Markus 7 – HOF & NCA

Hoffnung für Alle

Markus 7:1-37

Was ist rein – was unrein?

(Matthäus 15,1‒20)

1Eines Tages kamen Pharisäer und Schriftgelehrte aus Jerusalem zu Jesus. 2Dabei entdeckten sie, dass einige seiner Jünger mit ungewaschenen Händen aßen. Dadurch verletzten sie die jüdischen Speisevorschriften und wurden unrein. 3Die Pharisäer und alle Juden essen nämlich erst, wenn sie sich die Hände sorgfältig gewaschen haben. So entspricht es den Überlieferungen ihrer Gesetzeslehrer. 4Auch wenn sie vom Markt kommen, essen sie erst, nachdem sie sich nach bestimmten Vorschriften gewaschen haben. Es gibt noch viele solcher Bestimmungen, die sie streng beachten, zum Beispiel die Reinigung von Trinkbechern, Krügen, Töpfen und Sitzpolstern.

5Deshalb also fragten die Pharisäer und Schriftgelehrten Jesus: »Weshalb beachten deine Jünger unsere überlieferten Speisevorschriften nicht und essen mit ungewaschenen Händen?« 6Jesus antwortete: »Wie recht hat Jesaja, wenn er von euch Heuchlern schreibt:

›Dieses Volk ehrt mich mit den Lippen, aber mit dem Herzen sind sie nicht dabei. 7Ihre Frömmigkeit ist wertlos, weil sie ihre menschlichen Gesetze als Gebote Gottes ausgeben.‹7,7 Jesaja 29,13

8Ja, ihr schenkt Gottes Geboten keine Beachtung und haltet euch stattdessen an menschliche Überlieferungen!«

9Jesus fuhr fort: »Ihr geht sehr geschickt vor, wenn es darum geht, Gottes Gebote außer Kraft zu setzen, um eure Vorschriften aufrechtzuerhalten. 10So hat euch Mose das Gebot gegeben: ›Ehre deinen Vater und deine Mutter!‹ Und an anderer Stelle: ›Wer seinen Vater oder seine Mutter verflucht, der muss sterben.‹7,10 2. Mose 20,12; 21,17 11Ihr aber behauptet, dass man seinen hilfsbedürftigen Eltern die Unterstützung verweigern darf, wenn man das Geld stattdessen für ›Korban‹ erklärt, das heißt, es Gott gibt. Dann hätte man nicht gegen Gottes Gebot verstoßen. 12In Wirklichkeit habt ihr damit aber nur erreicht, dass derjenige seinem Vater oder seiner Mutter nicht mehr helfen kann. 13Ihr setzt also durch eure Vorschriften das Wort Gottes außer Kraft. Und das ist nur ein Beispiel für viele.«

14Dann rief Jesus die Menschenmenge wieder zu sich. »Hört, was ich euch sage, und begreift doch: 15Nichts, was ein Mensch zu sich nimmt, kann ihn vor Gott unrein machen, sondern das, was von ihm ausgeht.7,15 Einige spätere Handschriften fügen hinzu: (Vers 16) Wer Ohren hat, der soll auf meine Worte hören!«

17Danach ging Jesus in ein Haus und war mit seinen Jüngern allein. Hier baten sie ihn zu erklären, was er mit dieser Rede gemeint hatte. 18»Selbst ihr habt es immer noch nicht begriffen?«, erwiderte Jesus. »Wisst ihr denn nicht, dass alles, was ein Mensch zu sich nimmt, ihn vor Gott nicht verunreinigen kann? 19Denn was ihr esst, geht nicht in euer Herz hinein; es kommt in den Magen und wird dann wieder ausgeschieden.« Damit erklärte Jesus alle Speisen für rein.

20Und er fügte noch hinzu: »Was aus dem Inneren des Menschen kommt, das lässt ihn unrein werden. 21Denn aus dem Inneren, aus dem Herzen der Menschen, kommen die bösen Gedanken wie sexuelles Fehlverhalten7,21 Oder: kommen die bösen Gedanken, sexuelles Fehlverhalten., Diebstahl, Mord, 22Ehebruch, Habsucht, Bosheit, Betrügerei, ausschweifendes Leben, Neid, Verleumdung, Überheblichkeit und Unvernunft. 23All dieses Böse kommt von innen heraus und macht die Menschen vor Gott unrein.«

Der unerschütterliche Glaube einer nichtjüdischen Frau

(Matthäus 15,21‒28)

24Jesus brach von dort auf und ging mit seinen Jüngern in die Gegend von Tyrus. Dort zog er sich in ein Haus zurück, denn er wollte unerkannt bleiben. Aber es sprach sich schnell herum, dass er gekommen war. 25Davon hatte auch eine Frau gehört, deren Tochter von einem bösen Geist beherrscht wurde. Sie kam zu Jesus, warf sich ihm zu Füßen 26und bat ihn, den Dämon aus ihrer Tochter auszutreiben. Die Frau war keine Jüdin, sondern eine Syrophönizierin7,26 Mit Syrophönizien wird das Gebiet zwischen Tyrus und Sidon bezeichnet, in dem sich Jesus zu dieser Zeit aufhielt..

