआ कि याबेश-गिलआद का एक भी निवासी वहां न था.

10इसलिये इस सभा के द्वारा बारह हज़ार वीर योद्धाओं के दल को वहां भेजा गया. उनके लिए आदेश था, “जाओ, और याबेश-गिलआदवासियों को स्त्रियों और बालकों सहित तलवार से मार डालो. 11तुम्हें करना यह होगा: तुम्हें हर एक पुरुष को मार गिराना है और हर एक उस स्त्री को भी, जो पुरुष से संबंध बना चुकी है.” 12उन्हें याबेश-गिलआद निवासियों में चार सौ ऐसी कुंवारी कन्याएं मिलीं जिनका किसी पुरुष से संबंध नहीं हुआ था. इन्हें वे शीलो की छावनी में ले आए, यह कनान देश में था.

13तब सारी सभा ने उन बिन्यामिन वंशजों को, जो रिम्मोन चट्टान के क्षेत्र में आसरा लिए हुए थे, संदेश भेजा और उनके साथ शांति की घोषणा की. 14तब बिन्यामिन के वे वंशज लौट आए और उन्हें वे कन्याएं दे दी गईं, जिन्हें याबेश-गिलआद में सुरक्षित रखा गया था. फिर भी कन्याओं की संख्या उनके लिए पूरी न थी.

15ये सभी बिन्यामिन गोत्र की स्थिति के लिए दुःखी थे, क्योंकि याहवेह ने इस्राएल के गोत्रों के बीच फूट पैदा कर दी थी. 16तब सभा के प्रमुखों ने विचार-विमर्श किया, “बचे हुए पुरुषों के लिए पत्नियों का प्रबंध करने के लिए अब क्या किया जाए, क्योंकि बिन्यामिन प्रदेश से स्त्रियों को मारा जा चुका है?” 17उन्होंने विचार किया, “बिन्यामिन के बचे हुओं के लिए उत्तराधिकार का होना ज़रूरी है, कि इस्राएल का एक गोत्र मिट न जाए. 18यह तो संभव नहीं है कि हम उन्हें विवाह में अपनी पुत्रियां दे दें. क्योंकि इस्राएल वंशजों ने यह शपथ ली थी, ‘शापित होगा वह, जो बिन्यामिन वंशजों को विवाह में अपनी पुत्री देगा.’ 19इसलिये उन्होंने विचार किया, शीलो में, जो बेथेल के उत्तर में, याहवेह का सालाना उत्सव होनेवाला है. यह बेथेल से शेकेम जाते हुए राजमार्ग के पूर्वी ओर लेबोनाह के दक्षिण में है.”

20उन्होंने बिन्यामिन वंशजों को आदेश दिया, “जाकर अंगूर के बगीचों में छिप जाओ. 21इंतजार करते रहना. यह देखना कि जैसे ही शीलो की युवतियां नृत्य में शामिल होने आएं, तुम अंगूर के बगीचों से बाहर निकल आना, और तुममें से हर एक शीलो की इन नवयुवतियों में से अपनी पत्नी बनाने के लिए एक नवयुवती उठा लेना. फिर बिन्यामिन की भूमि पर लौट जाना. 22फलस्वरूप उनके पिता और भाई हमारे पास शिकायत लेकर आएंगे. तब हम उन्हें उत्तर देंगे, ‘अब अपनी इच्छा से ही अपनी पुत्रियां उन्हीं के पास रहने दीजिए. युद्ध के समय हमने बिन्यामिन वंशजों के लिए कन्याएं नहीं छोड़ी, और न ही आपने अपनी पुत्रियां उन्हें दी, नहीं तो आप दोषी हो जाते.’ ”

23बिन्यामिन वंशजों ने ऐसा ही किया. उन्होंने अपनी गिनती के अनुसार नृत्य करती युवतियों में से युवतियां उठा लीं और अपने साथ उन्हें ले गए. वे अपने तय किए गए विरासत में लौट गए. उन्होंने नगरों को दोबारा बनाया और वे उनमें बस गए.

24इस समय शेष इस्राएल वंशज वहां से चले गए, हर एक अपने-अपने कुल और परिवार को, हर एक अपनी-अपनी मीरास को.

25उन दिनों इस्राएल देश में राजा नहीं होता था. हर एक व्यक्ति वही करता था, जो उसे सही लगता था.