27Jesus antwortete ihr: »Zuerst müssen die Kinder versorgt werden, die Israeliten. Es ist nicht richtig, den Kindern das Brot wegzunehmen und es den Hunden hinzuwerfen.« 28»Ja, Herr«, erwiderte die Frau, »und doch bekommen die Hunde die Krümel, die den Kindern vom Tisch fallen.«

29»Damit hast du recht«, antwortete Jesus, »du kannst nach Hause gehen! Ich will deiner Tochter helfen. Der Dämon hat sie bereits verlassen.« 30Und tatsächlich: Als die Frau nach Hause kam, lag ihre Tochter friedlich im Bett. Der Dämon hatte keine Macht mehr über sie.

Ein Taubstummer kann wieder hören und sprechen

31Jesus verließ die Gegend von Tyrus, zog in die Stadt Sidon und von dort weiter an den See Genezareth, mitten in das Gebiet der Zehn Städte. 32Dort wurde ein Mann zu ihm gebracht, der taub war und kaum reden konnte. Man bat Jesus, dem Mann die Hand aufzulegen und ihn zu heilen.

33Jesus führte den Kranken von der Menschenmenge weg. Er legte seine Finger in die Ohren des Mannes, berührte dessen Zunge mit Speichel, 34sah auf zum Himmel, seufzte und sagte: »Effata.« Das heißt: »Öffne dich!« 35Im selben Augenblick wurden dem Taubstummen die Ohren geöffnet und die Zunge gelöst, so dass er wieder hören und normal sprechen konnte.

36Jesus verbot den Leuten, darüber zu reden. Aber je mehr er es untersagte, desto mehr erzählten sie alles herum. 37Denn für die Leute war es unfassbar, was sie gesehen hatten. »Es ist einfach großartig, was er tut!«, verbreiteten sie überall. »Selbst Taube können wieder hören und Stumme sprechen!«

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

मरकुस 7:1-37

सुध अऊ असुध

(मत्ती 15:1-9)

1तब फरीसी अऊ कतको कानून के गुरू, जऊन मन यरूसलेम ले आय रिहिन, यीसू करा जुरिन। 2अऊ ओमन ओकर कुछू चेलामन ला बिगर हांथ धोय खाना खावत देखिन। 3फरीसी अऊ जम्मो यहूदी मन, अपन पुरखा के रीति के मुताबिक जब तक अपन हांथ ला नइं धो लिहीं तब तक खाना नइं खावंय। 4जब बजार ले घलो आवंय, त जब तक अइसने अपन हांथ ला नइं धो लेवंय, तब तक खाना नइं खावंय। अऊ ओमन अइसने कतेक अऊ रीति-रिवाज ला मानंय, जइसने कटोरी, लोटा अऊ तांबा के बरतन ला धोवई-मंजई।

5एकरसेति ओ फरीसी अऊ कानून के गुरू मन यीसू ले पुछिन, “काबर तोर चेलामन, पुरखामन के रीति-रिवाज के मुताबिक नइं चलंय अऊ बिगर हांथ धोवय खाना खावत हवंय?”

6ओह जबाब देके कहिस, “यसायाह अगमजानी ह तुम ढोंगीमन के बारे म ठीकेच अगमबानी करे हवय, जइसने कि बचन म लिखे हवय: ‘ए मनखेमन मुहूं ले तो मोर आदर करथंय, पर एमन के मन ह मोर ले दूरिहा रहिथे। 7एमन बिना मतलब के मोर भक्ति करथंय; एमन मनखेमन के बनाय नियम ला परमेसर के नियम कहिके सिखोथें।’7:7 यसायाह 29:13

8तुमन परमेसर के हुकूम ला टारके मनखेमन के रीति-रिवाज ला मानथव।”

9अऊ यीसू ह ओमन ला कहिस, “परमेसर के हुकूम ला टारके, अपन रीति-रिवाज ला माने के, तुम्‍हर करा बहुंत बढ़िया तरिका हवय। 10काबरकि मूसा ह कहे हवय, ‘अपन दाई-ददा के आदरमान करव अऊ जऊन कोनो अपन दाई या ददा के बारे म खराप बात कहिथे, ओह मार डारे जावय।’7:10 निरगमन 20:12 11पर तुमन कहिथव कि यदि कोनो अपन ददा या दाई ले कहय कि जऊन कुछू तोला मोर ले फायदा हो सकत रिहिस, मेंह ओला परमेसर ला दे चुके हवंव अऊ एला कुरबान कहिथंय। 12तब तुमन ओला अपन ददा या दाई खातिर अऊ कुछू करन नइं देवव। 13ए किसम ले तुमन अपन बनाय रीति-रिवाज के दुवारा परमेसर के बचन ला टार देथव अऊ तुमन अइसने-अइसने कतको अऊ काम करथव।”

14तब यीसू ह मनखेमन ला अपन करा बलाके कहिस, “जम्मो झन मोर गोठ ला सुनव अऊ समझे के कोसिस करव। 15अइसने कोनो चीज नइं ए, जऊन ह मनखे म बाहिर ले हमाके असुध करय, पर जऊन चीज मनखे के भीतर ले निकरथे, ओहीच ह ओला असुध करथे। 16जेकर सुने के कान हवय, ओह सुन ले।”

17जब यीसू ह भीड़ ला छोंड़के घर के भीतर गीस, तब ओकर चेलामन ए पटं‍तर के बारे म ओला पुछिन? 18ओह कहिस, “का तुमन घलो नासमझ अव? का तुमन नइं जानव कि जऊन चीज ह बाहिर ले मनखे के भीतर हमाथे, ओह ओला असुध नइं कर सकय। 19काबरकि ओह मनखे के हिरदय म नइं, पर पेट म जाथे अऊ फेर संडास दुवारा देहें ले बाहिर निकर जाथे।” ए कहे के दुवारा यीसू ह जम्मो खाय के चीजमन ला सुध ठहराईस।

20फेर ओह कहिस, “जऊन ह मनखे के भीतर ले निकरथे, ओहीच ह ओला असुध करथे। 21काबरकि भीतर ले याने कि मनखे के हिरदय ले खराप सोच-बिचार, छिनारी, चोरी, हतिया, काम-बासना, 22लोभ, दुस्‍टता, छल, उघरापन, जलन, निन्दा, अहंकार अऊ गंवारपन निकरथे। 23ए जम्मो खराप चीज हिरदय के भीतर ले निकरथे अऊ मनखे ला असुध करथे।”

एक माईलोगन के बिसवास

(मत्ती 15:21-28)

24यीसू ह ओ जगह (गलील) ला छोंड़के सूर सहर के इलाका म गीस अऊ उहां ओह एक ठन घर म गीस अऊ चाहत रिहिस कि ओकर बारे म कोनो झन जानय, पर ए बात ह छिपे नइं रहे सकिस। 25ओतकीच बेर एक माईलोगन, जेकर नानकून बेटी म असुध आतमा रहय, ओकर करा आईस। ओह यीसू के बारे म सुने रहय अऊ अब आके ओकर गोड़ खाल्‍हे म गिरिस। 26ओ माईलोगन ह आनजात (यूनानी) के रिहिस अऊ सुरूफिनीकी जाति म जनमे रिहिस। ओह यीसू ले बिनती करके कहिस कि असुध आतमा ला ओकर बेटी ले निकार दे।

27यीसू ह ओला कहिस, “पहिली लइकामन ला पेट-भर खावन दे। काबरकि ए ठीक नो हय कि लइकामन के रोटी ला लेके कुकुरमन ला दिये जावय।”

28तब ओ माईलोगन ह कहिस, “एह सही अय, परभू। तभो ले कुकुरमन घलो मेज के खाल्‍हे म लइकामन के जूठा-काठा ला खा लेथें।”

29यीसू ह ओला कहिस, “तेंह सही कहय। जा, असुध आतमा ह तोर बेटी ले निकर गे हवय।”

30तब ओह अपन घर जाके देखिस कि ओकर लइका ह खटिया म लेटे हवय अऊ असुध आतमा निकर गे रहय।

यीसू ह एक कोंदा-भैंरा मनखे ला बने करथे

31तब यीसू ह सूर सहर के इलाका ले निकरके सैदा होवत, गलील के झील के खाल्‍हे दस सहर के इलाका म आईस। 32उहां मनखेमन एक भैंरा अऊ कोंदा मनखे ला ओकर करा लानिन अऊ ओकर ले बिनती करिन कि ओह ओ मनखे ऊपर अपन हांथ रखके ओला बने करय।

33तब यीसू ह ओला भीड़ ले अलग ले जाके अपन अंगरी ला मनखे के कान म डारिस अऊ थूकिस, अऊ थूक ला लेके ओकर जीभ ला छुईस। 34अऊ स्‍वरग कोति निहारके सांस भरिस अऊ ओ मनखे ला कहिस, “इफ्‍फतह, जेकर मतलब होथे ‘खुल जा’।” 35ओतकीच बेर ओ मनखे के कानमन खुल गीन अऊ जीभ घलो ठीक हो गीस अऊ ओह साफ-साफ सुने अऊ गोठियाय लगिस।

36यीसू ह ओमन ला चेताके कहिस कि ए बात कोनो ला झन बतावव, पर जतका ओह ओमन ला चेताईस, ओतका ओमन ओ बात ला अऊ बताय लगिन। 37मनखेमन बहुंत अचम्भो करके कहन लगिन, “जऊन कुछू ओह करथे, बहुंत बढ़िया करथे। इहां तक कि ओह भैंरामन ला सुने के अऊ कोंदामन ला गोठियाय के सक्ति देथे।”